शिव अभिलाषाष्टक-स्तोत्र
पुत्र प्राप्ति के लिए शिव अभिलाषाष्टक-स्तोत्र (स्कन्दपुराण, काशीखण्ड पूर्वार्द्ध, अध्याय 10 में वर्णित है) का पाठ करें। सनातन शास्त्रों में पांच पुत्रप्रद व्रत बताया गया है उसमें शिव अभिलाषाष्टक-स्तोत्र का पाठ एक है। अतः संतानकी कामनावाले पति या पत्नीको चाहिये, प्रातः शौच स्नानादिसे निवृत्त हो शिवजीका पूजन करे और इस स्तोत्रका आठ या अट्ठाईस बार पाठ करे। इस प्रकार एक वर्षपर्यन्त पाठ करते रहने से पुत्रकी प्राप्ति होती है। भगवान् शिव की बालक रूप में प्रतिमा या चित्र को स्थापित कर उनका पुत्र की भांति ध्यान रखकर उनको नित्य तीनों संध्या स्नान कराना, झूला झूलाना, वस्त्र अर्पित करना एवं उनके अनुरूप भोजन अर्पित करना आदि कार्य करें। भगवान् भोलेनाथ पर श्रद्धा रखें, कार्य सरलता से सिद्ध हो जाता है।
- साधक प्रभात
Shiva Abhilashashtak-Stotra -
शिव अभिलाषाष्टक स्तोत्रम्
॥ ॐ नमः शिवाय ॥
।। स्तोत्र ।।
एक ब्रह्मवाद्वितीय समस्तं सत्यं सत्यं नेह नानास्ति किञ्चित्।
एको रुद्रो न द्वितीयोऽवतस्थे तस्मादेक त्वां प्रपद्ये महेशम् ।। १।।
एक: कर्ता हि विश्वस्य शम्भो नाना रूपेष्वेकरूपोऽस्परूपः।
यद्वत्प्रत्यस्वर्क एको ऽप्यनेकस्तस्मान्नान्यं विनेश प्रपद्ये।।२।।
रज्जौ सर्पः शुक्तिकायां च रूप्यं नैरः पुरस्तन्मृगाख्ये मरीची।
यत्तद्वद् विश्वगेष प्रपञ्चो यस्मिन् ज्ञाते तं प्रपद्ये महेशम् ||३||
तोये शैत्यं दाहकत्वं च वहन तापो मानौ शीतभानी प्रसादः।
पुष्पे गन्धों दुग्धमध्ये च सर्पिर्यत्तच्छम्भो त्वं ततस्त्वां प्रपद्ये ॥ ४ ॥
शब्द गृहणास्यश्रवास्त्वं हि जिधेरप्राणस्त्वं व्यंनिरायासि दूरात्।
व्यक्षः पश्यैस्त्वं रसज्ञोऽप्यजिह्वः करत्वां सम्यग् वेत्त्यतस्त्वां प्रपद्ये ।। ५ ।।
नो वेदस्त्वामीश साक्षादि वेद नो या विष्णुनों विधाताखिलस्य।
नो योगीन्द्रा नेन्द्रमुख्याश्च देवा भक्तो वेद त्वामतस्त्वा प्रपद्ये ॥ ६ ॥
नो ते गोत्र नेश जन्मापि नाख्या नो वा रूपं नैव शील न देशः।
इत्यंभूतोऽपीश्वरस्तवं त्रिलोक्याः सर्वान् कामान् पूरयेस्तद् भजे त्वाम् ।।७।।
त्वत्तः सर्व त्वं हि सर्व स्मरारे त्वं गौरीशस्त्वं च नग्नोऽतिशान्तः।
त्वं वै वृद्धस्त्वं युवा त्वं च बालस्तत्किं यत्त्वं नास्यतस्त्वां नतोऽस्मि ।।८।।
ऋषिवर विश्वानरकी धर्मपत्नी शुचिष्पतीने अपने पतिसे प्रार्थना की कि मेरे 'शिव समान पुत्र हो। यह सुनकर विश्वानर क्षणभर तो चुप रहे, फिर बोले 'एवमस्तु' और उन्होंने स्वयं ही १२ महीनेतक फलाहार, जलाहार और वाय्वाहारके आधारपर घोर तप किया। फिर काशी जाकर विकरादेवी तथा सिद्धि विनायकके समीप चन्द्रकूपमें स्नान करके वहीं वरिश्वरके समीप अभिलाषाष्टकके आठ मन्त्रोंसे बड़ी श्रद्धापूर्वक स्तुति की। इससे भगवान् शङ्कर प्रसन्न हो गये और कुछ ही दिन बाद विश्वानरकी पत्नी शुचिष्मतीको गर्भ रह गया। समय आनेपर उसने शिवसदृश पुत्र गृहपति (अग्नि) को जन्म दिया। अतः संतानकी कामनावाले पति या पत्नीको चाहिये, प्रातः शौच स्नानादिसे निवृत्त हो शिवजीका पूजन करे और इस स्तोत्रका आठ या अट्ठाईस बार पाठ करे। इस प्रकार एक वर्षपर्यन्त पाठ करते रहने से पुत्रकी प्राप्ति होती है।