दिल की रानी
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दिल की रानी
यधपि एक युवती का पुरूष वेष में रहना, युवकों से मिलना-जुलने , समाज में आलोचना का विषय था, पर यजदानी और उसकी स्त्री दोनों ही को उसके सतीत्व पर विश्वास था, हबीब के व्यवहार और आचार में उन्हें कोई ऐसी बात नजर न आती थी, जिससे उष्न्हें किसी तरह की शंका होती। यौवन की आधी और लालसाओं के तूफान में वह चौबीस वर्षो की वीरबाला अपने हदय की सम्पति लिए अटल और अजेय खड़ी थी , मानों सभी युवक उसके सगे भाई हैं।
3
कुस्तुनतुनिया में कितनी खुशियां मनाई गई, हवीब का कितना सम्मान और स्वागत हुआ, उसे कितनी बधाईयां मिली, यह सब लिखने की बात नहीं शहर तवाह हुआ जाता था। संभव था आज उसके महलों और बाजारों से आग की लपटें निकलती होतीं। राज्य और नगर को उस कल्पनातीत विपति से बचानेवाला आदमी कितने आदर, प्रेम श्रद्वा और उल्लास का पात्र होगा, इसकी तो कल्पना भी नहीं की जा सकती । उस पर कितने फूलों और कितश्ने लाल-जवाहरों की वर्षा हुई इसका अनुमान तो कोई कवि ही कर सकता है और नगर की महिलाए हदय के अक्षय भंडार से असीसें निकाल-निकालकर उस पर लुटाती थी और गर्व से फूली हुई उसका मुहं निहारकर अपने को धन्य मानती थी । उसने देवियों का मस्तक ऊचा कर दिया ।
रात को तैमूर के प्रस्ताव पर विचार होने लगा। सामने गदेदार कुर्सी पर यजदानी था- सौभ्य, विशाल और तेजस्वी। उसकी दाहिनी तरफ सकी पत्नी थी, ईरानी लिबास में, आंखों में दया और विश्वास की ज्योति भरे हुए। बायीं तरफ उम्मुतुल हबीब थी, जो इस समय रमणी-वेष में मोहिनी बनी हुई थी, ब्रहचर्य के तेज से दीप्त।
यजदानी ने प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा – मै अपनी तरफ से कुछ नहीं कहना चाहता , लेकिन यदि मुझे सलाह दें का अधिकार है, तो मैं स्पष्ट कहता हूं कि तुम्हें इस प्रस्ताव को कभी स्वीकार न करना चाहिए , तैमूर से यह बात बहुत दिन तक छिपी नहीं रह सकती कि तुम क्या हो। उस वक्त क्या परिस्थिति होगी , मैं नहीं कहता। और यहां इस विषय में जो कुछ टीकाए होगी, वह तुम मुझसे ज्यादा जानती हो। यहा मै मौजूद था और कुत्सा को मुह न खोलने देता था पर वहा तुम अकेली रहोगी और कुत्सा को मनमाने, आरोप करने का अवसर मिलता रहेगा।
उसकी पत्नी स्वेच्छा को इतना महत्व न देना चाहती थी । बोली – मैने सुना है, तैमूर निगाहों का अच्छा आदमी नहीं है। मै किसी तरह तुझे न जाने दूगीं। कोई बात हो जाए तो सारी दुनिया हंसे। यों ही हसनेवाले क्या कम हैं।
इसी तरह स्त्री-पुरूष बड़ी देर तक ऊचं –नीच सुझाते और तरह-तरह की शंकाए करते रहें लेकिन हबीब मौन साधे बैठी हुई थी। यजदानी ने समझा , हबीब भी उनसे सहमत है। इनकार की सूचना देने के लिए ही थी कि हबीब ने पूछा – आप तैमूर से क्या कहेंगे।
यही जो यहा तय हुआ।
मैने तो अभी कुछ नहीं कहा,
मैने तो समझा , तुम भी हमसे सहमत हो।
जी नही। आप उनसे जाकर कह दे मै स्वीकार करती हू।
माता ने छाती पर हाथ रखकर कहा- यह क्या गजब करती है बेटी। सोच दुनिया क्या कहेगी।
यजदानी भी सिर थामकर बैठ गए , मानो हदय में गोली लग गई हो। मुंह से एक शब्द भी न निकला।
