धिक्कार
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धिक्कार
गोकुल-खैर, यह वह जाने या तुम जानो । वह तुमसे विवाह करना चाहता है। वैदिक रीति से विवाह होगा । तुम्हें स्वीकार है ?
मानी की गर्दन शर्म से झुक गई । वह कुछ जवाब न दे सकी ।
गोकुल ने फिर कहा-दादा और अम्मां से यह बात नहीं कही गई, इसका कारण तुम जानती ही हो । वह तुम्हें घुड़कियां दे-देकर जला-जलाकर चाहे मार डालें, पर विवाह करने की सम्मति कभी नह देंगे। इससे उनकी नाक कट जाऐगी, इसलिए अब इसका निर्णय तुम्हारे ही ऊपर है । मैं तो समझता हूं, तुम्हें स्वीकार कर लेना चाहिए । इंद्रनाथ तुमसे प्रेम करता ही हैं, यों भी निष्कलंक चरित्र आदमी और बला का दिलेर है 1 भय तो उसे छू ही नहीं गया । तुम्हें सुखी देखकर मुझे सच्चा आन्नद होगा ।
मानी के हदय में एक वेग उठ रहा था, मगर मुंह से आवाज न निकली ।
गोकुल ने अबी खीझकर कहा-देखो मानी, यह चुप रहने का समय नहीं है । क्या सोचती हो ?मानी ने कांपते स्वर में कहा-हां ।
गोकुल के हदय का बोझ हल्का हो गया । मुस्काने लगा । मानी शर्म के मारे वहा भाग गई ।
5
शाम को गोकुल ने अपनी मां से कहा-अम्मा, इंद्रनाथ्ंा के घर आज कोइ उत्सव है । उसकी माता अकेली घबड़ा रही थी कि कैसे सब काम होगा, मैंने कहा, मैं मानी को कल भेज दूंगा । तुम्हारी आज्ञा हो, तो मानी का पहुंचा दूँ। कल-परसों तक चली आयेगी।
मानी उसी वक्त वहां आ गई, गोकुल ने उसकी ओर कनखियों से ताका । मानी लज्जा से गड़ गई । भागने का रास्ता न मिला ।
मां ने कहा-मुझसे क्या पूछती हो, वह जाय, ले जाओ ।
गोकुल ने मानी से कहा-कपड़े पहनकर तैयार हो जाओ, तुम्हें इंद्रनाथ के घर चलना है ।
मानी ने आपत्ति की-मेरा जी अच्छा नहीं है, मैं न जाऊंगी।
गोकुल की मां ने कहा-चली क्यों नहीं जाती, क्या वहां कोई पहाड़ खोदना है?
मानी एक सफेद साड़ी पहनकर तांगे पर बैठी, तो उसका हदय कांप रहा था और बार-बार आंखों में आंसू भर आते थे । उकसा हदय बैठा जाता था, मानों नदी में डुबन जा रही हो।
तांगा कुछ दुर निकल गया तो उसने गोकुल से कहा-भैया, मेरा जी न जाने कैस हो रहा है । घर चलो, तुम्हारे पैर पड़ती ।
गोकुल ने कहा-तू पागल है । वहां सब लोग तेरी राह देख रहे हैं और तू कहती है लौट चलो ।
मानी-मेरा मन कहता है, कोई अनिष्ट होने वाला है ।
गोकुल-और मेरा मन कहता है तू रानी बनने जा रही है ।
मानी-दस-पांच दिन ठहर क्यों नहीं जाते ? कह देना, मानी बीमार है।
गोकुल-पागलों की-सी बातें न करो ।
मानी-लोग कितना-हंसेंगे ।
गोकुल-मैं शुभ कार्य कें किसी की हॅसी की परवाह नहीं करता ।
मानी-अम्मॉ तुम्हें घर में घुसने न देंगी । मेरे कारण तुम्हें भी झिड़कियॉ मिलेंगी ।
गोकुल-इसकी कोई परवाह नहीं है । उसकी तो यह आदत ही है ।
तॉंगा पहुंच गया । इंद्रनाथ की माता विचारशील महिला थीं । उन्होंन आकर वधू को उतारा और भीतर ले गयीं ।
6
गोकुल वहां से घर चला तो ग्यारह बज रहे थे । एक ओर तो शुभ कार्य के पूरा करने का आनंद था, दूसरी ओर भय था कि कल मानी न जाएगी, तो लोगों को क्या जवाब दूंगा । उसने निश्चय किया, चलकर साफ-साफ कह दूं। छिपाना व्यर्थ है । आज नहीं कल, कल नहीं परसों तो सब-कुछ कहना ही पड़ेगा । आज ही क्यों न कह दूं ।
यह निश्चय करके घर में दाखिल हुआ ।
माता ने किवाड़ खोलते हुए कहा-इतनी रात तक क्या करने लगे ? उसे भी क्यों न लेते आये ? कल सवेरे चौका-बर्तन कौन करेगा ?
