श्री महाशिवरात्रि
Shri Mahashivratri
महाशिवरात्रि 8 मार्च 2024 को है।
आलेख - Sadhak Prabhat
महाशिवरात्रि व्रत फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को किया जाता है।
चतुर्दश्यां तु कृष्णायां फाल्गुने शिवपूजनम्।
तामुपोष्य प्रयत्नेन विषयान् परिवर्जयेत्॥
पौराणिक मान्यता के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव व पत्नी पार्वती की पूजा होती हैं। यह भी माना जाता है कि सृष्टि का प्रारम्भ इसी दिन से हुआ था। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सृष्टि का आरम्भ अग्निलिंग (जो महादेव का विशालकाय स्वरूप है) के उदय से हुआ। साल में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है| कश्मीर शैव मत में इस त्यौहार को हर-रात्रि और बोलचाल में 'हेराथ' या 'हेरथ' भी कहा जाता हैं।
महाशिवरात्रि पूजन मुहूर्त -
महाशिवरात्रि की चतुर्दशी की शुरुआत 8 मार्च को रात 9 बजकर 57 मिनट पर होगा और तिथि का समापन 9 मार्च को सुबह 6 बजकर 17 मिनट पर होगा। उदया तिथि के अनुसार, महाशिवरात्रि 8 मार्च को ही मनाई जाएगी। महाशिवरात्रि का पूजन निशिता काल में ही किया जाता है। इस बार महाशिवरात्रि के दिन 8 मार्च को ही शनि प्रदोष व्रत और मासिक शिवरात्रि भी पड़ रही है।
निशिता काल - 8 मार्च को देर रात 12 बजकर 07 मिनट से मध्यरात्रि 12 बजकर 56 मिनट तक है। निशिता काल पूजा समय: 09 मार्च को सुबह 12 बजकर 12 मिनट से 01 बजकर 01 मिनट तक है।
प्रथम पहर पूजन समय- 8 मार्च को शाम 6 बजकर 25 मिनट से शुरू होगा और समापन रात 9 बजकर 28 मिनट को होगा।
दूसरा पहर पूजन समय- 8 मार्च को रात 9 बजकर 28 मिनट से शुरू होगा और समापन 9 मार्च को रात 12 बजकर 31 मिनट पर होगा।
तीसरे पहर पूजन समय- 8 मार्च को रात 12 बजकर 31 मिनट से शुरू होगा और समापन सुबह 3 बजकर 34 मिनट पर होगा।
चौथा पहर पूजन समय- 9 मार्च को सुबह 3 बजकर 34 मिनट से लेकर सुबह 6 बजकर 37 मिनट तक पर होगा।
महाशिवरात्रि 2024 के पारण का मुहूर्त (Auspicious time of Parana of Mahashivratri 2024)
व्रत पारण समय - 9 मार्च 2024 को सुबह 06 बजकर 37 मिनट से दोपहर 03 बजकर 28 मिनट तक है।
महाशिवरात्रि प्रतिवर्ष करने से यह 'नित्य' और किसी कामनापूर्वक करने से 'काम्य' होता है (नित्यकाम्यरूपस्यास्य व्रतस्येति)। प्रतिपदा आदि तिथियों के अग्नि आदि अधिपति होते हैं। जिस तिथि का जो स्वामी हो उसका उस तिथि में अर्चन करना अतिशय उत्तम होता है। चतुर्दशी के स्वामी शिव है (अथवा शिव की तिथि चतुर्दशी है)।
तिथीशा वह्निको गौरी गणेशोऽहिर्गुको रविः।
शिवो दुर्गान्तको विच्चे हरिः कामः शिवः शशी ।।
अतः उनकी रात्रि में व्रत किया जानेसे इस व्रत का नाम 'शिवरात्रि' होना सार्थक हो जाता है।
यद्यपि प्रत्येक मास की कृष्णचतुर्दशी शिवरात्रि होती है और शिवभक्त प्रत्येक कृष्णचतुर्दशी का व्रत करते ही हैं, किन्तु ईशानसंहिता के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी के निशीथ काल (अर्धरात्रि) में ज्योतिर्लिङ्ग का प्रादुर्भाव हुआ था, इस कारण यह महाशिवरात्रि मानी जाती है।
शिवलिङ्गतयोद्भुतः कोटिसूर्यसमप्रभः।
महाशिवरात्रि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, अछूत, स्त्री-पुरुष और बाल-युवा-वृद्ध ये सब इस व्रत को कर सकते हैं और प्रायः करते ही हैं। इसके न करने से दोष होता है।
