श्रीकाशीविश्वेश्वरादिस्तोत्रम् हिंदी अर्थ के साथ
Srikashi Vishveshvaradistotram
श्रीकाशीविश्वेश्वरादिस्तोत्रम् हिंदी में
आलेख - Sadhak Prabhat
मृतसञ्जीवन कवच कालके गालमें गये हुए व्यक्तिको भी जीवन प्रदान कर देता है। अगर व्यक्ति मृतसञ्जीवन कवच का पाठ अपने हाथ से मरणासन्न व्यक्ति के शरीर का स्पर्श करते हुए करता है तो उस आसन्नमृत्यु प्राणी के भीतर चेतनता आ जाती है।
श्रीकाशीविश्वेश्वरादिस्तोत्रम्
नमः श्रीविश्वनाथाय देववन्द्यपदाय ते।
काशीशेशावतारो मे देवदेव ह्युपादिश ॥ १ ॥
हिंदी भावार्थ - हे देवदेव ! आपने काशी में शासन करने के हेतु मङ्गलमूर्ति शिवके रूप में अवतार लिया है। आप विश्वके नाथ हैं, देवता आपके चरणोंकी वन्दना करते हैं, आप मुझे उपदेश दें, आपको नमस्कार है ॥ १ ॥
मायाधीशं महात्मानं सर्वकारणकारणम् ।
वन्दे तं माधवं देवं यः काशीं चाधितिष्ठति ॥ २ ॥
हिंदी भावार्थ - जो मायाके अधीश्वर हैं, महान् आत्मा हैं, सभी कारणों के कारण हैं और जो काशीको सदा अपना अधिष्ठान बनाये हुए हैं, ऐसे उन भगवान् माधवको मैं प्रणाम करता हूँ ॥ २ ॥
वन्दे तं धर्मगोप्तारं सर्वगुह्यार्थवेदिनम् ।
गणदेवं दुण्ढिराजं तं महान्तं सुविघ्नहम् ॥ ३ ॥
हिंदी भावार्थ - जो बड़े-से-बड़े विघ्नको अनायास ही बिना किसी प्रकार का श्रम किये ही नष्ट कर देते हैं, धर्म के रक्षक और सभी गुह्य (रहस्यपूर्ण) अर्थोंके वेत्ता हैं, ऐसे उन महान् दुण्ढिराज गणपति को मैं प्रणाम करता हूँ ॥ ३ ॥
भारं वोढुं स्वभक्तानां यो योगं प्राप्त उत्तमम् ।
तं सढुण्ढिं दण्डपाणिं वन्दे गङ्गातटस्थितम् ॥ ४ ॥
हिंदी भावार्थ - जिन्होंने अपने भक्तों का भार वहन करने के लिये उत्तम योग प्राप्त किया है, ऐसे गङ्गातट पर स्थित उन ढुण्ढिराज सहित भगवान् दण्डपाणि को मैं प्रणाम करता हूँ ॥ ४॥
भैरवं दंष्ट्राकरालं भक्ताभयकरं भजे।
दुष्टदण्डशूलशीर्षधरं वामाध्वचारिणम् ॥ ५ ॥
हिंदी भावार्थ - बड़ी-बड़ी दाढ़ोंवाले, भक्तों को अभय कर देनेवाले, वाममार्ग का आचरण करनेवाले, दुष्टों को दण्ड देने के लिये शूल तथा शीर्ष (कपाल) धारण करनेवाले भगवान् भैरव को मैं प्रणाम करता हूँ ॥ ५ ॥
श्रीकाशीं पापशमनीं दमनीं दुष्टचेतसः ।
स्वर्निः श्रेणिं चाविमुक्तपुरीं मर्त्यहितां भजे ॥ ६ ॥
हिंदी भावार्थ - श्रीकाशी पापों का शमन तथा दुष्टचित्तवालों का दमन करनेवाली और स्वर्ग की सीढ़ी है। यह भगवान् शिवके द्वारा कभी न परित्याग किये जानेवाली है, (इसीलिये इसे 'अविमुक्तपुरी' कहा जाता है), मृत्युलोक के प्राणियों के लिये यह हितकारिणी है। इस पुरी का मैं सेवन करता हूँ ॥ ६ ॥
नमामि चतुराराध्यां सदाऽणिम्नि स्थितिं गुहाम् ।
श्रीगङ्गे भैरवीं दूरीकुरु कल्याणि यातनाम् ॥ ७ ॥
हिंदी भावार्थ - विद्वानों द्वारा आराध्य, अणिमा ऐश्वर्य में स्थित गुहाको मैं नमस्कार करता हूँ। हे कल्याणस्वरूपिणी गङ्गे ! आप मेरी भैरवी यातना को दूर कर दें ॥ ७ ॥
भवानि रक्षान्नपूर्णे सद्वर्णितगुणेऽम्बिके ।
देवर्षिवन्द्याम्बुमणिकर्णिकां मोक्षदां भजे ॥ ८ ॥
हिंदी भावार्थ - हे अन्नपूर्णे, हे अम्बिके, हे सत्पुरुषोंके द्वारा वर्णित गुणोंवाली भवानि ! आप हमारी रक्षा कीजिये। देवताओं और ऋषियों द्वारा वन्द्य तथा समस्त संसार को मोक्ष प्रदान करनेवाली जलमयी मणिकर्णिका का मैं सेवन करता हूँ ॥ ८ ॥
॥ इति श्रीकाशीविश्वेश्वरादिस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
॥ इस प्रकार श्रीकाशीविश्वेश्वरादि स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ ॥