गोकुल ने सिर झुकाकर कहा-वह तो अब शायद लोटकर न आये अम्मा, उसके वहीं रहने का प्रबंध हो गया है।
माता ने आंखे फाड़कर कहा-क्या बकता है, भला वह वहां कैसे रहेगी?
गोकुल-इंद्रनाथ से उसका विवाह हो गया है ।
माता मानो आकाश से गिर पड़ी । उन्हें कुछ सुध न रही कि मेंरे मुंह से क्या निकल रहा है, कुलांगार, भड़वा, हरामजादा, न जाने क्या-क्या कहा । यहां तक कि गोकुल का धैर्य चरमसीमा का उल्लंघन कर गया । उसका मुंह लाल हो गया, त्योरियॉ चढ़ गई, बोला-अम्मा, बस करो। अब, मुझमें इससे ज्यादा सुनने की सामर्थ्य नहीं है । अगर मैंन कोई अनुचित कर्म किया होता, तो अपकी जूतियां खकार भी सिर न उठाता, मगर मैंने कोई अनुचित कर्म नहीं किया । मैंने वही किया जो ऐसी दशा में मेंरा कर्तव्य था और जो हर एक भले आदमी का करना चाहिए । तुम मूर्खा हो, तुम्हें नहीं मालूम कि समय की क्या प्रगति । इसीलिए अब तक मैनें धैर्य के साथ् तुम्हारी गालियॉ सुनी । तुमने, और मुझे दु:ख के साथ कहना पड़ता है कि पिताजी ने भी, मानी के जीवन का नारकीय बना रखा था । तुमने उसे ऐसी-ऐसी ताड़नाऍ दीं, जो कोई अपने शत्रु को भी न देगा । इसीलिए न कि वह तुम्हारी आश्रित थी ? इसी लिए न कि वह अनाथिन थी ? अब वह तुम्हारी गालियॉ खाने न आएगी । जिस दिन तुम्हारे घर विवाह का उत्सव हो रहा था, तुम्हारे ही एक कठोर वाक्य से आहत होकर वह आत्महत्या करने जा रही थी। इंद्रनाथ उस समय ऊपर न पहुंच जाते तो आज हम, तुम, सारा घर हवालात में बैठा होता ।
माता ने आंखे मटकाकर कहा-आहा । कितने सपूत बेटे हो तुम, कि सारे घर को संकट से बचा लिया । क्यों न हो ? अभी बहन की बारी है । कुछ दिन में मुझे ले जाकर किसी के गले में बांध आना । फिर तुम्हारी चांदी हो जायेगी । यह रोजगार सबसे अच्छा है । पढ़ लिखकर क्या करोगे ?
