× SanatanShakti.in About Us Home Founder Religion Education Health Contact Us Privacy Policy
indianStates.in

मृतसञ्जीवनकवचम् हिंदी अर्थ के साथ

Mritsanjivankavacham

महाशिवरात्रि * हरतालिका तीज * शिव आरती * शिव चालीसा * श्री शिवाष्टक * शिव स्तुति * श्री शिव सहस्त्रनाम स्त्रोत हिंदी में * श्री शिव सहस्त्रनामावली * महामृत्युंजय मंत्र * * शिवलिंग पर जल चढ़ाने का मंत्र * शिव यजुर मंत्र - कर्पूर गौरम करुणावतारं * शिव प्रातः स्मरण स्तोत्र * श्री रुद्राष्टकम् स्तोत्र * लिंगाष्टकम स्तोत्र * मृतसंजीवनी कवचं * पशुपति स्तोत्रम् * अर्धनारी नटेश्वर स्तोत्रम् * दारिद्र दहन शिव स्तोत्र * महाकालस्तुतिः * श्रीकालभैरवाष्टकम् * शिव तांडव स्तुति * श्री विश्वनाथमङ्गल स्तोत्रम् * श्रीकाशीविश्वेश्वरादिस्तोत्रम् * पुत्र प्राप्ति हेतु शिव अभिलाषाष्टक-स्तोत्र का पाठ * सावन में शिव साधना मंत्र * वैदिक शिव पूजन विधान * बैद्यनाथ धाम देवघर को पुराणों में चिताभूमि क्यों कहा जाता है? * शिवपञ्चमाक्षर * त्रिपुंड की तीन रेखाओं का रहस्य * भगवान शिव के इक्कीस नाम * भगवान शिव शतनामावली स्तोत्रम्-108 नाम * शिवलिंग-पूजन से जुड़े सवाल-जवाब * बिल्वाष्टकम् * सावन में तिथि वार देव पूजन * सावन में शिवलिंग पर राशि के अनुसार क्या चढ़ाएं? * पार्थिव शिवलिंग कैसे बनाएं * देव दिवाली * मास शिवरात्रि * सौभाग्य सुंदरी व्रत * प्रदोष का व्रत * रवि प्रदोष व्रत - दीर्घ आयु और आरोग्यता के लिये * सोम प्रदोष व्रत - ग्रह दशा निवारण कामना हेतु * मंगल प्रदोष व्रत - रोगों से मुक्ति और स्वास्थ्य हेतु * बुध प्रदोष व्रत - सर्व कामना सिद्धि के लिये * बृहस्पति प्रदोष व्रत - शत्रु विनाश के लिये * शुक्र प्रदोष व्रत - सौभाग्य और स्त्री की समृद्धि के लिये * शनि प्रदोष व्रत – खोया हुआ राज्य व पद प्राप्ति कामना हेतु * शिवलिंग पर जलधारा की मटकी - गलंतिका (वसोधारा) * ॐ का जप क्यों करते हैं? * शिवलिंग सिर्फ लिंग और योनि नहीं है * काले शिवलिंग को पूजने वाले सभी एक वर्ण हैं * रुद्र और शिव में क्या अंतर है?
 
Shiva-Tandav

मृतसञ्जीवनकवचम् हिंदी में

आलेख - Sadhak Prabhat

मृतसञ्जीवन कवच कालके गालमें गये हुए व्यक्तिको भी जीवन प्रदान कर देता है। अगर व्यक्ति मृतसञ्जीवन कवच का पाठ अपने हाथ से मरणासन्न व्यक्ति के शरीर का स्पर्श करते हुए करता है तो उस आसन्नमृत्यु प्राणी के भीतर चेतनता आ जाती है।

मृतसञ्जीवनकवचम्

एवमाराध्य मृतसञ्जीवनं गौरीशं देवं मृत्युञ्जयेश्वरम् ।
मृतसञ्जीवनं नाम कवचं प्रजपेत् सदा ॥ १ ॥

हिंदी भावार्थ - गौरीपति मृत्युञ्जयेश्वर भगवान् शंकर की विधिपूर्वक आराधना करने के पश्चात् भक्त को सदा मृतसञ्जीवन नामक कवच का सुस्पष्ट पाठ करना चाहिये ॥ १ ॥

सारात् सारतरं पुण्यं गुह्याद् गुह्यतरं शुभम् ।
महादेवस्य कवचं मृतसञ्जीवनाभिधम् ॥ २ ॥

हिंदी भावार्थ - महादेव भगवान् शङ्कर का यह मृतसञ्जीवन नामक कवच तत्त्व का भी तत्त्व है, पुण्यप्रद है, गुह्य से भी गुह्य और मङ्गल प्रदान करनेवाला है ॥ २ ॥

