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वट सावित्री व्रत

Vat Savitri Vrat

वट सावित्री व्रत

वट सावित्री व्रत - वरगदाई

वट सावित्री व्रत पूजा मुहूर्त -

वट सावित्री व्रत 6 जून को है। पंचांग के अनुसार वट सावित्री व्रत के दिन पूजा मुहूर्त प्रातः 11 बजकर 52 मिनट से दोपहर 12 बजकर 48 मिनट तक रहेगा। इस समय वट वृक्ष की पूजा कर सकती हैं।

त्रिदिवसीय सौभाग्यदायी वट सावित्री व्रत की शुरुआत 4 जून को होगी। इस दिन यायीजय योग में रात्रि 11 बजाकर 5 मिनट से है तथा स्थायी जय योग सर्वांगसिद्धि योग रात्रि 9 बजाकर 52 मिनट से है। 6 जून अमावस्या को वटसावित्री व्रत का समापन होगा। इस दिन वट वृक्ष के नीचे तीन रात तक उपवास की हुई स्त्रियाँ सौभाग्य हेतु वटवृक्ष की 108 बार या यथाशक्ति कच्चा सूत लपेटते हुए परिक्रमा करती हैं। सोने अथवा मिट्टी की सावित्री प्रतिमा बनाकर सात धान्य से संयुक्त प्रतिमा का षोडशोपचार पूजन कर ब्राह्मण को दान करती हैं । वट सावित्री व्रत में हर सुहागिन महिला अपने सुहाग की रक्षा के लिए ईश्वर से कामना करती है। पति की लंबी आयु की दुआ करने के साथ-साथ वह उसकी तरक्की के लिए कई उपवास भी रखती है।

वट सावित्री व्रत को लेकर शास्त्रों में दो मत सामने आते हैं। निर्णयामृतादि के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को किया जाता है। आमतौर पर यही मत पूरे देश में मान्य है। दूसरा मत स्कन्द पुराण और भविष्योत्तर पुराण में मिलता है जिसके के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को वटसावित्री व्रत करते हैं।

वटसावित्री व्रत को वरगदाई भी कहते हैं। संसार की सभी स्त्रियोंमें ऐसी कोई शायद ही हुई होगी, जो सावित्री के समान अपने अखण्ड पातिव्रत्य और दृढ़ प्रतिज्ञा के प्रभाव से यमद्वार पर गये हुए पति को सदेह लौटा लायी हो। अतः विधवा, सधवा, बालिका, वृद्धा, सपुत्रा, अपुत्रा सभी स्त्रियों को सावित्री का व्रत अवश्य करना चाहिये।

वटसावित्री व्रत विधि -

ज्येष्ठकृष्णा त्रयोदशी को प्रातः स्नानादि के पश्चात् निम्न संकल्प करें -

ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः । ॐ अद्य ब्रह्मणो द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे बौद्धावतारे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे - (अपने नगर/गांव का नाम लें) - नगरे/ ग्रामे विक्रम संवत 2081 पिंगल नाम संवत्सरे ज्येष्ठ मासे कृष्ण पक्षे त्रयोदशी तिथौ ... वासरे (दिन का नाम जैसे मंगलवार है तो "भौम वासरे ")..(अपने गोत्र का नाम लें) ... गोत्रोत्पन्न ... (अपना नाम लें)... शर्मा / वर्मा / गुप्तोऽहम् मम वैधव्यादिसकलदोषपरिहारार्थं ब्रह्मसावित्रीप्रीत्यर्थं सत्यवत्सावित्रीप्रीत्यर्थं च वटसावित्रीव्रतमहं करिष्ये।

यह संकल्प करके तीन दिन उपवास करे। यदि सामर्थ्य न हो तो त्रयोदशी को रात्रि भोजन, चतुर्दशी को अयाचित और अमावस्या को उपवास करके शुक्ल प्रतिपदा को समाप्त करे।

अमावस्या को वट के समीप बैठकर बाँस के एक पात्र में सप्तधान्य भरकर उसे दो वस्त्रों से ढक दे और दूसरे पात्र में सुवर्ण अथवा मिट्टी की ब्रह्मसावित्री तथा सत्यसावित्री की मूर्ति स्थापित करके गन्धाक्षतादि से पूजन करे। तत्पश्चात् वट वृक्ष में सूत लपेटकर उसका यथाविधि पूजन करके परिक्रमा करे। फिर निम्न श्लोक से सावित्री को अर्घ्य दे -

अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते ।
पुत्रान् पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणायै नमोऽस्तु ते ।।

इसके बाद निम्न श्लोक से वटवृक्ष की प्रार्थना करें -

वट सिञ्चामि ते मूलं सलिलैरमृतोपमैः ।
यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोऽसि त्वं महीतले ।
तथा पुत्रैश्च पौत्रैश्च सम्पन्नं कुरु मां सदा ।।

अलग अलग स्थान पर व्रत विधि में कोई-कोई उपचार भिन्न प्रकार से भी होते हैं। अत: उनका अपने हिसाब से पालन करें।

वट सावित्री व्रत कथा -

मद्रदेश में अश्वपति नाम के धर्मात्मा राजा का राज था और उनकी कोई भी संतान नहीं थी। राजा ने संतान प्राप्ति के लिए यज्ञ करवाया, जिसके शुभ परिणाम के बाद उनके घर एक कन्या का जन्म हुआ। इस कन्या का नाम सावित्री रखा गया।

