× SanatanShakti.in About Us Home Founder Religion Education Health Contact Us Privacy Policy
indianStates.in

बुधवार प्रदोष त्रयोदशी व्रत कथा एवं पूजा विधि - सर्व कामना सिद्धि के लिये

Wednesday Pradosh Vrat story and worship method

महाशिवरात्रि * हरतालिका तीज * शिव आरती * शिव चालीसा * श्री शिवाष्टक * शिव स्तुति * श्री शिव सहस्त्रनाम स्त्रोत हिंदी में * श्री शिव सहस्त्रनामावली * महामृत्युंजय मंत्र * शिवलिंग पर जल चढ़ाने का मंत्र * शिव यजुर मंत्र - कर्पूर गौरम करुणावतारं * शिव प्रातः स्मरण स्तोत्र * श्री रुद्राष्टकम् स्तोत्र * लिंगाष्टकम स्तोत्र * मृतसंजीवनी कवचं * पशुपति स्तोत्रम् * अर्धनारी नटेश्वर स्तोत्रम् * दारिद्र दहन शिव स्तोत्र * महाकालस्तुतिः * श्रीकालभैरवाष्टकम् * शिव तांडव स्तुति * श्री विश्वनाथमङ्गल स्तोत्रम् * श्रीकाशीविश्वेश्वरादिस्तोत्रम् * पुत्र प्राप्ति हेतु शिव अभिलाषाष्टक-स्तोत्र का पाठ * सावन में शिव साधना मंत्र * वैदिक शिव पूजन विधान * बैद्यनाथ धाम देवघर को पुराणों में चिताभूमि क्यों कहा जाता है? * शिवपञ्चमाक्षर * त्रिपुंड की तीन रेखाओं का रहस्य * भगवान शिव के इक्कीस नाम * भगवान शिव शतनामावली स्तोत्रम्-108 नाम * शिवलिंग-पूजन से जुड़े सवाल-जवाब * बिल्वाष्टकम् * सावन में तिथि वार देव पूजन * सावन में शिवलिंग पर राशि के अनुसार क्या चढ़ाएं? * पार्थिव शिवलिंग कैसे बनाएं * देव दिवाली * मास शिवरात्रि * सौभाग्य सुंदरी व्रत * प्रदोष का व्रत * रवि प्रदोष व्रत - दीर्घ आयु और आरोग्यता के लिये * सोम प्रदोष व्रत - ग्रह दशा निवारण कामना हेतु * मंगल प्रदोष व्रत - रोगों से मुक्ति और स्वास्थ्य हेतु * बुध प्रदोष व्रत - सर्व कामना सिद्धि के लिये * बृहस्पति प्रदोष व्रत - शत्रु विनाश के लिये * शुक्र प्रदोष व्रत - सौभाग्य और स्त्री की समृद्धि के लिये * शनि प्रदोष व्रत – खोया हुआ राज्य व पद प्राप्ति कामना हेतु * शिवलिंग पर जलधारा की मटकी - गलंतिका (वसोधारा) * ॐ का जप क्यों करते हैं? * शिवलिंग सिर्फ लिंग और योनि नहीं है * काले शिवलिंग को पूजने वाले सभी एक वर्ण हैं * रुद्र और शिव में क्या अंतर है?
 

प्रदोष का व्रत pradosh ka vrat Pradosh's fast
आलेख © कॉपीराइट - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)

बुधवार प्रदोष त्रयोदशी व्रत कथा एवं पूजा विधि - सर्व कामना सिद्धि के लिये

Wednesday Pradosh Vrat story and worship method

1 . बुधवार प्रदोष त्रयोदशी व्रत में दिन में केवल एक बार भोजन करना चाहिये ।
2 . इसमें हरी वस्तुओं का प्रयोग किया जाना जरूरी है।
3 . यह व्रत शंकर भगवान का प्रिय व्रत है। शंकर जी की पूजा धूप, बेल पत्रादि से की जाती है।