हबीब त्योरियों पर बल डालकर बोली-अम्मीजान , मै आपके हुक्म से जौ-भर भी मुह नहीं फेरना चाहती। आपकों पूरा अख्ितयार है, मुझे जाने दें या न दें लेकिन खल्क की खिदमत का ऐसा मौका शायद मुझे जिंदगी में पिर न मिलें । इस मौके को हाथ से खो देने का अफसोस मुझे उम्र – भर रहेगा । मुझे यकीन है कि अमीन तैमूर को मैं अपनी दियानत, बेगरजी और सच्ची वफादारी से इन्सान बना सकती है और शायद उसके हाथों खुदा के बंदो का खून इतनी कसरत से न बहे। वह दिलेर है, मगर बेरहम नहीं । कोई दिलेर आदमी बेरहम नहीं हो सकता । उसने अब तक जो कुछ किया है, मजहब के अंधे जोश में किया है। आज खुदा ने मुझे वह मौका दिया है कि मै उसे दिखा दू कि मजहब खिदमत का नाम है, लूट और कत्ल का नहीं। अपने बारे में मुझे मुतलक अंदेशा नहीं है। मै अपनी हिफाजत आप कर सकती हूँ । मुझे दावा है कि उपने फर्ज को नेकनीयती से अदा करके मै दुश्मनों की जुबान भी बन्द कर सकती हू, और मान लीजिए मुझे नाकामी भी हो, तो क्या सचाई और हक के लिए कुर्बान हो जाना जिन्दगीं की सबसे शानदार फतह नहीं है। अब तक मैने जिस उसूल पर जिन्दगी बसर की है, उसने मुझे धोखा नहीं दिया और उसी के फैज से आज मुझे यह दर्जा हासिल हुआ है, जो बड़े-बड़ो के लिए जिन्दगी का ख्वाब है। मेरे आजमाए हुए दोस्त मुझे कभी धोखा नहीं दे सकते । तैमूर पर मेरी हकीकत खुल भी जाए, तो क्या खौफ । मेरी तलवार मेरी हिफाजत कर सकती है। शादी पर मेरे ख्याल आपको मालूम है। अगर मूझे कोई ऐसा आदमी मिलेगा, जिसे मेरी रूह कबूल करती हो, जिसकी जात अपनी हस्ती खोकर मै अपनी रूह को ऊचां उठा सकूं, तो मैं उसके कदमों पर गिरकर अपने को उसकी नजर कर दूगीं।
यजदानी ने खुश होकर बेटी को गले लगा लिया । उसकी स्त्री इतनी जल्द आश्वस्त न हो सकी। वह किसी तरह बेटी को अकेली न छोड़ेगी । उसके साथ वह जाएगी।
4
कई महीने गुजर गए। युवक हबीब तैमूर का वजीर है, लेकिन वास्तव में वही बादशाह है। तैमूर उसी की आखों से देखता है, उसी के कानों से सुनता है और उसी की अक्ल से सोचता है। वह चाहता है, हबीब आठों पहर उसके पास रहे।उसके सामीप्य में उसे स्वर्ग का-सा सुख मिलता है। समरकंद में एक प्राणी भी ऐसा नहीं, जो उससे जलता हो। उसके बर्ताव ने सभी को मुग्ध कर लिया है, क्योंकि वह इन्साफ से जै-भर भी कदम नहीं हटाता। जो लोग उसके हाथों चलती हुई न्याय की चक्की में पिस जातें है, वे भी उससे सदभाव ही रखते है, क्योकि वह न्याय को जरूरत से ज्यादा कटु नहीं होने देता।
संध्या हो गई थी। राज्य कर्मचारी जा चुके थे । शमादान में मोम की बतियों जल रही थी। अगर की सुगधं से सारा दीवानखाना महक रहा था। हबीब उठने ही को था कि चोबदार ने खबर दी-हुजूर जहापनाह तशरीफ ला रहे है।
हबीब इस खबर से कुछ प्रसन्न नहीं हुआ। अन्य मंत्रियों की भातिं वह तैमूर की सोहबत का भूखा नहीं है। वह हमेशा तैमूर से दूर रहने की चेष्टा करता है। ऐसा शायद ही कभी हुआ हो कि उसने शाही दस्तरखान पर भोजन किया हो। तैमूर की मजलिसों में भी वह कभी शरीक नहीं होता। उसे जब शांति मिलति है, तब एंकात में अपनी माता के पास बैठकर दिन-भर का माजरा उससे कहता है और वह उस पर अपनी पंसद की मुहर लगा देती है।
