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How to exist and not exist in the world created by God, together??

ईश्वर के बनाए जगत का होना और न होना, एक साथ कैसे??

आलेख © कॉपीराइट - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)

सत्य तो एक हीं है कि जगत का मूल ज्यों का त्यों है यानी जगत नहीं है, जगत है भी।

मान लीजिए 3 पुश्त है, बाबा से पोता तक का । बाबा के लिए संसार उनके जन्म के साथ शुरू एवं मृत्यु पर खत्म हो जाएगी। उनके पुत्र के लिए भी संसार जन्म के साथ शुरू और मृत्यु पर खत्म होगी एवं यही पोता के लिए भी लागू होगा। पर उस अवस्था को सोचिए जब बाबा, पोता के सामने मृत्यु को प्राप्त होगा तो यह बाबा के लिए जगत का अंत होगा यानी अब जगत नहीं होगा। परंतु पोता के लिए अभी जगत का प्रारंभ है एवं पुत्र के लिए जगत मध्य का होगा। तीनों को एक ही समय तीन अलग-अलग सत्य से साक्षात्कार होगा। पर सत्य तो एक हीं है कि जगत का मूल ज्यों का त्यों है यानी जगत नहीं है, जगत है भी।

सम्यक ज्ञान

सदाचार के अनुवर्तन यानि अनुसरण अथवा परिणाम से ही सम्यक ज्ञान होता है। और यह ज्ञान प्रत्येक मनुष्य को उत्पन्न होने वाले सामान्य ज्ञान से भिन्न होगा। ईश्वरीय घटनाओं द्वारा कार्य-कारण संबंध से सम्यक ज्ञान की उत्पत्ति संभव है । सम्यक ज्ञान उत्कृष्ट गुण है। व्यापक विचारों से उसकी उत्पत्ति होती है। अतः सदाचार के अनुसरण अथवा सदाचारी जीवन के परिणाम के रूप में जो विचार उत्पन्न होते हैं सम्यक ज्ञान है।

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