शिवरात्रि-व्रतं नाम सर्वपापप्रणाशनम्।
आचाण्डालमनुष्याणां भुक्तिमुक्ति-प्रदायकम्॥
महाशिवरात्रि व्रत का निर्णय -
सिद्धान्तरूपमें आज के सूर्योदय से कल के सूर्योदय तक रहनेवाली चतुर्दशी 'शुद्धा' और अन्य 'विद्धा' मानी गयी है। उसमें भी प्रदोष (रात्रि का आरम्भ) और निशीथ (अर्धरात्रि) की चतुर्दशी माह्य होती है। अर्धरात्रि की पूजा के लिये स्कन्दपुराण में लिखा है कि -
निशिभ्रमन्ति भूतानि शक्तयः शुलभृद् यतः।
अतस्तस्यां चतुर्दश्यां सत्यां तत्पूजनं भवेत् ।।
अर्थात् फाल्गुन कृष्ण पक्ष 14 को रात्रिके समय भूत, प्रेत, पिशाच, शक्तियाँ और स्वयं शिवजी भ्रमण करते हैं, अतः उस समय इनका पूजन करने से मनुष्य के पाप दूर हो जाते हैं।
शिवरात्रि यदि त्रिस्पृशा यानी त्रयोदशी, चतुर्दसी और रात्रि के तीसरे पहर, इन तीनों के संयोग की हो तो अधिक उत्तम होती है। इसमें भी रविवार या मंगलवार का योग (शिवयोग) और भी अच्छा है।
महाशिवरात्रि व्रत का पारण -
महाशिवरात्रि व्रत का पारण चतुर्दशी में ही करना चाहिये। यह पूर्वविद्धा चतुर्दशी यानी त्रयोदशी मिला हुआ चतुर्दशी हो तो सर्वोत्तम।
तिथीनामेव सर्वासामुपवासव्रतादिषु।
तिथ्यन्ते पारणं कुर्याद विना शिवचतुर्दशीम् ।। (स्मृत्यन्तर)
व्रती को चाहिये कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को प्रातःकाल की शुद्ध होकर ललाट में भस्म का त्रिपुण्डू तिलक और गले में रुद्राक्ष की माला धारण करके हाथ में जल लेकर निम्न मन्त्र पढ़कर जल को भूमि पर छोड़ दें -
शिवरात्रिव्रतं ह्येतत् करिष्येऽहं महाफलम्।
निर्विघ्नमस्तु मे चात्र त्वत्प्रसादाजगत्पते ।।
अब इसके बाद दिनभर (शिवस्मरण करता हुआ) मौन रहे। तत्पश्चात् सायंकाल के समय फिर स्नान करके शिव मन्दिर में जाकर सुविधानुसार पूर्व या उत्तरमुख होकर बैठे और तिलक तथा रुद्राक्ष धारण करके यह संकल्प करें -
महाशिवरात्रि का संकल्प -
ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः । ॐ अद्य ब्रह्मणो द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे बौद्धावतारे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे - (अपने नगर/गांव का नाम लें) - नगरे/ ग्रामे विक्रम संवत 2081 पिंगल नाम संवत्सरे फाल्गुन मासे कृष्ण पक्षे चतुर्दशी तिथौ। ... वासरे (दिन का नाम जैसे शुक्रवार है तो "शुक्र वासरे ")..(अपने गोत्र का नाम लें) ... गोत्रोत्पन्न ... (अपना नाम लें)... शर्मा / वर्मा / गुप्तोऽहम् यथोपलब्धपूजनसामग्रीभिः ममाखिलपापक्षयपूर्वकसकलाभीष्ट- सिद्धये शिवपूजनं करिष्ये।
इसके बाद गन्ध-पुष्प, बिल्वपत्र, धतूरे के फूल, घृत-मिश्रित गुग्गुल की धूप, दीप, नैवेद्य, आरती आदि आवश्यक सामग्री समीप रखकर रात्रि के प्रथम प्रहर में 'पहली', द्वितीय में 'दूसरी' तृतीय में 'तीसरी' और चतुर्थ में 'चौथी' पूजा करें।
चारों पूजन पञ्चोपचार, षोडशोपचार या राजोपचार जिस विधि से बन सके, समान रूप से करें और साथ में रुद्रपाठादि भी करते रहें। सामान्य रूप से पूजा करने में भगवान शिव को पंचामृत से स्नान कराएं। उसके बाद केसर जल चढ़ाएं। उस दिन पूरी रात का दीपक जलाएं। चंदन का तिलक लगाएं। तीन पत्तों वाला बेलपत्र, भांग-दूध एक साथ मिलाकर, धतूरा, गन्ने का रस, तुलसी, जायफल, कमल गट्टे, फल, मिष्ठान, मीठा पान, इत्र व दक्षिणा चढ़ाएं। सबसे बाद में केसर युक्त खीर का भोग लगा कर प्रसाद बांटें। ॐ नमो भगवते रूद्राय, ॐ नमः शिवाय रूद्राय् शम्भवाय् भवानीपतये नमो नमः मंत्रों का जाप करें।