उसने द्वार पर जाकर तैमूर का स्वागत किया। तैमूर ने मसनद पर बैठते हुए कहा- मुझे ताज्जुब होता है कि तुम इस जवानी में जाहिदों की-सी जिंदगी कैसे बसर करते हो हबीब । खुदा ने तुम्हें वह हुस्न दिया है कि हसीन-से-हसीन नाजनीन भी तुम्हारी माशूक बनकर अपने को खुश्नसीब समझेगी। मालूम नहीं तुम्हें खबर है या नही, जब तुम अपने मुश्की घोड़े पर सवार होकर निकलते हो तो समरकंद की खिड़कियों पर हजारों आखें तुम्हारी एक झलक देखने के लिए मुंतजिर बैठी रहती है, पर तुम्हें किसी तरफ आखें उठाते नहीं देखा । मेरा खुदा गवाह है, मै कितना चाहता हू कि तुम्हारें कदमों के नक्श पर चलू। मैं चाहता हू जैसे तुम दुनिया में रहकर भी दुनिया से अलग रहते हो , वैसे मैं भी रहूं लेकिन मेरे पास न वह दिल है न वह दिमाग । मैं हमेशा अपने-आप पर, सारी दुनिया पर दात पीसता रहता हू। जैसे मुझे हरदम खून की प्यास लगी रहती है , तुम बुझने नहीं देतें , और यह जानते हुए भी कि तुम जो कुछ करते हो, उससे बेहतर कोई दूसरा नहीं कर सकता , मैं अपने गुस्से को काबू में नहीं कर सकता । तुम जिधर से निकलते हो, मुहब्बत और रोशनी फैला देते हो। जिसकों तुम्हारा दुश्मन होना चाहिए , वह तुम्हारा दोस्त है। मैं जिधर से निकलता नफरत और शुबहा फैलाता हुआ निकलता हू। जिसे मेरा दोस्त होना चाहिए वह भी मेरा दुश्मन है। दुनिया में बस एक ही जगह है, जहा मुझे आपियत मिलती है। अगर तुम मुझे समझते हो, यह ताज और तख्त मेरे रांस्ते के रोड़े है, तो खुदा की कसम , मैं आज इन पर लात मार दूं। मै आज तुम्हारे पास यही दरख्वास्त लेकर आया हू कि तुम मुझे वह रास्ता दिखाओ , जिससे मै सच्ची खुशी पा सकू । मै चाहता हूँ , तुम इसी महल में रहों ताकि मै तुमसे सच्ची जिंदगी का सबक सीखूं।
हबीब का हदय धक से हो उठा । कहीं अमीन पर नारीत्व का रहस्य खुल तों नहीं गया। उसकी समझ में न आया कि उसे क्या जवाब दे। उसका कोमल हदय तैमूर की इस करूण आत्मग्लानि पर द्रवित हो गया । जिसके नाम से दुनिया कापती है, वह उसके सामने एक दयनीय प्राथी बना हुआ उसके प्रकाश की भिक्षा मांग रहा है। तैमूर की उस कठोर विकत शुष्क हिंसात्मक मुद्रा में उसे एक स्िनग्ध मधुर ज्योति दिखाई दी, मानो उसका जागत विवेक भीतर से झाकं रहा हो। उसे अपना जीवन, जिसमें ऊपर की स्फूर्ति ही न रही थी, इस विफल उधोग के सामने तुच्छ जान पड़ा।
उसने मुग्ध कंठ से कहा- हजूर इस गुलाम की इतनी कद्र करते है, यह मेरी खुशनसीबी है, लेकिन मेरा शाही महल में रहना मुनासिब नहीं ।
तैमूर ने पूछा –क्यों
इसलिए कि जहा दौलत ज्यादा होती है, वहा डाके पड़ते हैं और जहा कद्र ज्यादा होती है , वहा दुश्मन भी ज्यादा होते है।
तुम्हारी भी कोई दुश्मन हो सकता है।
मै खुद अपना दुश्मन हो जाउ गा । आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन गरूर है।
तैमूर को जैसे कोई रत्न मिल गया। उसे अपनी मनतुष्िट का आभास हुआ। आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन गरूर है इस वाक्य को मन-ही-मन दोहरा कर उसने कहा-तुम मेरे काबू में कभी न आओगें हबीब। तुम वह परंद हो, जो आसमान में ही उड़ सकता है। उसे सोने के पिंजड़े में भी रखना चाहो तो फड़फड़ाता रहेगा। खैर खुदा हापिज।
