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Formula for success

सफल होने के लिए समाज देशकाल को समझें

आलेख © कॉपीराइट - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)

सफलता पाने का सूत्र सफलता कैसे पायें

how to get success

1. सफल होने के लिए समाज देशकाल को समझें।

2. सफल होने का पहला कदम है अपनी स्थिति एवं परिस्थिति यानी समाज-देश को समझना है।

3. बच्चों में 10-12 साल की अवस्था में हीं इसकी नींव पड़नी चाहिए।

स्थिति एवं परिस्थिति किस पर निर्भर करती है?

हमारी स्थिति हम किस घर में जन्मे इस पर निर्भर करती है। घर की आर्थिक शैक्षणिक स्थिति का हम पर हमारी सोच पर पहला प्रभाव होता है। परिस्थिति में समाज यानी जिनके साथ में रहना है उनकी मान्यता मानसिकता का प्रभाव सम्मिलित है। मान्यता में धार्मिक विश्वास है। मानसिकता में रीति रिवाज है। शासन एवं उसके सिद्धांत हैं। जीवन और संघर्ष में यही चीजें परिस्थिति बनाती हैं।
यह संघर्ष सभी के लिए है और जो इस व्यवस्था प्रक्रिया को ठीक से समझ जाता है, वह अपने लिए इनके बीच बिना भटकाव के रास्ता बना लेता है और सफल व्यक्ति सिद्ध होता है। जब आप इस व्यवस्था प्रक्रिया को समझने का प्रयास करते हैं करना शुरू कर देते हैं तो आपकी अपनी एक धारणा आस्था उत्पन्न होती है। सही समझे हैं तो सही गलत समझे तो गलत।

हम देवताओं - दानवों के विषय में सुनते हैं । ब्रह्मा ने शुरुआत में मानस संतान उत्पन्न किए। जो देव कहलाये। जो मानस होगा वह कार्बन कॉपी होगा। आकार में, गुण अलग हो सकता है पर आकार समान होगा। यह व्यवस्था नहीं चल पाई। फिर सृष्टिकर्ता ने योनिज जन्म की व्यवस्था दी। यानी नर-मादा के सहयोग से उत्पन्न होने की। अभी की दुनिया ऐसी व्यवस्था से उत्पन्न है । नर-मादा के कर्म से जीवन उत्पन्न होता है। इसलिए कर्म की भूमिका आपके जीवन में हमेशा महत्वपूर्ण होगी और यह आपके भाग्यवश मिली व्यवस्था को पलटने का सामर्थ्य रखेगी। अतः अगर आप बुरी परिस्थिति में भी हैं तो उस परम शक्ति पर ध्यान रखें । आस्था रखें। उसके कर्म सिद्धांत से आप दुनिया में आए हैं। अतः यही कर्म सिद्धांत आपको सारी सुख देगा। कारण जन्म के कर्म सिद्धांत में सुख और आनंद है।

शास्त्रों में कई चीजें कथा के रूप में दी गई ताकि आप आसानी से समझें । जैसे शेषनाग के सिर पर धरती के कथा। यह शेषनाग यानी शून्य की स्थिति जो अंतरिक्ष है, में बाकी ग्रह को होना बताता है। अंतरिक्ष ने सबको धारण कर रखा है। शेषनाग के सिर पर धरती की कहानी सरल रूप में शिक्षा देना है। ऐसे हीं जैसे गणित में 4 - - 4 बराबर 8 समझना उतना सरल नहीं है जितना कि 4 + 4 = 8 । हमारे ऋषि यों ने शास्त्र जीवन के सूत्रों को सरल रूप में समझने के लिए बनाया है। वेद उपनिषद की रचना ऋषियों द्वारा, जो समाज के गुरु थे उनके द्वारा हुई है। शासकों द्वारा रचित ज्ञान और व्याख्या में नहीं जाना है। भटकाव लाएगा गुरु निष्पक्ष होता है शासक नहीं। भगवान कृष्ण मैनेजमेंट के सबसे बड़े गुरु हैं। उन्होंने अनुशासन के साथ जीने, व्यर्थ चिंता न करने और भविष्य की बजाय वर्तमान पर ध्यान केंद्रित करने का मंत्र दिया। कृष्ण ने कभी भी अपनी छवि की चिंता नहीं की। उन्होंने व्यक्ति विशेष के कल्याण को सबसे ऊपर रखा। साथ ही वे किसी बंधी-बंधाई लीक पर नहीं चले। परिस्थिति के अनुसार उन्होंने अपनी भूमिका बदली और अर्जुन के सारथी तक बने। महाभारत के सबसे बड़े योद्धा अर्जुन ने न केवल अपने गुरु से सीख लिया बल्कि वह अपने अनुभवों से हमेशा कुछ न कुछ सीखते रहे। यह सीख हर स्टूडेंट के लिए जरूरी है। स्टूडेंट को शिक्षक के अलावा अपनी गलतियों और असफलताओं से भी हमेशा सीखना चाहिए। कृष्ण हमें यह भी सिखाते हैं कि मुसीबत के समय या सफलता न मिलने पर हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। इसकी बजाय हार की वजहों को जानकर आगे बढ़ना चाहिए। समस्याओं का सामना करें। एक बार डर को पार कर लिया तो फि‍र जीत आपके कदमों में होगी।

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