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शिव तांडव स्तुति शिवताण्डवस्तुतिः

Shiva Tandav Praise

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Shiva-Tandav

शिव तांडव स्तुति हिंदी अर्थ के साथ

आलेख - Sadhak Prabhat

शिवताण्डवस्तुतिः

देवा दिक्पतयः प्रयात परतः खं मुञ्चताम्भोमुचः
पातालं व्रज मेदिनि प्रविशत क्षोणीतलं भूधराः ।
ब्रह्मन्नुन्नय दूरमात्मभुवनं नाथस्य नो नृत्यतः
शम्भोः संकटमेतदित्यवतु वः प्रोत्सारणा नन्दिनः ॥ १ ॥

हिंदी भावार्थ - [ नन्दीने भगवान् शङ्करका ताण्डव नृत्य निर्विघ्न चलनेके लिये कहा ] - हे देवताओ ! तथा दिक्पतियो ! यहाँ से कहीं और दूर हट जाओ। जल बरसानेवाले बादलो ! आकाश को छोड़ दो ! पृथ्वि ! तू पाताल में चली जा। पर्वतो ! पृथ्वी के निचले भाग में प्रवेश कर जाओ। ब्रह्मन् ! तुम अपने लोक को कहीं दूर और ऊपर उठा ले जाओ; क्योंकि मेरे स्वामी भगवान् शङ्करके नृत्य करने के समय में तुम सब संकट रूप हो। इस प्रकार लोगों को दूर जानेके लिये की गयी नन्दी की घोषणा आप सबकी रक्षा करे ॥ १ ॥

दोर्दण्डद्वयलीलयाचलगिरिभ्राम्यत्तदुच्चै रव-
ध्वानोद्भीतजगद्भमत्पदभरालोलत्फणाग्र्योरगम् ।
भृङ्गापिङ्गजटाटवीपरिसरोद्गङ्गोर्मिमालाचल-
च्चन्द्रं चारु महेश्वरस्य भवतान्नः श्रेयसे ताण्डवम् ॥ २ ॥

हिंदी भावार्थ - ताण्डव नृत्य करते समय जब भगवान् शिव अपनी दोनों भुजाओं को लीलापूर्वक घुमाने लगे तो उन भुजाओं के घुमाने से अचल पर्वत भी घूमने लगे। उनके घूमने से जो ध्वनि होती थी, वह बड़ी ही ऊँची आवाज में होती थी। उससे संसार भयभीत हो जाता था और जब पाद- विक्षेप करते थे तो उसके भार से शेषनाग का अग्रय - ऊपरी फण भी आन्दोलित - चञ्चल हो जाता था। इस प्रकार भृंग के समान कृष्ण एवं पीले जटासमूहों से गङ्गाजी की अनवरत चलती हुई लहरों से चञ्चल चन्द्रमावाले महेश्वर का ताण्डव नृत्य हम सभी के लिये कल्याणकारी हो ॥ २ ॥

संध्याताण्डवडम्बरव्यसनिनो भर्गस्य चण्डभ्रमि-
व्यानृत्यद्भुजदण्डमण्डलभुवो झञ्झानिलाः पान्तु वः ।
येषामुच्छलतां जवेन झटिति व्यूहेषु भूमीभृता-
मुड्डीनेषु विडौजसा पुनरसौ दम्भोलिरालोकिता ॥ ३ ॥

हिंदी भावार्थ - संध्याकालिक ताण्डव नृत्य में डम्बर- चहल-पहल होने के व्यसनी भगवान् शङ्कर जब अपने दोनों भुजदण्डों को पृथ्वी के चारों ओर घुमाते तथा प्रचण्डरूप में नाचते हुए चक्कर काटने लगे तो सहसा उनके वेगपूर्वक उछलनेके कारण स्थान-स्थान पर पर्वतों के उड़ने से हुई आवाज के डर से इन्द्रने भी एक बार फिर अपने वज्रको चलाने की दृष्टि से वज्र की ओर देखा। तत्कालीन ताण्डव नृत्य से होनेवाली भुजदण्डों की झंझावात आपलोगों की रक्षा करे ॥ ३ ॥

शर्वाणीपाणितालैश्चलवलयझणत्कारिभिः श्लाघ्यमानं
स्थाने सम्भाव्यमानं पुलकितवपुषा शम्भुना प्रेक्षकेण ।
खेलत्पिच्छालिकेकाकलकलकलितं क्रौञ्चभिद्बर्हियूनो
हेरम्बाकाण्डबृंहातरलितमनसस्ताण्डवं त्वा धुनोतु ॥ ४ ॥

हिंदी भावार्थ - जब श्रीगणेशजी के अङ्ग पूर्ण हो गये, तब क्रौञ्च के भेत्ता ( भेदन करनेवाला) तरुण मयूर के वाही कार्तिकेय का मन प्रसन्नता से आन्दोलित हो उठा और उनका वाहन मयूर के काध्वनिके साथ नाचने लगा, तब भगवती पार्वती अपने दोनों करतलों के बजाने के कारण हुई चञ्चल वलयों की झनकार से उसकी प्रशंसा करने लगीं। उचित समय देखकर भगवान् शङ्कर भी प्रेक्षक के रूप में पुलकित-मन हो, उसे आदर देने लगे। ऐसे भगवान् शिव का ताण्डव तुम्हें आनन्दित करे [ मयूर के वाही से तात्पर्य उस गुण से है जिसमें साँप रूपी दुश्मन या दुष्टमन को मोर के समान मारने की अचूक क्षमता होती है ] ॥ ४ ॥

देवस्त्रैगुण्यभेदात् सृजति वितनुते संहरत्येष लोका-
नस्यैव व्यापिनीभिस्तनुभिरपि जगद्व्याप्तमष्टाभिरेव ।
वन्द्यो नास्येति पश्यन्निव चरणगतः पातु पुष्पाञ्जलिर्वः
शम्भोनृत्यावतारे वलयफणिफणाफूत्कृतैर्विप्रकीर्णः ॥ ५ ॥

हिंदी भावार्थ - यह जगत् भगवान् शिव की आठ मूर्तियों से व्याप्त है। ये ही भगवान् शङ्कर सत्-रज-तम- इन तीन गुणों का आधार बनकर लोकों की सृष्टि, पालन और संहार भी करते हैं। भगवान् शिव नृत्य करने से पूर्व जब अपने इष्टदेव को पुष्पाञ्जलि समर्पित करते हैं तो वह पुष्पाञ्जलि, इनसे बड़ा और कोई वन्दनीय नहीं है- यह देखती हुई कर में कंकण के रूप में लिपटे सर्पों की फुफकार से बिखर कर भगवान् शिव के चरणों का स्पर्श करती है, ऐसी पुष्पाञ्जलि आप सबकी रक्षा करे ॥ ५ ॥

॥ इति शिवताण्डवस्तुतिः सम्पूर्णा ॥
॥ इस प्रकार शिवताण्डवस्तुति सम्पूर्ण हुई ॥

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