पूजा की समाप्ति में आरती, मंत्र पुष्पांजलि और अर्घ्य, परिक्रमा करे। इस दिन शिव पुराण का पाठ जरूर करें। महाशिवरात्रि के दिन रात्रि जागरण भी किया जाता है।
निम्न मंत्र से अर्घ्य दें -
मया कृतान्यनेकानि पापानि हर शङ्कर।
शिवरात्रौ ददाम्ययमुमाकान्त गृहाण मे ॥
अब निम्न मंत्र से प्रार्थना करें -
संसारक्लेशदग्धस्य व्रतेनानेन शङ्कर।
प्रसीद सुमुखो नाथ ज्ञानदृष्टिप्रदो भव ॥
स्कन्दपुराण का कथन है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिवजी का पूजन, जागरण और उपवास करने वाला मनुष्य माता का दूध कभी नहीं पी सकता अर्थात् उसका पुनर्जन्म नहीं होता है। इस व्रत की दो कथाएँ हैं।
महाशिवरात्रि व्रत कथा
व्याघेश्वर लिङ्ग निषाद कथा - अनजाने में शिवरात्री व्रत करने का फल
प्राचीनकाल में एक व्याध हुआ, उसका नाम निषाद था। वह बड़ा हिंसक था। परिवार सहित रहता था । वनके जीवों को मारता था, धन चोरी करके ले आता था। इस प्रकार बहुत समय बिता। एक दिन घर में भोजन की कोई सामग्री न होने से उसके परिवार ने क्षुधा से व्याकुल होकर कहा कि हमारे लिए भोजन सामग्री ले आओ। यह सुनकर व्याध धनुष बाण लेकर वन की ओर गया। उस दिन महाशिवरात्रि थी । इस व्रत को निषाद नहीं जानता था। उस दिन निषाद को कोई शिकार नहीं मिला। जब रात्रि हुई तब वह दुःखी होकर सोचने लगा अब मैं घर नहीं जाऊँगा। रात्रि में जलाशय के किनारे जल पीने के लिये कोई जन्तु अवश्य आयेमा, उसको मार करके घर ले जाऊँगा। सब परिवार को भोजन कराऊँगा। यह शोचकर वह निषाद एक विल्व के वृक्ष पर चढ़ गया और छिप कर हरिणों की प्रतिक्षा करने लगा। उस रात्रि के प्रथम प्रहर में एक हरिणी प्यासी हुई वहाँ जल पीने आई। निषाद ने तुरन्त उसको मारने के लिये धनुष पर बाँण चढ़ाया। उस समय उस निषाद के शरीर के रगड़ से विल्व के पत्र और शीशी का जल, शिवलिङ्ग में गिरा ।
भाग्यवश शिवरात्रि के प्रथम पहर की पूजा हो गयी। निषाद के बहुत जन्मों के पापों का नाश हो गया। उधर हरिणी ने निषाद को देखा और बोली - तुम क्या कह रहे हो निषाद ! उसने कहा- मेरे परिवार भूख से पोड़ित हैं अतः तुमको मारकर तेरे मांस से उनको तृप्त करूँगा। यह सुन कर हरिणो चिन्तित हुई और बोली- निषाद ! मेरे मांस से तेरा मनोकर. पूर्ण होता है तो मैं धन्य हूँ। दूसरों के प्राण बेंचाने के बराबर अन्य कोई श्रेष्ठ धर्म नहीं है। मेरे मांस से तुम्हारा परिवार निश्चय तृप्त होगा, पर मेरो एक प्रार्थना है, मेरे घर में छोटे-छोटे बच्चे हैं, उनको मैं अपनी बहिन को सौंप दूँगीं, तब मैं तेरे पास आऊँगी, तुमसे प्रतिज्ञा करके जाती हूँ। अवश्य ही आऊँगीं । सत्य के समान दूसरी कोई वस्तु नहीं है, यदि में न आऊँ तो विश्वासघात का पाप लगे । शिवजी का व्रत त्याग करने का पाप लगे। इस प्रकार शपथ खाकर हरिणी चुप हो गयी। निपाद को विश्वास हो गया, उसे जाने का वचन दे दिया। हरिणी जल पीकर अपने घर गई । संयोग से हरिणी की बहिन अपनी बहिन को ढूंढते हूँढते वहाँ पर आ पहुँची, उसे देखकर निषाद ने फिर धनुष पर बाँण चढ़ाया उस वक्त निषाद के देह के स्पर्श से विल्वपत्र तथा जल शिवलिङ्ग के ऊपर गिर पड़े, इससे दूसरे प्रहर की शिवजी की पूजा पूर्ण हुई। इससे निषाद के बहुत से पाप नष्ट हो गये। हरिणी ने कहा हे निषाद तुम क्या कर रहे हो। निषाद ने पहले के समान उत्तर दिया। हरिणी डर गयी