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माघी पूर्णिमा व्रत

Maghi Purnima Vrat

माघ पूर्णिमा माघी पूर्णिमा व्रत Magh Purnima Maghi Purnima Vrat
 

माघ पूर्णिमा माघी पूर्णिमा व्रत

माघ शुक्ल पूर्णिमा को हीं माघी पूर्णिमा कहते हैं। पौराणिक मान्यता है कि माघ पूर्णिमा के दिन भगवान श्री विष्णु स्वयं गंगा जल में निवास करते हैं तथा सभी देवता पृथ्वी पर आकर गंगा स्नान करते हैं। इस दिन गंगा स्नान करने से विष्णु जी की कृपा प्राप्त होती है और धन, वैभव, यश, सुख-सौभाग्य और उत्तम संतान की प्राप्ति होती है। इस दिन दान-दक्षिणा का बत्तीस गुना फल मिलता है। इसीलिए इसे माघ पूर्णिमा के अलावा बत्तीसी पूर्णिमा भी कहा जाता है।माघी पूर्णिमा के दिन प्रातः स्नानादि के पीछे विष्णु का पूजन करने का विधान है। ततपश्चात असमर्थों को भोजन, वस्त्र, तिल, कम्बल, कपास, गुड़, घी, मोदक, फल, और अन्न का दान करें। व्रत (उपवास) करके ब्राह्मणों को भोजन कराये और कथा सुने तथा यथा सामर्थ्य दान दें। पितरों का श्राद्ध भी इस दिन करने की परम्परा है। इस दिन सफेद और काले तिल का दान करना शुभ माना गया है। दान करने से सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

माघी पूर्णिमा व्रत शुभ मुहूर्त

माघ माह की पूर्णिमा उदया तिथि से शनिवार, शुक्ल पक्ष, 24 फरवरी को मनाई जाएगी। माघी पूर्णिमा 23 फरवरी को दोपहर 3 बजकर 36 मिनट बजे शुरू होगी और 24 फरवरी को शाम 6 बजकर 34 मिनट पर समाप्त होगी।

स्नान-दान का मुहूर्त

सुबह 5 बजकर 11 मिनट से शाम 6 बजकर 2 मिनट तक है। इस दिन अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 12 मिनट से 12 बजकर 57 मिनट तक है। इस दिन चंद्रोदय का समय 6 बजकर 12 मिनट पर है।

माघ पूर्णिमा पर शोभन योग का निर्माण हो रहा है। इसके साथ ही कुंभ राशि में सूर्य, शनि और बुद्ध का त्रिग्रही योग भी बन रहा है, जो इन तीन राशियों के लिए अत्यंत लाभकारी सिद्ध होने वाला है।

महामाघी किसे कहते हैं?

माघ शुक्ल पूर्णिमा को मेष का शनि, सिंह के गुरु-चन्द्र और श्रवण का सूर्य हो तो इनके सहयोग से महामाघी सम्पन्न होती है। इसमें स्नान दानादि जो भी किये जायें, उनका अमिट फल होता है।

दिनत्रय व्रत -

पद्मपुराण के अनुसार जब जातक पूरे माघ स्नान जो कि 30 दिन में पूर्ण होता है, कर पाने में समर्थ नहीं होता तो माघ शुक्ल त्रयोदशी, चतुर्दशी और पूर्णिमा के अरुणोदय में स्नानादि करके व्रत और यथानियम दान-पुण्य करने का विधान है, इसे दिनत्रय व्रत कहते हैं। इस व्रत से सम्पूर्ण माघस्त्रान का फल मिलता है।

माघ पूर्णिमा पूजा विधि :

पूर्णिमा पर विष्णु जी के साथ साथ माता लक्ष्मी के मंत्रों का जाप करना चाहिए। इससे घर में धन और समृद्धि बढ़ती है। इस दिन मां लक्ष्मी को पीले और लाल रंग की सामग्री अर्पित करने से प्रसन्न होती हैं।

सामग्री लिस्ट -

माघ पूर्णिमा पूजन के लिए रोली, अक्षत, चावल, फल, फूल, पंचामृत, सुपारी, तुलसी दल और तिल, पान का पत्ता समेत पूजा की सभी सामग्री एकत्रित कर लें।

पूजा विधि -

1. माघ पूर्णिमा के दिन सुबह पवित्र नदी में स्नान करें। अगर ऐसा संभव न हो, तो पानी में गंगाजल मिलाकर नहाएं।
2. स्नान के बाद पानी में काला तिल मिलाकर सूर्योदय को जल अर्पित करें।
3. इसके उपरांत विष्णुजी और मां लक्ष्मी की विधिवत पूजा करें और और इनके बीज मंत्रों का जाप करें। अंत में सभी देवी-देवताओं की आरती उतारें।

माघी पूर्णिमा व्रत कथा

माघ पूर्णिमा से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, कांतिका नगर में एक गरीब ब्राह्मण दंपति रहते थे, जो भिक्षा मांगकर अपना जीवन यापन करते थे। ब्राह्मण का नाम धनेश्वर था और उसकी कोई संतान नहीं थी। एक दिन भिक्षा मांगगे के दौरान लोग ब्राह्मण की पत्नी को बांझ कहकर ताने मारने लगे और भिक्षा भी नहीं दी। इस तरह से ब्राह्मण दंपति बहुत ही दुखी हो गए। इसके बाद किसी ने उन्हें 16 दिनों तक मां काली की पूजा करने को कहा।

दंपति ने 16 दिनों तक मां काली का पूजन किया। पूजन से प्रसन्न होकर मां काली ने दंपति को दर्शन दिए और साथ ही ब्राह्मण की पत्नी को गर्भवती होने का भी वरदान दिया। मां काली ने ब्राह्मण को हर पूर्णिमा पर दीप जलाने को कहा और अगले पूर्णिमा में दीपक की संख्या को बढ़ाने को कहा. इस तरह से दंपति हर पूर्णिमा के दिन व्रत रखने लगे और दीप जलाने लगे।

कुछ ही समय बाद ब्राह्मण की पत्नी गर्भवती हुई और दसवें महीने में एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया। ब्राह्मण ने पुत्र का देवदास रखा। लेकिन देवदास अल्पायु था। देवदास जब थोड़ा बड़ा हुआ तो उसे पढ़ने के लिए मामा के पास काशी भेज दिया गया। लेकिन काशी में कुछ ऐसी घटना घटी जिस कारण धोखे से देवदास का विवाह कर दिया गया।

कुछ ही समय बाद उसकी मृत्यु का भी समय निकट आ गया और काल उसके प्राण हरने आ गए। लेकिन उस दिन पूर्णिमा तिथि थी और ब्राह्मण दंपति ने पुत्र के लिए व्रत रखा था, जिस कारण पुत्र का बाल भी बांका न हो सका। पूर्णिमा व्रत के प्रभाव से ही देवदास के प्राण बच पाए। इसलिए ऐसी मान्यता है कि,पूर्णिमा का व्रत रखने से जीवन संकटों से मुक्त रहता है और अनहोनी टल जाती है।

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