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महामृत्युंजय मंत्र Mahamrityunjaya Mantra

सावन माह में महामृत्युंजय मंत्र का जाप अत्यंत ही कल्याणकारी माना जाता है। वैसे आप यदि अन्य माह में इस मंत्र का जाप करना चाहते हैं तो सोमवार ​के दिन से इसका प्रारंभ कराना चाहिए।

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महामृत्युंजय मंत्र Mahamrityunjaya Mantra

महामृत्युंजय मंत्र Mahamrityunjaya Mantra

आलेख - Sadhak Prabhat

॥ ॐ नमः शिवाय ॥

महामृत्युंजय मंत्र ऋग्वेद में मिलता है जिसे त्रयंबकम मंत्र भी कहा जाता है। त्रयंबक रुद्र का विशेषण है। ऋग्वेद में शिव की चर्चा रूद्र के रूप में हीं है जो सर्वशक्तिमान है। इसी कारण महामृत्युंजय मंत्र रुद्र मंत्र भी कहते हैं। यह श्लोक यजुर्वेद में भी आता है। वहीं शिवपुराण सहित अन्य ग्रंथो में भी इसका महत्व बताया गया है। ऋषि-मुनियों ने महा मृत्युंजय मंत्र को वेद का ह्रदय कहा है। महामृत्युंजय मंत्र में कुल 33 अक्षर हैं जिसे महर्षि वशिष्ठ ने 33 कोटि (प्रकार) देवताओं का द्योतक बताया है। उन तैंतीस देवताओं में तेंतीस कोटी (प्रकार) देवता में 8 वसु, 12 आदित्य, 11 रुद्र एवं 2 अश्वनी कुमार हैं। इन तैंतीस कोटि देवताओं की सम्पूर्ण शक्तियाँ महामृत्युंजय मंत्र से निहीत होती है। संस्कृत में महामृत्युंजय उस व्यक्ति को कहते हैं जो मृत्यु को जीतने वाला हो। इसलिए भगवान शिव की स्तुति के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप किया जाता है। इसके जप से संसार के सभी कष्ट से मुक्ति मिलती हैं। ये मंत्र जीवन देने वाला है। इससे जीवनी शक्ति तो बढ़ती ही है साथ ही सकारात्मकता बढ़ती है। ऋषि शुक्राचार्य जिस मंत्र के सहयोग से असुरों को पुनर्जीवित कर देते थे उस मंत्र का यह एक घटक है और इसीलिए इसे मृत-संजीवनी मंत्र के रूप में भी जाना जाता है।

॥ महामृत्युंजय मंत्र मूल रूप:॥

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ॥

संपूर्ण (सही और पूर्ण) महामृत्युंजय मंत्र क्या है?

॥ महामृत्युंजय मंत्र ॥

ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व: ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्व: भुव: भू: ॐ स: जूं हौं ॐ ॥

सम्पूर्ण महामृत्युंजय मंत्र सम्पुट विधि से है। इसमें कुल 52 अक्षर होते हैं।

लघु मृत्युंजय मंत्र

ॐ जूं स माम् पालय पालय स: जूं ॐ।

महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ

त्रयंबकम: त्रि-नेत्रों वाला (कर्मकारक)
यजामहे: हम पूजते हैं,सम्मान करते हैं,हमारे श्रद्देय।
सुगंधिम: मीठी महक वाला, सुगंधित (कर्मकारक)
पुष्टि: एक सुपोषित स्थिति, फलने-फूलने वाली,समृद्ध जीवन की परिपूर्णता।
वर्धनम: वह जो पोषण करता है,शक्ति देता है, (स्वास्थ्य,धन,सुख में) वृद्धिकारक;जो हर्षित करता है,आनन्दित करता है और स्वास्थ्य प्रदान करता है,एक अच्छा माली।
उर्वारुकम: ककड़ी (कर्मकारक)।
इव: जैसे,इस तरह।
बंधना: तना (लौकी का); ("तने से" पंचम विभक्ति - वास्तव में समाप्ति -द से अधिक लंबी है जो संधि के माध्यम से न/अनुस्वार में परिवर्तित होती है)।
मृत्युर: मृत्यु से।
मुक्षिया: हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति दें।
मा: न।
अमृतात- अमरता, मोक्ष।

महामृत्युंजय मंत्र का सरल अनुवाद

महामृत्युंजय मंत्र का मतलब है कि हम भगवान रूद्र (शिव) की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो हर श्वास में जीवन की मधुर परिपूर्णता को पोषित करते हैं , वृद्धि करते हैं और पूरे जगत का पालन-पोषण करते हैं। ककड़ी की तरह हम इसके तने से (मृत्यु से) अलग (मुक्त) हों।

