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What is the difference between Rishi, Muni, Sadhu, Sant?

ऋषि, महर्षि, मुनि, साधु, संत में क्या अंतर है?

आलेख © कॉपीराइट - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)

हिन्दू संतों का कार्य-आधार पर ऋषि, महर्षि, ब्रह्मर्षि, काण्डर्षि, देवर्षि, परमर्षि , श्रुतर्षि, देवर्षि, मुनि, साधु, संत में वर्गीकरण

Classification of Hindu saints on the basis of work into Rishi, Maharishi, Brahmarshi, Kandarshi, Devarshi, Paramarshi, Shrutari, Devarshi, Muni, Sadhu, Saint.

ऋषि

ऋषि वैदिक संस्कृत भाषा का शब्द है। वैदिक ऋचाओं के रचयिताओं को ही ऋषि का दर्जा प्राप्त है। हिंदू धर्म की उत्तर-वैदिक परंपरा ऋषियों को "महान योगी" या "ऋषि" के रूप में मानती है, जिन्होंने गहन ध्यान (तप) के बाद सर्वोच्च सत्य और शाश्वत ज्ञान को आत्मसात किया एवं जनकल्याण हेतु प्रकाश में लाया। वायु पुराण के अनुसार ऋषि सात गुणों से सम्पन्न होते हैं – (1) दीर्घायुष्य, (2) मन्त्रकर्तृत्व, (3) ऐश्वर्य, (4) दिव्यदृष्टि, (5) गुणवृद्ध, विद्यावृद्ध तथा आयुवृद्ध, (6) धर्म का प्रत्यक्ष साक्षात्कार और (7) गोत्रप्रवर्तन । वैदिक कालिन सभी ऋषि गृहस्थ आश्रम से आते थे। ऋषि अपने योग के माध्यम से परमात्मा को प्राप्त हो जाते थे और अपने सभी शिष्यों को आत्मज्ञान की प्राप्ति करवाते थे। वे भौतिक पदार्थ के साथ-साथ उसके पीछे छिपी ऊर्जा को भी देखने में सक्षम थे।

वेदों का अध्ययन करने पर सात ऋषियों या सप्तर्षि (सप्त + ऋषि) के रूप में 1. वशिष्ठ, 2. विश्वामित्र, 3. कण्व, 4. भारद्वाज, 5. अत्रि, 6. वामदेव 7. शौनक का नाम एवं इनके कुल का पता चलता है। जैमिनीय ब्राह्मण श्लोक संख्या 2.218 और बृहदारण्यक उपनिषद के श्लोक संख्या 2.2.4 में ऋषियों की कुछ प्रारंभिक सूचियाँ मिलती हैं। पुराणों में सप्त ऋषि के नाम पर भिन्न-भिन्न नामावली मिलती है। विष्णु पुराण के अनुसार इस मन्वन्तर के सप्तऋषि इस प्रकार है - वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज। इसके अलावा अन्य पुराणों के अनुसार सप्तऋषि की नामावली इस प्रकार है:- ये क्रमशः क्रतु, पुलह, पुलस्त्य, अत्रि, अंगिरा, वसिष्ठ और मरीचि है। महाभारत में सप्तर्षियों की दो नामावलियां मिलती हैं। एक नामावली में कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और वशिष्ठ के नाम आते हैं तो दूसरी नामावली के अनुसार सप्तर्षि - कश्यप, वशिष्ठ, मरीचि, अंगिरस, पुलस्त्य, पुलह और क्रतु हैं। कुछ पुराणों में कश्यप और मरीचि को एक माना गया है।

वैदिक शास्त्रों की रचना में योगदान देने में महिला ऋषि भी हैं। ऋग्वेद में रोमाशा, लोपामुद्रा, अपला, कद्रू, विश्ववर, घोष, जुहू, वागम्भरीनी, पौलोमी, यामी, इंद्राणी, सावित्री और देवयानी का उल्लेख है तथा सामवेद में नोधा, अक्रिष्टभाषा, सिकतानिवारी और गौपायन शामिल हैं।