और उससे बोली हे निषाद ! मेरे बड़े भाग्य हैं, क्योंकि यह शरीर नाशवान है, यदि इससे दूसरे को सुख मिले तो इससे अधिक क्या है लेकिन अपनी छोटी बच्ची को पति के हाथ सौंपकर आऊँगी इस तरह बहुत सौगन्ध खाकर खड़ी हुई। तब निषाद ने जाने दिया। हरिणी प्रसन्न होकर पानी पीकर अपने घर गयी। निषाद ने जागरण में दो पहर रात बिता दिया, इधर हरिणी घर नहीं आई तब हरिण चिन्तित हुआ। प्यास से व्याकुल होकर स्वयं ही चला, जब नदी के किनारे पहुँचा तो निषाद ने फिर अपने धनुष पर बाँण चढ़ाया इस मुद्रा में निषाद को देखकर हरिण बोला निषाद यह क्या कर रहे हो ! निषाद ने पहले के समान हो उत्तर दिया उसे सुनकर हरिण बोला, मेरे धन्य भाग्य हैं तुम्हारे परिवार को नृप्त करने वाला हूँ जो मनुष्य दूसरों को लाभ नहीं पहुँचाते, उनको संसार में जन्म लेना व्यर्थ है। किन्तु मेरे घर पर छोटा बच्चा है मैं उसे माँ को सौंप दूँ तब तुम्हारे पास आ जाउँगा । परन्तु निषाद ने कहा तुम्हारे जैसे और भी बहुत आये थे उन्होंने मुझे धोखा दिया मैं तुम्हें नहीं छोडूंगा। हरिण बोला कि मैं कभी झूठ नहीं बोलता हूँ क्योंकि संसार में सत्य का पद बड़ा है। मैं सपथ करता हूँ, तुम्हारे पास अवश्य आ जाऊँगा । नहीं आऊँगा तो मुझे बड़े-बड़े हत्यायें करने का पाप लगे । यह सुनकर निषाद बोला अच्छा जाओ शीघ्र लौटना, हरिण पानी पीकर अपने घर गया। वहाँ हरिणियाँ अपने बच्चों के साथ एकत्रित होकर अपना-अपना वृतान्त कहकर दुःखी हुई। सत्य तथा धर्म से डरकर सवसे पहले प्रतिज्ञा करके जो हरिणी आइ थी वह अपने पति से बोली, मैंने पहले प्रतिज्ञा की थी इसलिये मैं निषाद के पास जाऊँगी तुम दोनों घर में रहकर बच्चों का पालन पोषण करना। तब दूसरी हरिणी ने कहा, मैं व्याध के पास जाऊँगी, क्योंकि पहली स्त्री घर को स्वामीनी होती है। यह सुनकर हरिण बोला मैं ही स्वयं व्याध के पास जाऊँगा, अपने मांस से उस व्याध के परिवार को तृप्त करूंगा । किन्तु दोनों हरिणियों ने कहा कि हम घर में 'राँड' बनकर नहीं रहना चाहती हैं। धिक्कार है जो विधवा होकर घर में रहती हैं। सब परिवार लड़ते-झगड़ते निषाद के पास चले। पीछे से उनके बच्चें भी चले। क्योंकि रक्षक के बिना वे कैसे रह सकते थे। (जो माता-पिता की दशा होगी वही हमारी भी होगी)। बधिक ने देखा सभी हरिणों का समूह एक साथ आ रहा है वह प्रसन्नता से पहले की तरह धनुष पर बाँण का अनुसन्धान करने लगा जिससे पहले की भाँति वेलपत्र तथा जल शिवजी के लिङ्ग के उपर गिर पड़े और चौथे प्रहर की पूजा भी पूर्ण हो गयी। इससे व्याध के सम्पूर्ण पाप नष्ट गये। तब दोनों हरिणियों और बच्चों के साथ हरिण बोला हे निषाद ! अब मेरे शरीर को शुद्ध करके हमको मारो। किन्तु व्याध के पाप शिवजी के पूजन से जल चुके थे उसकी बुद्धि शुद्धि हो गयी उसे दया आयी । वह बोला।
हे मृगों के समुदाय ! यद्यपि पशुओं की बुद्धि नहीं होती पर तुम सब धन्य हो, अपने शरीर के नष्ट होने पर भी दुसरे को भलाई करने को तैयार हो और मैंने मनुष्य होकर भी अपना जन्म जीवों का वध करने में बिताया। ऐसा घोर पाप करके परिवार का पालन किया करता हूँ। न जाने मैं किस अवस्था को प्राप्त होऊँगा। मैंने कोई धर्म नहीं किया। ऐसा कहते हुए व्याधने चिन्ता की आँसु बहाई और बोला । हे शुद्ध हरिण, हरिणियों ! अब तुम लोग सब घर जाओ, तुम धन्य हो तुम्हारा घर भी धन्य है। तुम सभी अति उत्तम हो। व्याध ऐसा कह ही रहा था उसी समय