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सांसारिक प्रेम और देशप्रेम प्रेमचंद saansaarik prem aur deshaprem Premchand's Hindi story

सांसारिक प्रेम और देशप्रेम प्रेमचंद saansaarik prem aur deshaprem Premchand's Hindi story

सांसारिक प्रेम और देशप्रेम्रा

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सांसारिक प्रेम और देशप्रेम

 

शहर लंदन के एक पुराने टूटे-फूटे होटल में जहां शाम ही से अंधेरा हो जाता है, जिस हिस्से में फैशनेबुल लोग आना ही गुनाह समझते हैं और जहां जुआ, शराबखोरी और बदचलनी के बड़े भयानक दृश्य हरदम आंख के सामने रहते हैं उस होटल में, उस बदचलनी के अखाड़े में इटली का नामवर देश-प्रेमी मैजिनी खामोश बैठा हुआ है। उसका सुंदर चेहरा पीला है, आंखों से चिन्ता बरस रही है, होंठ सूखे हुए हैं और शायद महीनों से हजामत नहीं बनी। कपड़े मैले-कुचैले हैं। कोई व्यक्ति जो मैजिनी को पहले से न जानता हो, उसे देखकर यह खयाल करने से नहीं रुक सकता कि हो न हो यह भी उन्हीं अभागे लोगों में है जो अपनी वासनाओं के गुलाम होकर जलील से जलील काम करते हैं।
मैजिनी अपने विचारों में डूबा हुआ हैं। आह बदनसीब कौम ! ऐ मजलूम इटली! क्या तेरी किस्मत कभी न सुधरेगी, क्या तेरे सैंकड़ों सपूतों का खून जरा भी रंग न लायेगा ! क्या तेरे देश से निकाले हुए हजारों जाँनिसारों की आहों में जरा भी तारीर नहीं। क्या तू अन्याय और अत्याचार और गुलामी के फंदे में हमेशा गिरफ्तार रहेगी। शायद तुझमें अभी सुधरने की, स्वतंत्र होने की योग्यता नहीं आयी। शायद तेरी किस्मत में कुछ दिनों और जिल्लत और बर्बादी झेलना लिखी है। आजादी, हाय आजादी, तेरे लिए मैंने कैसे-कैसे दोस्त, जान से प्यारे दोस्त कुर्बान किए। कैसे-कैसे नौजवान, होनहारा नौजवान, जिनकी माएं और बीवियां आज उनकी कब्र पर आंसू बहा रही हैं और अपने कष्टों और आपदाओं से तंग आकर उनके वियोग के कष्ट में अभागे, आफत के मारे मैजिनी को शाप दे रही हैं। कैसे-कैसे शेर जो दुश्मनों के सामने पीठ फेरना न जानते थे, क्या यह सब कुर्बानियां, यह सब भेंटें काफी नहीं हैं? आजादी, तू ऐसी कीमती चीज़ है! हां तो फिर मैं क्यों जिन्दा रहूं? क्या यह देखने के लिए कि मेरा प्यारा वतन, मेरा प्यारा देश, धोखेबाज-अत्याचारी दुश्मनों के पैरों तले रौंदा जाए, मेरे प्यारे भाई, मेरे प्यारेहमवतन, अत्याचार का शिकार बनें। नहीं, मैं यह देखने के  लिए जिन्दा नहीं रह सकता !
मैजिनी इन्हीं खयालों में डुबा हुआ था कि उसका दोस्त रफेती, जो उसके साथ निर्वासित किया गया था, इस कोठरी में दाखिल हुआ। उसके हाथ में एक बिस्कुट का टुकड़ा था। रफेती उम्र में अपने दोस्त से दो-चार बरस छोटा था। भंगिमा से सज्जनता झलक रही थी। उसने मैजिनी का कंधा पकड़कर हिलाया और कहा-जोजेफ, यह लो, कुछ खा लो।
मैजिनी ने चौंककर सर उठाया और बिस्कुट देखकर बोला-यह कहां से लाये ? तुम्हारे पास पैसे कहां थे?
रफेती-पहले खा लो फिर यह बातें पूछना, तुमने कल शाम से कुछ नही खाया है।
मैजिनी-पहले यह बता दो, कहां से लाये। जेब में तंबाकू का डिब्बा भी नजर आता है। इतनी दौलत कहां हाथ लगी?
रफेती-पूछकर क्या करोगे? वही अपना नया कोट जो मां ने भेजा था, गिरवी रख आया हूँ।
मैजिनी ने एक ठंडी सांस ली, आंखों से आंसू टप-टप जमीन पर गिर पड़े। रोते हुए बोला-यह तुमने क्या हरकत की, क्रिसमस के दिन आते हैं, उस वक्त क्या पहनोगे? क्या इटली के एक लखपती व्यापारी का इकलौता बेटा क्रिसमस के दिन भी ऐसी ही फटे-पुराने कोट में बसर करेगा? ऐं?
रफेती-क्यों, क्या उस वक्त तक कुछ आमदनी न होगी, हम-तुम दोनों नये जोड़े बनवाएंगे और अपने प्यारे देश की आने वाली आजादी के नाम पर खुशियां मनाएंगे।
मैजिनी-आमदीन की तो कोई सूरत नजर नहीं आती। जो लेख मासिक पत्रिकाओं के लिए लिखे थे, वह वापस ही आ गये। घर से जो कुछ मिलता है, वह कब खत्म हो चुका है। अब और कौन-सा जरिया है ?
रफेती-अभी क्रिसमस को हफ्ता भर पड़ा है। अभी से उसकी क्या फिक्र  करें। और अगर मान लो नहीं कोट पहना तो क्या ? तुमने नहीं मेरी बीमारी में डॉक्टर की फीस के लिए मैग्डलीन की अंगूठी बेच डाली थी ? मैं जल्दी ही यह बात उसे लिखने वाला हूं, देखना तुम्हें कैसा बनाती है।