ब्रह्मर्षि

जो ब्रह्म (ईश्वर) को जान गया। दधीचि, भारद्वाज, भृगु, वसिष्ठ जैसे ऋषियों को ब्रह्म ऋषि कहा जाता है।

महर्षि

महर्षि एक संस्कृत शब्द है जो महा उपसर्ग एवं ऋषि के मेल से बना है। महर्षि वो "द्रष्टा" हैं जो प्रकृति और उसके शासी कानूनों को समझने और अनुभव करने के लिए अनुसंधान में संलग्न रहते हैं। महर्षि ज्ञान और तप की उच्चतम सीमा पर पहुंचने वाले व्यक्ति हैं। महर्षि परब्रह्म के कार्य को पूरी तरह से समझते हैं। इनसे ऊपर केवल ब्रह्मर्षि माने जाते हैं। इससे निचे वाली कोटि राजर्षि की मानी जाती हैं। हर व्यक्ति में तीन प्रकार के चक्षु होते हैं। वह ज्ञान चक्षु, दिव्य चक्षु और परम चक्षु हैं। जिसका ज्ञान चक्षु जाग्रत हो जाता है, उसे ऋषि कहते हैं। जिसका दिव्य चक्षु जाग्रत होता है उसे महर्षि कहते हैं और जिसका परम चक्षु जाग्रत हो जाता है उसे ब्रह्मर्षि कहते हैं। महर्षि मोह-माया से विरक्त होते हैं और परामात्मा को समर्पित हो जाते हैं।

देवर्षि

देवताओं में से जो ऋषि हैं देवर्षि कहलाये । जैसे नारद।

परमर्षि

वह जो ऋषियों में परम हो। जैसे ऋषि भेल को परमर्षि कहा जाता है।

काण्डर्षि

वेद की किसी एक शाखा, काण्ड या विद्या की व्याख्या करने वाले जैमिनि जैसे ऋषियों को काण्ड ऋषि कहा जाता है।

श्रुतर्षि

जो ऋषि श्रुति और स्मृति शास्त्र में पारंगत हो। सुश्रुत जैसे ऋषियों को श्रुतर्षि कहा जाता है।

राजर्षि

राजा का ऋषि या वह राजा जो ऋषि बन गया। विश्वामित्र, राजा जनक और ऋतुपर्ण जैसे ऋषियों को राजर्षि कहा जाता है।

मुनि

'मुनि' शब्द मन से बना है। मुनि का शाब्दिक अर्थ है 'वह जो चिंतन में लीन है'। मुनि शब्द का अर्थ होता है मौन अर्थात शांति यानि जो मुनि होते हैं, वह बहुत कम बोलते हैं। मुनि मौन (शांत ) होकर विचार, अन्वेषण और चर्चा करने वाला, स्वतंत्र सोच वाले व्यक्ति चिह्नित करता है जिसका कार्य पद्धति पहले सुनना है, फिर जो कुछ सुना उसको समझना एवं परीक्षण करना है। ऋग्वेद के अनुसार मुनि जो गंदे कपड़े पहने हुए भी आनंद में हैं एवं ईश्वर और जीवन के उच्च मूल्यों पर गहराई से चिंतन करता रहता है। मुनि मौन रखने की शपथ लेते हैं और वेदों और ग्रंथों का ज्ञान प्राप्त करते हैं। जो ऋषि साधना प्राप्त करते थे और मौन रहते थे उनको मुनि का दर्जा प्राप्त होता था। मुनि मंत्रों को जपते हैं और अपने ज्ञान से एक व्यापर भंडार की उत्पत्ति करते हैं। मुनि शास्त्रों की रचना करते हैं और समाज के कल्याण के लिए रास्ता दिखाते हैं। मौन साधना के साथ-साथ जो व्यक्ति एक बार भोजन करता हो और 28 गुणों से युक्त हो, वह व्यक्ति ही मुनि कहलाता था।