शिवजी परम प्रसन्न होकर वहाँ प्रकट हुए और अपने करकमलों से व्याध का हाथ पकड़ कर कहे तुमसे में अति प्रसन्न हूँ । तुम्हे जो चाहिये वह वर माँगो । तुमने शिवरात्रि व्रत किया है, तुम्हारे सब पाप नष्ट हो गये । तुम मेरा भक्त हुआ। भगवान् शिव की यह बात सुनकर व्याध जीवन मुक्त हुआ और शिवजी के चरणों में गिर पड़ा। उसके मुख से इतना ही शब्द निकला मैंने सब कुछ पाया। यह सुनकर शिवजी अति प्रसन्न हुए। उसका नाम 'स्कन्द' रखा, बहुत से वरदान दिये और कहा तुम अपने कुल के राजा होओगे श्टङ्गवेरपुर को अपनी राजधानी बनाओगे और राज्य करोगे। तुम्हारे बहुत सन्तान होगें उनकी देवता भी प्रशंसा करेगें। मेरे भक्त श्री रामचन्द्रजी तुमको सेवक जानकर तुम्हारे घर पधारेंगे, तुम्हें यश देगें । तुम मेरा भजन कभी मत भूलना। तुमको दुर्लभ मुक्ति मिलेगी। इतनी बातों को सुनकर हरिण के समूह भी मृग योनि का परित्याग करके देवताओं का रूप धारण कर, अशुपाश से मुक्त होकर दिव्य लोक में चले गये । शिवजी भी अन्तर्धान हो गये। और लिङ्ग के रूप में वही व्याघेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुए। आज भी अवुर्द गिरि में वह लिङ्ग प्रसिद्ध है। उसके दर्शन तथा पूजन से भक्ति और मुक्ति मिलती है। निषाद ने श्रीराम का दर्शन तथा शिवजी का दर्शन करके बहुत काल तक सुख भोगा और अन्त में शिवजी का सायुज्य प्राप्त कर लिया। अनजाने में शिवरात्री व्रत करने से अनायास ही मोक्ष मिला, बिना ज्ञान का मोक्ष मिलना असम्भव है। जो श्रद्धा भक्ति के साथ शिव- रात्री व्रत करेगा उनको तो कहना ही क्या है। जो नरनारी इसे पढ़ेगें सुनेगें, दोनों लोक में सुखी होगें।
गुणनिधि के कुबेर होने की कथा - अनजाने में शिवरात्री व्रत करने का फल
ब्रह्मा जी ने कहा हे नारद जी ! अब गुणनिधि नामक व्यक्ति ने शिवरात्री व्रत करके जिस प्रकार आनन्द पाया है उसे सुनो - द्रुपदपुरी में गंगा जी के तट में कम्पिला नाम का अति पवित्र स्थान है। वहाँ शिव जी रामेश्वर के नाम से तथा शिवा काली के नाम से विराजते हैं। वहाँ यज्ञ करने वाला यज्ञदत्त नाम का ब्राह्मण रहता था। वह शिवजी का बड़ा भक्त था। राजा ने उसे बहुत धन दे रखा था। उसकी स्त्री भी बड़ी धर्मात्मा थी। उनका एक पुत्र हुआ जिसका नाम 'गुणनिधि' रखाः गया था । यत्रदत्त ने उसे धर्म तथा विद्या की शिक्षा दी और विवाह कर दिया । परन्तु थोड़े समय में ही गुणनिधि बुरी संगति में पड़ गया। और दुःष्ट हो गया। वेद तथा पुराणों के सब कर्म छोड़ दिया। जुआ खेलकर पिता की सारी सम्पत्ति नष्ट कर दिया। पर उसकी माता गुणनिधि के दोषों को छिपाये रखती, माता ने सरलता से उसे उपदेश देकर अच्छे काम में लगाना चाहा वह नहीं माना। वह बड़ा दूराचारी हुआ। अपनी स्त्री को छोड़कर पराई स्त्री के सेवन में रत रहता था। एक दिन यज्ञदत्त ने अपनी अङ्गुठी दूसरे के हाथों में देखकर उसे पूछा तो जुवारी ने कहा मैंने तेरे पुत्र से जुआ में जीता है। तुम्हारा पुत्र जुआड़ी है। यह सुनकर यज्ञदत्त को बड़ा दुःख हुआ। घर में जाकर स्त्री से पूछा किन्तु पुत्रस्नेह वस स्त्री ने कुछ नहीं कहा। तब यज्ञदत्त ने कुशोदक लेकर संकल्प पूर्वक अपने कुपुत्र को त्याग दिया । परन्तु स्त्री ने पति से बहुत अनुनय- विनय किया, पुत्र को फिर घर में रखना स्वीकार कराईं। गुणनिधि ने यह बात सुना तो, रोता-चिल्लाता घर से भागा। वह चलते-चलते सूर्यास्त तक चला और बैठ गया। संयोगवस उस दिन शिवरात्री का दिन था।