बुधवार प्रदोष व्रत पूजा की विधि - Method of Pradosh Vrat Puja -

प्रदोष व्रत करने वाले को दिनभर भोजन नहीं करना चाहिये। शाम के समय जब सूर्यास्त में तीन घड़ी का समय शेष रह जाए तब स्नानादि कर्मों से निवृत्त होकर, श्वेत वस्त्र धारण करके तत्पश्चात् संध्यावन्दन करने के बाद शिवजी का पूजन प्रारंभ करना चाहिए। पूजा के स्थान को स्वच्छ जल से लीपें। वहाँ मण्डप बनाएँ। वहाँ पाँच रंगों के पुष्पों से पद्म पुष्प की आकृति बनाकर कुश का आसन बिछायें, आसन पर पूर्वाभिमुख बैठें। इसके बाद भगवान महेश्वर का ध्यान करें।

ध्यान का स्वरूप -

करोड़ों चन्द्रमा के समान कान्तिवान, त्रिनेत्रधारी, मस्तक पर चन्द्रमा का आभूषण धारण करने वाले पिंगलवर्ण के जटाजूटधारी, नीले कण्ठ तथा अनेक रुद्राक्ष मालाओं से सुशोभित, वरदहस्त, त्रिशूलधारी, नागों के कुण्डल पहने, व्याघ्र चर्म धारण किए हुए, रत्नजड़ित सिंहासन पर विराजमान शिवजी का ध्यान करना चाहिये।

बुधवार प्रदोष व्रत के उद्यापन की विधि -

प्रातः स्नानादि कार्य से निवृत होकर रंगीन वस्त्रों से मण्डप बनावें। फिर उस मण्डप में शिव-पार्वती की प्रतिमा स्थापित करके विधिवत पूजन करें। तदन्तर शिव पार्वती के उद्देश्य से खीर से अग्नि में हवन करना चाहिए। हवन करते समय ॐ उमा सहित शिवाय नमः ' मन्त्र से १०८ बार आहुति देनी चाहिये। इसी प्रकार ॐ नमः शिवाय' के उच्चारण के शंकर जी के निमित्त आहुति प्रदान करें। हवन के अन्त में सामर्थ्य के अनुसार दान देना चाहिये (अयोग्यं लोभी वा कस्मैचित् दानं दत्तं चेत् उपवासः शून्यः इति शास्त्रीयः प्रत्ययः - अयोग्य या लालची को दान देने से व्रत निष्फल है ऐसा शास्त्रीय मत है अत: योग्य धार्मिक व्यक्ति को दान देना चाहिये )। अपने बन्धु बान्धवों की साथ में लेकर मन में भगवान शंकर का स्मरण करते हुए व्रती को भोजन करना चाहिये। इस प्रकार उद्यापन करने से व्रती पुत्र-पौत्रादि से युक्त होता है तथा आरोग्य लाभ करता है। इसके अतिरिक्त वह अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है एवं सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है। ऐसा स्कन्द पुराण में कहा गया है।

बुधवार प्रदोष व्रत कथा

एक समय सर्व प्राणियों के हितार्थ परम पावन भागीरथी के तट पर ऋषि समाज द्वारा विशाल गोष्ठी का आयोजन किया गया विज्ञ महर्षियों की एकत्रित सभा में व्यास जी के परम शिष्य पुराणवेत्ता सूत जी महाराज हरि कीर्तन करते हुए पधारे। सूत जी को देखते ही शौनकादि अट्ठासी हजार ऋषि मुनियों ने खड़े होकर दंडवत् प्रणाम किया। महाज्ञानी सूत जी ने भक्ति भाव से ऋषियों को हृदय से लगाया तथा आशीर्वाद दिया विद्वान ऋषिगण और सब शिष्य आसनों पर विराजमान हो गये।

