Sacred Principles of Shivling
पुरुष इलेक्ट्रॉन है एवं स्त्री या प्रकृति प्रोटॉन है
न्यूट्रॉन केंद्र में होकर उदासीन है। अक्रिय। अक्रिय चूंकि यह माया यानि कार्य-कारण से परे है। जो कार्य-कारण से परे हो वही सर्वशक्तिमान है, वही सृष्टि का कारण है। आप इसे सामान्य भाषा में ईश्वर कहिए
एटम में 3 पार्ट होते हैं, इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन। पुरुष इलेक्ट्रॉन है एवं स्त्री या प्रकृति प्रोटॉन है। इलेक्ट्रॉन यानि पुरुष की प्रवृत्ति गमन अथवा चंचलता की होती है। प्रोटॉन यानि प्रकृति की प्रवृत्ति स्थिर होती है। यह माया है, इसमें आकर्षण है, दूसरों को खिंचने की शक्ति। अतः गमन या चंचलता का कारण है। खुद चंचल नहीं है। प्रोटॉन यानि प्रकृति इलेक्ट्रॉन यानि पुरुष से ज्यादा शक्तिशाली होती है। प्रोटॉन कभी नहीं टूटेगा हमेशा इलेक्ट्रॉन हीं टूटेगा। सनातन सभ्यता में इसीलिए महाकाली को सर्वशक्तिमान माना गया है। शिव विष्णु जो पुरुष तत्व है यानी इलेक्ट्रॉन है उनसे ज्यादा ताकतवर। परमाणु के नाभि में प्रोटॉन एवं न्यूट्रॉन रहता है, इलेक्ट्रॉन बाहरी कक्षा में रहता है। समाज में आप देखेंगे कि स्वाभाविक रूप से पुरुष के ऊपर बाहर की हीं जिम्मेदारी होती है एवं केंद्र यानि घर की जिम्मेदारी स्त्री की होती है। न्यूट्रॉन केंद्र में होकर उदासीन है। अक्रिय। अक्रिय चूंकि यह माया यानि कार्य-कारण से परे है। जो कार्य-कारण से परे हो वही सर्वशक्तिमान है, वही सृष्टि का कारण है। आप इसे सामान्य भाषा में ईश्वर कहिए जो अपने आप में अमूर्त है और तीनों (न्यूट्रॉन, प्रोटॉन और इलेक्ट्रॉन) के साथ मूर्त रूप है। सनातन धर्म में शिवलिंग एवं ओम् परमाणु के इसी संरचना रहस्य को समझाते हैं। शिवलिंग में अरधा (प्रोटॉन) में लिंग (इलेक्ट्रॉन) का गमन होता है संतृप्ति के लिए। जहां न्यूट्रॉन इस संतृप्ति का प्रेरणा बन बैठा है। अक्रिय सहभागिता के साथ। शिवलिंग की पूजा का विधान ऋषियों ने इस आण्विक व्यवस्था को सरल रुप में समझने एवं सृष्टि प्रक्रिया को जन-मानस के जेहन में डालने के लिए किया है। ओम् के उच्चारण में भी इसी आण्विक प्रक्रिया को नाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। अ इलेक्ट्रॉन है। उ प्रोटॉन है एवं म् न्यूट्रॉन है जो अ, उ का लयीकरण है। समवेत ॐ है। यह संसार।
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