समाहितमना भूत्वा शृणुष्व कवचं शुभम्।
श्रुत्वैतद् दिव्यकवचं रहस्यं कुरु सर्वदा ॥ ३ ॥

हिंदी भावार्थ - [आचार्य शिष्यको उपदेश करते हैं कि- हे वत्स !] अपने मनको एकाग्र करके इस मृतसञ्जीवन कवचको सुनो। यह परम कल्याणकारी दिव्य कवच है। इसकी गोपनीयता सदा बनाये रखना ॥ ३॥

जराभयकरो यज्वा सर्वदेवनिषेवितः ।
मृत्युञ्जयो महादेवः प्राच्यां मां पातु सर्वदा ॥ ४॥

हिंदी भावार्थ - जरा (वृद्धावस्था) से अभय करनेवाले, निरन्तर यज्ञ करनेवाले, सभी देवताओं से आराधित हे मृत्युञ्जय महादेव ! आप पूर्व-दिशा में मेरी सदा रक्षा करें ॥ ४ ॥

दधानः शक्तिमभयां त्रिमुखः षड्भुजः प्रभुः ।
सदाशिवोऽग्निरूपी मामाग्नेय्यां पातु सर्वदा ॥ ५ ॥

हिंदी भावार्थ - अभय प्रदान करनेवाली शक्ति को धारण करनेवाले, तीन मुखों वाले तथा छः भुजाओंवाले, अग्निरूपी प्रभु सदाशिव अग्निकोण में मेरी सदा रक्षा करें ॥ ५ ॥

अष्टादशभुजोपेतो दण्डाभयकरो विभुः ।
यमरूपी महादेवो दक्षिणस्यां सदाऽवतु ॥ ६ ॥

हिंदी भावार्थ - अट्ठारह भुजाओं से युक्त, हाथ में दण्ड और अभयमुद्रा धारण करनेवाले, सर्वत्र व्याप्त यमरूपी महादेव शिव दक्षिण दिशा में मेरी सदा रक्षा करें ॥ ६ ॥

खड्ङ्गाभयकरो धीरो रक्षोगणनिषेवितः ।
रक्षोरूपी महेशो मां नैर्ऋत्यां सर्वदाऽवतु ॥ ७ ॥

हिंदी भावार्थ - हाथ में खड्ग और अभयमुद्रा धारण करने वाले, धैर्यशाली, दैत्यगणों से आराधित रक्षोरूपी महेश नैऋत्यकोण में मेरी सदा रक्षा करें ॥ ७ ॥

पाशाभयभुजः सर्वरत्नाकरनिषेवितः ।
वरुणात्मा महादेवः पश्चिमे मां सदाऽवतु ॥ ८ ॥

हिंदी भावार्थ - हाथ में अभयमुद्रा और पाश धारण करनेवाले, सभी रत्नाकरों से सेवित, वरुणस्वरूप महादेव भगवान् शङ्कर पश्चिम दिशा में मेरी सदा रक्षा करें ॥ ८ ॥

गदाभयकरः प्राणनायकः सर्वदागतिः ।
वायव्यां मारुतात्मा मां शङ्करः पातु सर्वदा ॥ ९ ॥

हिंदी भावार्थ - हाथों में गदा और अभयमुद्रा धारण करनेवाले, प्राणों के रक्षक, सर्वदा गतिशील वायुस्वरूप शङ्करजी वायव्यकोण में मेरी सदा रक्षा करें ॥ ९ ॥

शङ्खाभयकरस्थो मां नायकः परमेश्वरः ।
सर्वात्मान्तरदिग्भागे पातु मां शङ्करः प्रभुः ॥ १०॥

हिंदी भावार्थ - हाथों में शङ्ख और अभयमुद्रा धारण करनेवाले नायक (सर्वमार्गद्रष्टा) सर्वात्मा सर्वव्यापक परमेश्वर भगवान् शिव समस्त दिशाओं के मध्यमें मेरी रक्षा करें ॥ १०॥

शूलाभयकरः सर्वविद्यानामधिनायकः ।
ईशानात्मा तथैशान्यां पातु मां परमेश्वरः ॥ ११ ॥

हिंदी भावार्थ - हाथों में त्रिशूल और अभयमुद्रा को धारण करनेवाले, सभी विद्याओं के स्वामी, ईशानस्वरूप भगवान् परमेश्वर शिव ईशानकोण में मेरी रक्षा करें ॥ ११ ॥

