श्रीविश्वनाथमङ्गलस्तोत्रम् हिंदी अर्थ के साथ
Shri Vishwanath Mangalastotram with Hindi meaning
श्रीविश्वनाथमङ्गलस्तोत्रम् हिंदी अर्थ के साथ
आलेख - Sadhak Prabhat
श्रीविश्वनाथमङ्गलस्तोत्रम् का पाठ करने से मनुष्य की सब विपत्ति दूर हो जाती है, वह सभी सम्पत्ति से परिपूर्ण हो जाता है, उसके सारे विघ्न बाधा दूर हो जाते हैं तथा वह सब प्रकार का कल्याण प्राप्त करता है, उसे उत्तम स्त्रीरत्न तथा अनुपम उत्तम पुत्र का लाभ होता है। अगर संस्कृत में पाठ न कर सकें तो इसका हिंदी पाठ हीं फलदाई होगा। बस भाव से भजिये, कल्याण हीं कल्याण होगा।
श्री स्वामि महेश्वरानन्द सरस्वती विरचितं श्रीविश्वनाथमङ्गलस्तोत्रम्
गङ्गाधरं शशिकिशोरधरं त्रिलोकी- रक्षाधरं निटिलचन्द्रधरं त्रिधारम् ।
भस्मावधूलनधरं गिरिराजकन्या- दिव्यावलोकनधरं वरदं प्रपद्ये ॥ १ ॥
हिंदी भावार्थ - गङ्गा एवं बाल चन्द्रको धारण करनेवाले, त्रिलोकीकी रक्षा करनेवाले, मस्तकपर चन्द्रमा एवं त्रिधार (गङ्गा) को धारण करनेवाले, भस्मका उद्धूलन करनेवाले तथा पार्वतीको दिव्य दृष्टिसे देखनेवाले, वरदाता भगवान् शङ्करकी मैं शरणमें हूँ ॥ १ ॥
काशीश्वरं सकलभक्तजनार्तिहारं विश्वेश्वरं प्रणतपालनभव्यभारम् ।
रामेश्वरं विजयदानविधानधीरं गौरीश्वरं वरदहस्तधरं नमामः ॥ २॥
हिंदी भावार्थ - काशीके ईश्वर, सम्पूर्ण भक्तजनकी पीडाको दूर करनेवाले, विश्वेश्वर, प्रणतजनोंकी रक्षाका भव्य भार धारण करनेवाले, भगवान् रामके ईश्वर, विजय प्रदानके विधानमें धीर एवं वरद मुद्रा धारण करनेवाले, भगवान् गौरीश्वरको हम प्रणाम करते हैं ॥ २ ॥
गङ्गोत्तमाङ्गकलितं ललितं विशालं तं मङ्गलं गरलनीलगलं ललामम् ।
श्रीमुण्डमाल्यवलयोज्ज्वलमञ्जुलीलं लक्ष्मीश्वरार्चितपदाम्बुजमाभजामः ॥ ३ ॥
हिंदी भावार्थ - जिनके उत्तमाङ्गमें गङ्गाजी सुशोभित हो रही हैं, जो सुन्दर तथा विशाल हैं, जो मङ्गलस्वरूप हैं, जिनका कण्ठ हालाहल विषसे नीलवर्णका होनेसे सुन्दर है, जो मुण्डकी माला धारण करनेवाले, कङ्कणसे उज्ज्वल तथा मधुर लीला करनेवाले हैं, विष्णुके द्वारा पूजित चरणकमलवाले भगवान् शङ्करको हम भजते हैं ॥ ३ ॥
दारिद्र्यदुःखदहनं कमनं सुराणां दीनार्तिदावदहनं दमनं रिपूणाम् ।
दानं श्रियां प्रणमनं भुवनाधिपानां मानं सतां वृषभवाहनमानमामः ॥ ४ ॥
हिंदी भावार्थ - दारिद्र्य एवं दुःखका विनाश करनेवाले, देवताओंमें सुन्दर, दीनोंकी पीडाको विनष्ट करनेके लिये दावानलस्वरूप, शत्रुओंका विनाश करनेवाले, समस्त ऐश्वर्य प्रदान करनेवाले, भुवनाधिपोंके प्रणम्य और सत्पुरुषोंके मान्य वृषभवाहन भगवान् शङ्करको हम भलीभाँति प्रणाम करते हैं ॥ ४ ॥
श्रीकृष्णचन्द्रशरणं रमणं भवान्याः शश्वत्प्रपन्नभरणं धरणं धरायाः ।
संसारभारहरणं करुणं वरेण्यं संतापतापकरणं करवै शरण्यम् ॥ ५ ॥
हिंदी भावार्थ - श्रीकृष्णचन्द्रजीके शरण, भवानीके पति, शरणागतका सदा भरण करनेवाले, पृथ्वीको धारण करनेवाले, संसारके भारको हरण करनेवाले, करुण, वरेण्य तथा संतापको नष्ट करनेवाले भगवान् शङ्करकी मैं शरण ग्रहण करता हूँ ॥ ५॥