गोकुल मर्म-वेदना से तिलमिला उठा । व्यथित कंठ से बोला-ईश्वर न करे कि कोई बालक तुम जैसी माता के गर्भ से जन्म ले । तुम्हारा मुंह देखना भी पाप है ।
यह कहता हुआ वह घर से निकल पड़ा और उन्मत्तों की तरह एक तरफ चल खड़ा हुआ । जोर से झोंके चल रहे थे, पर उसे ऐसा मालूम हो रहा था कि सॉस लेने के लिए हवा नहीं है ।
7
एक सप्ताह बीत गया पर गोकुल का कहीं पता नहीं। इंद्रनाथ को बम्बई में एक जगह मिल गई थी। वह वहां चला गया था। वहां रहने का प्रबंध करके वह अपनी माता को तार देगा और तब सास और बहू चली जाऍगी । वंशीधर को पहले संदेह हुआ कि गोकुल इंद्रनाथ के घर छिपा होगा, पर जब वहां पता न चला तो उन्होंने सारे शहर में खोज-पूछ शुरू की। जितन मिलने वाले, मित्र, स्नेही, सम्बन्धी थे, सभी के घर गये, पर सब जगह से साफ जवाब पाया । दिन-भर दौड़-धूप कर शाम को घर आते, तो स्त्री के आड़े हाथों लेते-और कोसो लड़के को, पानी पी-पीकर कोसो । न जाने तुम्हें कभी बुद्धि आयेगी भी या नहीं । गयी थी चुड़ैल, जाने देती । एक बोझ सिर से टला । एक महरी रख लो, काम चल जाएगा । जब वह न थी, तो घर क्या भूखों मरता था ? विधवाओं के पुनर्विवाह चारों ओर तो हो रहे हैं, यह कोई अनहोनी बात नहीं है । हमारे बस की बात होती, तो विधवा-विवाह के पक्षपातियों को देश से निकाल देते, शाप देकर जला देते, लेकिन यह हमारे बस की बात नहीं । फिर तुमसे इतनी भी न हो सका कि मुझसे तो पूछ लेतीं । मैं जो उचित समझता, करता । क्या तुमने समझा था, मैं दप्तर से लौटकर आऊंगा ही नहीं, वहीं अत्येषिट हो जाएगी ? बस, लड़के पर टूट पड़ी। अब रोओ, खूब दिल खोलकर।
संध्या हो गई थी। वंशीधर स्त्री को फटकारें सुनाकर द्वार पर उद्वेग की दशा में टहल रहे थे। रह-रहकर मानी पर क्रोध आता था। इसी राक्षसी के कसरण मेरे घर का सर्वनाश हुआ 1 न जाने किस बुरी साइत में आयी कि घर को मिटाकर छोड़ा । वह न आयी होती, तो आज क्यों यह बुरे दिन देखने पड़ते । कितना होनहार, कितना प्रतिभाशाली लड़का था । न जाने कहां गया ?
एकाएक एक बुढिया उनके समीप आयी और बोली-बाबू साहब, यह खत लायी हूं, ले लीजिए ।
वंशीधर ने लपककर बुढिया के हाथ से पत्र ले लिया, उनकी छाती आशा से धक-धक करने लगी । गोकुल ने शायद यह पत्र लिखा होगा । अंधेरे में कुछ ने सुझा । पूछा-कहॉ से आयी है ?
बुढिया ने कहा-वह जो बाबू हुसनेगंज में रहते हैं, जो बम्बई में नौकर हैं, उन्हीं की बहु ने भेजा है ।
वंशीधर ने कमरे में जाकर लैम्प जलाया और पत्र पढ़ने लगे । मानी का खत था लिखा था ।
‘पूज्य चाचाजी, आभागिनी मानी का प्रणाम स्वीकार कीजिए ।
मुझे यह सुनकर अत्यन्त दु:ख हुआ कि गोकुल भैया कहीं चले गए और अब तक उनका पता नहीं है । मैं ही इसका कारण हूं । यह कलंक मेरे ही मुख पर लगना था वह भी लग गया । मेरे कारण आपको इतना शोक हुआ, इसका मुझे बहुत दु:ख है, मगर भैया आएंगे अवश्य, इसका मुझे विश्वास है । मैं भी नौ बजे वाली गाड़ी से बम्बई जा रही हूं । मुझझे जो कुछ अपराध हुआ है, उसे क्षमा कीजिएगा और चाची से मेरा प्रणाम कहिएगा। मेरी ईश्वर से यही प्रार्थना है कि शीघ्र ही गोकुल भैया सकुशल घर लौट आयें । ईश्वर की अच्छा हुई तो भैया के विवाह में आपके चरणों के दर्शन करूंगी ।
वंशीधर न पत्र को फाड़कर पुर्जे-पुर्जे कर डाला । घड़ी में देखा तो आठ बज रहे थे । तुरन्त कपड़े पहने, सड़क पर आकर एक्का किया और स्टेशन चले ।