ऊर्ध्वभागे ब्रह्मरूपी विश्वात्माऽधः सदाऽवतु ।
शिरो मे शङ्करः पातु ललाटं चन्द्रशेखरः ॥ १२ ॥

हिंदी भावार्थ - ब्रह्मरूपी शिव मेरे ऊर्ध्वभाग में तथा विश्वात्मस्वरूप शिव अधोभाग में मेरी सदा रक्षा करें। शङ्कर मेरे सिरकी और चन्द्रशेखर मेरे ललाटकी रक्षा करें ॥ १२ ॥

भ्रूमध्यं सर्वलोकेशस्त्रिनेत्रोऽवतु लोचने ।
भ्रूयुग्मं गिरिशः पातु कर्णौ पातु महेश्वरः ॥ १३॥

हिंदी भावार्थ - मेरे भौंहों के मध्यमें सर्वलोकेश और दोनों नेत्रों की त्रिनेत्र भगवान् शंकर रक्षा करें, दोनों भौंहों की रक्षा गिरिश एवं दोनों कानों की रक्षा भगवान् महेश्वर करें ॥ १३ ॥

नासिकां मे महादेव ओष्ठौ पातु वृषध्वजः ।
जिह्वां मे दक्षिणामूर्तिर्दन्तान् मे गिरिशोऽवतु ॥ १४ ॥

हिंदी भावार्थ - महादेव मेरी नासिका की तथा वृषभध्वज मेरे दोनों ओठों की सदा रक्षा करें। दक्षिणामूर्ति मेरी जिह्वा की तथा गिरिश मेरे दाँतों की रक्षा करें ॥ १४॥

मृत्युञ्जयो मुखं पातु कण्ठं मे नागभूषणः ।
पिनाकी मत्करौ पातु त्रिशूली हृदयं मम ॥ १५ ॥

हिंदी भावार्थ - मृत्युञ्जय मेरे मुख की एवं नागभूषण भगवान् शिव मेरे कण्ठ की रक्षा करें। पिनाकी मेरे दोनों हाथों की तथा त्रिशूली मेरे हृदय की रक्षा करें ॥ १५ ॥

पञ्चवक्त्रः स्तनौ पातु उदरं जगदीश्वरः ।
नाभिं पातु विरूपाक्षः पार्श्वे मे पार्वतीपतिः ॥ १६ ॥

हिंदी भावार्थ - पञ्चवक्त्र मेरे दोनों स्तनों की और जगदीश्वर मेरे उदर की रक्षा करें। विरूपाक्ष नाभि की और पार्वती-पति पार्श्वभाग की रक्षा करें ॥ १६ ॥

कटिद्वयं गिरीशो मे पृष्ठं मे प्रमथाधिपः ।
गुह्यं महेश्वरः पातु ममोरू पातु भैरवः ॥ १७ ॥

हिंदी भावार्थ - गिरीश मेरे दोनों कटिभागों की तथा प्रमथाधिप पृष्ठभाग की रक्षा करें। महेश्वर मेरे गुह्यभाग की और भैरव मेरे दोनों ऊरुओं की रक्षा करें ॥ १७ ॥

जानुनी मे जगद्धर्ता जङ्गे मेजगदम्बिका ।
पादौ मे सततं पातु लोकवन्धः सदाशिवः ॥ १८ ॥

हिंदी भावार्थ - जगद्धर्ता मेरे दोनों घुटनों की, जगदम्बिका मेरे दोनों जंघों की तथा लोकवन्दनीय सदाशिव निरन्तर मेरे दोनों पैरों की रक्षा करें ॥ १८ ॥

गिरीशः पातु मे भार्यां भवः पातु सुतान् मम।
मृत्युञ्जयो ममायुष्यं चित्तं मे गणनायकः ॥ १९ ॥

हिंदी भावार्थ - गिरीश मेरी भार्या की रक्षा करें तथा भव मेरे पुत्रों की रक्षा करें। मृत्युञ्जय मेरे आयुकी तथा गणनायक मेरे चित्तकी रक्षा करें ॥ १९ ॥

सर्वाङ्गं मे सदा पातु कालकालः सदाशिवः ।
एतत्ते कवचं पुण्यं देवतानां च दुर्लभम् ॥ २० ॥

हिंदी भावार्थ - कालों के काल सदाशिव मेरे सभी अङ्गों की रक्षा करें। [हे वत्स !] देवताओं के लिये भी दुर्लभ इस पवित्र कवचका वर्णन मैंने तुमसे किया है ॥ २० ॥

मृतसञ्जीवनं नाम्ना महादेवेन कीर्तितम् ।
सहस्त्रावर्तनं चास्य पुरश्चरणमीरितम् ॥ २१ ॥

