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Who is a Brahmin according to Sanatan Shastras

सनातन शास्त्रों के अनुसार ब्राह्मण कौन है

आलेख © कॉपीराइट - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)

Classification of Brahmins according to Shiva-Purana

यास्क मुनि ने निरुक्त में लिखा है कि ब्राह्मण का अर्थ होता है जो ब्रह्म को जानता हो। उसमें यानी ब्रह्म में विचरण करता हो। ईश्वर को जानता है। शतपथ ब्राह्मण भी ब्राह्मण को इसी अर्थ में इंगित करता है। वेदों-उपनिषदों से दूर रहने वाला और स्वार्थ एवं लोभ के गुणों से अलिप्त व्यक्ति चाहे जन्म से ब्राह्मण हों लेकिन ऋषियों की व्याख्या के अनुसार वह ब्राह्मण नहीं है।

यास्क मुनि के अनुसार -

जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात् भवेत द्विज एक पाठात् भवेत् विप्रःब्रह्म जानातीति ब्राह्मणः।।

अर्थात – व्यक्ति जन्मतः शूद्र है। संस्कार से वह द्विज बन सकता है। वेदों के पठन-पाठन से विप्र हो सकता है। किंतु जो ब्रह्म को जान ले,वही ब्राह्मण कहलाने का सच्चा अधिकारी है।

ऋग्वेद के अनुसार सभी मनुष्य समान हैं एवं अपनी योग्यता के अनुसार कार्य करते हैं। ऋग्वैदिक युग में जाति जैसी कोई चीज नहीं थी।

उनके वंशज अपनी योग्यता के अनुसार कुछ अलग कार्य कर सकते हैं एवं उस कार्य के अनुसार उनका स्तर एवं वर्ग तय होगा। ब्राह्मण वही है जो परोपकारी हो, ज्ञानी हो सभी को समान दृष्टि से देखने वाला हो, प्रकृति को नुकसान पहुंचाए बिना कार्य करें, निर्दोष को कभी दंड ना दे, अन्याय को बर्दाश्त ना करें, उन्नति करने वाला हो, धर्म आचरण करने वाला, समाज का कल्याण करें वेदों और प्राकृतिक विज्ञान का ज्ञाता हो ऐसा व्यक्ति ब्राह्मण है। और सभी लोग इन सभी चीजों को धारण करने के बाद ब्राह्मण बन सकते हैं। शिव पुराण इसी को और स्पष्ट करते हुए सभी को ब्राह्मण बताया है एवं उसका वर्गीकरण दिया है।

बाद के युग में प्रभावशाली वर्ग द्वारा अपने हित में जाति की व्यवस्था की गई ताकि उनके और उनके वंशजों का हित सध सके। मनुस्मृति एवं कुछ और बाद के ग्रंथों में ब्राह्मण को जाति के अंतर्गत लाया गया है जिसके तहत ब्राह्मण का पुत्र जन्म से भी ब्राह्मण माना गया है लेकिन यह विचार सनातन शास्त्रों का नहीं है। बल्कि यह ब्राह्मण वर्ग के अथवा उच्च वर्ग के शासकों द्वारा पोषित विचारधारा है। मनुस्मृति भी उस वक्त के शासकों के अनुकूल सामाजिक नियम व्यवस्था को बताती है जो शासन चलाने के दृष्टिकोण से है। आध्यात्मिक दृष्टि से इसका कोई मतलब नहीं है।
स्कन्दपुराण में षोडशोपचार पूजन के अन्तर्गत अष्टम उपचार में ब्रह्मा द्वारा नारद को यज्ञोपवीत के आध्यात्मिक अर्थ में बताया गया है कि -
जन्मना ब्राह्मणो ज्ञेयः संस्कारै द्विज उच्यते।
विद्यया याति विप्रः श्रोतिरस्त्रिभिरेवच।।
अर्थात आध्यात्मिक दृष्टि से यज्ञोपवीत के बिना जन्म से ब्राह्मण भी शुद्र के समान ही होता है। यज्ञोपवीत गुरुकुल में होता था और शिक्षा की शुरुआत होती थी। यानी अशिक्षित व्यक्ति को शूद्र कहते हैं न कि जन्म से ।