8
बम्बई मेल प्लेटफार्म पर खड़ा था । मुसाफिरों में भगदड़ मची हुई थी। खोमचे वालों की चीख-पुकार से कान पड़ी आवाज न सुनाई देती थी। गाड़ी छूटने में थोड़ी ही देर थी मानी और उसकी सास एक जनाने कमरे में बैठी हुई थी । मानी सजल नेत्रों से सामने ताक रही थी । अतीत चाहे दुख:द ही क्यों न हो, उसकी स्मतियॉ मधुर होती हैं । मानी आज बुरे दिनों को स्मरण करके दु:खी हो रही थी । गोकुल से अब न जाने कब भेंट होगी। चाचाजी आ जाते तो उनके दर्शन कर लेती । कभी-कभी बिगड़ते थे तो क्या, उसके भले ही के लिए तो डांटते थे । वह आवेंगे नहीं । अब तो गाड़ी छूटने में थोड़ी ही देर है । कैसे आऍ, समाज में हलचल न मच जाएगी । भगवान की इच्छा होगी, तो अबकी जब यहॉ आऊंगी, तो जरूर उनके दर्शन करूंगी ।
एकाएक उसने लाला वंशीधर को आते देखा । वह गाड़ी से निकलकर बाहर खड़ी हो गई और चाचाजी की ओर बढ़ी । चरणों पर गिरना चाहती थी कि वह पीछे हट गए और ऑखे निकालकर बोले-मुझे मत छू, दूर रह, अभगिनी कहीं की । मुंह की कालिख लगाकर मुझे पत्र लिखती है । तुझे मौत नहीं आती । तूने मेरे कुल का सर्वनाश कर दिया 1 आज तक गोकुल का पता नहीं है । तेरे कारण वह घर से निकला और तू अभी तक मेरी छाती पर मूंग दलने को बैठी है । तेरे लिए क्या गंगा में पानी नहीं है ? मैं तुझे कुलटा, ऐसी हरजाई समझता, तो पहले दिन तेरा गला घोंट देता । अब मुझे अपनी भक्ति दिखलाने चली है । तेरे जैसी पापिष्ठाओं का मरना ही अच्छा है, पथ्वी का बोझ कम हो जाएगा ।
प्लेटफार्म पर सैकड़ो आदमियों की भीड़ लग गई थी और वंशीधर निर्लज्ज भाव से गालियों की बौछार कर रहे थे । किसी की समझ में न आता था, क्या माजरा है, पर मन से सब लाला को धिक्कार रहे थे ।
मानी पाषाण-मूर्ति के सामान खड़ी थी, मानो वहीं जम गई हो । उसका सारा अभिमान चूर-चूर हो गया । ऐसा जी चाहता था, धरती फट जाए और मैं समा जाऊं, कोई वज्र गिरकर उसके जीवन-अधम जीवन-का अन्त कर दे । इतने आदमियों के सामने उसका पानी उतर गया 1 उसी आंखों से पानी की एक बूंद भी न निकला । हदय में ऑसू न थे । उसकी जग एक दावनल-सा दहक रहा था, जो मानो वेग से मस्तिष्क की ओर बढ़ता चला जाता था । संसार में कौन जीवन इतना अधम होगा ।
सास ने पुकारा-बहू, अन्दर आ जाओ ।
9
गाड़ी चली तो माता ने कहा-ऐसा बेशर्म आदमी नहीं देखा । मुझे तो ऐसा क्रोध आ रहा था कि उसका मुंह नोच लूं ।
मानी ने सिर ऊपर न उठाया ।
माता फिर बोली-न जाने इन सडियलों को बुद्धि कब आएगी, अब तो मरने के दिन भी आ गए । पूछो, तेरा लड़का भाग तो हम क्या करें; अगर ऐसे पापी ने होते तो यह वज्र क्यों गिरता ।
मानी ने फिर भी मुंह न खोला । शायद उसे कुछ सुनाई ही न दिया था। शायद उसे अपने असित्तव का ज्ञान भी न था । वह टकटकी लगाए खिड़की की ओर ताक रही थी । उस अंधकार में जाने क्या सूझ रहा था ।
कानपुर आया । माता ने पूछ-बेटी, कुछ खाओगी ? थोड़ी-सी मिठाई खा लो; दस कब के बज गए ।
मानी ने कहा-अभी तो भूख नहीं है अम्मा, फिर खा लूंगी ।
माताजी सोई। मानी भी लेटी; पर चचा की वह सूरत आंखों के सामने खड़ी थी और उनकी बातें कानों में गूंज रही थीं-आह, मैं इतनी नीच हूं, ऐसी
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गोकुल-खैर, यह वह जाने या तुम जानो । वह तुमसे विवाह करना चाहता है। वैदिक रीति से विवाह होगा । तुम्हें स्वीकार है ?
