× SanatanShakti.in About Us Home Founder Religion Education Health Contact Us Privacy Policy
indianStates.in

भीष्माष्टमी व्रत की विधि एवं महिमा

Bhishmashtami Vrat

Bhishma-Panchak-Vrat

॥ श्रीहरिः ॥

भीष्माष्टमी व्रत की विधि एवं महिमा

माघ शुक्ल अष्टमी को संतान और सुख प्राप्ति के लिए भीष्माष्टमी का व्रत है। भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्यागने के लिए उत्तरायण होने पर माघ शुक्ल अष्टमी को चुना। इस दिन भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्याग दिए थे। इसके लिए हर साल माघ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि पर एकोदिष्ट श्राद्ध किया जाता है।

भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था, लेकिन उन्होंने कई अवसर पर असत्य के खिलाफ आवाज नहीं उठाई थी। अतः भीष्म पितामह के मन में ग्लानि थी कि कितना भी श्रेष्ठ बनने के बाद भी गलती संभव है। इसके लिए भीष्म पितामह दोबारा पृथ्वी लोक पर नहीं आना चाहते थे। इसी वजह से भीष्म पितामह ने सूर्य उत्तरायण होने के बाद माघ माह को देह त्यागने के लिए चुना।

भीष्माष्टमी व्रत विधि -

माघ शुक्ल अष्टमी को जौ, तिल, गन्ध, पुष्प, गङ्गाजल और दर्भ आदि से भीष्मजी का श्राद्ध अथवा तर्पण करे तो अभीष्टसिद्धि होती है। यदि तर्पणमात्र भी न किया जाय तो पाप होता है। श्राद्धके अवसर में भीष्म का पूजन भी किया जाता है, अतः उसमें निम्न मन्त्र से अर्घ्य दे।

वसूनामवताराय शंतनोरात्मजाय च।
अर्घ्य ददामि भीष्माय आबाल्यब्रह्मचारिणे ।।

***********

www.indianstates.in

भीष्माष्टमी व्रत की विधि एवं महिमा Bhishmashtami Vrat