श्री शिव प्रातः स्मरण स्तोत्र
श्री शिव प्रातः स्मरण स्तोत्र
आलेख - Sadhak Prabhat
॥ ॐ नमः शिवाय ॥
प्रातः स्मरामिभवभीतिहरं सुरेशं
गङ्गाधरंवृषभवाहनमम्बिकेशम्।
खट्वाङ्गशूलवरदाभयहस्तमीशं
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्॥1॥
भावार्थ : 'संसारके भयको नष्ट करनेवाले, देवेश, गङ्गाधर, वृषभवाहन, पार्वतीपति, हाथमें खट्वाङ्ग एवं त्रिशूल लिये और संसाररूपी रोगका नाश करनेके लिये अद्वितीय औषध-स्वरूप, अभय एवं वरद मुद्रायुक्त हस्तवाले भगवान् शिवका मैं प्रातःकाल स्मरण करता हूँ।'
प्रातर्नमामि गिरिशंगिरिजार्धदेहं
सर्गस्थितिप्रलयकारणमादिदेवम्।
विश्वेश्वरंविजितविश्वमनोभिरामं
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्॥2॥
भावार्थ : 'भगवती पार्वती जिनका आधा अंग है (भगवान शिव का अर्धनारीश्वर रूप-शिव और पार्वती),जो संसार की सृष्टि,स्थिति और प्रलय के कारण हैं,आदिदेव है,विश्वनाथ है,विश्व विजयी और मनोहर है,सांसारिक रोग को नष्ट करने के लिए अद्वितीय और औषध रूप उन गिरीश अर्थात भगवान् शिवका मैं प्रातःकाल स्मरण करता हूँ।'
प्रातर्भजामिशिवमेकमनन्तमाद्यं
वेदान्तवेद्यमनघंपुरुषं महान्तम्।
नामादिभेदरहितंषड्भावशून्यं
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्॥3॥
भावार्थ : 'जो अंत से रहित,आदिदेव है,वेदांत से जानने योग्य, पाप रहित एवं महान पुरुष है तथाजो नाम आदि भेदों से रहित, विकारों से शुन्य,अर्थात विकारों रहित,संसार रोगके हरने के निमित्त अद्वितीय औषध है,उन एक भगवान् शिवका मैं प्रातःकाल स्मरण करता हूँ।'