श्री बैकुंठ चतुर्दशी व्रत - श्री महाविष्णु पूजा, ब्रह्मकूर्च और पाषाणचतुर्दशी व्रत
Shri Baikunth Chaturdashi Vrat - Shri Mahavishnu Puja, Brahmakoorch and Pashan Chaturdashi Vrat
श्री बैकुंठ चतुर्दशी व्रत - श्री महाविष्णु पूजा, ब्रह्मकूर्च और पाषाणचतुर्दशी व्रत
कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को श्रीमहा विष्णु एवं श्री विश्वेश्वर और विश्वेश्वरी के पूजन का विधान है।
श्री बैकुंठ चतुर्दशी व्रत - श्री महाविष्णु पूजा
वैकुण्ठचतुर्दशी व्रत के विषय में सनत्कुमारसंहिता में वर्णन किया गया है कि हेमलम्ब संवत्सर की कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के अरुणोदय में 'मणिकर्णिक' ब्राह्ममुहूर्त में स्नान करने का बड़ा शुभ फल होता है। इस दिन प्रातःस्नानादि के पश्चात् विश्वेश्वरी (ब्रह्मांड की देवी दुर्गा जो ईश्वर को सकल कराती हैं ) और विश्वेश्वर (ब्रह्मांड के भगवान शिव जिसे ईश्वर कहते हैं ) का पूजन करके व्रत करे तो वैकुण्ठवास होता है।
श्री नर्मदेश्वर को तुलसी का समर्पण करते हैं।
आज काशी में श्री काशी विश्वनाथ प्रतिष्ठा होती है।
पाषाण चतुर्दशी व्रत -
यह व्रत ओड़िसा में मुख्या तौर पर मनाया जाता है। देवी पुराण के अनुसार कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को जौके चूर्ण की चौकोर रोटी बनाकर गौरी की आराधना करे और उक्त रोटी का नैवेद्य अर्पण करके स्वयं उसी का एक बार भोजन करे तो सुख-सम्पत्ति और सुन्दरता प्राप्त होती है। इसी को पाषाण चतुर्दशी व्रत कहते हैं।
ब्रह्मकूर्च व्रत -
ब्रह्मकूर्च व्रत में 13 दिन तक प्रतिदिन खील या मुरमुरा खाकर चतुर्दशी तथा अमावस्या या पूर्णिमा को पूर्ण उपवास रखा जाता है। तत्पश्चात पंचगव्य पीकर हविष्य अन्न का भोजन किया जाता है। इस व्रत को " ब्रह्म कूर्च " व्रत कहते हैं।
ब्रह्मकूर्च व्रत में कार्तिक शुक्ल चतुर्दशीको स्नानादिके अनन्तर उपवासका संकल्प करके देवों को अक्षत आदि से और पितरों को तिल आदि से तृप्त करके कपिला गौ का 'गोमूत्र', कृष्ण गौ का 'गोमय', श्वेत गौ का 'दूध', पीली गौ का 'दही' और कर्तुर (कबरी) गौ का घी लेकर वस्त्र से छान कर के एकत्र करे। उसमें थोड़ा कुशोदक (डाभ का पानी) भी मिला दे और रात्रि के समय उक्त 'पञ्च गव्य' पीये तो उससे तत्काल ही सब पाप-ताप और रोग-दोष दूर होकर अद्भुत प्रकारके बल, पौरुष और आरोग्यकी वृद्धि होती है।
ब्रह्म कूर्च - यदि कोई 1 माह में 2 बार भी यह व्रत करे तो वह सभी प्रकार के पापों से मुक्त हो जाता है।