Founder :
Sadhak Prabhat Kumar
साधक प्रभात - परिचय
मैं ऋषि परंपरा का प्रवृत्ति मार्गी वाशिष्ठ गोत्री साधक हूं एवं मेरा कार्य सनातन समाज की मजबूती के लिए भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार एवं बच्चों-युवाओं के मानसिक-शैक्षणिक विकास में मजबूती लाने से जुड़ा है। चूंकि मैं खुद सामाजिक जीवन जीता हूं अतः इसके सामाजिक-मानसिक एवं दैहिक संघर्ष से भली-भांति परिचित हूं। अपने अनुभवों एवं अपने सनातन गुरुओं के सानिध्य में सीखी गई ध्यान साधना, वैज्ञानिक आध्यात्मिकता के आधार पर मैंने जो व्यक्तिगत विकास के गुर सीखें हैं वही ॠषि ॠण चुकाने हेतु समझाने का प्रयास करता हूं।
कई लोग साधक से अर्थ निकालते हैं संसार से वैराग्य एवं परमात्मा से प्रेम करने वाला। लेकिन उपरोक्त परिभाषा संन्यासी या वैरागी के लिए है। साधक का अर्थ वास्तव में ऐसा नहीं है, गृहस्थ साधक के लिए तो बिल्कुल नहीं जिसपर पूरा राष्ट्र या संस्कृति टिकी होती है। एक साधक स्वतंत्र विचारक है जो अपनी समझ की दुनिया से इस व्यापक विश्व को समझने की चेष्टा करता है और नवीन संभावनाओं की ओर जाने के लिए प्रयासरत रहता है। वह एक ही जगह चिपका नहीं रहता या किसी खास अवधारणा के प्रति उसमें कोई जिद नहीं रहती। नए विचारों, खोजें से अपने को परिचित करा कर उनको प्राचीन ज्ञान से परमार्जित कर कैसे समाज में इसे व्यक्तिगत एवं समाज के विकास के लिए उपयोग में लाया जा सकता है, इस ज्ञान की तकनीकी खोज करता रहता है।
साधना का अर्थ केवल एकांतवास या ध्यान नहीं होता। वह साधना का एक पक्ष है। साधना का एक यह भी अर्थ होता है कि हम अपने मन में संतोष और शांति के भाव को चौबीस घंटे कायम रखें। असली साधना यही है। अगर आप ध्यान करते हैं तो अधिक-से-अधिक एक घंटे के लिए करेंगे। उसमें भी श्वास का ख्याल करेंगे। मंत्र जप करेंगे। इष्ट पर ध्यान धरेंगे। इसमें ज्यादा-से-ज्यादा किसी अच्छे भाव की अनुभूति हो सकती है। लेकिन वह क्षणिक होगी। उसके बाद फिर क्या? हमने ध्यान एक घंटे किया, पर तेइस घंटे जब हम संसार में रहते हैं, तो क्या संसार में रह कर भी हम अपने मानसिक संतोष, प्रतिभा और शांति को कायम रख सकते हैं? अपने ध्यान के क्लासरूम में बैठ कर तो आप एक घंटा ध्यान कर ही लोगे, लेकिन असली मेहनत तब होती है, जब घर एवं समाज के बीच आकर आपको सभी के साथ अपनी भावनाओं एवं व्यवहार के बीच समन्वय करना होता है। सफलता घर एवं समाज में की गयी इसी मेहनत पर निर्भर करती है। एकांतवास या ध्यान से केवल सूत्र मिल जाता है कि इस विषय पर तुम मंथन करो और वह मंथन बाकी के तेइस घंटे करना होता है। इसलिए कभी यह नहीं समझना चाहिए कि साधना का मतलब एकांत या ध्यान या मंत्र जप ही होता है एवं साधक सिर्फ संन्यासी होता है।
श्रीमद्भगवद्गीता के सिद्धांत एवं आधुनिक विज्ञान के सिद्धांत के बीच रिश्तों को समझाते हुए, युवाओं के बीच भगवत गीता का प्रचार-प्रसार मेरा लक्ष्य है ताकि सनातनियों की एक निर्भिक, सबल एवं सफल पीढ़ी संपूर्ण संसार को सनातनी ध्वज से शोभायमान करे।
गीता में बिना फल की चिंता किए कार्य करने की शिक्षा इसलिए देता है क्योंकि यह पूरी तरह से विज्ञान है। विज्ञान क्रिया करता है, अब फल चाहे जो हो। चिंता में अकर्मक नहीं होगा वो। विज्ञान में इमोशन नहीं होता। इमोशन कथा में होता है। गीता वार्ता (शिक्षा) की चीज है, कथा की नहीं। विज्ञान की कभी कथा नहीं होती। यह फैक्ट आधारित होती है। गीता बड़े लोगों (धनी बेइमान वर्ग) का नहीं छोटे लोगों का शास्त्र है जो बड़े लोगों से संघर्ष करने में शस्त्र बन जाता है। अतः जितने भी गरीब-दबे लोग हो वो गीता अवश्य पढ़ो, अपने बच्चों को पढ़ाओ ताकि जिस वक़्त बेइमान अपने बेइमानी के धन से तुम्हें निरीह साबित कर तुम्हारा शोषण करे उस वक्त बेहिचक तुम संघर्ष कर सको। भीषणतम संघर्ष। अभी तुम हर कदम पर मरते हो, कभी बच्चों के लिए बेइमानों के स्कूल-अस्पताल के सामने, तो कभी बेटियों के इज्जत के लिए। गीता तुम्हें साहस देगा। मृत्यु के पार देख सकोगे। जब पार देखोगे तभी मुक्त हो पाओगे। सामाजिक दृष्टि से शायद संघर्ष में विजय भी पा जाओ। व्यक्तिगत दृष्टि से तो विजयी होगे हीं। जीते तो भी हारे तो भी। क्यूंकि मृत्यु के पार तो बेबस रहोगे नहीं। इसलिए बेबसी से निकलना है तो गीता जरूर पढ़ो। प्रवृत्ति मार्ग का, निवृत्ति मार्ग का नहीं।
आजकल हिंदू एवं इस्लाम में समानता ढूंढ़ने का चलन सोशल मिडिया के प्रभाव में चलने लगा है। हिंदू एवं इस्लाम में समानता ढूंढ़ना नासमझ दीवानगी के सिवा कुछ नहीं है। हुबल एवं महादेव में समानता ढूंढ के भी क्या मिलेगा? सिर्फ झूठी तसल्ली कि हम से हीं इस्लाम है या हम श्रेष्ठ हैं। वैचारिक श्रेष्ठता का भ्रम कायरता की निशानी है। यह वह अहंकार है जिसे पूरा करने में आप समर्थ नहीं है ऐसा आपका मन जानता है। जबतक हिंदू हिंदू है एवं इस्लाम के मानने वाले मुसलमान तब तक एकता मत खोजो। यह समानता खोजना घातक है क्योंकि सूक्ष्मता से देखोगे तो धर्म तो एक हीं है। सतोगुणी को तो सब समान हीं दिखते हैं। कहीं अंतर नहीं होता। फिर समानता का प्रश्न कहां? समानता ढूंढ़ना तुम्हारा तुम्हारे अपने धर्म पर अविश्वास दिखाता है। कृष्ण के दिखाए मार्ग पर चलो। जो सामने है उसका सामना करो क्योंकि
अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत।
अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना।।2.28।।
सिर्फ मध्य हीं दिखता है। भूत और भविष्य नहीं।जय शिव-शक्ति।
साधक प्रभात
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