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शिवलिंग पर जल चढ़ाने का मंत्र

पूरे सावन इस मंत्र से जलाभिषेक करने से मन को शांत और एकाग्र होता है।

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 शिवलिंग पर जल चढ़ाने का मंत्र मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम्

शिवलिंग पर जल चढ़ाने का मंत्र

आलेख - Sadhak Prabhat

॥ ॐ नमः शिवाय ॥

शिवलिंग पर जल चढ़ाने की विधि -

जल चढ़ाने के लिए आपके पास एक तांबे, चाँदी और कांसे के पात्र के अंदर जल होना चाहिए और उस जल मे गंगाजल भी मिला होना चाहिए। स्टील आदि के लोटे का इस्तेमाल करने से बचें। शिवलिंग में कभी भी तेजी से जल अर्पित न करें। शिवलिंग पर एक धारा में जल अर्पित करना शुभ माना जाता है। शिवलिंग में जल चढ़ाते समय. कभी भी तुलसी का इस्तेमाल न करें। भगवान शिव को तुलसी चढ़ाना वर्जित है। मंदिर में शिवलिंग के चारों तरफ कुछ देवता विराजमान होते हैं। शास्त्र के अनुसार, शिवलिंग में जल चढ़ाते समय दक्षिण दिशा की ओर खड़े होना चाहिए। क्योंकि ऐसा करने से व्यक्ति का मुख उत्तर दिशा की ओर होगा। उत्तर दिशा को देवी-देवता की दिशा मानी जाती है। कभी भी पश्चिम दिशा की ओर खड़े होकर भगवान शिव को जल अर्पित न करें। क्योंकि पश्चिम दिशा में भगवान की पीठ होती है। इसलिए इस दिशा में खड़े होकर जलाभिषेक करने से फलों की प्राप्ति नहीं होगी। जल चढ़ाते समय सबसे पहले आपको गणेश जी पर जल चढ़ाएं। उसके बाद आपको माता पार्वती पर जल चढ़ाए। उसके बाद कार्तिकय पर आपको जल चढ़ाना होगा। फिर आपको नंदी का स्नान करवाना होगा। फिर आपको विरभद्र देवता का स्नान करवाना है। जो शिवलिंग के आगे विराजमान होते हैं। फिर आपको सर्प देवता पर जल चढ़ाना होगा। फिर आपको शंकर भगवान के उपर जल चढ़ाना होगा और यदि आप दूध या फल के रास को चढ़ाना चाहते हैं तो इसी क्रम मे आपको शिवलिंग पर चढ़ाना चाहिए। शिवलिंग में जल चढ़ाते समय कभी भी तुलसी का इस्तेमाल न करें। भगवान शिव को तुलसी चढ़ाना वर्जित है। शिवलिंग पर जल चढ़ाने के बाद पूरी परिक्रमा नहीं करना चाहिए। क्योंकि जो जल अर्पित किया जाता है वह पवित्र हो जाता है। ऐसे में उस जल को लांघना अशुभ माना जाता है। अगर मंत्र पूरा मंत्र याद न हो तो मात्र "श्रीभगवते साम्बशिवाय नमः । स्नानीयं जलं समर्पयामि ॥" इतना हीं जपते हुए जल भगवान् भोलेनाथ को समर्पित करें। भोलेनाथ आपके इस भाव से भी संतुष्ट हो पूरा आशीर्वाद देंगे। आपका कल्याण करेंगे।

शिवलिंग पर जल चढ़ाने का मंत्र

मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम् ।
तदिदं कल्पितं देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
श्रीभगवते साम्बशिवाय नमः ।
स्नानीयं जलं समर्पयामि ॥

शिव पूजन का वैदिक क्रम में गणेश जी, उसके बाद आपको माता पार्वती फिर आपको नंदी , फिर आपको विरभद्र, उसके बाद कार्तिकय, फिर कुबेर पूजन, कीर्तिमुख पूजनऔर अंत में आपको सर्प देवता के पूजन का विधान होता है। परन्तु अभी के मंदिरों में जल चढ़ाने का उपरोक्त क्रम संभव नहीं रहता, अत: प्रारंभ में दिया क्रम हीं अपनाया जाता है। वैदिक शिव पूजन का भी पूरा विधान हमने दूसरे पेज पर दे दिया है ताकि जो साधक वैदिक विधि से करना चाहें वो उस विधि को भी देख लें। फलदायक दोनों ही विधि है।

शिवलिंग के स्नानाङ्ग - आचमन का मंत्र

शिवलिंग के जल से आचमन (स्नान ) का मंत्र

स्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।

दुग्धस्नान - गोदुग्ध से आचमन (स्नान ) का मंत्र

कामधेनुसमुद्भूतं सर्वेषां जीवनं परम्।
पावनं यज्ञहेतुश्च पयः स्नानाय गृह्यताम्॥
श्रीभगवते साम्बशिवाय नमः । पयः स्नानं समर्पयामि।

दधिस्नान - गोदधि से आचमन (स्नान ) का मंत्र

पयसस्तु समुद्भूतं मधुराम्लं शशिप्रभम् ।
दध्यानीतं मया देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
श्रीभगवते साम्बशिवाय नमः । दधिस्नानं समर्पयामि।

घृतस्नान— गोघृत से आचमन (स्नान ) का मंत्र

नवनीतसमुत्पन्नं सर्वसंतोषकारकम् ।
घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
श्रीभगवते साम्बशिवाय नमः । घृतस्नानं समर्पयामि ।

मधुस्नान - मधु से आचमन (स्नान ) का मंत्र

पुष्परेणुसमुत्पन्नं सुस्वादु मधुरं मधु ।
तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्
श्रीभगवते साम्बशिवाय नमः । मधुस्नानं समर्पयामि ।

शर्करास्नान – शक्कर से आचमन (स्नान ) का मंत्र

इक्षुसारसमुद्भूतां शर्करां पुष्टिदां शुभाम्।
मलापहारिकां दिव्यां स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
श्रीभगवते साम्बसदाशिवाय नमः । शर्करास्नानं समर्पयामि ।

पञ्चामृतस्नान - पञ्चामृत से आचमन (स्नान ) का मंत्र

पयो दधि घृतं चैव मधु च शर्करान्वितम्।
पञ्चामृतं मयाऽऽनीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
श्रीभगवते साम्बशिवाय नमः । पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि।

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