What is the meaning of 33 koti deity of Hindu religion?
हिन्दू धर्म के 33 कोटि देवता का मतलब क्या है?
वृहदारण्य उपनिषद में याज्ञवाल्किय प्रश्नावली में पूछे गए प्रश्न में यह स्पष्ट किया गया है कि 33 कोटि देवता का अर्थ 33 करोड़ देवता नहीं है बल्कि तेंतीस प्रकार के देवता हैं।
हिन्दू धर्म के विषय में एक गलत मान्यता प्रचलित की गई है कि हिन्दुओं में 33 करोड़ देवी-देवता हैं। शास्त्रों में 33 करोड़ नहीं, बल्कि 33 कोटि देवता बताए गए हैं। कोटि शब्द का अर्थ है प्रकार। यानी हिन्दू धर्म में 33 प्रकार के देवता हैं। कोटि शब्द के दो अर्थ हैं, एक प्रकार और दूसरा करोड़। कोटि शब्द को ही बोलचाल की भाषा में करोड़ में बदल दिया गया है।
वृहदारण्य उपनिषद के अनुसार तेंतीस कोटी (प्रकार) देवता में 8 वसु, 12 आदित्य, 11 रुद्र एवं 2 अश्वनी कुमार आते हैं।
आठ वसु प्रकृति के विभिन्न भागों का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये आठ हैं 1. अनिल (वायु) 2. आप (जल) 3. द्योस (अंतरिक्ष अथवा आकाश) 4. धरा (पृथ्वी), 5. ध्रुव (नक्षत्र), 6. अनल (अग्नि), 7. प्रभाष (सूर्योदय अथवा अरुणोदय) एवं 8. सोम (चंद्रमा)।
बारह आदित्य सामाजिक जीवन के 12 भागों एवं वर्ष के 12 मासों हैं के विषय में बताते हैं। ये हैं -
1. शक (नेतृत्व), 2. अंश (हिस्सा), 3. आर्यमन (श्रेष्ठता) 4. भाग (धरोहर), 5. धत्री (अनुष्ठान कौशल), 6. वस्त्र (शिल्प कौशल), 7. मित्र (मित्रता), 8. रवि या पुश्न (समृद्धि), 9. सवित्र या परिजन्य (शब्दों में छिपी हुई शक्ति), 10. सूर्य या विवस्वान (सामाजिक कानून), 11. वरुण (भाग्य), 12. वामन (ब्रह्मांडीय कानून)
11 रुद्र शरीर के वो अव्यव हैं जिससे शरीर सजीव रहता है, गतिमान रहता है। जब यह अव्यय एक-एक करके शरीर से निकल जाते हैं तो शरीर प्रणहीन हो जाता है।
शरीर के इन अव्यव रुद्रों के नाम हैं:- प्राण, अपान, व्यान, समान, उदान, नाग, कुर्म, किरकल, देवदत्त और धनंजय। प्रथम पांच प्राण और दूसरे पांच उपप्राण हैं। अंत में 11वां जीवात्मा है। जब शरीर से ये 11 रुद्र निकल जाते हैं तो शरीर संज्ञाशून्य होकर पुनः पंचभूत में समाहित हो जाता है और ये 11 अव्यय पुनः परमरुद्र (परमात्मा) में मिलकर उसी में समाहित हो जाते हैं। इन ग्यारह रुद्रों को इन नामों से भी जाना जाता है -1. शम्भु, 2. पिनाकी, 3. गिरीश, 4. स्थाणु, 5. भर्ग, 6. भव, 7. सदाशिव, 8. शिव, 9.हर, 10. शर्व और 11. कपाली।
2 अश्विनी कुमार दिन और रात के प्रतीक हैं। इनको ऋग्वेद की अनेक ऋचाओं में रात्रि और दिवस के संधिकाल के रुप में बताया गया है। ये कुमारियों को पति, वृद्धों को तारुण्य, अंधों को नेत्र देने वाले कहे गए हैं। इस चिकित्सक रूप में एक का नाम 'नासत्य' और दूसरे का नाम 'द्स्त्र' है।
मरुतगण कौन है
मरुतगण को वेदों में रुद्र और वृश्नि का पुत्र कहा गया है तो पुराणों में कश्यप और दिति का पुत्र माना गया है। इन्हें देवताओं का सैनिक माना गया है। ये देवता नहीं हैं। मरुतों का एक संघ है जिसमें कुल 180 से अधिक मरुतगण सदस्य हैं, उनमें से 49 प्रमुख हैं एवं उनमें से 7 सैन्य प्रमुख हैं। वेदों में मरुतगण का स्थान अंतरिक्ष लिखा है। उनके घोड़े का नाम 'पृथित' बतलाया गया है तथा उन्हें इंद्र का सखा लिखा है। (ऋ. 1.85.4)। पुराणों में इन्हें वायुकोण का दिक्पाल माना गया है। 7 मरुतों के नाम निम्न हैं- 1. आवह, 2. प्रवह, 3. संवह, 4. उद्वह, 5. विवह 6. परिवह और 7 परावह यह वायु के नाम भी है।
इनके 7-7 गण निम्न जगह विचरण करते हैं- ब्रह्मलोक, इन्द्रलोक, अंतरिक्ष, भूलोक की पूर्व दिशा, भूलोक की पश्चिम दिशा, भूलोक की उत्तर दिशा और भूलोक की दक्षिण दिशा। इस तरह से कुल 49 मरुत हो जाते हैं, जो देव रूप में देवों के लिए विचरण करते हैं।
तमोलोक में 3 देवनिकाय कौन-कौन हैं ?
तमोलोक में 3 देवनिकाय अभास्वर, महाभास्वर और सत्यमहाभास्वर हैं। ये कुल 64 हैं। ये देवनिकाय भूत इंद्रिय और अंतःकरण को वश में रखने वाले होते हैं।
***********