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Which is true in one place may be false in another

जो एक जगह सत्य होता है वह दूसरी जगह असत्य भी हो सकता है

आलेख © कॉपीराइट - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)

एक जगह जो सच है वह दूसरी जगह गलत हो सकता है।

प्रकृति का रहस्य या ईश्वर की लीला समझना असंभव है। कारण ज्ञान इंद्रियों से ही उत्पन्न होती है, जो यह एक जगह सत्य होता है वह दूसरी जगह असत्य भी हो सकती है। ऐसा समय और स्थान के अनुसार उत्पन्न दृष्टि-भेद के कारण होता है। जैसे बाण किन्ही विशिष्ट स्थानों पर सत्य होते हुए भी असत्य है अर्थात रहते हुए भी नहीं रहता। वह उस स्थान विशेष से होकर जाता है अतः सत्य है परंतु क्षण भर भी नहीं ठहरता अतः असत्य है। अलग-अलग काल में अलग अलग व्यक्ति को अलग-अलग ज्ञान होगा। सब सही भी हैं और सब गलत भी। यही माया है। इस दृष्टि भेद को समझ जब सूक्ष्म विवेचन हो तब सम्यक ज्ञान होगा। आधुनिक युग में कंप्यूटर की दुनिया में टाइम-लाइन पर जितने भी सॉफ्टवेयर काम करते हैं उसमें एनिमेशन के लिए मूवी क्लिप की व्यवस्था होती है जो अलग-अलग टाइम फ्रेम में अलग-अलग टाइम-लाइन में एक साथ काम कर रहा होता है जबकि उस मूवी क्लिप का सोर्स एक ही होता है जो कहीं अलग स्थिर भाव से लाइब्रेरी में पड़ा होता है।

ठीक ऐसे ही ईश्वर खुद एक होकर अलग-अलग रूपों में सब ओर गतिमान है एवं स्वयं विश्व का गतिदायक परमेश्वर गतिहीन है। संभवतः इसीलिए भगवान बुद्ध ने कहा है कि ईश्वर न लेता है न देता है। आपका उसके प्रति जो भाव होता है वही क्रियाशील होता है। बुद्ध का यह विचार मिलिंदपन्हो में संकलित है।

ईश्वर के होने या ना होने का तर्क-विचार व्यर्थ है

क्योंकि जो ज्ञाता (जानने वाला) है वह ज्ञान (जानने) का विषय नहीं हो सकता । जैसे जो दग्धा (जलाने वाला) है वह दहन (जलाए जाने) का विषय नहीं हो सकता। दृष्टि भेद से उत्पन्न ज्ञान के आधार पर कुतर्क करना व्यर्थ है। यह उसी प्रकार होता है जैसे एक चूहा हाथी की दृष्टि में बहुत छोटा जीव है परंतु एक चींटी के लिए बड़ा महान जीव है। दोनों विचार साथ-साथ सत्य एवं असत्य दोनों हैं। अतः सम्यक ज्ञान पाने पर जोर हो।

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