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अक्षयतृतीया व्रत

Akshayatritiya Vrat

अक्षयतृतीया व्रत Akshayatritiya

अक्षयतृतीया व्रत

वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया को अक्षय तृतीया व्रत मनाया जाता है। मान्यता है कि अक्षय तृतीया पर मां लक्ष्मी की पूजा करने से आय - धन आगमन, सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही साधक पर मां लक्ष्मी की कृपा बरसती है। इसी तिथि को नर-नारायण, परशुराम और हयग्रीव अवतार अवतरित हुए थे; इसलिये इस दिन उनकी जयन्ती मनायी जाती है तथा इसी दिन त्रेतायुग भी आरम्भ हुआ था। इसी दिन से बद्रीनाथ के कपाट भी खुलते हैं और इसी दिन वृंदावन में भगवान बांके बिहारी के चरणों के दर्शन होते हैं। अत: अक्षय तृतीया इन कारणों से बहुत हीं पवित्र दिन है और इस दिन किये हुए दान और पवित्र नदियों में किये हुए स्नान, जप, होम आदि सभी कर्मों का पुण्य फल अनन्त होता है, अर्थात सभी अक्षय हो जाते हैं। इसी से इसका नाम अक्षया हुआ है और इस दिन को अक्षय तृतीया कहते हैं।

अक्षय तृतीया शुभ मुहूर्त -

इस बार अक्षय तृतीया 10 मई, शुक्रवार को मनाई जाएगी। तृतीया तिथि की शुरुआत इस बार 10 मई को सुबह 4 बजकर 17 मिनट पर होगी और समापन 11 मई को रात 2 बजकर 50 मिनट पर होगा।

अक्षय तृतीया खरीदारी का मुहूर्त -

अक्षय तृतीया का पूजन मुहूर्त 10 मई को सुबह 5 बजकर 33 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 18 मिनट तक रहेगा। इस मुहूर्त में आप सोना या चांदी की खरीदारी कर सकते हैं।

अक्षय तृतीया मुहूर्त विधान -

इसी दिन त्रेतायुग का आरम्भ एवं नर-नारायण तथा हनुमान जी के हयग्रीव अवतार का अवतरण मध्याह्रव्यापिनी (सूर्योदय के बाद 7वें मुहूर्त से लेकर 9वें मुहूर्त तक का काल मध्याह्न काल कहलाता है) था, अतएव इसे मध्याह्रव्यापिनी ग्रहण करना चाहिये। परंतु परशुरामजी प्रदोष- काल में प्रकट हुए थे; इसलिये यदि द्वितीया को मध्याह्न से पहले तृतीया आ जाय तो उस दिन अक्षयतृतीया, नर-नारायण-जयन्ती, परशुराम जयन्ती और हयग्रीव-जयन्ती सब सम्पन्न की जा सकती हैं और यदि द्वितीया अधिक हो तो परशुराम जयन्ती दूसरे दिन होती है। यदि इस दिन गौरीव्रत भी हो तो 'गौरी विनायकोपेता' के अनुसार गौरीपुत्र गणेश की तिथि चतुर्थी का सहयोग अधिक शुभ होता है। अक्षयतृतीया बड़ी पवित्र और महान् फल देनेवाली तिथि है। इसलिये इस दिन सफलता की आशा से व्रतोत्सवादि के अतिरिक्त वस्त्र, शस्त्र और आभूषणादि बनवाये अथवा धारण किये जाते हैं तथा नवीन स्थान, संस्था एवं समाज आदि का स्थापन या उद्घाटन भी किया जाता है। ज्योतिषी लोग आगामी वर्ष की तेजी-मंदी जानने के लिये इस दिन सब प्रकार के अन्न, वस्त्र आदि व्यावहारिक वस्तुओं और व्यक्तिविशेषों के नामों को तौलकर एक सुपूजित स्थान में रखते हैं और दूसरे दिन फिर तौलकर उनकी न्यूनाधिकता से भविष्य का शुभाशुभ मालूम करते हैं।

अक्षयतृतीया में तृतीया तिथि, सोमवार और रोहिणी नक्षत्र ये तीनों हों तो बहुत श्रेष्ठ माना जाता है। किसान लोग उस दिन चन्द्रमा के अस्त होते समय रोहिणी का आगे जाना अच्छा और पीछे रह जाना बुरा मानते हैं।

अक्षयतृतीया व्रत विधान -

व्रती प्रात:काल उठकर स्नान करने के बाद पीले रंग के वस्त्र धारण करे। फिर निम्न संकल्प करे -

ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः । ॐ अद्य ब्रह्मणो द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे बौद्धावतारे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे - (अपने नगर/गांव का नाम लें) - नगरे/ ग्रामे विक्रम संवत 2081 पिंगल नाम संवत्सरे वैशाख मासे शुक्ल पक्षे तृतीया तिथौ ... वासरे (दिन का नाम जैसे शुक्रवार है तो "शुक्र वासरे ")..(अपने गोत्र का नाम लें) ... गोत्रोत्पन्न ... (अपना नाम लें)... शर्मा / वर्मा / गुप्तोऽहम् ममाखिलपापक्षय-पूर्वकसकलशुभफलप्राप्तये भगवत्प्रीतिकामनया देवत्रयपूजनमहं करिष्ये।

