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रविवार प्रदोष त्रयोदशी व्रत कथा एवं पूजा विधि - आयु वृद्धि आरोग्यता एवं सन्तान प्राप्ति हेतु

Sunday Pradosh Vrat story and worship method

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प्रदोष का व्रत pradosh ka vrat Pradosh's fast
आलेख © कॉपीराइट - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)

रविवार प्रदोष त्रयोदशी व्रत कथा एवं पूजा विधि - आयु वृद्धि आरोग्यता एवं सन्तान प्राप्ति हेतु

Sunday Pradosh Vrat story and worship method

रविवार प्रदोष व्रत पूजा की विधि - Method of Pradosh Vrat Puja -

प्रदोष व्रत करने वाले को दिनभर भोजन नहीं करना चाहिये। शाम के समय जब सूर्यास्त में तीन घड़ी का समय शेष रह जाए तब स्नानादि कर्मों से निवृत्त होकर, श्वेत वस्त्र धारण करके तत्पश्चात् संध्यावन्दन करने के बाद शिवजी का पूजन प्रारंभ करना चाहिए। पूजा के स्थान को स्वच्छ जल से लीपें। वहाँ मण्डप बनाएँ। वहाँ पाँच रंगों के पुष्पों से पद्म पुष्प की आकृति बनाकर कुश का आसन बिछायें, आसन पर पूर्वाभिमुख बैठें। इसके बाद भगवान महेश्वर का ध्यान करें।

ध्यान का स्वरूप -

करोड़ों चन्द्रमा के समान कान्तिवान, त्रिनेत्रधारी, मस्तक पर चन्द्रमा का आभूषण धारण करने वाले पिंगलवर्ण के जटाजूटधारी, नीले कण्ठ तथा अनेक रुद्राक्ष मालाओं से सुशोभित, वरदहस्त, त्रिशूलधारी, नागों के कुण्डल पहने, व्याघ्र चर्म धारण किए हुए, रत्नजड़ित सिंहासन पर विराजमान शिवजी का ध्यान करना चाहिये।

रविवार प्रदोष व्रत के उद्यापन की विधि -

प्रातः स्नानादि कार्य से निवृत होकर रंगीन वस्त्रों से मण्डप बनावें। फिर उस मण्डप में शिव-पार्वती की प्रतिमा स्थापित करके विधिवत पूजन करें। तदन्तर शिव पार्वती के उद्देश्य से खीर से अग्नि में हवन करना चाहिए। हवन करते समय ॐ उमा सहित शिवाय नमः ' मन्त्र से १०८ बार आहुति देनी चाहिये। इसी प्रकार ॐ नमः शिवाय' के उच्चारण के शंकर जी के निमित्त आहुति प्रदान करें। हवन के अन्त में सामर्थ्य के अनुसार दान देना चाहिये (अयोग्यं लोभी वा कस्मैचित् दानं दत्तं चेत् उपवासः शून्यः इति शास्त्रीयः प्रत्ययः - अयोग्य या लालची को दान देने से व्रत निष्फल है ऐसा शास्त्रीय मत है अत: योग्य धार्मिक व्यक्ति को दान देना चाहिये )। अपने बन्धु बान्धवों की साथ में लेकर मन में भगवान शंकर का स्मरण करते हुए व्रती को भोजन करना चाहिये। इस प्रकार उद्यापन करने से व्रती पुत्र-पौत्रादि से युक्त होता है तथा आरोग्य लाभ करता है। इसके अतिरिक्त वह अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है एवं सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है। ऐसा स्कन्द पुराण में कहा गया है।

रविवार प्रदोष व्रत कथा

एक समय सर्व प्राणियों के हितार्थ परम पावन भागीरथी के तट पर ऋषि समाज द्वारा विशाल गोष्ठी का आयोजन किया गया विज्ञ महर्षियों की एकत्रित सभा में व्यास जी के परम शिष्य पुराणवेत्ता सूत जी महाराज हरि कीर्तन करते हुए पधारे। सूत जी को देखते ही शौनकादि अट्ठासी हजार ऋषि मुनियों ने खड़े होकर दंडवत् प्रणाम किया। महाज्ञानी सूत जी ने भक्ति भाव से ऋषियों को हृदय से लगाया तथा आशीर्वाद दिया विद्वान ऋषिगण और सब शिष्य आसनों पर विराजमान हो गये।