यह तुरंत अपने महल की ओर चला, मानो उस रत्न को सुरक्षित स्थान में रख देना चाहता हो। यह वाक्य पहली बार उसने न सुना था पर आज इससे जो ज्ञान, जो आदेश जो सत्प्रेरणा उसे मिली, उसे मिली, वह कभी न मिली थी।
5
इस्तखर के इलाके से बगावत की खबर आयी है। हबीब को शंका है कि तैमूर वहा पहुचकर कहीं कत्लेआम न कर दे। वह शातिंमय उपायों से इस विद्रोह को ठंडा करके तैमूर को दिखाना चाहता है कि सदभावना में कितनी शक्ित है। तैमूर उसे इस मुहिम पर नहीं भेजना चाहता लेकिन हबीब के आग्रह के सामने बेबस है। हबीब को जब और कोई युक्ित न सूझी तो उसने कहा- गुलाम के रहते हुए हुजूर अपनी जान खतरे में डालें यह नहीं हो सकता ।
तैमूर मुस्कराया-मेरी जान की तुम्हारी जान के मुकाबले में कोई हकीकत नहीं है हबीब ।पिर मैने तो कभी जान की परवाह न की। मैने दुनिया में कत्ल और लूट के सिवा और क्या यादगार छोड़ी । मेरे मर जाने पर दुनिया मेरे नाम को रोएगी नही, यकीन मानों । मेरे जैसे लुटेरे हमेशा पैदा हाते रहेगें , लेकिन खुदा न करें, तुम्हारे दुश्मनों को कुछ हो गया, तो यह सल्तश्नत खाक में मिल जाएगी, और तब मुझे भी सीने में खंजन चुभा लेने के सिवा और कोई रास्ता न रहेगा। मै नहीं कह सकता हबाब तुमसे मैने कितना पाया। काश, दस-पाच साल पहले तुम मुझे मिल जाते, तो तैमूर तवारीख में इतना रूसियाह न होता। आज अगर जरूरत पड़े, तो मैं अपने जैसे सौ तैमूरों को तुम्हारे ऊपर निसार कर दू । यही समझ लो कि मेरी रूह को अपने साथ लिये जा रहे हो। आज मै तुमसे कहता हू हबीब कि मुझे तुमसे इश्क है इसे मै अब जान पाया हूं । मगर इसमें क्या बराई है कि मै भी तुम्हारें साथ चलू।
हबीब ने धड़कते हुए हदय से कहा- अगर मैं आपकी जरूरत समझूगा तो इतला दूगां।
तैमूर के दाढ़ी पर हाथ रखकर कहा जैसी-तुम्हारी मर्जी लेकिन रोजाना कासिद भेजते रहना, वरना शायद मैं बेचैन होकर चला जाऊ।
तैमूर ने कितनी मुहब्बत से हबीब के सफर की तैयारियां की। तरह-तरह के आराम और तकल्लुफी की चीजें उसके लिए जमा की। उस कोहिस्तान में यह चीजें कहा मिलेगी। वह ऐसा संलग्न था, मानों माता अपनी लड़की को ससुराल भेज रही हो।
जिस वक्त हबीब फौज के साथ चला, तो सारा समरकंद उसके साथ था और तैमूर आखों पर रूमाल रखें , अपने तख्त पर ऐसा सिर झुकाए बैठा था, मानों कोई पक्षी आहत हो गया हो।
6
इस्तखर अरमनी ईसाईयों का इलाका था, मुसलमानों ने उन्हें परास्त करके वहां अपना अधिकार जमा लिया था और ऐसे नियम बना दिए थे, जिससे ईसाइयों को पग-पग अपनी पराधीनता का स्मरण होता रहता था। पहला नियम जजिये का था, जो हरेक ईसाई को देना पड़ता था, जिससे मुसलमान मुक्त थे। दूसरा नियम यह था कि गिजों में घंटा न बजे। तीसरा नियम का क्रियात्मक विरोध किया और जब मुसलमान अधिकारियों ने शस्त्र-बल से काम लेना चाहा, तो ईसाइयों ने बगावत कर दी, मुसलमान सूबेदार को कैद कर लिया और किले पर सलीबी झंडा उड़ने लगा।
हबीब को यहा आज दूसरा दिन है पर इस समस्या को कैसे हल करे।
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दिल की रानी