चण्डीपिचण्डिलवितुण्डधृताभिषेकं श्रीकार्तिकेयकलनृत्यकलावलोकम् ।
नन्दीश्वरास्यवरवाद्यमहोत्सवाढ्यं सोल्लासहासगिरिजं गिरिशं तमीडे ॥ ६ ॥
हिंदी भावार्थ - चण्डी, पिचण्डिल तथा गणेश के शुण्डद्वारा अभिषिक्त, कार्तिकेय के सुन्दर नृत्यकला का अवलोकन करने वाले, नन्दीश्वर के मुखरूपी श्रेष्ठ वाद्य से प्रसन्न रहनेवाले तथा सोल्लास गिरिजा को हँसानेवाले भगवान् गिरीश की मैं स्तुति करता हूँ ॥ ६ ॥
श्रीमोहिनीनिविडरागभरोपगूढं योगेश्वरेश्वरहृदम्बुजवासरासम् ।
सम्मोहनं गिरिसुताञ्चितचन्द्रचूडं श्रीविश्वनाथमधिनाथमुपैमि नित्यम् ॥ ७ ॥
हिंदी भावार्थ - श्रीमोहिनी के द्वारा उत्कट एवं पूर्ण प्रीति से आलिङ्गित, योगेश्वरों के ईश्वर के हत्कमल में रास के द्वारा नित्य निवास करने वाले, मोह उत्पन्न करनेवाले, पार्वती के द्वारा पूजित शशिशेखर, सर्वेश्वर श्रीविश्वनाथ को मैं नित्य नमस्कार करता हूँ ॥ ७ ॥
आपद् विनश्यति समृध्यति सर्वसम्पद् विघ्नाः प्रयान्ति विलयं शुभमभ्युदेति ।
योग्याङ्गनाप्तिरतुलोत्तमपुत्रलाभो विश्वेश्वरस्तवमिमं पठतो जनस्य ॥ ८ ॥
हिंदी भावार्थ - इस विश्वेश्वर के स्तोत्र का पाठ करने वाले मनुष्य की आपत्ति दूर हो जाती है, वह सभी सम्पत्ति से परिपूर्ण हो जाता है, उसके विघ्न दूर हो जाते हैं तथा वह सब प्रकार का कल्याण प्राप्त करता है, उसे उत्तम स्त्रीरत्न तथा अनुपम उत्तम पुत्रका लाभ होता है ॥ ८ ॥
वन्दी विमुक्तिमधिगच्छति तूर्णमेति स्वास्थ्यं रुजार्दित उपैति गृहं प्रवासी ।
विद्यायशोविजय इष्टसमस्तलाभः सम्पद्यतेऽस्य पठनात् स्तवनस्य सर्वम् ॥ ९ ॥
हिंदी भावार्थ - इस विश्वेश्वर स्तोत्र का पाठ करने से बन्धन में पड़ा मनुष्य बन्धन से मुक्त हो जाता है, रोग से पीडित व्यक्ति शीघ्र स्वास्थ्य-लाभ प्राप्त करता है, प्रवासी शीघ्र ही विदेश से घर आ जाता है तथा विद्या, यश, विजय और समस्त अभिलाषाओंकी पूर्ति हो जाती है ॥ ९ ॥
कन्या वरं सुलभते पठनादमुष्य स्तोत्रस्य धान्यधनवृद्धिसुखं समिच्छन् ।
किं च प्रसीदति विभुः परमो दयालुः श्रीविश्वनाथ इह सम्भजतोऽस्य साम्बः ॥ १०॥
हिंदी भावार्थ - इस स्तोत्र का पाठ करने से कन्या उत्तम वर प्राप्त करती है, धन- धान्य की वृद्धि तथा सुख की अभिलाषा पूर्ण होती है एवं उस पर व्यापक परम दयालु भगवान् श्रीविश्वेश्वर पार्वतीके सहित प्रसन्न हो जाते
हैं ॥ १० ॥
काशीपीठाधिनाथेन शङ्कराचार्यभिक्षुणा ।
महेश्वरेण ग्रथिता स्तोत्रमाला शिवार्पिता ॥ ११ ॥
हिंदी भावार्थ - काशीपीठ के शङ्कराचार्यपद पर प्रतिष्ठित श्रीस्वामी महेश्वरानन्दजी ने
इस स्तोत्रमाला की रचना कर भगवान् विश्वनाथको समर्पित किया ॥ ११ ॥ ॥
॥ इति काशीपीठाधीश्वरशङ्कराचार्य श्री स्वामिमहेश्वरानन्दसरस्वतीविरचितं श्रीविश्वनाथमङ्गलस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
इस प्रकार काशीपीठाधीश्वर शङ्कराचार्य श्रीस्वामी महेश्वरानन्दसरस्वतीविरचित श्रीविश्वनाथमङ्गलस्तोत्र सम्पूर्ण हुआ ॥