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क्रिसमस का दिन है, लंदन में चारों तरफ खुशियों का गर्म बाजारी है। छोटे-बड़े, अमीर-गरीब सब अपने-अपने घर खुशियां मना रहे हैं और
अपने अच्छे से अच्छे कपड़े पहनकर गिरजाघरों में जा रहे हैं। कोई उदास सूरत नजर नहीं आती। ऐसे वक्त मैजिनी और रेफती दोनों उसी छोटी-सी अंधेरी कोठरी में सर झुकाए खामोश बैठे हैं। मैजिनी ठण्डी आहें भर रहा है और रफेती रह-रहकर दरवाजे पर आता है और बदमस्त शराबियों को और दिनों से ज्यादा बहकते और दीवानेपन की हरकतें करते देखकर अपनी गरीबी और मुहताजी की फिक्र दूर करना चाहता है ! अफसोस! इटली का सरताज, जिसकी एक ललकार पर हजारों आदमी अपना खून बहाने के लिए तैयार हो जाते थे, आज ऐसा मुहताज हो रहा है कि उसे खाने का ठिकाना नहीं। यहां तक कि आज सुबह से उसने एक सिगार भी नहीं पिया। तंबाकू ही दुनिया की वह नेमत थी जिससे वह हाथ नहीं खींच सकता था और वह भी आज उसे नसीब न हुआ। मगर इस वक्त उसे अपनी फिक्र नहीं रफेती, नौजवान, खुशहाल और खूबसूरत होनहार रफेती की फिक्र जी पर भारी हो रही है। वह पूछता है कि मुझे क्या हक है कि मैं एक ऐसे आदमी को अपने साथ गरीबी की तकलीफें झेलने पर मजबूर करुं जिसके स्वागत के लिए दुनिया की बस नेमतें बांहें खोले खड़ी हैं।
इतने में एक चिट्ठीरसा ने पूछा-जोजेफ मैजिनी यहां कहां रहता है ? अपनी चिट्ठी लेजा।
रफेती ने खत ले लिया और खुशी के जोश से उछलकर बोला-जोजेफ, यह लो, मैग्डलीन का खत है।
मैजिनी ने चौंककर खत ले लिया और बड़ी बेसब्री से खोला। लिफाफा खोलते ही थोड़े-से बालों का एक गुच्छा गिर पड़ा, जो मैग्डलीन ने क्रिसमस के उपहार के रुप में भेजा था। मैजिनी ने उस गुच्छे को चूमा और उसे उठाकर अपने सीने की जेब में खोंसे लिया। खत में लिखा था-
माइ डियर जोजेफ,
यह तुच्छ भेंट स्वीकार करो। भगवान करे तुम्हें एक सौ क्रिसमय देखने नसीब हों। इस यादगार को हमेशा अपने पास रखना और गरीब मैग्डलीन को भूलना मत। मैं और क्या लिखूं। कलेजा मुँह को आया जाता है। आय जोजेफ, मेरे प्यारे, मेरे स्वामी, मेरे मालिक जोजेफ, तू मुझे कब तक तड़पायेगा। अब जब्त नहीं होता। आंखों में आसूं उमड़े आते हैं। मैं तेरे साथ मुसीबतें झेलूंगी, भूखों मरुंगी, यह सब मुझे गवारा है, मगर तुझसे जुदा रहना गवारा नही। तुझे कसम है, तुझे अपने ईमान की कसम है, तुझे अपने वतन की कसम, यहां आ जा, यह आंखें तरस रही हैं, कब तूझे देखूंगी। क्रिसमस करीब है, मुझे क्या, जब तक जिन्दा हूं, तेरी हूं।