हिंदी भावार्थ - महादेवजी ने मृतसञ्जीवन नामक इस कवच को कहा है। इस कवच की सहस्र आवृत्ति को पुरश्चरण कहा गया है ॥ २१ ॥

यः पठेच्छृणुयान्नित्यं श्रावयेत् सुसमाहितः ।
सोऽकालमृत्युं निर्जित्य सदायुष्यं समश्नुते ॥ २२ ॥

हिंदी भावार्थ - जो अपने मन को एकाग्र करके नित्य इसका पाठ करता है, सुनता अथवा दूसरों को सुनाता है, वह अकाल मृत्यु को जीतकर पूर्ण आयुका उपभोग करता है ॥ २२ ॥

हस्तेन वा यदा स्पृष्ट्वा मृतं सञ्जीवयत्यसौ ।
आधयो व्याधयस्तस्य न भवन्ति कदाचन ॥ २३ ॥

हिंदी भावार्थ - जो व्यक्ति अपने हाथ से मरणासन्न व्यक्ति के शरीरका स्पर्श करते हुए इस मृतसञ्जीवन कवचका पाठ करता है, उस आसन्नमृत्यु प्राणी के भीतर चेतनता आ जाती है। फिर उसे कभी आधि-व्याधि नहीं होतीं ॥ २३ ॥

कालमृत्युमपि प्राप्तमसौ जयति सर्वदा।
अणिमादिगुणैश्वर्यं लभते मानवोत्तमः ॥ २४ ॥

हिंदी भावार्थ - यह मृतसञ्जीवन कवच काल के गाल में गये हुए व्यक्ति को भी जीवन प्रदान कर देता है और वह मानवोत्तम अणिमा आदि गुणों से युक्त ऐश्वर्य को प्राप्त करता है ॥ २४ ॥

युद्धारम्भे पठित्वेदमष्टाविंशतिवारकम् ।
युद्धमध्ये स्थितः शत्रुः सद्यः सर्वैर्न दृश्यते ॥ २५ ॥

हिंदी भावार्थ - युद्ध आरम्भ होनेके पूर्व जो इस मृतसञ्जीवन कवच का २८ बार पाठ करके रणभूमि में उपस्थित होता है, वह उस समय सभी शत्रुओं से अदृश्य रहता है ॥ २५ ॥

न ब्रह्मादीनि चास्त्राणि क्षयं कुर्वन्ति तस्य वै।
विजयं लभते देवयुद्धमध्येऽपि सर्वदा ॥ २६ ॥

हिंदी भावार्थ - यदि देवताओं के भी साथ युद्ध छिड़ जाय तो उसमें उसका विनाश ब्रह्मास्त्र भी नहीं कर सकते, वह विजय प्राप्त करता है ॥ २६ ॥

प्रातरुत्थाय सततं यः पठेत् कवचं शुभम् ।
अक्षय्यं लभते सौख्यमिह लोके परत्र च ॥ २७॥

हिंदी भावार्थ -जो प्रातःकाल उठकर इस कल्याणकारी कवचका सदा पाठ करता है, उसे इस लोक तथा परलोक में भी अक्षय्य सुख प्राप्त होता है ॥ २७ ॥

सर्वव्याधिविनिर्मुक्तः सर्वरोगविवर्जितः ।
अजरामरणो भूत्वा सदा षोडशवार्षिकः ॥ २८ ॥

हिंदी भावार्थ - वह सम्पूर्ण व्याधियोंसे मुक्त हो जाता है, सब प्रकारके रोग उसके शरीर से भाग जाते हैं। वह अजर-अमर होकर सदा के लिये सोलह वर्षवाला व्यक्ति बन जाता है ॥ २८ ॥

विचरत्यखिलाँल्लोकान् प्राप्य भोगांश्च दुर्लभान् ।
तस्मादिदं महागोप्यं कवचं समुदाहृतम् ।
मृतसञ्जीवनं नाम्ना दैवतैरपि दुर्लभम् ॥ २९ ॥

हिंदी भावार्थ - इस लोक में दुर्लभ भोगों को प्राप्त कर सम्पूर्ण लोकों में विचरण करता रहता है। इसलिये इस महागोपनीय कवच को मृतसञ्जीवन नामसे कहा है। यह देवताओंके लिये भी दुर्लभ है ॥ २९ ॥

॥ इति मृतसञ्जीवन कवचं सम्पूर्णम् ॥
॥ इस प्रकार मृतसञ्जीवन कवच सम्पूर्ण हुआ ॥


***********

www.indianstates.in

मृतसञ्जीवनकवचम् हिंदी में Mritsanjivankavacham