महामृत्‍युंजय मंत्र जप की विधि

महामृत्‍युंजय मंत्र का जाप आपको सवा लाख बार करना चाहिए। वहीं, भोलेनाथ के लघु मृत्युंजय मंत्र का जाप 11 लाख बार किया जाता है। सावन माह में इस मंत्र का जाप अत्यंत ही कल्याणकारी माना जाता है। वैसे आप यदि अन्य माह में इस मंत्र का जाप करना चाहते हैं तो सोमवार ​के दिन से इसका प्रारंभ कराना चाहिए। इस मंत्र के जाप में रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करें। इस बात का ध्यान रखें कि दोपहर 12 बजे के बाद महामृत्‍युंजय मंत्र का जाप न करें। मंत्र का जाप पूर्ण होने के बाद हवन करन उत्तम माना जाता है।

जाप करते समय रखें इन नियमों का ध्यान -

शास्त्रों में मंत्र जाप करते समय स्पष्ट रुप से उच्चारण का बहुत महत्व बताया गया है। इसलिए जाप करते समय उच्चारण की शुद्धता का ध्यान रखें।
जाप करते समय माला से ही जाप करें क्योंकि संख्याहीन जाप का फल प्राप्त नहीं होता है। प्रतिदिन कम से कम एक माला जाप पूरा करके ही उठे।
अगर आप दूसरे दिन जाप करने जा रहे है तो पहले दिन से कम जाप न करें। अधिक से अधिक कितना भी जाप किया जा सकता है।
मंत्र का उच्चारण करते समय स्वर होठों से बाहर नहीं आना चाहिए। धीमे स्वर में आऱाम से मंत्र जाप करें।
मंहमृत्युंजय मंत्र का जाप रुद्राक्ष की माला से ही करें।
जाप करते समय माला को गौमुखी में ढककर रखें।
जाप से पहले भगवान के समक्ष धूप दीप जलाएं। जाप के दौरान दीपक जलता रहे।
इस मंत्र का जाप करते समय शिवजी की प्रतिमा, तस्वीर, शिवलिंग या महामृत्युंजय यंत्र पास में से कोई एक को अपने पास अवश्य रखें।
मंत्र जाप हमेशा कुशा के आसन पर किया जाता है। इसलिए महामृत्युंजय मंत्र का जाप भी कुशा के आसन पर करें।
महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते समय एवं सभी सभी पूजा-पाठ करते समय अपना मुख पूर्व दिशा की ओर ही रखें।
अगर आप शिवलिंग के पास बैठकर जाप कर रहे हैं तो जल या दूध से अभिषेक करते रहें।
जाप करने के लिए एक शांत स्थान का चुनाव करें, जिससे जाप के समय मन इधर-उधर न भटके।
जाप के समय उबासी न लें और न ही आलस्य करें। अपना पूरा ध्यान भगवान के चरणों में लगाएं।
जाप करने के दिनों में पूर्णतया ब्रह्मचार्य का पालन करें।
जितने दिन जाप करना हो उतने दिनों तक तामसिक चीजों जैसे मांस, मदिरा लहसुन, प्याज या अन्य किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थ आदि से दूर रहें।
जिस स्थान पर प्रथम दिन जप किया हो प्रतिदिन उसी स्थान पर बैठकर जप करें।
जाप के दौरान बीच में किसी से बात न करें। सांसारिक बातों से दूर रहें।

महामृत्युंजय मंत्र का जाप क्यों करते हैं, इससे क्या लाभ होता है।

महामृत्युंजय मंत्र का जाप अकाल मृत्यु, पुत्र की प्राप्ति के लिए, उन्नति के लिए सवा लाख की संख्या में मंत्र जप करना अनिवार्य है। महारोग धन-हानि, गृह क्लेश, ग्रहबाधा, ग्रहपीड़ा, सजा का भय, प्रॉपर्टी विवाद, समस्त पापों से मुक्ति, भय से छुटकारा पाने आदि जैसे स्थितियों के लिए 1100 मंत्र का जप किया जाता है।