यह व्रतों का शिरोमणि है। उस दिन शिवजी का एक भक्त शिवरात्रि व्रत धारण किये अनेक भक्तों को साथ लिये पूजन की सामग्री सहित उस रास्ते से निकला। गुणनिधि भूखा था। उन भक्तों के पास मधुर मिष्ठान्नों को देखकर उनका पीछा करता हुआ चुराने का प्रयास करने लगा। शिवजी के भक्त ने एक मन्दिर में जाकर पोडशोपकार से शिवजी की पूजा की। वह सब गुणनिधि छिपकर देख रहा था। पूजा के उपरान्त शिवजो के भक्तगण ऊँधा गये। उसने वस्त्र फाड़कर एक बत्ती बनाया और नैवेद्य को देखकर शिवजी का नैवेद्य चुराकर भागना चाहा, चलते वक्त किसी के पैर से धक्का लगने से उस व्यक्ति ने शोर मचाया - चोर है, नैवेद्य चुराकर भाग रहा है, उसे पकड़ो। यह सुनकर भक्तगण तुरन्त पहुँच गये और उन्होंने गुणनिधि को बाणों के प्रहार से मार डाला। गुणनिधि पूर्व जन्म के पूण्य से शिवनिर्माल्य खाने से बच गया। यमराज के गण उसी वक्त आ पहुँचे गुणनिधि को बाँधकर यमराज के पास ले जाना चाहते थे। शिवजी ने अपने गणों को आज्ञा दिया कि गुणनिधि को यमदूतों से छुड़ाकर मेरे पास ले आओं, क्योंकि उसने शिवरात्रि व्रत किया है, मेरी पूजा आँखों से देखी है, मेरा निर्माल्य खाने से बच गया। मैंने उसे अपना भक्त बना लिया है। अब वह नरक में नहीं जा सकता। यह व्रत मुझे अति प्यारा है। जो शिवरात्रि के दिन मेरी पूजा देखता है, वह मुझे सबसे प्रिय है। उसने मुझे दीप दिखलाया है, अत: वह कलिंग देश का राजा होगा और फिर मेरे पास आयेगा। वह कुबेर होकर मेरा मुख्य मित्र होगा और आनन्द करेगा। शिवजी के गण यमदूतों के हाथ से गुणनिधि को छीनकर शिवजी के पास ले गये। वह बाद में कलिंग नरेश होकर "दम' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अनजाने में शिवरात्रि व्रत करने का फल यह है।
सौमणि ब्राह्मणी की कथा
प्राचीन काल में सौमणि नाम की 'एक ब्राह्मण की कन्या थी। उसके पिता ने एक ब्राह्मण कुमार के साथ विवाह कर दिया। दोनों ने नाना प्रकार के भोग भोगे, किन्तु उसका पति युवा अवस्था में ही मर गया । पति के मरने के बाद सौमणि कुछ समय तक रही, किन्तु बाद में कामवेदना के सताने से पुंश्चली (व्यभिचारिणी स्त्री) हो गयी। जाति के लोगों ने उसे अलग कर दिया। वह स्त्री स्वतन्त्र होकर घूमने लगी। एक दिन एक शूद्र उसको अपनी स्त्री बनाकर अपने घर ले गया । सौमणि उसके साथ मांस और मदिरा खाने-पीने लगी। एक दिन उसने जहाँ बकरे तथा बछड़े बाँधे थे, वहाँ जाकर एक बछड़े को मारा । रात्रि होने के कारण उसने कुछ भी नहीं जान पाया। पीछे पछताने लगी और मुख से शिव-शिव कही। फिर क्षणभर बाद उस मांस को पकाकर खा लिया। उस स्त्री ने मरने के बाद कुछ दिन नरक में रहकर चाण्डाल के 'घर जन्म लिया। वह जन्म से ही अन्धी थी। माता-पिता भी मर गये। भाई-बन्धु न होने के कारण मारे-मारे फिरने लगी। कुष्ठ हो गया। कष्ट के साथ दिन काटने लगी। जब फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी ( महाशिव- 'रात्रि ) को गोकर्ण क्षेत्र में मेला लगा। शिवजी का दर्शन करने लोग जाने लगे तो वह भी उनके पीछे-पीछे मांगती खाती वहाँ पहुँच गयी। वहाँ दोनों हाथ फैलाकर भीख मांगने लगी। एक शिवभक्त ने एक मुट्टा विल्वपत्र उस अन्धी स्त्री के हाथों में फेंक दिया। उस अन्धी ने यह खाने योग्य नहीं है, समझकर फेंक दिया। संयोगवश वह विल्वपत्र शिवलिंग के ऊपर जा गिरा। उस दिन शिवरात्रि थी। शिवजी ने जाना कि उस अन्धी ने मेरी पूजा की है। वह रातभर भीख मांगती रही। किसी ने कुछ नहीं दिया, अतः उसने निर्जला व्रत कर लिया और जागरण भी। वह स्त्री फिर अपने देश लौटी और मर गयी। शिवजी ने उसे लाने के लिए अपने गणों को विमान लेकर भेजा। शिवजी के गणों ने विमान पर चढ़ाकर उसे शिवजी के पास पहुंचाया। वह पार्वतीजी की सखी हो गयी। शिवरात्रि व्रत महान् फल देने वाला है। कार्यों को सिद्ध करने वाला है।