मानी की गर्दन शर्म से झुक गई । वह कुछ जवाब न दे सकी ।
गोकुल ने फिर कहा-दादा और अम्मां से यह बात नहीं कही गई, इसका कारण तुम जानती ही हो । वह तुम्हें घुड़कियां दे-देकर जला-जलाकर चाहे मार डालें, पर विवाह करने की सम्मति कभी नह देंगे। इससे उनकी नाक कट जाऐगी, इसलिए अब इसका निर्णय तुम्हारे ही ऊपर है । मैं तो समझता हूं, तुम्हें स्वीकार कर लेना चाहिए । इंद्रनाथ तुमसे प्रेम करता ही हैं, यों भी निष्कलंक चरित्र आदमी और बला का दिलेर है 1 भय तो उसे छू ही नहीं गया । तुम्हें सुखी देखकर मुझे सच्चा आन्नद होगा ।
मानी के हदय में एक वेग उठ रहा था, मगर मुंह से आवाज न निकली ।
गोकुल ने अबी खीझकर कहा-देखो मानी, यह चुप रहने का समय नहीं है । क्या सोचती हो ?मानी ने कांपते स्वर में कहा-हां ।
गोकुल के हदय का बोझ हल्का हो गया । मुस्काने लगा । मानी शर्म के मारे वहा भाग गई ।
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शाम को गोकुल ने अपनी मां से कहा-अम्मा, इंद्रनाथ्ंा के घर आज कोइ उत्सव है । उसकी माता अकेली घबड़ा रही थी कि कैसे सब काम होगा, मैंने कहा, मैं मानी को कल भेज दूंगा । तुम्हारी आज्ञा हो, तो मानी का पहुंचा दूँ। कल-परसों तक चली आयेगी।
मानी उसी वक्त वहां आ गई, गोकुल ने उसकी ओर कनखियों से ताका । मानी लज्जा से गड़ गई । भागने का रास्ता न मिला ।
मां ने कहा-मुझसे क्या पूछती हो, वह जाय, ले जाओ ।
गोकुल ने मानी से कहा-कपड़े पहनकर तैयार हो जाओ, तुम्हें इंद्रनाथ के घर चलना है ।
मानी ने आपत्ति की-मेरा जी अच्छा नहीं है, मैं न जाऊंगी।
गोकुल की मां ने कहा-चली क्यों नहीं जाती, क्या वहां कोई पहाड़ खोदना है?
मानी एक सफेद साड़ी पहनकर तांगे पर बैठी, तो उसका हदय कांप रहा था और बार-बार आंखों में आंसू भर आते थे । उकसा हदय बैठा जाता था, मानों नदी में डुबन जा रही हो।
तांगा कुछ दुर निकल गया तो उसने गोकुल से कहा-भैया, मेरा जी न जाने कैस हो रहा है । घर चलो, तुम्हारे पैर पड़ती ।
गोकुल ने कहा-तू पागल है । वहां सब लोग तेरी राह देख रहे हैं और तू कहती है लौट चलो ।
मानी-मेरा मन कहता है, कोई अनिष्ट होने वाला है ।
गोकुल-और मेरा मन कहता है तू रानी बनने जा रही है ।
मानी-दस-पांच दिन ठहर क्यों नहीं जाते ? कह देना, मानी बीमार है।
गोकुल-पागलों की-सी बातें न करो ।
मानी-लोग कितना-हंसेंगे ।
गोकुल-मैं शुभ कार्य कें किसी की हॅसी की परवाह नहीं करता ।
मानी-अम्मॉ तुम्हें घर में घुसने न देंगी । मेरे कारण तुम्हें भी झिड़कियॉ मिलेंगी ।
गोकुल-इसकी कोई परवाह नहीं है । उसकी तो यह आदत ही है ।
तॉंगा पहुंच गया । इंद्रनाथ की माता विचारशील महिला थीं । उन्होंन आकर वधू को उतारा और भीतर ले गयीं ।
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गोकुल वहां से घर चला तो ग्यारह बज रहे थे । एक ओर तो शुभ कार्य के पूरा करने का आनंद था, दूसरी ओर भय था कि कल मानी न जाएगी, तो लोगों को क्या जवाब दूंगा । उसने निश्चय किया, चलकर साफ-साफ कह दूं। छिपाना व्यर्थ है । आज नहीं कल, कल नहीं परसों तो सब-कुछ कहना ही पड़ेगा । आज ही क्यों न कह दूं ।
यह निश्चय करके घर में दाखिल हुआ ।
माता ने किवाड़ खोलते हुए कहा-इतनी रात तक क्या करने लगे ? उसे भी क्यों न लेते आये ? कल सवेरे चौका-बर्तन कौन करेगा ?