शिव-पुराण के अनुसार ब्राह्मण का वर्गीकरण

गीता प्रेस की हनुमान प्रसाद पोद्दार द्वारा संपादित शिव-पुराण के श्रीशिवमहापुराण (विद्येश्वर सहिता) खंड में पृष्ठ 55 पर सदाचार पालन के अंतर्गत ब्राह्मण का वर्गीकरण दिया गया है --
1. जो ब्राह्मण केवूल वेदोक्त आचार का पालन करने वाला एवं वेद का अभ्यासी है उस ब्राह्मण की संज्ञा विप्र" होती है।
2. सदाचार, वेदाचार तथा विद्या इनमें से एक-एक गुण से ही युक्त होने पर उसे द्विज' कहते हैं।
3 जिस ब्राह्मण में स्वल्पमात्रा में हीं आचार का पालन देखा जाता हो, वेदाध्ययन भी बहुत कम किया है तथा जो राजा का सेवक है ( पुरोहित, मंत्री आदि) उसे क्षत्रिय ब्राह्मण कहते हैं।
4. जो ब्राह्मण कृषि तथा वाणिज्य कर्म करने वाला है और कुछ-कुछ ब्राह्मणोचित आचार का भी पालन करता है, वह वैश्य ब्राह्मण है।
5. जो ब्राह्मण स्वयं ही खेत जोतता है, हल चलाता है उसे शुद्र ब्राह्मण कहते हैं।
6. जो दूसरों के दोष देखने वाला और परद्रोही है उसे "चाण्डाल द्विज कहते हैं।

 
ब्राह्मण का वर्गीकरण

Sadhak Prabhat Kumar

भगवद गीता में श्री कृष्ण ने ब्राह्मण की क्या व्याख्या दी है?

भगवद गीता में श्री कृष्ण के अनुसार "शम, दम, करुणा, प्रेम, शील (चारित्र्यवान), निस्पृही जेसे गुणों का स्वामी ही ब्राह्मण है" और "चातुर्वर्ण्य माय सृष्टं गुण है कर्म विभागशः" (भ.गी. ४-१३)।

योग सूत्र व भाष्य के रचनाकार पतंजलि के अनुसार -

विद्या तपश्च योनिश्च एतद् ब्राह्मणकारकम्।विद्यातपोभ्यां यो हीनो जातिब्राह्मण एव स:॥

अर्थात- "विद्या, तप और ब्राह्मण-ब्राह्मणी से जन्म ये तीन बातें जिसमें पाई जायँ वही पक्का ब्राह्मण है, पर जो विद्या तथा तप से शून्य है वह जातिमात्र के लिए ब्राह्मण है, पूज्य नहीं हो सकता" (पतंजलि भाष्य 51-115)।

महर्षि याज्ञवल्क्य व पराशर व वशिष्ठ के अनुसार "जो निष्कारण (कुछ भी मिले एसी आसक्ति का त्याग कर के). -वेदों के अध्ययन में व्यस्त है और वैदिक विचार संरक्षण और संवर्धन हेतु सक्रीय है वही ब्राह्मण हे। "(सन्दर्भ ग्रन्थ – शतपथ ब्राह्मण, ऋग्वेद मंडल १०, पराशर स्मृति) भगवद गीता में श्री कृष्ण के अनुसार "शम, दम, करुणा, प्रेम, शील (चारित्र्यवान), निस्पृही जेसे गुणों का स्वामी ही ब्राह्मण हे" और "चातुर्वर्ण्य माय सृष्टं गुण है कर्म विभागशः" (भ.गी. ४-१३)

महर्षि मनु के अनुसार -

विधाता शासिता वक्ता मो ब्राह्मण उच्यते।तस्मै नाकुशलं ब्रूयान्न शुष्कां गिरमीरयेत्॥

अर्थात-शास्त्रो का रचयिता तथा सत्कर्मों का अनुष्ठान करने वाला, शिष्यादि की ताडनकर्ता, वेदादि का वक्ता और सर्व प्राणियों की हितकामना करने वाला ब्राह्मण कहलाता है। अत: उसके लिए गाली-गलौज या डाँट-डपट के शब्दों का प्रयोग उचित नहीं" (मनु; 11-35)