मित्रसह राजा की कथा -शिवरात्रि व्रत करने का फल
इस व्रत के करने से मित्रसह राजा की ब्रह्महत्या छूट गयी। इसके महात्म्य श्रवण से और कथन से सब पापों से मुक्ति मिलती है। शिवरात्रि व्रत की महिमा मुक्ति प्रदान करने वाली है। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को रात्रि में जागरण, शिवजी का दर्शन, पूजन तथा विल्व पत्र समर्पण अत्यधिक फलदायक होता है। दस हजार वर्ष गंगास्नान के बरावर शिवरात्रि व्रत का फल हैं। संसार में जितने पवित्र दिन हैं, वेः सब शिवरात्रि व्रत में स्थित हैं। सौ यज्ञ के समान शिवरात्रि व्रत है। व्रत के साथ जागरण करने से व्रत पूर्ण फल देता है। जो मनुष्य एक भी वेलपत्र से शिवजी की पूजा करता है, उसके समान मुक्ति देनेवाला दूसरा कोई कर्म नहीं है।
इसकी कथा सुनो। एक वेलपत्र शिवजी को चढ़ाने से सब पाप दूर होते हैं। 'मित्रसह' नाम का बड़ा धर्मात्मा एक राजा था। उसकी स्त्री मदयन्ती राजा नल की स्त्री दमयन्ती के समान पतिव्रता थी। एक दिन राजा सेना को साथ लेकर शिकार खेलने के लिए वन में गया। उसने बहुत से जीवों को मारा। राजा बहुत दिन तक वन में रहा और कमठ नामक राक्षस को मारा। उस राक्षस के भाई को बड़ा दुःख हुआ। वह भाई का बदला लेने के लिए मनुष्य का रूप धारण कर उसी राजा का सेवक बन गया। राजा घर लौटा तो अपने गुरुजी को निमन्त्रण दिया। उस राक्षस के भाई मे भोजन में नरमांस को छिपाकर मिला दिया। गुरुजी ने जान लिया और राजा को शाप दिया- तुम बारह वर्ष तक के लिए राक्षस हो जाओगे। राजा ने भी शाप देना चाहा, परन्तु रानी ने उसे रोक दिया। शाप का जल अपने पैर पर छोड़ा था, अतः उस राजा को कल्माषपाद कहने लगे। वह राजा राक्षस होकर बहुत से जोवों को खाने लगा। एक दिन उसने एक नवयुवक ब्राह्मण को मारा, जो अपनी स्त्री के साथ भोग रहा था। उसकी ब्राह्मणी ने भी शाप दिया कि तुम भी अपनी स्त्री के साथ भोग करेगा तो मर जायेगा। ब्राह्मणी सती होकर परलोक सिधारी । बारह वर्ष के वाद वह राजा घर गया। उसकी स्त्री ने प्रसंग करने से रोका। वह घर छोड़कर तीर्थयात्रा के लिए चला गया। जनकपुर में गौतम मुनि से भेंट करके कहा- मुझे ब्राह्मण का शाप लगा है, कैसे छूटेगा ? तब मुनि ने कहा-तुम शिवजी की उपासना करो। जहाँ गोकर्ण क्षेत्र में 'महावल' नाम का शिवलिंग है, उसका पूजन करो। शिवरात्रि व्रत करो। राजा मित्रसह ने वैसा ही किया । शिवरात्रि व्रत के प्रभाव से राजा ने सब प्रकार के सुख भोगे। अन्त में शिवजी का गण हो गया। इस चरित्र को प्रतिदिन सुने और सुनावे तो उसकी 21 पीढ़ी तर जाती है। यह इतिहास परम पवित्र है।
राजा विकर्ष की कथा