मुनिगण विनीत भाव से पूछने लगे कि हे परम दयालु कलिकाल में शंकर की भक्ति किस आराधना द्वारा उपलब्ध होगी, हम लोगों को बताने की कृपा कीजिए, क्योंकि कलयुग के सर्व प्राणी पाप कर्म में रत रहकर वेद शास्त्रों से विमुख दीनजन अनेकों संकटों से त्रस्त रहेंगे। हे मुनिश्रेष्ठ! कलिकाल में सत्कर्म की ओर किसी की रुचि न होगी। जब पुण्य क्षीण हो जायेंगे तो मनुष्य की बुद्धि असत् कर्मों की ओर खुद ब खुद प्रेरित होगी जिससे दुर्विचारी पुरुष वंश सहित समाप्त हो जायेंगे। इस अखिल भूमण्डल पर जो मनुष्य ज्ञानी होकर ज्ञान की शिक्षा नहीं देता, उस पर परमपिता परमेश्वर कभी प्रसन्न नहीं होते हैं। है महामुने! ऐसा कौन सा उत्तम व्रत है जिससे मनवांछित फल की प्राप्ति होती हो, आप कृपा कर बतलाइये। ऐसा सुनकर दयालु हृदय, श्री सूत जी कहने लगे- कि हे श्रेष्ठ मुनियों तथा शौनक जी आप धन्यवाद के पात्र है। आपके विचार सराहनीय एवं प्रशंसनीय हैं। आप वैष्णव अग्रगण्य हैं क्योंकि आपके हृदय में सदा परहित की भावना रहती है, इसलिए हे शौनकादि ऋषियों, सुनो मैं उस व्रत को तुमसे कहता हूँ जिसके करने से सब पाप नष्ट हो जाते हैं। धन वृद्धिकारक, दुःख विनाशक, सुख प्राप्त कराने वाला, सन्तान देने वाला, मनवांछित फल प्राप्ति कराने वाला यह व्रत तुमको सुनाता हूँ जो किसी समय भगवान शंकर ने सती जी को सुनाया था और उनसे प्राप्त यह परमश्रेष्ठ उपदेश मेरे पूज्य गुरु जी ने मुझे सुनाया था। जिसे आपको समय पाकर शुभ बेला में मैं सुनाता हूँ । बोलो उमापति शंकर भगवान की जय।

सूत जी कहने लगे कि आयु, वृद्धि, स्वास्थ्य लाभ हेतु त्रयोदशी का व्रत करें। इसकी विधि इस प्रकार है- प्रातः स्नान कर निराहार रहकर, शिव ध्यान में मग्न हो, शिव मन्दिर में जाकर शंकर की पूजा करें पूजा के पश्चात् अर्द्ध पुण्ड त्रिपुण्ड का तिलक धारण करें, बेल पत्र चढ़ावें, धूप, दीप अक्षत से पूजा करें, ऋतु फल चढ़ावे "ॐ नमः शिवाय " मन्त्र का रुद्राक्ष की माला से जप करें, | ब्राह्मण को भोजन करा सामर्थ्य अनुसार दक्षिणा दें। तत्पश्चात् मौन व्रत धारण करें, व्रती को सत्य भाषण करना आवश्यक है, हवन आहुति भी देनी चाहिये। मन्त्र" ओं ह्रीं क्लीं नमः शिवाय स्वाहा' से आहुति देनी चाहिये। इससे अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। व्रती पृथ्वी पर शयन करें, एक बार भोजन करे इससे सर्व कार्य सिद्ध होते हैं। श्रावण मास में तो इसका विशेष महत्व है। यह सर्वसुख धन, आरोग्यता देने वाला है, यह व्रत इस सब मनोरथों को पूर्ण करता है। हे ऋषिवरों! यह प्रदोष व्रत जो मैंने आपको बताया किसी समय शंकर जी ने सती जी को और वेदव्यास मुनि ने मुझको सुनाया था।

शौनकादि ऋषि बोले- हे पूज्यवर महामते ! आपने यह व्रत परम गोपनीय मंगलप्रद, कष्ट निवारक बतलाया है! कृपया यह बताने का कष्ट करें कि यह व्रत किसने किया और उसे क्या फल प्राप्त हुआ ? शौनकादि ऋषि बोले कि हे दयालु कृपा करके अब आप बुधवार त्रयोदशी प्रदोष का व्रत सुनाइये ।

सूत जी बोले- अब मैं बुधवार त्रयोदशी प्रदोष व्रत की कथा विधि विधान कहता हूँ, सुनो -