साधु

साधना करने वाले व्यक्ति को साधु कहा जाता है। साधु होने के लिए विद्वान होने की जरूरत नहीं है क्योंकि साधना कोई भी कर सकता है। प्राचीन समय में कई व्यक्ति समाज से हटकर या समाज में रहकर किसी विषय की साधना करते थे और उससे विशिष्ट ज्ञान प्राप्त करते थे। कई बार अच्छे और बुरे व्यक्ति में फर्क करने के लिए भी साधु शब्द का प्रयोग किया जाता है। इसका कारण यह है कि साधना से व्यक्ति सीधा, सरल और सकारात्मक सोच रखने वाला हो जाता है। साथ ही वह लोगों की मदद करने के लिए हमेशा आगे रहता है। साथु का संस्कृत में अर्थ है सज्जन व्यक्ति और इसका एक उत्तम अर्थ यह भी है 6 विकार यानी काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर का त्याग कर देता है। जो इन सबका त्याग कर देता है और साधु की उपाधि दी जाती है।

संत

संत वह है जिसने ईश्वर के साथ मिलन के माध्यम से आध्यात्मिक ज्ञान और दिव्य ज्ञान और शक्ति प्राप्त की है।संत उस व्यक्ति को कहते हैं, जो सत्य का आचरण करता है और आत्मज्ञानी होता है। संत शब्द संस्कृत के एक शब्द शांत से बिगड़ कर और संतुलन से बना है। जैसे- संत कबीरदास, संत तुलसीदास, संत रविदास। ईश्वर के भक्त या धार्मिक पुरुष को भी संत कहते हैं। जो व्यक्ति संसार और अध्यात्म के बीच संतुलन बना लेता है, उसे संत कहते हैं। संत के अंदर सहजता शांत स्वभाव में ही बसती है।

वैदिक सप्त ऋषियों का परिचय

1. वशिष्ठ : राजा दशरथ के कुलगुरु ऋषि वशिष्ठ को कौन नहीं जानता। ये दशरथ के चारों पुत्रों के गुरु थे। वशिष्ठ के कहने पर दशरथ ने अपने दोनों पुत्रों (श्री राम एवं श्री लक्ष्मण) को ऋषि विश्वामित्र के साथ आश्रम में राक्षसों का वध करने के लिए भेज दिया था। कामधेनु गाय के लिए वशिष्ठ और विश्वामित्र में युद्ध भी हुआ था। वशिष्ठ ने राजसत्ता पर अंकुश का विचार दिया तो उन्हीं के कुल के मैत्रावरूण वशिष्ठ ने सरस्वती नदी के किनारे सौ सूक्त एक साथ रचकर नया इतिहास बनाया।

2. विश्वामित्र : ऋषि होने के पूर्व विश्वामित्र राजा थे और ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को हड़पने के लिए उन्होंने युद्ध किया था, लेकिन वे हार गए। इस हार ने ही उन्हें घोर तपस्या के लिए प्रेरित किया। विश्वामित्र की तपस्या और मेनका द्वारा उनकी तपस्या भंग करने की कथा जगत प्रसिद्ध है। विश्वामित्र ने अपनी तपस्या के बल पर त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग भेज दिया था। विश्वामित्र ने गायत्री मन्त्र रचना की। इन्होने कई अन्न का निर्माण किया जैसे ज्वार -बाजरा। भैंस भी इनका ही बनाया हुआ है।

3. कण्व : माना जाता है इस देश के सबसे महत्वपूर्ण यज्ञ सोमयज्ञ को कण्वों ने व्यवस्थित किया। कण्व वैदिक काल के ऋषि थे। इन्हीं के आश्रम में हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला एवं उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण हुआ था।