गोकुल ने सिर झुकाकर कहा-वह तो अब शायद लोटकर न आये अम्मा, उसके वहीं रहने का प्रबंध हो गया है।
माता ने आंखे फाड़कर कहा-क्या बकता है, भला वह वहां कैसे रहेगी?
गोकुल-इंद्रनाथ से उसका विवाह हो गया है ।
माता मानो आकाश से गिर पड़ी । उन्हें कुछ सुध न रही कि मेंरे मुंह से क्या निकल रहा है, कुलांगार, भड़वा, हरामजादा, न जाने क्या-क्या कहा । यहां तक कि गोकुल का धैर्य चरमसीमा का उल्लंघन कर गया । उसका मुंह लाल हो गया, त्योरियॉ चढ़ गई, बोला-अम्मा, बस करो। अब, मुझमें इससे ज्यादा सुनने की सामर्थ्य नहीं है । अगर मैंन कोई अनुचित कर्म किया होता, तो अपकी जूतियां खकार भी सिर न उठाता, मगर मैंने कोई अनुचित कर्म नहीं किया । मैंने वही किया जो ऐसी दशा में मेंरा कर्तव्य था और जो हर एक भले आदमी का करना चाहिए । तुम मूर्खा हो, तुम्हें नहीं मालूम कि समय की क्या प्रगति । इसीलिए अब तक मैनें धैर्य के साथ् तुम्हारी गालियॉ सुनी । तुमने, और मुझे दु:ख के साथ कहना पड़ता है कि पिताजी ने भी, मानी के जीवन का नारकीय बना रखा था । तुमने उसे ऐसी-ऐसी ताड़नाऍ दीं, जो कोई अपने शत्रु को भी न देगा । इसीलिए न कि वह तुम्हारी आश्रित थी ? इसी लिए न कि वह अनाथिन थी ? अब वह तुम्हारी गालियॉ खाने न आएगी । जिस दिन तुम्हारे घर विवाह का उत्सव हो रहा था, तुम्हारे ही एक कठोर वाक्य से आहत होकर वह आत्महत्या करने जा रही थी। इंद्रनाथ उस समय ऊपर न पहुंच जाते तो आज हम, तुम, सारा घर हवालात में बैठा होता ।
माता ने आंखे मटकाकर कहा-आहा । कितने सपूत बेटे हो तुम, कि सारे घर को संकट से बचा लिया । क्यों न हो ? अभी बहन की बारी है । कुछ दिन में मुझे ले जाकर किसी के गले में बांध आना । फिर तुम्हारी चांदी हो जायेगी । यह रोजगार सबसे अच्छा है । पढ़ लिखकर क्या करोगे ?
