Why there is only Agni Sanskar in Hindus?
हिन्दुओं में अग्नि संस्कार हीं क्यों होता है?
ऋग्वेद का तृतीय सुक्त अग्नि संस्कार के वैज्ञानिक आधार की पुष्टि करता है
हिंदू कर्मकांड के लिए निर्णयसिन्धु को आधार मानते हैं। अन्त्येष्टि विषय पर निर्णयसिन्धु ऋग्वेद, यजुर्वेद, श्रौतसूत्र एवं गृह्यसूत्र से तथ्य लेता है। यजुर्वेद के 39वें अध्याय में इस पर चर्चा किया गया है। तो चलिए आज यह समझते हैं कि इसका वैज्ञानिक आधार क्या है? क्या सोचकर हमारे ऋषियों ने दाह संस्कार की व्यवस्था दी।
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सनातन परंपरा में जीवन के अंत होने पर देह को जलाने के पीछे एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण है। चूंकि मानव की जीवन गाथा एक रासायनिक घटना है अतः जीवन के अंत होने पर पुनः एक रासायनिक घटना की जाती है। जलाने की ताकि एक नया गुण-धर्म मिले। वह गुण-धर्म जो परमात्मा के सबसे नजदीक है। पर कैसे होता है अब यह समझें। देखिए, जलना एक रासायनिक परिवर्तन है। जब हमारा शरीर जलता है तो इसके रासायनिक संघटन में परिर्वतन होता है। यह परिर्वतन शरीर के रासायनिक गुण धर्म में परिवर्तन लाता है तथा शरीर अब एक नए तत्त्व में बदल जाता है। वो तत्त्व होता है अग्नि। शरीर अब इस अग्नि के साथ हीं घुल जाता है। जिस अग्नि से सृष्टि की शुरुआत हुई, पुनः उसी परमात्मा अग्नि में शरीर मिल गई। इस माध्यम से शरीर परमात्मा का अंग हो जाता है। परमात्मा हो जाता है। इसीलिए हिंदुओं में अग्नि संस्कार पर जोर है। अन्य संस्कारों में सिर्फ भौतिक परिवर्तन होता है। भौतिक परिवर्तन से नया गुण-धर्म नहीं मिलता। यानी नई शुरूआत नहीं हो पाती। हिन्दू दर्शन मुक्ति का मार्ग चुनता है।
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