पशुपति स्तोत्र हिंदी अर्थ के साथ
Pashupati Stotram
पशुपतिस्तोत्रम् हिंदी में
आलेख - Sadhak Prabhat
पशुपतिस्तोत्रम्
स पातु वो यस्य जटाकलापे स्थितः शशाङ्कः स्फुटहारगौरः ।
नीलोत्पलानामिव नालपुञ्जे निद्रायमाणः शरदीव हंसः ॥ १ ॥
हिंदी भावार्थ - जिनके जटाजूट में स्थित गौर वर्ण का चन्द्रमा शरद् ऋतु में नील कमल के नालों में निद्रायमाण हंस-सा दीख रहा है, ऐसे चन्द्रभूषण भगवान् पशुपति आप सबकी रक्षा करें ॥ १ ॥
जगत्सिसृक्षाप्रलयक्रियाविधौ प्रयत्नमुन्मेषनिमेषविभ्रमम्।
वदन्ति यस्येक्षणलोलपक्ष्मणां पराय तस्मै परमेष्ठिने नमः ॥ २ ॥
हिंदी भावार्थ - जिन भगवान् पशुपतिके चञ्चल नेत्रों की पलकों का उन्मेष (खोलना), निमेष (बंद करना) एवं विभ्रम (घूमना) संसार की सृष्टि, पालन तथा संहार की क्रियाओं का प्रयत्न कहा जाता है, उन परात्पर परमेष्ठी भगवान् पशुपतिको नमस्कार है ॥ २ ॥
व्योम्नीव नीरदभरः सरसीव वीचिव्यूहः सहस्त्रमहसीव सुधांशुधाम ।
यस्मिन्निदं जगदुदेति च लीयते च तच्छाम्भवं भवतु वैभवमृद्धये वः ॥ ३॥
हिंदी भावार्थ - जिनके भीतर यह जगत् उसी प्रकार प्रकट और विलीन होता रहता है, जिस प्रकार आकाश में मेघपुञ्ज, तालाब में तरङ्ग समूह और अनन्त दीप्तिवाले सूर्यमण्डल में चन्द्रमा की किरणें, ऐसे भगवान् पशुपति शङ्कर आप सबको सुख-समृद्धि प्रदान करें ॥ ३ ॥
यः कन्दुकैरिव पुरन्दरपद्मसद्म- पद्मापतिप्रभृतिभिः प्रभुरप्रमेयः ।
खेलत्यलङ्घयमहिमा स हिमाद्रिकन्या- कान्तः कृतान्तदलनो गलयत्वधं वः ॥ ४ ॥
हिंदी भावार्थ - अप्रमेय एवं अनतिक्रमणीय महिमावाले तथा कृतान्त (यमराज) - का दलन करनेवाले, इन्द्र, ब्रह्मा और विष्णु आदिके साथ क्रीड़ा-कन्दुक बनकर संसारमें क्रीड़ा करनेवाले पार्वतीपति भगवान् पशुपति आप लोगों के पापको नष्ट करें ॥ ४॥
दिश्यात् स शीतकिरणाभरणः शिवं वो हंसीव यस्योत्तमाङ्गभुवि विस्फुरदुर्मिपक्षा।
निर्मलशशाङ्ककलामृणाल- कन्दार्थिनी सुरसरिन्नभतः पपात ॥ ५ ॥
हिंदी भावार्थ - जिन भगवान् शङ्करके सिरपर अपनी लहरोंके साथ लहराती हुई गङ्गा आकाशसे इस प्रकार अवतरित हो रही हैं, जैसे चन्द्रमा को निर्मल मृणालकन्द समझकर उसे पाने की इच्छा करती हुई और अपने पंखों को हिलाती-डुलाती हंसी आकाश से सरोवर में उतर रही हो। ऐसे शीतकिरण चन्द्रमाको आभूषण रूपमें धारण करनेवाले भगवान् पशुपति आप सबका कल्याण करें ॥ ५ ॥
॥ इति पशुपतिस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
॥ इस प्रकार पशुपतिस्तोत्र सम्पूर्ण हुआ ॥