गोकुल मर्म-वेदना से तिलमिला उठा । व्यथित कंठ से बोला-ईश्वर न करे कि कोई बालक तुम जैसी माता के गर्भ से जन्म ले । तुम्हारा मुंह देखना भी पाप है ।
यह कहता हुआ वह घर से निकल पड़ा और उन्मत्तों की तरह एक तरफ चल खड़ा हुआ । जोर से झोंके चल रहे थे, पर उसे ऐसा मालूम हो रहा था कि सॉस लेने के लिए हवा नहीं है ।
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एक सप्ताह बीत गया पर गोकुल का कहीं पता नहीं। इंद्रनाथ को बम्बई में एक जगह मिल गई थी। वह वहां चला गया था। वहां रहने का प्रबंध करके वह अपनी माता को तार देगा और तब सास और बहू चली जाऍगी । वंशीधर को पहले संदेह हुआ कि गोकुल इंद्रनाथ के घर छिपा होगा, पर जब वहां पता न चला तो उन्होंने सारे शहर में खोज-पूछ शुरू की। जितन मिलने वाले, मित्र, स्नेही, सम्बन्धी थे, सभी के घर गये, पर सब जगह से साफ जवाब पाया । दिन-भर दौड़-धूप कर शाम को घर आते, तो स्त्री के आड़े हाथों लेते-और कोसो लड़के को, पानी पी-पीकर कोसो । न जाने तुम्हें कभी बुद्धि आयेगी भी या नहीं । गयी थी चुड़ैल, जाने देती । एक बोझ सिर से टला । एक महरी रख लो, काम चल जाएगा । जब वह न थी, तो घर क्या भूखों मरता था ? विधवाओं के पुनर्विवाह चारों ओर तो हो रहे हैं, यह कोई अनहोनी बात नहीं है । हमारे बस की बात होती, तो विधवा-विवाह के पक्षपातियों को देश से निकाल देते, शाप देकर जला देते, लेकिन यह हमारे बस की बात नहीं । फिर तुमसे इतनी भी न हो सका कि मुझसे तो पूछ लेतीं । मैं जो उचित समझता, करता । क्या तुमने समझा था, मैं दप्तर से लौटकर आऊंगा ही नहीं, वहीं अत्येषिट हो जाएगी ? बस, लड़के पर टूट पड़ी। अब रोओ, खूब दिल खोलकर।
संध्या हो गई थी। वंशीधर स्त्री को फटकारें सुनाकर द्वार पर उद्वेग की दशा में टहल रहे थे। रह-रहकर मानी पर क्रोध आता था। इसी राक्षसी के कसरण मेरे घर का सर्वनाश हुआ 1 न जाने किस बुरी साइत में आयी कि घर को मिटाकर छोड़ा । वह न आयी होती, तो आज क्यों यह बुरे दिन देखने पड़ते । कितना होनहार, कितना प्रतिभाशाली लड़का था । न जाने कहां गया ?
एकाएक एक बुढिया उनके समीप आयी और बोली-बाबू साहब, यह खत लायी हूं, ले लीजिए ।
वंशीधर ने लपककर बुढिया के हाथ से पत्र ले लिया, उनकी छाती आशा से धक-धक करने लगी । गोकुल ने शायद यह पत्र लिखा होगा । अंधेरे में कुछ ने सुझा । पूछा-कहॉ से आयी है ?
बुढिया ने कहा-वह जो बाबू हुसनेगंज में रहते हैं, जो बम्बई में नौकर हैं, उन्हीं की बहु ने भेजा है ।
वंशीधर ने कमरे में जाकर लैम्प जलाया और पत्र पढ़ने लगे । मानी का खत था लिखा था ।
‘पूज्य चाचाजी, आभागिनी मानी का प्रणाम स्वीकार कीजिए ।
मुझे यह सुनकर अत्यन्त दु:ख हुआ कि गोकुल भैया कहीं चले गए और अब तक उनका पता नहीं है । मैं ही इसका कारण हूं । यह कलंक मेरे ही मुख पर लगना था वह भी लग गया । मेरे कारण आपको इतना शोक हुआ, इसका मुझे बहुत दु:ख है, मगर भैया आएंगे अवश्य, इसका मुझे विश्वास है । मैं भी नौ बजे वाली गाड़ी से बम्बई जा रही हूं । मुझझे जो कुछ अपराध हुआ है, उसे क्षमा कीजिएगा और चाची से मेरा प्रणाम कहिएगा। मेरी ईश्वर से यही प्रार्थना है कि शीघ्र ही गोकुल भैया सकुशल घर लौट आयें । ईश्वर की अच्छा हुई तो भैया के विवाह में आपके चरणों के दर्शन करूंगी ।
वंशीधर न पत्र को फाड़कर पुर्जे-पुर्जे कर डाला । घड़ी में देखा तो आठ बज रहे थे । तुरन्त कपड़े पहने, सड़क पर आकर एक्का किया और स्टेशन चले ।