समय के साथ-साथ जब सावित्री बड़ी और विवाह योग्य हुई, तो उन्होंने द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को अपने पति रूप में वरण किया। पूर्व में सत्यवान के पिता भी राजा ही थे। लेकिन उनका राजपाट छिन गया था, जिसके चलते वह दरिद्रता में जीवन व्यतीत कर रहे थे। सत्यवान के माता-पिता की भी आंखों की रोशनी चली गई थी और वह जंगल से लकड़ी काटकर उसे बेचकर अपना गुजारा कर रहे थे। वहीं जब सावित्री और सत्यवान के विवाह की बात चली तब नारद मुनि ने सावित्री के पिता राजा अश्वपति को बताया कि सत्यवान अल्पायु हैं और विवाह के एक वर्ष पश्चात ही उनकी मृत्यु हो जाएगी। नारद मुनि की बात सुनकर सावित्री के पिता ने उन्हें समझाने का बहुत प्रयास किया लेकिन वह नहीं मानी। अंत में सावित्री का सत्यवान से विवाह हो गया।

शादी के बाद सावित्री अपने सास-ससुर और पति की सेवा में लग गई। फिर एक दिन वो दिन भी आ गया जिसका जिक्र नारद मुनि ने किया था। सत्यवान की मृत्यु ! उसी दिन सावित्री भी सत्यवान के साथ वन को गई। वन में सत्यवान लकड़ी काटने के लिए जैसे ही पेड़ पर चढ़ने लगा कि उसके सिर में असहनीय पीड़ा होने लगी, वह सावित्री की गोद में सिर रखकर लेट गया। कुछ ही समय में उनके समक्ष अनेक दूतों के साथ स्वयं यमराज खड़े हुए थे। यमराज सत्यवान की आत्मा को लेकर दक्षिण दिशा की ओर चलने लगे, पतिव्रता सावित्री भी उनके पीछे चलने लगी। आगे जाकर यमराज ने सावित्री से कहा, 'हे पतिव्रता नारी! जहां तक मनुष्य साथ दे सकता है, तुमने अपने पति का साथ दे दिया अब तुम लौट जाओ'।

इस पर सावित्री ने कहा, 'जहां तक मेरे पति जाएंगे, वहां तक मुझे जाना चाहिए। यही सनातन सत्य है'। यमराज सावित्री की वाणी सुनकर प्रसन्न हुए और उनसे तीन वर मांगने को कहा। यमराज की बात का उत्तर देते हुए सावित्री ने कहा, 'मेरे सास-ससुर अंधे हैं, उन्हें नेत्र-ज्योति दें' यमराज ने 'तथास्तु' कहकर उसे लौट जाने को कहा और आगे बढ़ने लगे। किंतु सावित्री यम के पीछे ही चलती रही । यमराज ने प्रसन्न होकर पुन: वर मांगने को कहा। सावित्री ने वर मांगा, 'मेरे ससुर का खोया हुआ राज्य उन्हें वापस मिल जाए। इसके बाद सावित्री ने यमदेव से वर मांगा, 'मैं सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनना चाहती हूं।

कृपा कर आप मुझे यह वरदान दें' सावित्री की पति-भक्ति से प्रसन्न हो सावित्री से तथास्तु कहा, जिसके बाद सावित्री ने कहा कि मेरे पति के प्राण तो आप लेकर जा रहे हैं तो आपके पुत्र प्राप्ति का वरदान कैसे पूरा होगा। तब यमदेव ने अंतिम वरदान को देते हुए सत्यवान की जीवात्मा को पाश से मुक्त कर दिया। सावित्री पुनः उसी वट वृक्ष के पास लौटी तो उन्होंने पाया कि वट वृक्ष के नीचे पड़े सत्यवान के मृत शरीर में जीवन का संचार हो रहा है। कुछ देर में सत्यवान उठकर बैठ गया। उधर सत्यवान के माता-पिता की आंखें भी ठीक हो गईं और उनका खोया हुआ राज्य भी वापस मिल गया।

वट सावित्री के दिन के विशेष उपाय -

वट सावित्री के हीं दिन शनि जयंती भी होती है। अत : वट सावित्री के दिन पीपल के पेड़ पर मीठा दूध चढाएं। इसके बाद पीपल के वृक्ष की परिक्रमा करते हुए शनि मंत्र ॐ शं शनैश्चराय नमः का जाप करना चाहिए।

वट सावित्री के दिन बरगद के पेड़ में दूध अर्पित करें। इससे ग्रह दोष दूर होने लगते हैं। साथ ही बरगद के पेड़ की 11 बार परिक्रमा लगाने के बाद गाय, कुत्ते और कौवे को भोजन कराना चाहिए। इससे कुंडली में ग्रहों की स्थिति मजबूत होती है।

वैवाहिक जीवन में चल रही परेशानियों को दूर करने के लिए बरगद के पेड़ की पति के साथ 21 परिक्रमा लगाएं। फिर पेड़ के नीचे घी का दीपक जलाना न भूलें। इस दीपक से काजल बना लें। बाद में इस काजल को बरगद के पत्ते में लपेटकर अलमारी में रख दें।

 

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