मुनिगण विनीत भाव से पूछने लगे कि हे परम दयालु कलिकाल में शंकर की भक्ति किस आराधना द्वारा उपलब्ध होगी, हम लोगों को बताने की कृपा कीजिए, क्योंकि कलयुग के सर्व प्राणी पाप कर्म में रत रहकर वेद शास्त्रों से विमुख दीनजन अनेकों संकटों से त्रस्त रहेंगे। हे मुनिश्रेष्ठ! कलिकाल में सत्कर्म की ओर किसी की रुचि न होगी। जब पुण्य क्षीण हो जायेंगे तो मनुष्य की बुद्धि असत् कर्मों की ओर खुद ब खुद प्रेरित होगी जिससे दुर्विचारी पुरुष वंश सहित समाप्त हो जायेंगे। इस अखिल भूमण्डल पर जो मनुष्य ज्ञानी होकर ज्ञान की शिक्षा नहीं देता, उस पर परमपिता परमेश्वर कभी प्रसन्न नहीं होते हैं। है महामुने! ऐसा कौन सा उत्तम व्रत है जिससे मनवांछित फल की प्राप्ति होती हो, आप कृपा कर बतलाइये। ऐसा सुनकर दयालु हृदय, श्री सूत जी कहने लगे- कि हे श्रेष्ठ मुनियों तथा शौनक जी आप धन्यवाद के पात्र है। आपके विचार सराहनीय एवं प्रशंसनीय हैं। आप वैष्णव अग्रगण्य हैं क्योंकि आपके हृदय में सदा परहित की भावना रहती है, इसलिए हे शौनकादि ऋषियों, सुनो मैं उस व्रत को तुमसे कहता हूँ जिसके करने से सब पाप नष्ट हो जाते हैं। धन वृद्धिकारक, दुःख विनाशक, सुख प्राप्त कराने वाला, सन्तान देने वाला, मनवांछित फल प्राप्ति कराने वाला यह व्रत तुमको सुनाता हूँ जो किसी समय भगवान शंकर ने सती जी को सुनाया था और उनसे प्राप्त यह परमश्रेष्ठ उपदेश मेरे पूज्य गुरु जी ने मुझे सुनाया था। जिसे आपको समय पाकर शुभ बेला में मैं सुनाता हूँ । बोलो उमापति शंकर भगवान की जय।

सूत जी कहने लगे कि आयु, वृद्धि, स्वास्थ्य लाभ हेतु त्रयोदशी का व्रत करें। इसकी विधि इस प्रकार है- प्रातः स्नान कर निराहार रहकर, शिव ध्यान में मग्न हो, शिव मन्दिर में जाकर शंकर की पूजा करें पूजा के पश्चात् अर्द्ध पुण्ड त्रिपुण्ड का तिलक धारण करें, बेल पत्र चढ़ावें, धूप, दीप अक्षत से पूजा करें, ऋतु फल चढ़ावे "ॐ नमः शिवाय " मन्त्र का रुद्राक्ष की माला से जप करें, | ब्राह्मण को भोजन करा सामर्थ्य अनुसार दक्षिणा दें। तत्पश्चात् मौन व्रत धारण करें, व्रती को सत्य भाषण करना आवश्यक है, हवन आहुति भी देनी चाहिये। मन्त्र" ओं ह्रीं क्लीं नमः शिवाय स्वाहा' से आहुति देनी चाहिये। इससे अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। व्रती पृथ्वी पर शयन करें, एक बार भोजन करे इससे सर्व कार्य सिद्ध होते हैं। श्रावण मास में तो इसका विशेष महत्व है। यह सर्वसुख धन, आरोग्यता देने वाला है, यह व्रत इस सब मनोरथों को पूर्ण करता है। हे ऋषिवरों! यह प्रदोष व्रत जो मैंने आपको बताया किसी समय शंकर जी ने सती जी को और वेदव्यास मुनि ने मुझको सुनाया था।

शौनकादि ऋषि बोले- हे पूज्यवर महामते ! आपने यह व्रत परम गोपनीय मंगलप्रद, कष्ट निवारक बतलाया है! कृपया यह बताने का कष्ट करें कि यह व्रत किसने किया और उसे क्या फल प्राप्त हुआ ? शौनकादि ऋषि बोले कि हे दयालु कृपा करके अब आप रविवार त्रयोदशी प्रदोष का व्रत सुनाइये ।