यधपि एक युवती का पुरूष वेष में रहना, युवकों से मिलना-जुलने , समाज में आलोचना का विषय था, पर यजदानी और उसकी स्त्री दोनों ही को उसके सतीत्व पर विश्वास था, हबीब के व्यवहार और आचार में उन्हें कोई ऐसी बात नजर न आती थी, जिससे उष्न्हें किसी तरह की शंका होती। यौवन की आधी और लालसाओं के तूफान में वह चौबीस वर्षो की वीरबाला अपने हदय की सम्पति लिए अटल और अजेय खड़ी थी , मानों सभी युवक उसके सगे भाई हैं।
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कुस्तुनतुनिया में कितनी खुशियां मनाई गई, हवीब का कितना सम्मान और स्वागत हुआ, उसे कितनी बधाईयां मिली, यह सब लिखने की बात नहीं शहर तवाह हुआ जाता था। संभव था आज उसके महलों और बाजारों से आग की लपटें निकलती होतीं। राज्य और नगर को उस कल्पनातीत विपति से बचानेवाला आदमी कितने आदर, प्रेम श्रद्वा और उल्लास का पात्र होगा, इसकी तो कल्पना भी नहीं की जा सकती । उस पर कितने फूलों और कितश्ने लाल-जवाहरों की वर्षा हुई इसका अनुमान तो कोई कवि ही कर सकता है और नगर की महिलाए हदय के अक्षय भंडार से असीसें निकाल-निकालकर उस पर लुटाती थी और गर्व से फूली हुई उसका मुहं निहारकर अपने को धन्य मानती थी । उसने देवियों का मस्तक ऊचा कर दिया ।
रात को तैमूर के प्रस्ताव पर विचार होने लगा। सामने गदेदार कुर्सी पर यजदानी था- सौभ्य, विशाल और तेजस्वी। उसकी दाहिनी तरफ सकी पत्नी थी, ईरानी लिबास में, आंखों में दया और विश्वास की ज्योति भरे हुए। बायीं तरफ उम्मुतुल हबीब थी, जो इस समय रमणी-वेष में मोहिनी बनी हुई थी, ब्रहचर्य के तेज से दीप्त।
यजदानी ने प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा – मै अपनी तरफ से कुछ नहीं कहना चाहता , लेकिन यदि मुझे सलाह दें का अधिकार है, तो मैं स्पष्ट कहता हूं कि तुम्हें इस प्रस्ताव को कभी स्वीकार न करना चाहिए , तैमूर से यह बात बहुत दिन तक छिपी नहीं रह सकती कि तुम क्या हो। उस वक्त क्या परिस्थिति होगी , मैं नहीं कहता। और यहां इस विषय में जो कुछ टीकाए होगी, वह तुम मुझसे ज्यादा जानती हो। यहा मै मौजूद था और कुत्सा को मुह न खोलने देता था पर वहा तुम अकेली रहोगी और कुत्सा को मनमाने, आरोप करने का अवसर मिलता रहेगा।
उसकी पत्नी स्वेच्छा को इतना महत्व न देना चाहती थी । बोली – मैने सुना है, तैमूर निगाहों का अच्छा आदमी नहीं है। मै किसी तरह तुझे न जाने दूगीं। कोई बात हो जाए तो सारी दुनिया हंसे। यों ही हसनेवाले क्या कम हैं।
इसी तरह स्त्री-पुरूष बड़ी देर तक ऊचं –नीच सुझाते और तरह-तरह की शंकाए करते रहें लेकिन हबीब मौन साधे बैठी हुई थी। यजदानी ने समझा , हबीब भी उनसे सहमत है। इनकार की सूचना देने के लिए ही थी कि हबीब ने पूछा – आप तैमूर से क्या कहेंगे।
यही जो यहा तय हुआ।
मैने तो अभी कुछ नहीं कहा,
मैने तो समझा , तुम भी हमसे सहमत हो।
जी नही। आप उनसे जाकर कह दे मै स्वीकार करती हू।
माता ने छाती पर हाथ रखकर कहा- यह क्या गजब करती है बेटी। सोच दुनिया क्या कहेगी।
यजदानी भी सिर थामकर बैठ गए , मानो हदय में गोली लग गई हो। मुंह से एक शब्द भी न निकला।
