पयोव्रत
Payo Vrat
पयोव्रत
पयोव्रत का वर्णन श्रीमद्भागवत के प्रथम खंड के आठवें स्कंध में है। पयोव्रत फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा से द्वादशी पर्यन्त बारह दिन में पूर्ण होता है। इस व्रत को 'सर्वयज्ञ' और 'सर्वव्रत' के नाम से भी जानते हैं । यह व्रत अद्भुत प्रभाव-सम्पन्न पुत्र प्राप्ति की इच्छा रखने वाले स्त्री-पुरुषों के करने का है। देवमाता अदितिके उदरसे वामन भगवान् इसी व्रत के प्रभावसे प्रकट हुए थे।
पयोव्रत का विधि विधान -
यह कुल बारह दिन का व्रत है। पहला दिन फाल्गुनी अमावस्या को पयोव्रत प्रारंम्भ करने के लिये गुरु-शुक्रादि का उदय और उत्तम मुहूर्त देखकर वन में जाकर निम्न मंत्र से से जंगली शूकरकी खोदी हुई मिट्टी को शरीर में लगाये -
त्वं देव्यादिवराहेण स्सायाः स्थानमिच्छता।
उद्धृतासि नमस्तुभ्यं पाप्मानं मे प्रणाशय ॥
इसके बाद समीप के सरोवर में जाकर शुद्ध स्नान करे। फिर गौ के दूध की खीर बनाकर दो विद्वान् ब्राह्मणों को उसका भोजन कराये और स्वयं भी उसी का भोजन करे।
दूसरे दिन फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा को भगवान को गौ के दूध से स्नान कराकर हाथमें जल लेकर निम्न संकल्प करे -
पयोव्रत संकल्प
ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः । ॐ अद्य ब्रह्मणो द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे बौद्धावतारे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे - (अपने नगर/गांव का नाम लें) - नगरे/ ग्रामे विक्रम संवत 2081 पिंगल नाम संवत्सरे माघ मासे शुक्ल पक्षे पञ्चमी तिथौ बुध वासरे (दिन का नाम जैसे रविवार है तो "रवि वासरे ")..(अपने गोत्र का नाम लें) ... गोत्रोत्पन्न ... (अपना नाम लें)... शर्मा / वर्मा / गुप्तोऽहम् मम सकलगुणगणवरिष्ठ- महत्त्वसम्पन्नायुष्मत्पुत्रप्राप्तिकामनया विष्णुप्रीतये पयोव्रतमहं करिष्ये।
तदनन्तर सुवर्णक बने हुए विष्णु भवन का निम्न मंत्र से आवाहनादि षोडशोपचार पूजन करें -
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
इसके बाद 1 महापुरुषाय, 2 सूक्ष्माय, 3 विशीष्यों, 4 शिवाय, 5 हिरण्यगर्भाय, 6 आदिदेवाय, 7 मरकतश्यामवपुषे, 8 त्रयीविद्यात्मने, 9 योगैश्वर्य- शरीराय नमः , इन नाम मन्त्रों से भगवान् को प्रणाम और पुष्पाञ्जलि अर्पण करके दूध एक बार पीयें (अल्प मात्रा में)।
इस प्रकार प्रतिपदा से द्वादशी तक 12 दिन तक व्रत करके त्रयोदशी को विष्णुका यथाविधि पूजन करे। पञ्चामृत से स्नान कराये और तेरह ब्राह्मणों को गोदुग्ध की खीर का भोजन करायें । ब्राह्मण-भोजन के लिए बिना गुड़-मिश्रित खीर बनायें एवं एकादशी के दिन खीर चावल की न बनायें अपितु मोरधन, सिंघाड़े का आटा, राजगिरा आदि उपवास में खायी जानेवाली चीजें डालकर बनायें। तदनन्तर सुपूजित मूर्ति भूमि के, सूर्य के, जल के या अग्रि के अर्पण करके गुरु को दें और व्रत- विसर्जन करके तेरहवें दिन स्वयं भी स्वल्पमात्रा में खीर का भोजन करे।
व्रत-समाप्ति के अगले दिन सात्विक ब्राह्मण को तथा अतिथियों को अपने सामर्थ्य अनुसार शुद्ध, सात्त्विक भोजन कराना चाहिए। दीन, अंधे और असमर्थ लोगों को भी अन्न आदि से संतुष्ट करना चाहिए। जब सब लोग खा चुके हों तब उन सबके सत्कार को भगवान की प्रसन्नता का साधन समझते हए अपने भाई-बंधुओं के साथ स्वयं भोजन करें। इस प्रकार विधिपूर्वक यह व्रत करने सेभगवान प्रसन्न होकर व्रत करनेवाले कीअभिलाषा पूर्ण करते हैं।
व्रती के 12 दिनों के सामान्य दिनचर्या
व्रती धरती पर दरी या कंबल बिछाकर शयन करे अथवा गद्दा-तकिया हटा के सादे पलंग पर शयन करे और तीनों समय स्नान करे। झूठ न बोले एवं भोगों का त्याग कर दे। व्रतधारी व्रत के दिनों में ब्रह्मचर्य का पालन करे। किसी भी प्राणी को कष्ट न पहुँचाये। सत्संग-श्रवण, भजनकीर्तन, स्तुति-पाठ तथा अधिक-से-अधिक गुरुमंत्र या भगवान् के नाम का जाप करे। भक्ति भाव से सद्गुरुदेव को सर्वव्यापक परमात्मा स्वरूप जानकर उनकी पूजा करे, प्रभु का ध्यान करे। इस व्रत में केवल दूध पीकर रहना होता है।
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