श्री सूत जी बोले- हे विचारवान् ज्ञानियों! आप शिव के परम भक्त हैं, आपकी भक्ति देखकर मैं आपको कथा कहता हूँ। एक गाँव में अति दीन ब्राह्मण निवास करता था। उसकी साध्वी स्त्री प्रदोष व्रत किया करती थी, उसके घर ही पुत्र रत्न था। एक समय की बात है कि वह पुत्र गंगा स्नान करने के लिये गया। दुर्भाग्यवश मार्ग में चोरों ने उसे घेर लिया और वह कहने लगे कि हम तुझे मारेंगे, नहीं तो तू अपने पिता का गुप्त धन बतलादे बालक दीन भाव से कहने लगा कि हे बन्धुओं! हम अत्यन्त दुःखी दीन हैं। हमारे पास धन कहाँ है? चोर फिर कहने लगे कि तेरे पास पोटली में क्या धंधा है? बालक ने निःसंकोच उत्तर दिया कि मेरी माता ने मुझे रोटी बनाकर बाँध दी है। दूसरा चोर बोला कि भाई यह तो अति दीन दुःखी हृदय है, इसे छोड़िये बालक इतनी बात सुनकर वहाँ से प्रस्थान करने लगा और एक नगर में पहुँचा। नगर के पास एक बरगद का पेड़ था, बालक थककर वहाँ बैठ गया और वृक्ष की छाया में सो गया, उस नगर के सिपाही चोरों की खोज कर रहे थे कि खोज करते-करते उस बालक के पास आ गये, सिपाही बालक को भी चोर समझकर राजा के समीप ले गये। राजा ने उसे कारावास की आज्ञा दे दी। उधर बालक की माँ भगवान शंकर जी का प्रदोष व्रत कर रही थी, उसी रात्रि राजा को स्वप्न हुआ कि यह बालक चोर नहीं है, प्रातः काल ही छोड़ दो नहीं तो आपका राज्य-वैभव सब शीघ्र ही नष्ट हो जायेगा। रात्रि समाप्त होने पर राजा ने उस बालक से सारा वृतान्त पूछा, बालक ने सारा वृतान्त कह सुनाया। वृतान्त सुनकर राजा ने सिपाही भेजकर बालक के माता-पिता को पकड़वाकर बुला लिया। राजा ने उन्हें जब भयभीत देखा तो कहा कि तुम भय मत करो, तुम्हारा बालक निर्दोष है। हम तुम्हारी दरिद्रता देखकर पाँच गाँव दान में देते हैं। शिव की दया से ब्राह्मण परिवार अब आनन्द से रहने लगा। इस प्रकार जो कोई इस व्रत को करता है, उसे आनन्द प्राप्त होता है।

कथा के बाद अब शंकर भगवान् की आरती करें

आरती श्री शंकर जी की

ओम जय शिव ओंकारा स्वामी जय शिव ओंकारा ॥ ओ० ॥
ब्रह्मा-विष्णु सदाशिव अर्द्धांगी धारा ॥ ओ० ॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ॥ ओ० ॥
हंसासन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ओ० ॥
दो भुज चार चतुर्भुज दशभुज अति सोहे ॥ ओ० ॥
तीनों रूप निरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ओ० ॥
अक्षमाला बनमाला रुंडमाला धारी ॥ ओ० ॥
चंदन मृगमद सोहे भोले शुभकारी ॥ ओ० ॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघाम्बर अंगे ॥ ओ० ॥
सनकादिक ब्रह्मादिक प्रेतादिक संगे ॥ ओ० ॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशुल धर्ता ॥ ओ० ॥
जग कर्ता संहर्ता जग पालन कर्ता ॥ ओ० ॥
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव जानत अविवेका ॥ ओ० ॥
प्रणवाक्षर के मध्ये, तीनों ही एका ॥ ओ० ॥
त्रिगुण स्वामी जी की आरती जो कोई जन गावे ॥ ओ० ॥
कहत शिवानन्द स्वामी मन वाँछित फल पावे ॥ ओ० ॥

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