Sacred Principles of Om
ओम का जाप - ॐ का जप क्यों करते हैं?
ओम् का उच्चारण किया जाता है तो 432 Hz का कंपन होता है। ठीक यही कंपन की आवृत्ति पूरे प्रकृति में पाई जाती है।
Om vibrates at the frequency of 432 Hz – the same vibrational frequency found in all things throughout nature.
Om Chanting
ओम का जप क्यों करना चाहिये ?
Why should chant Om?
ओम् की जप साधना इसलिए क्योंकि हमारे दिमाग को स्वस्थ रहने के लिए शांति की आवश्यकता होती है, ऊर्जा की आवश्यकता होती है। जब हम ओम् उच्चरित करते हैं तो ओ से शुरू कर म् के उच्चारण के साथ समापन करते हैं । उस समापन बिंदु पर जहां आपका ओम् का जप समाप्त होता है, म् पूरी तरह से मौन-शांति में जाकर मिल जाती है। फिर इस बिंदु पर असीम शांति होती है। यह असीम शांति (मन का मौन), प्रचुर ऊर्जा से भर देती है।
जब ओम् का उच्चारण किया जाता है तो 432 Hz का कंपन होता है। ठीक यही कंपन की आवृत्ति पूरे प्रकृति में पाई जाती है। यहां तक की धरती के अक्ष पर घूर्णन गति से उत्पन्न होने वाली ध्वनि भी इसके हीं समान है। समान आवृत्ति की। अंतरिक्ष, ब्रहमांड सभी जगह। ब्रहमांड की मूल ध्वनि ओम् हीं है। ॐ संपूर्ण ब्रहमांड में गूंज रहा है जिसे तारामंडल नक्षत्र ग्रह आदि एक दूसरे से दूरी बनाए परस्पर आकर्षण में एक निश्चित लय में घूम रहे हैं। ॐ के उच्चारण से ध्वनि में कंपन शक्ति पैदा होती जिसका प्रभाव शरीर के प्रत्येक कोशिका पर पड़ता है। ओम् की वैज्ञानिकता समझने के लिए यही काफी है। ध्यानावस्था में ओम् के लयबद्ध उच्चारण और उससे होने वाली स्पंदन से मन पर एवं शरीर के तंत्रिका तंत्र पर एक शांत (उत्तेजनाहीन) प्रभाव पड़ता है।ॐ के स्वर से जो कंपन होता है वह शरीर को अंदर से शुद्ध करता है। ॐ के उच्चारण से आपको मानसिक शांति मिलती है। इससे मन में एकाग्रता और शक्ति जागृत होती है । वाणी में मधुरता आती है एवं शरीर में स्फूर्ति का संचार होता है। तनाव नष्ट हो जाती है । तनाव का लोप होने से यह रक्तचाप को कम करता है और हृदय के स्वास्थ्य को बढ़ाता है। विक्षिप्तता, डायबिटीज जैसे समस्या से मुक्ति मिलती है। सुसुप्त शक्तियां जागृत होती हैं। आत्मिक बल बढ़ता है।
भारतीय विद्या में माना गया है कि हमारे सिर की खोपड़ी में स्थित मस्तिष्क में कई अंग व दिमाग योगासन व व्यायाम द्वारा खिंचाव में नहीं लाए जा सकते। सिर्फ ओम के उच्चारण द्वारा दिमाग के दोनों अर्द्धगोल प्रभावित होते हैं एवं उनमें कंपन व तरंग उत्पन्न होता है जो मस्तिष्क में कैल्शियम कार्बोनेट का जमाव हटाकर दिमाग को साफ़ रखता है।
अब प्रश्न उठता है कि क्या कोई अन्य शब्द यह शांति और ऊर्जा प्रदान करती? तो इसका जवाब है - नहीं, ॐ के अलावा ऐसी कोई शब्द या ध्वनी नहीं है जो इतना शुद्ध एवं प्राकृतिक है। धरती के घूर्णन से भी यही ध्वनि निकलती है। अंतरिक्ष के निर्वात में भी इसी ध्वनि का कंपन है। साथ हीं अगर आंख, कान, मुंह आदि सारे अंगों को बंद कर ध्यानिस्थ हुआ जाए तो शरीर के भीतर ओम् की ध्वनि स्पष्ट रुप से सुनी जा सकती है।
चूंकि ओम प्राकृतिक है, एकदम शुद्ध है, अतः यह शांति के बेहद करीब है। शेष ध्वनियों पर अन्य दबाव के कारण वो शुद्ध नहीं रह पातीं, अत: शांति दे पाने में असफल रहती है। इसलिए ओम् का जाप करते हैं।
अब फिर एक पश्न उत्पन्न होता है कि वो कौन से कारण हैं जिससे ओम् एकदम शुद्ध है और बाकी शब्द या ध्वनी इतने निर्दोष (Pure) नहीं?
