Why Lords is called Narayan?
भगवान को नारायण क्यों कहा जाता है?
जल में निवास के कारण ही ईश्वर को नारायण कहा जाता है।
पश्चिम एवं भारत दोनों में जल से जीवन की शुरुआत की मान्यता रही है। मनु ने लिखा है कि परमेश्वर ने पहले जल रचा और फिर उसमें अपनी शक्ति का निक्षेप किया अर्थात ईश्वर ने अपनी अमानत इस जीव जगत की सृष्टि की। जल में निवास के कारण ही ईश्वर को नारायण कहा जाता है। इसीलिए विष्णु त्रिदेव में पालनहार हैं और सकल संसार के रचयिता हैं। यूनान का थैलीज भी मानता था कि जल ही दृढ़ता, द्रव्यता तथा वायु के रूप में परिवर्तित होता है। जल से वनस्पति तथा सभी जीवों को जीवन मिलता है।
असीम - वह तत्त्व जिससे संसार की रचना हुई
एनैक्सिमैन्डर (ईसा पूर्व 640 से 550 ईसवी) ने भी माना है कि जो कुछ भी जाना जाता है वह मूल नहीं है। मूल तत्व तो कोई और ही है जिससे पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश इन पांच तत्वों का जन्म होता है और जिसे 'असीम' नाम दिया जा सकता है। भारतीय संस्कृति में, हमारे शास्त्रों में इस "असीम" की व्याख्या ॐ एवं अर्धनारीश्वर निष्कल महादेव के रूप में है जो प्रकृति-पुरुष का गुण समेटे सब का रचयिता है। हर तत्व का, हर जीव का, जो होकर भी नहीं है (अदृश्य है) एवं नहीं होकर भी है, जैसे प्राण।
पीथागोरस (ईसवी पूर्व 570 से 500) का मानना था कि विश्व का मूल वस्तु नहीं, पर वस्तु का रूप ही है ।
एक अन्य यूनानी विद्वान पारामेनीडीज का मत था कि विश्व न कभी उत्पन्न हुआ, न नष्ट हीं होगा एनैक्सिमैन्डर भी एक द्रव्य से विश्व की उत्पत्ति मानी जो द्रव्य अपरिमित यानी अनश्वर है। इसकी गति भी शाश्वत है। यह स्वयं विशेष पदार्थ नहीं है किंतु सभी पदार्थ इसी से निकलते हैं। यहां तक कि शीत-उष्ण का भेद भी।
यह सभी बातें भारतीय मीमांसा में पूर्व से ज्ञात थी। यह मत प्रचलित थी कि यह जगत कभी भी ऐसा नहीं रहा जैसा आज नहीं है अर्थात वह सदा ऐसा ही रहा । आधुनिक विज्ञान में ऊर्जा संरक्षण के सिद्धांत से भी इसी निष्कर्ष पर आते हैं ।अणु का संयोग वियोग ही परिवर्तन है। कोई भी वस्तु आकस्मिक नहीं सब वस्तुएं कार्य-कारणसंबंध ही हैं। अणु और शून्य के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। अणु अनंत है एवं उसकी अवस्थाएं भी अनंत हैं । सूक्ष्म अणुओं से सारा शरीर व्याप्त है और उन्हीं से जीवन और आत्मा कहीं जाने वाली वस्तुओं की उत्पत्ति होती है।
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