महाभारत के कर्ता वेदव्यास और नारदमुनि के अनुसार:

"जो जन्म से ब्राह्मण है किन्तु कर्म से ब्राह्मण नहीं है उसे शुद्र (मजदूरी) के काम में लगा दो" (सन्दर्भ ग्रन्थ – महाभारत)
इसमे गुण और कर्म ही कहा गया है। भगवान ने जन्म नहीं कहा है।

कोई भी मनुष्य ब्राह्मण बन सकता है।

जितना सत्य यह है कि केवल जन्म से ब्राह्मण होना संभव नहीं है, यह भी उतना ही सत्य है कि कर्म से कोई भी ब्राह्मण बन सकता है। इसके कई प्रमाण वेदों और ग्रंथो में मिलते जो इस प्रकार हैं।

1. ऐतरेय ऋषि दास अथवा अपराधी के पुत्र थे। परन्तु उच्च कोटि के ब्राह्मण बने और उन्होंने ऐतरेय ब्राह्मण और ऐतरेय उपनिषद की रचना की| ऋग्वेद को समझने के लिए ऐतरेय ब्राह्मण अतिशय आवश्यक माना जाता है।

2. ऐलूष ऋषि दासी पुत्र थे। जुआरी और हीनचरित्र भी थे। परन्तु बाद में उन्होंने अध्ययन किया और ऋग्वेद पर अनुसन्धान करके अनेक अविष्कार किये|ऋषियों ने उन्हें आमंत्रित कर के आचार्य पद पर आसीन किया। (ऐतरेय ब्राह्मण 2.19)

3. सत्यकाम जाबाल गणिका (वेश्या) के पुत्र थे। परन्तु वे ब्राह्मणत्व को प्राप्त हुए।

4. राजा दक्ष के पुत्र पृषध शूद्र हो गए थे, प्रायश्चित स्वरुप तपस्या करके उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया। (विष्णु पुराण 4.1.14)

5. राजा नेदिष्ट के पुत्र नाभाग वैश्य हुए। पुनः इनके कई पुत्रों ने क्षत्रिय वर्ण अपनाया। (विष्णु पुराण 4.1.13 )

6. धृष्ट नाभाग के पुत्र थे, परन्तु ब्राह्मण हुए और उनके पुत्र ने क्षत्रिय वर्ण अपनाया। (विष्णु पुराण 4.2.2)

7. आगे उन्हींके वंश में पुनः कुछ ब्राह्मण हुए। (विष्णु पुराण 4.2.2)

8. भागवत के अनुसार राजपुत्र अग्निवेश्य ब्राह्मण हुए।

9. विष्णुपुराण और भागवत के अनुसार रथोतर क्षत्रिय से ब्राह्मण बने।

10. हारित क्षत्रियपुत्र से ब्राह्मण हुए। (विष्णु पुराण 4.3.5)

11. क्षत्रियकुल में जन्में शौनक ने ब्राह्मणत्व प्राप्त किया। (विष्णु पुराण 4.8.1)

12. वायु, विष्णु और हरिवंश पुराण कहते हैं कि शौनक ऋषि के पुत्र कर्म भेद से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण के हुए। इसी प्रकार गृत्समद, गृत्समति और वीतहव्यके उदाहरण हैं।

13. मातंग चांडालपुत्र से ब्राह्मण बने।

14. ऋषि पुलस्त्य का पौत्र रावण अपने कर्मों से राक्षस बना।

15. राजा रघु का पुत्र प्रवृद्ध राक्षस हुआ।

16. त्रिशंकु राजा होते हुए भी कर्मों से चांडाल बन गए थे|

17. विश्वामित्र के पुत्रों ने शूद्रवर्ण अपनाया। विश्वामित्र स्वयं क्षत्रिय थे परन्तु बाद उन्होंने ब्राह्मणत्व को प्राप्त किया।

18. विदुर दासी पुत्र थे। तथापि वे ब्राह्मण हुए और उन्होंने हस्तिनापुर साम्राज्य का मंत्री पद सुशोभित किया।

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