तुम्हारी
मैग्डल

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मैग्डलीन का घर स्विट्जरलैण्ड में था। वह एक समृद्ध व्यापारी की बेटी थी और अनिन्द्य सुंदरी। आन्तरिक सौंदर्य में भी उसका जोड़ मिलना मुश्किल था। कितने ही अमीर और रईस लोग उसका पागलपन सर में रखते थे, मगर वह किसी को कुछ खयाल में न लाती थी। मैजिनी जब इटली से भागा तो स्विट्जरलैण्ड में आकर शरण ली। मैग्डलीन उस वक्त भोली-भाली जवानी की गोद में खेल रही थी। मैजिनी की हिम्मत और कुर्बानियों की तारीफें पहले ही सुन चुकी थी। कभी-कभी अपनी मां के साथ यहां आने लगी और आपस का मिलना-जुलना जैसे-जैसे बढ़ा और मैजिनी के भीतरी सौन्दर्य का ज्यों-ज्यों उसके दिल पर गहरा असर होता गया, उसकी मुहब्बत उसके दिल में पक्की होती गयी। यहां तक कि उसने एक दिन खुद लाज-शर्म को किनारे रखकर मैजिनी के पैरों पर सिर रख दिया और कहा-मुझे अपनी सेवा में स्वीकार कर लीजिए।
मैजिनी पर भी उस वक्त जवानी छाई हुई थी, देश की चिन्ताओं ने अभी दिल ठंडा नहीं किया था। जवानी की पुरजोश उम्मीदें दिल में लहरें मार रही थीं, मगर उसने संकल्प कर लिया था कि मैं देश और जाति पर अपने को न्यौछावर कर दूंगा। और इस संकल्प पर कायम रहा। एक ऐसी सुंदर युवती के नाजुक-नाजुक होंठों से ऐसी दरख्वास्त सुनकर रद्द कर देना मैजिनी ही जैसे संकल्प के पक्के, हियाब के पूरे आदमी का काम था।
मैग्डलीन भीगी-भीगी आंखें लिए उठी, मगर निराश न हुई थी। इस असफलता ने उसके दिल में प्रेम की आग और भी तेज कर दी और गो आज मैजिनी को स्विट्जरलैंड छोड़े कई साल गुजरे मगर वफादार मैग्डलीन अभी तक मैजिनी को नहीं भूली। दिनों के साथ उसकी मुहब्बत और भी गाढ़ी और सच्ची होती जाती है।
मैजिनी खत पढ़ चुका तो एक लम्बी आह भरकर रफेती से बोला-देखा मैग्डलीन क्या कहती है ?
रफेती-उस गरीब की जान लेकर दम लोगे !
मैजिनी फिर खयाल में डूबा-मैग्डलीन, तू नौजवान है, सुंदर है, भगवान ने तुझे अकूत दौलत दी है, तू क्यों एक गरीब, दुखियारे, कंगाल, फक्कड़ परदेश में मारे-मारे फिरनेवाले आदमी के पीछे अपनी जिन्दगी मिट्टी में मिला रही है ! मुझ जैसा मायूस, आफत का मारा हुआ आदमी तुझे क्योंकर खुश रख सकेगा ? नहीं-नहीं, मैं ऐसा स्वार्थी नहीं हूं। दुनिया में बहुत-से ऐसे हंसमुख खुशहाल नौजवान हैं जो तुझे खुश रख सकते हैं, जो तेरी पूजा कर सकते हैं। क्यों तू उनमें से किसी को अपनी गुलामी में नहीं ले लेती। मैं तेरे प्रेम, सच्चे, नेक और नि:स्वार्थ प्रेम का आदर करता हूं। मगर मेरे लिए, जिसका दिल देश और जाति परी समर्पित हो चुका है, तू एक प्यारी हमदर्द बहन के सिवा और कुछ नहीं हो सकती। मुझमें ऐसी क्या खूबी है, ऐसे कौन से गुण हैं कि तुझ जैसी देवी मेरे लिए ऐसी मुसीबतें झेल रही है। आह मैजिनी, तू कहीं का ना हुआ। जिनके लिए तूने अपने को न्यौछावर कर दिया, वह तेरी सूरत से नफरत करते हैं। जो तेरे हमदर्द हैं, वह समझते हैं तू सपने देख रहा है।
इन खयालों में बेबस होकर मैजिनी न कलम-दवात निकाली और मैग्डलीन को खत लिखना शुरु किया।