हबीब त्योरियों पर बल डालकर बोली-अम्मीजान , मै आपके हुक्म से जौ-भर भी मुह नहीं फेरना चाहती। आपकों पूरा अख्ितयार है, मुझे जाने दें या न दें लेकिन खल्क की खिदमत का ऐसा मौका शायद मुझे जिंदगी में पिर न मिलें । इस मौके को हाथ से खो देने का अफसोस मुझे उम्र – भर रहेगा । मुझे यकीन है कि अमीन तैमूर को मैं अपनी दियानत, बेगरजी और सच्ची वफादारी से इन्सान बना सकती है और शायद उसके हाथों खुदा के बंदो का खून इतनी कसरत से न बहे। वह दिलेर है, मगर बेरहम नहीं । कोई दिलेर आदमी बेरहम नहीं हो सकता । उसने अब तक जो कुछ किया है, मजहब के अंधे जोश में किया है। आज खुदा ने मुझे वह मौका दिया है कि मै उसे दिखा दू कि मजहब खिदमत का नाम है, लूट और कत्ल का नहीं। अपने बारे में मुझे मुतलक अंदेशा नहीं है। मै अपनी हिफाजत आप कर सकती हूँ । मुझे दावा है कि उपने फर्ज को नेकनीयती से अदा करके मै दुश्मनों की जुबान भी बन्द कर सकती हू, और मान लीजिए मुझे नाकामी भी हो, तो क्या सचाई और हक के लिए कुर्बान हो जाना जिन्दगीं की सबसे शानदार फतह नहीं है। अब तक मैने जिस उसूल पर जिन्दगी बसर की है, उसने मुझे धोखा नहीं दिया और उसी के फैज से आज मुझे यह दर्जा हासिल हुआ है, जो बड़े-बड़ो के लिए जिन्दगी का ख्वाब है। मेरे आजमाए हुए दोस्त मुझे कभी धोखा नहीं दे सकते । तैमूर पर मेरी हकीकत खुल भी जाए, तो क्या खौफ । मेरी तलवार मेरी हिफाजत कर सकती है। शादी पर मेरे ख्याल आपको मालूम है। अगर मूझे कोई ऐसा आदमी मिलेगा, जिसे मेरी रूह कबूल करती हो, जिसकी जात अपनी हस्ती खोकर मै अपनी रूह को ऊचां उठा सकूं, तो मैं उसके कदमों पर गिरकर अपने को उसकी नजर कर दूगीं।
यजदानी ने खुश होकर बेटी को गले लगा लिया । उसकी स्त्री इतनी जल्द आश्वस्त न हो सकी। वह किसी तरह बेटी को अकेली न छोड़ेगी । उसके साथ वह जाएगी।
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कई महीने गुजर गए। युवक हबीब तैमूर का वजीर है, लेकिन वास्तव में वही बादशाह है। तैमूर उसी की आखों से देखता है, उसी के कानों से सुनता है और उसी की अक्ल से सोचता है। वह चाहता है, हबीब आठों पहर उसके पास रहे।उसके सामीप्य में उसे स्वर्ग का-सा सुख मिलता है। समरकंद में एक प्राणी भी ऐसा नहीं, जो उससे जलता हो। उसके बर्ताव ने सभी को मुग्ध कर लिया है, क्योंकि वह इन्साफ से जै-भर भी कदम नहीं हटाता। जो लोग उसके हाथों चलती हुई न्याय की चक्की में पिस जातें है, वे भी उससे सदभाव ही रखते है, क्योकि वह न्याय को जरूरत से ज्यादा कटु नहीं होने देता।
संध्या हो गई थी। राज्य कर्मचारी जा चुके थे । शमादान में मोम की बतियों जल रही थी। अगर की सुगधं से सारा दीवानखाना महक रहा था। हबीब उठने ही को था कि चोबदार ने खबर दी-हुजूर जहापनाह तशरीफ ला रहे है।
हबीब इस खबर से कुछ प्रसन्न नहीं हुआ। अन्य मंत्रियों की भातिं वह तैमूर की सोहबत का भूखा नहीं है। वह हमेशा तैमूर से दूर रहने की चेष्टा करता है। ऐसा शायद ही कभी हुआ हो कि उसने शाही दस्तरखान पर भोजन किया हो। तैमूर की मजलिसों में भी वह कभी शरीक नहीं होता। उसे जब शांति मिलति है, तब एंकात में अपनी माता के पास बैठकर दिन-भर का माजरा उससे कहता है और वह उस पर अपनी पंसद की मुहर लगा देती है।
