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Vaibhasika Darshana Buddhist Philosophy of Hinayana Tradition

वैभाषिक दर्शन - हीनयान परम्परा का बौद्ध दर्शन

आलेख © कॉपीराइट - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)

वैभाषिक दर्शन में आत्मा के अस्तित्व पर विश्वास नहीं किया जाता।

वैभाषिक दर्शन हीनयान परम्परा का बौद्ध दर्शन है। इस दर्शन में आत्मा के अस्तित्व पर विश्वास नहीं किया जाता जैसा कि आधुनिक भौतिक विज्ञानी तथा भौतिकवादी दार्शनिक चिंतन में आज आत्मा के अस्तित्व पर विश्वास नहीं किया जाता है। इस मत में माना जाता है कि आत्मा शरीर के क्षय होते ही लुप्त हो जाता है एवं जीवन के लक्षण भौतिक संयोग की एक परिपक्व अवस्था में ही घटित होता है। शरीर बहुत से तत्वों का संयोग है और एक अवस्था ऐसी आती है जब भौतिक तथा रासायनिक तत्वों के सहयोग से जीवन के लक्षण विकसित हो उठते हैं। वैभाषिकों को छोड़कर अन्य सभी बौद्ध कार्य और कारण को एककालिक नहीं मानते। किन्तु वैभाषिकों की यह विशेषता है वे कि हेतु और फल को एककालिक भी मानते हैं। वैभाषिक संप्रदाय का प्रचार-प्रसार श्रीलंका देश में है। यह मत बाह्य वस्तुओं की सत्ता तथा स्वलक्षणों के रूप में उनका प्रत्यक्ष मानता है। अत: इसे बाह्य प्रत्यक्षवाद अथवा "सर्वास्तित्ववाद" भी कहते हैं। सर्वास्तिवाद शब्द में 'सर्व' का अर्थ तीनों काल तथा 'अस्ति' का अर्थ द्रव्यसत्ता है।

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