4. भारद्वाज : वैदिक ऋषियों में भारद्वाज-ऋषि का उच्च स्थान है। भारद्वाज के पिता बृहस्पति और माता ममता थीं। भारद्वाज ऋषि राम के पूर्व हुए थे, लेकिन एक उल्लेख अनुसार उनकी लंबी आयु का पता चलता है कि वनवास के समय श्रीराम इनके आश्रम में गए थे, जो ऐतिहासिक दृष्टि से त्रेता-द्वापर का सन्धिकाल था। माना जाता है कि भरद्वाजों में से एक भारद्वाज विदथ ने दुष्यन्त पुत्र भरत का उत्तराधिकारी बन राजकाज करते हुए मन्त्र रचना जारी रखी। ऋषि भारद्वाज के पुत्रों में 10 ऋषि ऋग्वेद के मन्त्रदृष्टा हैं और एक पुत्री जिसका नाम 'रात्रि' था, वह भी रात्रि सूक्त की मन्त्रदृष्टा मानी गई हैं। ॠग्वेद के छठे मण्डल के द्रष्टा भारद्वाज ऋषि हैं। इस मण्डल में भारद्वाज के 765 मन्त्र हैं। अथर्ववेद में भी भारद्वाज के 23 मन्त्र मिलते हैं। 'भारद्वाज-स्मृति' एवं 'भारद्वाज-संहिता' के रचनाकार भी ऋषि भारद्वाज ही थे। ऋषि भारद्वाज ने 'यन्त्र-सर्वस्व' नामक बृहद् ग्रन्थ की रचना की थी। इस ग्रन्थ का कुछ भाग स्वामी ब्रह्ममुनि ने 'विमान-शास्त्र' के नाम से प्रकाशित कराया है। इस ग्रन्थ में उच्च और निम्न स्तर पर विचरने वाले विमानों के लिए विविध धातुओं के निर्माण का वर्णन मिलता है।

5. अत्रि : ऋग्वेद के पंचम मण्डल के द्रष्टा महर्षि अत्रि ब्रह्मा के पुत्र, सोम के पिता और कर्दम प्रजापति व देवहूति की पुत्री अनुसूया के पति थे। अत्रि जब बाहर गए थे तब त्रिदेव अनसूया के घर ब्राह्मण के भेष में भिक्षा माँगने लगे और अनुसूया से कहा कि जब आप अपने संपूर्ण वस्त्र उतार देंगी तभी हम भिक्षा स्वीकार करेंगे, तब अनुसूया ने अपने सतित्व के बल पर उक्त तीनों देवों को अबोध बालक बनाकर उन्हें भिक्षा दी। माता अनुसूया ने देवी सीता को पतिव्रत का उपदेश दिया था। अत्रि ऋषि ने इस देश में कृषि के विकास में पृथु और ऋषभ की तरह योगदान दिया था। अत्रि लोग ही सिन्धु पार करके पारस (आज का ईरान) चले गए थे, जहाँ उन्होंने यज्ञ का प्रचार किया। अत्रियों के कारण ही अग्निपूजकों के धर्म पारसी धर्म का सूत्रपात हुआ। अत्रि ऋषि का आश्रम चित्रकूट में था। मान्यता है कि अत्रि-दम्पति की तपस्या और त्रिदेवों की प्रसन्नता के फलस्वरूप विष्णु के अंश से महायोगी दत्तात्रेय, ब्रह्मा के अंश से चन्द्रमा तथा शंकर के अंश से महामुनि दुर्वासा महर्षि अत्रि एवं देवी अनुसूया के पुत्र रूप में जन्मे। ऋषि अत्रि पर अश्विनीकुमारों की भी कृपा थी।

6. वामदेव : वामदेव ने इस देश को सामगान (अर्थात् संगीत) दिया। वामदेव ऋग्वेद के चतुर्थ मंडल के सूत्तद्रष्टा, गौतम ऋषि के पुत्र तथा जन्मत्रयी के तत्ववेत्ता माने जाते हैं।

7. शौनक : शौनक ने दस हजार विद्यार्थियों के गुरुकुल को चलाकर कुलपति का विलक्षण सम्मान हासिल किया और किसी भी ऋषि ने ऐसा सम्मान पहली बार हासिल किया। वैदिक आचार्य और ऋषि जो शुनक ऋषि के पुत्र थे।

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