ऐसा संकल्प करके भगवान्‌ का यथाविधि षोडशोपचार से पूजन करे।

एक वेदी पर पीला कपड़ा बिछाएं। चौकी पर मां लक्ष्मी, भगवान विष्णु, गणेश जी और कुबेर देव की प्रतिमा स्थापित करें।

विष्णु जी की मूर्ति को गंगाजल या पञ्चामृत से स्नान कराएं और तुलसी, पीले फूलों की माला या सिर्फ पीले फूल चढ़ाएं। इसके बाद धूप और घी की बाती का दीपक जलाएं। नैवेद्य में नर-नारायणके निमित्त सेके हुए जौ या गेहुँ का 'सत्तू', परशुरामके निमित्त कोमल ककड़ी और हयग्रीव के निमित्त भीगी हुई चने की दाल अर्पण करे। माता लक्ष्मी को नवैद्य में मखाना अवश्य चढ़ाएं। इसके बाद पीले आसन पर बैठकर कनकधारा स्तोत्र, विष्णु सहस्रनाम, विष्णु चालीसा, लक्ष्मी चालीसा आदि का पाठ करें।

इसके साथ ही जौ, गेहूँ, चने, सत्तू, दही-चावल ईख के रस और दूध के बने हुए खाद्य पदार्थ (खाँड़, मावा, मिठाई आदि) तथा सुवर्ण एवं जलपूर्ण कलश, धर्मघट, अन्न, सब प्रकार के रस और ग्रीष्म ऋतु के उपयोगी वस्तुओंका दान करे तथा पितृश्राद्ध करे और ब्राह्मणभोजन भी करावें । यह सब यथाशक्ति करनेसे अनन्त फल होता है।

अक्षय तृतीया व्रत कथा -

अक्षय तृतीया की एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक धर्मदास नामक वैश्य था। धर्मदास अपने परिवार के साथ एक छोटे से गाँव में रहता था। वह बहुत ही गरीब था। वह हमेशा अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए चिंतित रहता था। उसके परिवार में कई सदस्य थे। धर्मदास बहुत धार्मिक पृव्रत्ति का व्यक्ति था उसका सदाचार तथा देव एवं ब्राह्मणों के प्रति उसकी श्रद्धा अत्यधिक प्रसिद्ध थी।
अक्षय तृतीया व्रत के महात्म्य को सुनने के पश्चात उसने अक्षय तृतीया पर्व के आने पर सुबह जल्दी उठकर गंगा में स्नान करके विधिपूर्वक देवी-देवताओं की पूजा की, व्रत के दिन सामर्थ्यानुसार जल से भरे घड़े, पंखे, जौ, सत्तू, चावल, नमक, गेंहू, गुड़, घी, दही, सोना तथा वस्त्र आदि वस्तुएँ भगवान के चरणों में रख कर ब्राह्मणों को अर्पित की।

यह सब दान देखकर धर्मदास के परिवार वाले तथा उसकी पत्नी ने उसे रोकने की कोशिश की। उन्होने कहा कि अगर धर्मदास इतना सब कुछ दान में दे देगा, तो उसके परिवार का पालन-पोषण कैसे होगा। फिर भी धर्मदास अपने दान और पुण्य कर्म से विचलित नहीं हुआ और उसने ब्राह्मणों को कई प्रकार का दान दिया। उसके जीवन में जब भी अक्षय तृतीया का पावन पर्व आया, प्रत्येक बार धर्मदास ने विधि से इस दिन पूजा एवं दान आदि कर्म किया।

अनेक रोगों से ग्रस्त तथा वृद्ध होने के उपरांत भी उसने उपवास करके धर्म-कर्म और दान पुण्य किया। यही वैश्य दूसरे अगले जन्म में कुशावती का राजा हुए।

मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन किए गए दान-पुण्य व पूजन के कारण वह अपने अगले जन्म में बहुत धनी एवं प्रतापी राजा बना। वह इतना धनी और प्रतापी राजा था कि त्रिदेव तक उसके दरबार में अक्षय तृतीया के दिन ब्राह्मण का वेष धारण करके उसके महायज्ञ में शामिल होते थे।

अपनी श्रद्धा और भक्ति का उसे कभी घमंड नहीं हुआ, वह प्रतापी राजा महान एवं वैभवशाली होने के बावजूद भी धर्म मार्ग से कभी विचलित नहीं हुआ। माना जाता है कि यही राजा आगे के जन्मों में भारत के प्रसिद्ध सम्राट चंद्रगुप्त के रूप में पैदा हुए थे।

जैसे भगवान ने धर्मदास पर अपनी कृपा की वैसे ही जो भी व्यक्ति इस अक्षय तृतीया की कथा का महत्त्व सुनता है और विधि विधान से पूजा एवं दान आदि करता है, उसे अक्षय पुण्य एवं यश की प्राप्ति होती है।

वैशाख गौरी व्रत

गौरीपूजा - यह भी वैशाख शुक्ल तृतीया को ही की जाती है। इस दिन पार्वती का प्रीतिपूर्वक पूजन करके धातु या मिट्टी के कलश में जल, फल, पुष्प, गन्ध, तिल और अन्न भरकर 'एष धर्मघटो दत्तो ब्रह्मविष्णु- शिवात्मकः । अस्य प्रदानात्सकला मम सन्तु मनोरथाः ।।' यह उच्चारण करके उसे दान करे।

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