उसने द्वार पर जाकर तैमूर का स्वागत किया। तैमूर ने मसनद पर बैठते हुए कहा- मुझे ताज्जुब होता है कि तुम इस जवानी में जाहिदों की-सी जिंदगी कैसे बसर करते हो हबीब । खुदा ने तुम्हें वह हुस्न दिया है कि हसीन-से-हसीन नाजनीन भी तुम्हारी माशूक बनकर अपने को खुश्नसीब समझेगी। मालूम नहीं तुम्हें खबर है या नही, जब तुम अपने मुश्की घोड़े पर सवार होकर निकलते हो तो समरकंद की खिड़कियों पर हजारों आखें तुम्हारी एक झलक देखने के लिए मुंतजिर बैठी रहती है, पर तुम्हें किसी तरफ आखें उठाते नहीं देखा । मेरा खुदा गवाह है, मै कितना चाहता हू कि तुम्हारें कदमों के नक्श पर चलू। मैं चाहता हू जैसे तुम दुनिया में रहकर भी दुनिया से अलग रहते हो , वैसे मैं भी रहूं लेकिन मेरे पास न वह दिल है न वह दिमाग । मैं हमेशा अपने-आप पर, सारी दुनिया पर दात पीसता रहता हू। जैसे मुझे हरदम खून की प्यास लगी रहती है , तुम बुझने नहीं देतें , और यह जानते हुए भी कि तुम जो कुछ करते हो, उससे बेहतर कोई दूसरा नहीं कर सकता , मैं अपने गुस्से को काबू में नहीं कर सकता । तुम जिधर से निकलते हो, मुहब्बत और रोशनी फैला देते हो। जिसकों तुम्हारा दुश्मन होना चाहिए , वह तुम्हारा दोस्त है। मैं जिधर से निकलता नफरत और शुबहा फैलाता हुआ निकलता हू। जिसे मेरा दोस्त होना चाहिए वह भी मेरा दुश्मन है। दुनिया में बस एक ही जगह है, जहा मुझे आपियत मिलती है। अगर तुम मुझे समझते हो, यह ताज और तख्त मेरे रांस्ते के रोड़े है, तो खुदा की कसम , मैं आज इन पर लात मार दूं। मै आज तुम्हारे पास यही दरख्वास्त लेकर आया हू कि तुम मुझे वह रास्ता दिखाओ , जिससे मै सच्ची खुशी पा सकू । मै चाहता हूँ , तुम इसी महल में रहों ताकि मै तुमसे सच्ची जिंदगी का सबक सीखूं।
हबीब का हदय धक से हो उठा । कहीं अमीन पर नारीत्व का रहस्य खुल तों नहीं गया। उसकी समझ में न आया कि उसे क्या जवाब दे। उसका कोमल हदय तैमूर की इस करूण आत्मग्लानि पर द्रवित हो गया । जिसके नाम से दुनिया कापती है, वह उसके सामने एक दयनीय प्राथी बना हुआ उसके प्रकाश की भिक्षा मांग रहा है। तैमूर की उस कठोर विकत शुष्क हिंसात्मक मुद्रा में उसे एक स्िनग्ध मधुर ज्योति दिखाई दी, मानो उसका जागत विवेक भीतर से झाकं रहा हो। उसे अपना जीवन, जिसमें ऊपर की स्फूर्ति ही न रही थी, इस विफल उधोग के सामने तुच्छ जान पड़ा।
उसने मुग्ध कंठ से कहा- हजूर इस गुलाम की इतनी कद्र करते है, यह मेरी खुशनसीबी है, लेकिन मेरा शाही महल में रहना मुनासिब नहीं ।
तैमूर ने पूछा –क्यों
इसलिए कि जहा दौलत ज्यादा होती है, वहा डाके पड़ते हैं और जहा कद्र ज्यादा होती है , वहा दुश्मन भी ज्यादा होते है।
तुम्हारी भी कोई दुश्मन हो सकता है।
मै खुद अपना दुश्मन हो जाउ गा । आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन गरूर है।
तैमूर को जैसे कोई रत्न मिल गया। उसे अपनी मनतुष्िट का आभास हुआ। आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन गरूर है इस वाक्य को मन-ही-मन दोहरा कर उसने कहा-तुम मेरे काबू में कभी न आओगें हबीब। तुम वह परंद हो, जो आसमान में ही उड़ सकता है। उसे सोने के पिंजड़े में भी रखना चाहो तो फड़फड़ाता रहेगा। खैर खुदा हापिज।
