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मासिक कालाष्टमी व्रत

Masik Kalashtami Vrat

मासिक कालाष्टमी व्रत

मासिक कालाष्टमी व्रत - 2025

  तारीख मास - पक्ष - तिथि समय 
1 जनवरी 21, 2025, मंगलवार माघ, कृष्ण अष्टमी प्रारम्भ - 12:39 पी एम, जनवरी 21
समाप्त - 03:18 पी एम, जनवरी 22
2 फरवरी 20, 2025, बृहस्पतिवार फाल्गुन, कृष्ण अष्टमी
प्रारम्भ - 09:58 ए एम, फरवरी 20
समाप्त - 11:57 ए एम, फरवरी 21
3 मार्च 22, 2025, शनिवार
चैत्र, कृष्ण अष्टमी
प्रारम्भ - 04:23 ए एम, मार्च 22
समाप्त - 05:23 ए एम, मार्च 23
4 अप्रैल 20, 2025, रविवार
वैशाख, कृष्ण अष्टमी
प्रारम्भ - 07:00 पी एम, अप्रैल 20
समाप्त - 06:58 पी एम, अप्रैल 21
5 मई 20, 2025, मंगलवार
ज्येष्ठ, कृष्ण अष्टमी प्रारम्भ - 05:51 ए एम, मई 20
समाप्त - 04:55 ए एम, मई 21
6 जून 18, 2025, बुधवार
आषाढ़, कृष्ण अष्टमी
प्रारम्भ - 01:34 पी एम, जून 18
समाप्त - 11:55 ए एम, जून 19
7 जुलाई 17, 2025, बृहस्पतिवार
श्रावण, कृष्ण अष्टमी
प्रारम्भ - 07:08 पी एम, जुलाई 17
समाप्त - 05:01 पी एम, जुलाई 18
8 अगस्त 16, 2025, शनिवार
भाद्रपद, कृष्ण अष्टमी
प्रारम्भ - 11:49 पी एम, अगस्त 15
समाप्त - 09:34 पी एम, अगस्त 16
9 सितम्बर 14, 2025, रविवार
आश्विन, कृष्ण अष्टमी
प्रारम्भ - 05:04 ए एम, सितम्बर 14
समाप्त - 03:06 ए एम, सितम्बर 15
10 अक्टूबर 13, 2025, सोमवार
कार्तिक, कृष्ण अष्टमी
प्रारम्भ - 12:24 पी एम, अक्टूबर 13
समाप्त - 11:09 ए एम, अक्टूबर 14
11 कालभैरव जयन्ती
नवम्बर 12, 2025, बुधवार
मार्गशीर्ष, कृष्ण अष्टमी
प्रारम्भ - 11:08 पी एम, नवम्बर 11
समाप्त - 10:58 पी एम, नवम्बर 12
12 दिसम्बर 11, 2025, बृहस्पतिवार
पौष, कृष्ण अष्टमी
प्रारम्भ - 01:57 पी एम, दिसम्बर 11
समाप्त - 02:56 पी एम, दिसम्बर 12

 

कालाष्टमी को काला अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। यह प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मानते हैं। इस दिन प्रदोष काल में पूजा करना सबसे शुभ साबित होता है। साधक किसी समय का भैरव देव की पूजा कर सकते हैं। मनोवांछित फल की प्राप्ति हेतु प्रदोष काल में करना श्रेष्ठकर साबित होगा। वैशाख कृष्ण पक्ष को मासिक कालाष्टमी व्रत एवं शीतला अष्टमी व्रत एक हीं दिन मनाया जाता है।

कालभैरव के भक्त साल की सभी कालाष्टमी के दिन उनकी पूजा और उनके लिए उपवास करते हैं। सबसे मुख्य कालाष्टमी जिसे कालभैरव जयन्ती के नाम से जाना जाता है, उत्तरी भारतीय पूर्णिमान्त पञ्चाङ्ग के अनुसार मार्गशीर्ष के महीने में पड़ती है जबकि दक्षिणी भारतीय अमान्त पञ्चाङ्ग के अनुसार कार्तिक के महीने पड़ती है। हालाँकि दोनों पञ्चाङ्ग में कालभैरव जयन्ती एक ही दिन देखी जाती है। मान्यता है कि कार्तिक माह में पड़ने वाली कालभैरव जयन्ती के हीं दिन भगवान शिव भैरव के रूप में प्रकट हुए थे। कालभैरव जयन्ती को भैरव अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है।

कालाष्टमी व्रत करने का मुहूर्त विधान -

कालाष्टमी का व्रत इस दिन करना चाहिए जिस दिन अष्टमी तिथि रात्रि के दौरान प्रबल होती है। प्रदोष के बाद कम से कम एक घटी के लिए अष्टमी को प्रबल होना चाहिए। अन्यथा कालाष्टमी पिछले दिन चली जाती है जब रात्रि के दौरान अष्टमी तिथि के और अधिक प्रबल होने की सम्भावना होती है।

कालाष्टमी व्रत की पूजा विधि -

कालाष्टमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्म और स्नान आदि करने के बाद भगवान भैरव की पूजा-अर्चना करें।
भगवान भोलेनाथ के साथ माता पार्वती और भगवान गणेश की भी विधि-विधान से पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
पूजा के दौरान घर के मंदिर में दीपक जलाएं, आरती करें और भगवान को भोग लगाएं।
भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का ही भोग लगाना चाहिए।

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