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देव दिवाली

Dev Diwali

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वाराणसी में देव दीपावली देव दिवाली गंगा महोत्सव Dev Deepawali Dev Diwali Ganga Mahotsav in Varanasi

देव दीपावली

आलेख - Sadhak Prabhat

॥ ॐ नमः शिवाय ॥

देव दिवाली, दीवाली के पन्द्रहवें दिन कार्तिक पूर्णिमा को वाराणसी में हर साल मनाई जाती है। इस त्योहार में अगर कार्तिक पूर्णिंमा दो दिन हो जाती है तो उदय तिथि का ध्यान न करके चंद्रमा से इसके जुड़े होने की वजह से पहले दिन हीं मानते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव ने इस दिन राक्षस त्रिपुरासुर को हराया था। शिव जी की जीत का जश्न मनाने के लिए सभी देवी-देवता तीर्थ स्थल वाराणसी पहुंचे थे जहां उन्होंने लाखों मिट्टी के दीपक जला कर दीपावली मनाया। इसी कारण से इसे देव दिवाली कहते हैं। इसको त्रिपुरोत्सव के नाम से भी जाना जाता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु ने मत्स्यावतार लिया था।

देव दिवाली के दिन पवित्र नदियों के तट पर दीपदान (दीया जलाने ) करने का विधान है। साथ में लोग अपने घर पर भी दीप जलाते हैं।

प्रदोष काल में देव दीपावली दीपदान का शुभ मुहूर्त -

इस साल 2023 में देव दिवाली चंद्र कैलेंडर में अंतर के कारण, 26 नवंबर, 2023 को मनाई जाएगी और कार्तिक पूर्णिमा का व्रत और स्नान 27 नवंबर, 2023 को होगा।

प्रदोष काल में देव दीपावली दीपदान का शुभ मुहूर्त 2 घंटे 39 मिनट का है जो शाम को 5 बज कर 8 मिनट से 7 बज कर47 मिनट तक है।

देव दीपावली की कथा

सनातन शास्त्रों के अनुसार, चिरकाल में त्रिपुरासुर नामक राक्षस के आतंक से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। त्रिपुरासुर, असुर तारकासुर के बेटे थे। ये एक नहीं, बल्कि तीन थे। तीनों ने देवताओं को परास्त करने का प्रण लिया था। लंबे समय तक तीनों ने ब्रह्मा जी की तपस्या की। त्रिपुरासुर की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने तीनों को देवताओं से परास्त न होने का वरदान दिया। ब्रह्मा जी से वरदान पाकर तीनों शक्तिशाली हो गए।

उस समय त्रिपुरासुर ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया। यह देख स्वर्ग के देवता ब्रह्मा जी के पास गए। उन्हें स्थिति से अवगत कराया। तब ब्रह्मा जी बोले-वरदान तो मैंने ही उन्हें दिया है। त्रिपुरासुर को रोकने के लिए आप सभी को भगवान शिव से सहायता लेनी होगी। भोलेनाथ ही आप सबकी रक्षा कर सकते हैं। यह सुनने के बाद सभी देवता कैलाश पहुंचे और महादेव से रक्षा की कामना की।

कालांतर में भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया। इस उपलक्ष्य पर देवताओं ने स्वर्ग में दीप जलाकर दीपावली मनाई। शास्त्रों में निहित है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया था। अतः हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा तिथि पर देव दीपावली मनाई जाती है।

सुख - समृद्धि हेतु भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा -

इस दिन मत्स्यावतार के रूप में प्रकट होने के कारण इस दिन पूरे विधि-विधान से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है, साथ हीं इस दिन सुख - समृद्धि हेतु निम्न उपाय करने चाहिए -

देव दिवाली के दिन घर में तुलसी का पौधा जरूर लगाएं। इस दिन भगवान विष्णु के चित्र या मूर्ति पर तुलसी के 11 पत्तों को बांध दें। माना जाता है कि यह उपाय करने से घर में कभी भी धन-संपत्ति की कमी नहीं होती है और धन की तिजोरी हमेशा भरी रहती है।

देव दिवाली के दिन आटे के बर्तन में तुलसी के 11 पत्ते डाल कर छोड़ देना चाहिए। ऐसा करने से घर में शुभ परिवर्तन दिखाई देते हैं और घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है।

देव दिवाली,एकादशी,अनंत चतुर्दशी,देवशयनी,देव उठनी,दिवाली,खरमास,पुरुषोत्तम मास,तीर्थ क्षेत्र,पर्व आदि खास मौकों पर विष्णु सहस्रनाम का पाठ करने से सारी बाधाओं का नाश होता है।

देव दिवाली के दिन तुलसी के पौधे पर पीला रंग का कपड़ा बांध दें। मान्यताओं के अनुसार, इस दिन यह उपाय करने से कारोबार में उन्नती होती है और नौकरी में प्रमोशन भी मिलता है।

देव दिवाली के दिन घर में सत्यनारायण भगवान की कथा करवानी चाहिए। इस दिन सत्यनारायण भगवान की कथा सुनने से सभी कष्टों का नाश होता है और जीवन में खुशहाली आती है।

देव दिवाली के दिन गंगा स्नान के बाद दीप-दान जरूर करना चाहिए। मान्यता है कि इस दिन दीप दान करने से दस यज्ञों के समान फल प्राप्त होता है।

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देव दिवाली Dev Diwali भगवान् विष्णु का मत्स्यावतार अवतरण