महामृत्युंजय मंत्र का शरीर में स्थान

त्रि - ध्रववसु प्राण का घोतक है जो सिर में स्थित है।
यम - अध्ववरसु प्राण का घोतक है,जो मुख में स्थित है।
ब - सोम वसु शक्ति का घोतक है,जो दक्षिण कर्ण में स्थित है।
कम - जल वसु देवता का घोतक है,जो वाम कर्ण में स्थित है।
य - वायु वसु का घोतक है,जो दक्षिण बाहु में स्थित है।
जा - अग्नि वसु का घोतक है,जो बाम बाहु में स्थित है।
म - प्रत्युवष वसु शक्ति का घोतक है, जो दक्षिण बाहु के मध्य में स्थित है।
हे - प्रयास वसु मणिबन्धत में स्थित है।
सु - वीरभद्र रुद्र प्राण का बोधक है। दक्षिण हस्त के अंगुलि के मुल में स्थित है।
ग - शुम्भ् रुद्र का घोतक है दक्षिणहस्त् अंगुलि के अग्र भाग में स्थित है।
न्धिम् -गिरीश रुद्र शक्ति का मुल घोतक है। बायें हाथ के मूल में स्थित है।
पु - अजैक पात रुद्र शक्ति का घोतक है। बाम हस्तह के मध्य भाग में स्थित है।
ष्टि - अहर्बुध्य्त् रुद्र का घोतक है,बाम हस्त के मणिबन्धा में स्थित है।
व - पिनाकी रुद्र प्राण का घोतक है। बायें हाथ की अंगुलि के मुल में स्थित है।
र्ध - भवानीश्वपर रुद्र का घोतक है,बाम हस्त अंगुलि के अग्र भाग में स्थित है।
नम् - कपाली रुद्र का घोतक है। उरु मूल में स्थित है।
उ - दिक्पति रुद्र का घोतक है। यक्ष जानु में स्थित है।
र्वा - स्था णु रुद्र का घोतक है जो यक्ष गुल्फ् में स्थित है।
रु - भर्ग रुद्र का घोतक है,जो चक्ष पादांगुलि मूल में स्थित है।
क - धाता आदित्यद का घोतक है जो यक्ष पादांगुलियों के अग्र भाग में स्थित है।
मि - अर्यमा आदित्यद का घोतक है जो वाम उरु मूल में स्थित है।
व - मित्र आदित्यद का घोतक है जो वाम जानु में स्थित है।
ब - वरुणादित्या का बोधक है जो वाम गुल्फा में स्थित है।
न्धा - अंशु आदित्यद का घोतक है। वाम पादंगुलि के मुल में स्थित है।
नात् - भगादित्यअ का बोधक है। वाम पैर की अंगुलियों के अग्रभाग में स्थित है।
मृ - विवस्व्न (सुर्य) का घोतक है जो दक्ष पार्श्वि में स्थित है।
र्त्यो् - दन्दाददित्य् का बोधक है। वाम पार्श्वि भाग में स्थित है।
मु - पूषादित्यं का बोधक है। पृष्ठै भगा में स्थित है।
क्षी - पर्जन्य् आदित्यय का घोतक है। नाभि स्थिल में स्थित है।
य - त्वणष्टान आदित्यध का बोधक है। गुहय भाग में स्थित है।
मां - विष्णुय आदित्यय का घोतक है यह शक्ति स्व्रुप दोनों भुजाओं में स्थित है।
मृ - प्रजापति का घोतक है जो कंठ भाग में स्थित है।
तात् - अमित वषट्कार का घोतक है जो हदय प्रदेश में स्थित है।

मंत्रगत पदों की शक्तियाँ

मंत्रगत पदों की शक्तियाँ जिस प्रकार मंत्रा में अलग अलग वर्णो (अक्षरों) की शक्तियाँ हैं। उसी प्रकार अलग-अलग पदों की भी शक्तियाँ है।

त्र्यम्‍‍बकम् - त्रैलोक्यक शक्ति का बोध कराता है जो सिर में स्थित है।
यजा - सुगन्धात शक्ति का घोतक है जो ललाट में स्थित है।
महे - माया शक्ति का द्योतक है जो कानों में स्थित है।
सुगन्धिम् - सुगन्धि शक्ति का द्योतक है जो नासिका (नाक) में स्थित है।
पुष्टि - पुरन्दिरी शक्ति का द्योतक है जो मुख में स्थित है।
वर्धनम - वंशकरी शक्ति का द्योतक है जो कंठ में स्थित है।
उर्वा - ऊर्ध्देक शक्ति का द्योतक है जो ह्रदय में स्थित है।
रुक - रुक्तदवती शक्ति का द्योतक है जो नाभि में स्थित है। मिव रुक्मावती शक्ति का बोध कराता है जो कटि भाग में स्थित है।
बन्धानात् - बर्बरी शक्ति का द्योतक है जो गुह्य भाग में स्थित है।
मृत्यो: - मन्त्र्वती शक्ति का द्योतक है जो उरुव्दंय में स्थित है।
मुक्षीय - मुक्तिकरी शक्तिक का द्योतक है जो जानुव्दओय में स्थित है।
मा - माशकिक्तत सहित महाकालेश का बोधक है जो दोंनों जंघाओ में स्थित है।
अमृतात - अमृतवती शक्तिका द्योतक है जो पैरो के तलुओं में स्थित है।

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