इसके लिए ॐ का उच्चारण कैसे होता है यह समझना होगा - यह तीन अक्षरों से बना है। अ, उ एवं म् । अ का उच्चारण स्नायु से शुरू होकर इसका स्पंदन (कंपन) छाती में जाता है। फिर दूसरा अक्षर उ ध्वनि गले में ऊपर जाता है । अब ध्वनि ऊपरी तालु के साथ आगे बढ़ती है। उ के उच्चारण से शरीर के मध्य भाग में कंपन होता है। इससे आपके सीने , फेफड़ों और पेट पर बहुत अच्छा असर पड़ता है। जब म का उच्चारण शुरू होता है तो मुर्धा से होती हुई ध्वनि दोनों ओष्ठ के सटने पर अंत होती है। म् का उच्चारण जितना लंबा हो सके उतना हीं फायदेमंद होता है। अपने समापन पर म् शांति में मिल जाती है। म ध्वनि से मस्तिस्क में कंपन होता है। इससे दिमाग की सारी नसें खुल जाती हैं। शरीर के महत्वपूर्ण ऑर्गेंस इन्हीं दोनों हिस्सों में होते हैं। यह आपकी स्मरण शक्ति और ध्यान लगाने की क्षमता को बढ़ाता है।
ओम नेचुरल साउंड है। इसके उच्चारण में किसी अन्य मुख के अंग के सहयोग की आवश्यकता नहीं पड़ती जैसी आवश्यकता कवर्ग, पवर्ग जैसे समूहों को पड़ती है। शेष ध्वनियों के उच्चारण में हमारे मुख के अंग अलग-अलग एंगिल से, अलग अलग टाइमिंग से अंदर से आने वाली हवा की आकार (shape) को बदल देते हैं। तब जाकर अलग-अलग शब्द बनते हैं। भाषा विज्ञान में इन विषयों को स्नातक स्तर पर विस्तार से पढ़ाया जाता है। ओम नेचुरल साउंड है। इसके उच्चारण में कोई टकराव नहीं होता। कोई संपर्क नहीं होता। एकदम शुद्ध, बिना किसी मिलावट या रुपांतर के। संसार में जितने भी मनुष्य हैं चाहे वह किसी भी हिस्से के हो, किसी भी देश के हो, उनके शरीर से गले से जो स्वाभाविक ध्वनि निकलती है वह ओम होती है। इसे इंग्लिश में कोर साउंड (Core Sound) भी कह सकते हैं । बाकी के सारे वर्ण जो हम उच्चरित करते हैं वह मूल रूप में नहीं रहती। हमारे मुख विवर के अनुसार परिवर्तित होते रहती है। जैसे पितृ शब्द का पीदर और फिर फादर के रूप में परिवर्तन। सिर्फ ओम हीं अपरिवर्तित होती है। आप इसे ऐसे समझ सकते हैं कि ओम कच्ची मिट्टी है एवं बाकी शब्द इस कच्ची मिट्टी से विभिन्न आकार में गढ़े गए आकृतियां हैं जिनका हमारे ओंठ, तालु, कंठ, जिह्वा के संयोग से रूप परिवर्तन होता है।
आप सब जानते हैं कि मानसिक स्वास्थ्य का आपके शरीर के रोग प्रतिरोधक क्षमता से सीधा संबंध है। आप मानसिक रूप से जितना मजबूत होंगे, उतना हीं आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होगी। अतः यह बहुत आवश्यक है कि कुछ समय निकाल कर, पांच मिनट, सात मिनट, दस मिनट आप ध्यान लगाएं। ईश्वर की आराधना करें। ईश्वर में लगाया गया यह ध्यान आपको मानसिक शक्ति प्रदान करेगी जो आपके मानसिक स्वास्थ्य को सबल बनाए रखेगी और आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाए रहेगी।
ओ३म् के उच्चारण के शारीरिक लाभ इस प्रकार हैं-
1. अनेक बार ओ३म् का उच्चारण करने से पूरा शरीर तनावरहित हो जाता है। कारण श्वसन चक्र सुधरता है, मस्तिष्क को ऊर्जा मिलती है एवं तरोताजा हो जाता है।
2. अगर आपको घबराहट या अधीरता होती है तो ओ३म् के उच्चारण से उत्तम कुछ भी नहीं।
3. यह शरीर के विषैले तत्त्वों को दूर करता है, अर्थात तनाव के कारण पैदा होने वाले द्रव्यों पर नियंत्रण करता है।
4. यह हृदय और खून के प्रवाह को संतुलित रखता है।
5. इससे पाचन शक्ति तेज होती है।
6. इससे शरीर में फिर से युवावस्था वाली स्फूर्ति का संचार होता है।
7. थकान से राहत देती है।
8. नींद न आने की समस्या इससे कुछ ही समय में दूर हो जाती है। रात को सोते समय नींद आने तक मन में इसको करने से निश्चित नींद आयेगी।
9 कुछ विशेष प्राणायाम के साथ इसे करने से फेफड़ों में मजबूती आती है।
प्रतीकात्मक रूप से और शारीरिक रूप से ओम का जप हमें उस ध्वनि में पिरो देता है एवं ब्रह्मांड की हर चीज के लिए हमारे संबंध को स्वीकार करता है। ओम आध्यात्मिक रुप से निम्न का प्रतीक है -
1. तीन दिव्य शक्ति - सृजन (ब्रह्मा), संरक्षण (विष्णु) और परिवर्तन (महेश)।
2. आत्मा के तीन जगत - अतीत, वर्तमान और भविष्य।
3. आत्मा के तीन निबंध - अमरता, सर्वज्ञता और आनंद।
4. अवस्था के तीन रूप - अ यानि जागने की अवस्था, उ यानि स्वप्न की अवस्था, म यानि स्वप्नहीन अवस्था।
5. ब्रह्मलीन रूप में अ का अर्थ है उत्पन्न करना, उ का मतलब है उठाना और म का अर्थ है मौन रहना। यानि जब यह तीनों शब्द मिलते हैं तो साधक ब्रह्मलीन हो जाता है।
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