Knowledge is not dependent on the Purusha (doer) like action
ज्ञान कर्म के समान पुरुष (कर्ता) पर निर्भर नहीं है।
संपूर्ण सिर्फ ज्ञान है ना हीं दर्शन, ना हीं विचारधारा।
ज्ञान कर्म के समान पुरुष (कर्ता) के अधीन नहीं होता है। कर्म करने, न करने, उल्टा करने में कर्ता स्वतंत्र है। किन्तु ज्ञान उसके वश में नहीं है। इच्छा न रहने पर भी दुर्गन्ध आदि का ज्ञान हो हीं जाता है। अतः ज्ञान इच्छा से परे है। इसीलिए ज्ञान मार्ग से ईश्वर की प्राप्ति ज्यादा और जल्द संभव है। ईश्वर यानि संपूर्ण।
संपूर्ण सिर्फ ज्ञान है ना हीं दर्शन, ना हीं विचारधारा। दोनों ही आंशिक होते हैं। दृष्टि-भेद के कारण अलग-अलग।
सूक्ष्म विषयों के यथार्थ ज्ञान के लिए व्यक्तिगत परिस्थितियों तथा वातावरण के प्रभाव को दूर रख कर हीं अथवा इसके प्रभाव को समझते हुए ही तटस्थ निष्कर्ष निकाला जा सकता है।। वह विचार जो किसी वस्तु तत्व परम सत्य का निर्दोष (यानि परिस्थिति एवं वातावरण के प्रभाव को दूर रखकर) विश्लेषण देता है वह दर्शन कहलाता है। दर्शन प्रमाण के अधीन होता है।
ज्ञान, दर्शन, विचारधारा में अंतर
विचारधारा विश्वासों पर आधारित होता है एवं उसी के परिपेक्ष्य में सिद्धांतों को प्रतिपादित करता है जो कि एक निश्चित सामाजिक संस्था या किसी विशेष संगठन के प्रचार -प्रसार एवं विस्तार से जुड़ा होता है। आस-पास के वातावरण में हुए किसी भी बदलाव से विचारधारा में कोई परिवर्तन नहीं आता| दर्शन व्यावहारिक रूप से जीवन को देखते हुए और यह समझने की कोशिश करता है एवं आस-पास के वातावरण में हुए किसी भी बदलाव का प्रभाव दर्शन पर सीधा प्रभाव पड़ता है |
स्थिति, परिस्थिति के अनुसार सत्य एवं असत्य होता है। इसीलिए ईश्वर के पाने के अलग-अलग मार्ग हैं एवं सभी सत्य हैं। ज्ञानस्वरुप आत्मा उसे कहते हैं जब आत्मा इच्छा से परे हो। जैसे ज्ञान इच्छा से परे होत है।
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