प्राचीन काल में किरात देश में विकर्ष नाम का एक राजा था। वह कुकर्मी था, परन्तु शिवरात्रि का व्रत करता था । उस दिन बड़ा उत्सव करता था। दान भी देता था । उसकी रानी का नाम कुमुद्वती था, वह बड़ी सुशीला थी। उसने अपने पति से पूछा- तुम कुकर्मी, दुराचारी, परस्त्रीगामी, सर्वभक्षी होते हुए भी कैसे शिवभक्ति में मन लगाते हो, मुझे तो बड़ा आश्चर्य होता है ? तुमने यह कहाँ से सोखा है, मुझे बताओ। राजा ने हँसते हुए कहा- मैं पूर्वजन्म में कुत्ता था। पम्पापुर में घूमा करता था। भूख और प्यास से दौड़ते-दौड़ते थक गया था। एक दिन शिवजी के भक्तों ने शिवजी का पूजा की। मैं भोजन की इच्छा से खड़ा होकर देखने लगा। उन्होंने मुझे मारकर भगाया, परन्तु मैं घूमकर आ गया। तब एक व्यक्ति ने तीर से मारा, मैं मर गया। शिवजी को देखते हुए मैं मरा, इसलिए राजा के घर पैदा हुआ। मैंने चतुर्दशी को शिवजी की पूजा तथा दीपदान देखा था। इस कारण मैं तोनों काल की बातों को जानता हूँ। मैं सर्वभक्षी हूं, यह पूर्वजन्म का संस्कार है। इसे मिटाना बड़ा कठिन है। में शिवजी की पूजा करता हूँ, अतः मेरे कर्म शुभ होते हैं। हे रानी ! तुम भी शिवजी की पूजा करो। यह सुनकर रानी को शिवजी के पूजा में बड़ी श्रद्धा हुई। उसकी रानी ने कहा- हे पतिदेव ! मैं भी पूर्वजन्म की बात जानना चाहती हूँ, कृपा करके बता देवें।
यह सुनकर राजा ने रानी से कहाँ तुम पूर्व जन्म में कबुतरो थी। एक दिन तुमने मांस का टुकड़ा पाया उसे लेकर आकश में उड़ी, एक। गिद्ध ने देखा और पीछे से झपटा, उसके मार से तुम एक शिवालय के शिखर में गिरकर मर गयी। मरते समय में शिवजी का लिङ्ग देखा था, इसी पुण्य से तुम इस जन्म में मेरी रानी हुई। यह सुनकर शिवजी की भक्ति बढ़ी और रानी ने कहा राजन् तुम अपना और मेरा भविष्य भी बताओ। राजा बोला कि हम दोनों का भविष्य सुनो। हम दूसरे जन्म में सिन्धु देश के राजा होगें। तुम राजा संजय की पुत्री होगी, फिर मेरे साथ विवाह होगा। तीसरे जन्म में हम सौराष्ट्र राजा के पुत्र होंगे तुम कलिङ्ग देश के राजा की पुत्री होगी मेरे साथ विवाह होगा। चौथे जन्म में हम गान्धार देश के राजा होंगे। तुम मगध देश के राजा की पुत्री होगी तुमसे मेरा विवाह होगा। पाँचवे जन्म में हम उज्जयन के राजा होंगे तुम राजा दशारण्य की पुत्री होगी पुनः तुमसे हम विवाह करेगें। छठे जन्म में हम आनतं देश के राजा होंगे तुम ययाति के कुल में जन्म लोगी, हम तुमसे विवाह करेगें। सातवें जन्म में हम पाण्डय देश के राजा पद्मवर्ण होंगे, तुम राजा विदर्भ के घर जन्म लेकर सुमती नाम से प्रसिद्ध होगी। तब तुमको स्वयंवर में जीतकर तुमसे हम विवाह करेंगे। इस प्रकार हम दोनों शिवजी की पूजा में लगे रहेंगे। भोगविलास से युक्त, सन्तान से सम्पन्न होंगे, फिर पुत्र को राज देकर वनमें जाकर अगस्त्य मुनि से ज्ञान प्राप्त करके शिव लोक में जाँयेंगे। शिव के गणों में गिने जायेंगे। बहुत काल तक शिवजी का व्रत करके समय बिता कर सातवें जन्म में मुक्ति पायेंगे।
समस्या मुक्ति हेतु महाशिवरात्रि पर उपाय (Mahashivratri 2024 Upay)
1. वैवाहिक जीवन में समस्या
महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह वाली तस्वीर को पूजा करने के स्थान पर लगाएं और नियमित रूप से इसकी पूजा करें। साथ ही भगवान शिव के मंत्रों का जाप करें।
2. सुख समृद्धि पाने के लिए
जीवन में अगर आप सुख समृद्धि पाना चाहते हैं तो महाशिवरात्रि के दिन गाय को हरा चारा खिलाएं। जिससे की भगवान शिव प्रसन्न हो जाएंगे।
3. संतान से संबंधित समस्या
महाशिवरात्रि के दिन आटे से 11 शिवलिंग बनाकर 11 बार उनका जलाभिषेक करें. ऐसा करने से संतान से जुड़ी सभी समस्याएं दूर हो जाएंगी।