यह तुरंत अपने महल की ओर चला, मानो उस रत्न को सुरक्षित स्थान में रख देना चाहता हो। यह वाक्य पहली बार उसने न सुना था पर आज इससे जो ज्ञान, जो आदेश जो सत्प्रेरणा उसे मिली, उसे मिली, वह कभी न मिली थी।
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इस्तखर के इलाके से बगावत की खबर आयी है। हबीब को शंका है कि तैमूर वहा पहुचकर कहीं कत्लेआम न कर दे। वह शातिंमय उपायों से इस विद्रोह को ठंडा करके तैमूर को दिखाना चाहता है कि सदभावना में कितनी शक्ित है। तैमूर उसे इस मुहिम पर नहीं भेजना चाहता लेकिन हबीब के आग्रह के सामने बेबस है। हबीब को जब और कोई युक्ित न सूझी तो उसने कहा- गुलाम के रहते हुए हुजूर अपनी जान खतरे में डालें यह नहीं हो सकता ।
तैमूर मुस्कराया-मेरी जान की तुम्हारी जान के मुकाबले में कोई हकीकत नहीं है हबीब ।पिर मैने तो कभी जान की परवाह न की। मैने दुनिया में कत्ल और लूट के सिवा और क्या यादगार छोड़ी । मेरे मर जाने पर दुनिया मेरे नाम को रोएगी नही, यकीन मानों । मेरे जैसे लुटेरे हमेशा पैदा हाते रहेगें , लेकिन खुदा न करें, तुम्हारे दुश्मनों को कुछ हो गया, तो यह सल्तश्नत खाक में मिल जाएगी, और तब मुझे भी सीने में खंजन चुभा लेने के सिवा और कोई रास्ता न रहेगा। मै नहीं कह सकता हबाब तुमसे मैने कितना पाया। काश, दस-पाच साल पहले तुम मुझे मिल जाते, तो तैमूर तवारीख में इतना रूसियाह न होता। आज अगर जरूरत पड़े, तो मैं अपने जैसे सौ तैमूरों को तुम्हारे ऊपर निसार कर दू । यही समझ लो कि मेरी रूह को अपने साथ लिये जा रहे हो। आज मै तुमसे कहता हू हबीब कि मुझे तुमसे इश्क है इसे मै अब जान पाया हूं । मगर इसमें क्या बराई है कि मै भी तुम्हारें साथ चलू।
हबीब ने धड़कते हुए हदय से कहा- अगर मैं आपकी जरूरत समझूगा तो इतला दूगां।
तैमूर के दाढ़ी पर हाथ रखकर कहा जैसी-तुम्हारी मर्जी लेकिन रोजाना कासिद भेजते रहना, वरना शायद मैं बेचैन होकर चला जाऊ।
तैमूर ने कितनी मुहब्बत से हबीब के सफर की तैयारियां की। तरह-तरह के आराम और तकल्लुफी की चीजें उसके लिए जमा की। उस कोहिस्तान में यह चीजें कहा मिलेगी। वह ऐसा संलग्न था, मानों माता अपनी लड़की को ससुराल भेज रही हो।
जिस वक्त हबीब फौज के साथ चला, तो सारा समरकंद उसके साथ था और तैमूर आखों पर रूमाल रखें , अपने तख्त पर ऐसा सिर झुकाए बैठा था, मानों कोई पक्षी आहत हो गया हो।
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इस्तखर अरमनी ईसाईयों का इलाका था, मुसलमानों ने उन्हें परास्त करके वहां अपना अधिकार जमा लिया था और ऐसे नियम बना दिए थे, जिससे ईसाइयों को पग-पग अपनी पराधीनता का स्मरण होता रहता था। पहला नियम जजिये का था, जो हरेक ईसाई को देना पड़ता था, जिससे मुसलमान मुक्त थे। दूसरा नियम यह था कि गिजों में घंटा न बजे। तीसरा नियम का क्रियात्मक विरोध किया और जब मुसलमान अधिकारियों ने शस्त्र-बल से काम लेना चाहा, तो ईसाइयों ने बगावत कर दी, मुसलमान सूबेदार को कैद कर लिया और किले पर सलीबी झंडा उड़ने लगा।
हबीब को यहा आज दूसरा दिन है पर इस समस्या को कैसे हल करे।
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