प्राचीन काल की कथा है, एक पुरुष का नया नया विवाह हुआ था। वह गौने के बाद दूसरी बार पत्नी को लिवाने के लिए अपनी ससुराल पहुंचा और उसने सास से कहा कि बुधवार के दिन ही पत्नी को लेकर अपने नगर जायेगा। उस पुरुष के सास-ससुर ने साले सालियों ने उसको समझाया कि बुधवार को पत्नी को विदा कराकर ले जाना शुभ नहीं है, लेकिन वह पुरुष अपनी जिद से टस से मस नहीं हुआ। विवश होकर सास-ससुर को अपने जमाता और पुत्री को भारी मन से विदा करना पड़ा।

पति-पत्नी बैलगाड़ी में चले जा रहे थे। एक नगर के बाहर निकलते ही पत्नी को प्यास लगी। पति लोटा लेकर पत्नी के लिए पानी लेने गया। जब वह पानी लेकर लौटा तो उसके क्रोध और आश्चर्य की सीमा न रही, क्योंकि उसकी पत्नी, किसी अन्य पुरुष के लाये लोटे में से पानी पीकर हँस-हँसकर बतिया रही थी। क्रोध में आग बबूला होकर यह उस आदमी से झगड़ा करने लगा। मगर यह देखकर आश्चर्य की सीमा न रही कि उस पुरुष की शक्ल उस आदमी से हूबहू मिलती थी।

हम शक्ल आदमियों को झगड़ते हुए जब काफी देर हो गई तो वहाँ आने- जाने वालों की भीड़ एकत्र हो गई, सिपाही भी आ गया। सिपाही ने स्त्री से पूछा कि इन दोनों में से कौन सा आदमी तेरा पति है, तो यह बेचारी असमंजस में पड़ गई, क्योंकि दोनों की शक्ल एक-दूसरे से बिल्कुल मिलती थी । बीच राह में अपनी पत्नी को इस तरह लुटा देखकर उस पुरुष की आँख भर आई। वह शंकर भगवान से प्रार्थना करने लगा, कि हे भगवान आप मेरी और मेरी पत्नी की रक्षा करो। मुझसे बड़ी भूल हुई जो मैं बुधवार को पत्नी को विदा करा लाया। भविष्य में ऐसा अपराध कदापि नहीं करूँगा ।

उसकी वह प्रार्थना जैसे ही पूरी हुई कि दूसरा पुरुष अर्न्तध्यान हो गया और वह पुरुष सकुशल अपनी पत्नी के साथ अपने घर पहुँच गया। उस दिन के बाद पति-पत्नी नियमपूर्वक बुधवार प्रदोष व्रत रखने लगे।

कथा के बाद अब शंकर भगवान् की आरती करें

आरती श्री शंकर जी की

ओम जय शिव ओंकारा स्वामी जय शिव ओंकारा ॥ ओ० ॥
ब्रह्मा-विष्णु सदाशिव अर्द्धांगी धारा ॥ ओ० ॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ॥ ओ० ॥
हंसासन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ओ० ॥
दो भुज चार चतुर्भुज दशभुज अति सोहे ॥ ओ० ॥
तीनों रूप निरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ओ० ॥
अक्षमाला बनमाला रुंडमाला धारी ॥ ओ० ॥
चंदन मृगमद सोहे भोले शुभकारी ॥ ओ० ॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघाम्बर अंगे ॥ ओ० ॥
सनकादिक ब्रह्मादिक प्रेतादिक संगे ॥ ओ० ॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशुल धर्ता ॥ ओ० ॥
जग कर्ता संहर्ता जग पालन कर्ता ॥ ओ० ॥
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव जानत अविवेका ॥ ओ० ॥
प्रणवाक्षर के मध्ये, तीनों ही एका ॥ ओ० ॥
त्रिगुण स्वामी जी की आरती जो कोई जन गावे ॥ ओ० ॥
कहत शिवानन्द स्वामी मन वाँछित फल पावे ॥ ओ० ॥

www.indianstates.in

***********

बुधवार त्रयोदशी प्रदोष व्रत व्रत कथा Wednesday Pradosh Vrat Pradosh Trayodashi प्रदोष व्रत पूजा की विधि व्रत के उद्यापन की विधि- indianstates.in