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बम्बई मेल प्लेटफार्म पर खड़ा था । मुसाफिरों में भगदड़ मची हुई थी। खोमचे वालों की चीख-पुकार से कान पड़ी आवाज न सुनाई देती थी। गाड़ी छूटने में थोड़ी ही देर थी मानी और उसकी सास एक जनाने कमरे में बैठी हुई थी । मानी सजल नेत्रों से सामने ताक रही थी । अतीत चाहे दुख:द ही क्यों न हो, उसकी स्मतियॉ मधुर होती हैं । मानी आज बुरे दिनों को स्मरण करके दु:खी हो रही थी । गोकुल से अब न जाने कब भेंट होगी। चाचाजी आ जाते तो उनके दर्शन कर लेती । कभी-कभी बिगड़ते थे तो क्या, उसके भले ही के लिए तो डांटते थे । वह आवेंगे नहीं । अब तो गाड़ी छूटने में थोड़ी ही देर है । कैसे आऍ, समाज में हलचल न मच जाएगी । भगवान की इच्छा होगी, तो अबकी जब यहॉ आऊंगी, तो जरूर उनके दर्शन करूंगी ।
एकाएक उसने लाला वंशीधर को आते देखा । वह गाड़ी से निकलकर बाहर खड़ी हो गई और चाचाजी की ओर बढ़ी । चरणों पर गिरना चाहती थी कि वह पीछे हट गए और ऑखे निकालकर बोले-मुझे मत छू, दूर रह, अभगिनी कहीं की । मुंह की कालिख लगाकर मुझे पत्र लिखती है । तुझे मौत नहीं आती । तूने मेरे कुल का सर्वनाश कर दिया 1 आज तक गोकुल का पता नहीं है । तेरे कारण वह घर से निकला और तू अभी तक मेरी छाती पर मूंग दलने को बैठी है । तेरे लिए क्या गंगा में पानी नहीं है ? मैं तुझे कुलटा, ऐसी हरजाई समझता, तो पहले दिन तेरा गला घोंट देता । अब मुझे अपनी भक्ति दिखलाने चली है । तेरे जैसी पापिष्ठाओं का मरना ही अच्छा है, पथ्वी का बोझ कम हो जाएगा ।
प्लेटफार्म पर सैकड़ो आदमियों की भीड़ लग गई थी और वंशीधर निर्लज्ज भाव से गालियों की बौछार कर रहे थे । किसी की समझ में न आता था, क्या माजरा है, पर मन से सब लाला को धिक्कार रहे थे ।
मानी पाषाण-मूर्ति के सामान खड़ी थी, मानो वहीं जम गई हो । उसका सारा अभिमान चूर-चूर हो गया । ऐसा जी चाहता था, धरती फट जाए और मैं समा जाऊं, कोई वज्र गिरकर उसके जीवन-अधम जीवन-का अन्त कर दे । इतने आदमियों के सामने उसका पानी उतर गया 1 उसी आंखों से पानी की एक बूंद भी न निकला । हदय में ऑसू न थे । उसकी जग एक दावनल-सा दहक रहा था, जो मानो वेग से मस्तिष्क की ओर बढ़ता चला जाता था । संसार में कौन जीवन इतना अधम होगा ।
सास ने पुकारा-बहू, अन्दर आ जाओ ।
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गाड़ी चली तो माता ने कहा-ऐसा बेशर्म आदमी नहीं देखा । मुझे तो ऐसा क्रोध आ रहा था कि उसका मुंह नोच लूं ।
मानी ने सिर ऊपर न उठाया ।
माता फिर बोली-न जाने इन सडियलों को बुद्धि कब आएगी, अब तो मरने के दिन भी आ गए । पूछो, तेरा लड़का भाग तो हम क्या करें; अगर ऐसे पापी ने होते तो यह वज्र क्यों गिरता ।
मानी ने फिर भी मुंह न खोला । शायद उसे कुछ सुनाई ही न दिया था। शायद उसे अपने असित्तव का ज्ञान भी न था । वह टकटकी लगाए खिड़की की ओर ताक रही थी । उस अंधकार में जाने क्या सूझ रहा था ।
कानपुर आया । माता ने पूछ-बेटी, कुछ खाओगी ? थोड़ी-सी मिठाई खा लो; दस कब के बज गए ।
मानी ने कहा-अभी तो भूख नहीं है अम्मा, फिर खा लूंगी ।
माताजी सोई। मानी भी लेटी; पर चचा की वह सूरत आंखों के सामने खड़ी थी और उनकी बातें कानों में गूंज रही थीं-आह, मैं इतनी नीच हूं, ऐसी
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