गौरीतप व्रत मार्गशीर्ष अमावास्या
Gauritap Vrat fast Margashirsha Amavasya Vrat
गौरीतप व्रत (अङ्गिरा) मार्गशीर्ष अमावास्या
गौरीतप व्रत मार्गशीर्ष की अमावास्या से हीं आरम्भ किया जाता है और सोलह वर्षों तक चलता है। अङ्गिरा ऋषि ने वर्णन किया है कि यह व्रत स्त्रियों द्वारा करने से उनका सभी अभीष्ट सिद्ध होता है। यह व्रत केवल स्त्रियों के लिए है।
गौरीतप व्रत विधि - शुभ मुहूर्त
गौरीतप व्रत मार्गशीर्ष की अमावास्या 12 दिसंबर 2023 को प्रातः काल 06 बजकर 24 मिनट पर शुरू होगी।
मार्गशीर्ष की अमावास्या प्रातः स्नान कर के हाथ में गन्ध, अक्षत, पुष्प, दूर्वा और जल लेकर संकल्प करें -
ईशार्द्धाङ्गहरे देवि करिष्येऽहं व्रतं तव।
पतिपुत्रसुखावाप्तिं देहि देवि नमोऽस्तु ते ॥
मध्याह्न में सूर्यनारायण को अर्घ्य देकर प्रार्थना करे -
अहं देवि व्रतमिदं कर्तुमिच्छामि शाश्वतम्।
तवाज्ञया महादेवि निर्विघ्नं कुरु तत्र वै ।
अब इसके बाद अपने निवासस्थान में जाकर गौरी का पूजन और उपवास करे।
पूजन में आवाहनादि छः उपचारों को करने के बाद इस प्रकार अङ्गपूजा करें -
१ पार्वत्यै नमः (पादौ),
२ हैमवत्यै (जानुनी),
३ अम्बिकायै (जङ्घे ),
४ गिरिशवल्लभायै (गुह्यम्),
५ गम्भीरनाभ्यै (नाभिम्),
६ अपर्णायै (उदरम्),
७ महादेव्यै (हृदयम्),
८ कण्ठकामिन्यै (कण्ठम्),
९ षण्मुखायै (मुखम्),
१० लोकमोहिन्यै (ललाटम्),
११ मेनकाकुक्षिरत्नायै (शिरः पूजयामि)
इस प्रकार अङ्गपूजा करनेके अनन्तर गन्ध-पुष्पादि शेष दस उपचारों से पूजन करे और गौरी के दक्षिण भाग में गणेशजी का और वामभाग में स्कन्द (स्वामि कार्तिकेय) का पूजन करे।
तत्पश्चात् ताँबे अथवा मिट्टी के दीपक को गौ के घी से पूर्ण करके उसमें आठ बत्ती जलाये और (सूर्योदय होनेतक) रात्रि भर प्रज्वलित रखे। फिर ब्राह्म-मुहूर्त (प्रतिपदा के सुबह) में स्नानादि करनेके अनन्तर द्विजदम्पती (ब्राह्मण-ब्राह्मणी) का पूजन करके तीन धातुओं (ताँबे, पीतल और शीशे) के बने हुए पात्र में गुड़, पकवान (हलुआ-पूरी-पूआ), तिल-तण्डुल और सौभाग्यद्रव्य रखकर उनपर उपर्युक्त दीपक रखे और जब तक बक-काकादि पक्षीगण अपना कलरव करते हुए उसको ग्रहण न करें तब तक वहीं बैठी रहे। यदि उठ खड़ी हो तो उससे सौभाग्यकी हानि होती है।
इस प्रकार पहले वर्ष में अमावस्या से, दूसरे में प्रतिपदा से और तीसरे में द्वितीया से - इस क्रम से चौथे पाँचवें आदि वर्षों में तृतीया-चतुर्थी आदि तिथियों को व्रत करके सोलहवें वर्ष के मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को आठ द्विजदम्पती बुलवाकर मध्याह्न के समय अक्षतों के अष्टदलपर (सुपूजित गौरी के समीप) सोम और शिव का पूजन करे और नैवेद्य में सुहाली, कसार, पूआ, पूरी, खीर, घी, शर्करा और मोदक-इन आठ पदार्थों का भोग लगाये। फिर इन्हीं आठ पदार्थों से आठ कटोरदान (ढक्कनदार भोजनपात्र) भरकर उपर्युक्त आठ दम्पती (जोड़ा-जोड़ी) को भोजन करवाकर वस्त्रालङ्कारादि से भूषितकर एक-एक करके आठों को कटोरदान दान करे।
यह व्रत स्त्रियों के करनेका है - इससे सभी स्त्रियोंको सुतादिकी प्राप्ति हो सकती है और उनके सम्पूर्ण अभीष्ट सिद्ध हो सकते हैं।
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