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प्यारी मैग्डलीन,
तुम्हारा खत उस अनमोल तोहफे के साथ आया। मैं तुम्हारा हृदय से कृतज्ञ हूं कि तुमने मुझ जैसे बेकस और बेबस आदमी को इस भेंट के काबिल समझा। मैं उसकी हमेशा कद्र करूंगा। यह मेरे पास हमेशा एक सच्चे, नि:स्वार्थ और अमर प्रेम की स्मृति के रुप में रहेगा और जिस वक्त यह मिट्टी का शरीर कब्र की गोद में जाएगा मेरी आखिरी वसीयत यह होगी कि वह यादगार मेरे जनाजे के साथ दफन कर दी जाये। मैं शायद खुद उस ताकत का अन्दाजा नहीं लगा सकता जो मुझे इस खयाल से मिलती है, कि दुनिया में जहां चारों तरफ मेरे बारे में बदगुमानियां फैल रही हैं, कम से कम एक ऐसी नेक औरत है जो मेरी नीयत की सफाई और मेरी बुराइयों से पाक कोशिश पर सच्ची निष्ठा रखती है और शायद तुम्हारी हमदर्दी का यकीन है कि मैं जिन्दगी की ऐसी कठिन परीक्षाओं में सफल होता जाता हूं।
मगर प्यारी बहन, मुझे कोई तकलीफ नहीं है। तुम मेरी तकलीफों के खयाल से अपना दिल मत दुखाना। मैं बहुत आराम से हूं। तुम्होरे प्रेम जैसी अक्षयनिधि पाकर भी अगर मैं कुछ थोड़े-से शारीरिक कष्टों का रोना रोऊं तो मुझ जैसा अभागा आदमी दुनिया में कौन होगा।
मैंने सुना है, तुम्हारी सेहत रोज-ब-रोज गिरती जा रही है। मेरा जी बेअख्तियार चाहता है कि तुम्हें देखूं। काश, मेरा दिल इस काबिल होता कि तुम्हें भेंट चढ़ा सकता। मगर एक पजमुर्दा उदास दिल तुम्हारे काबिल नहीं। मैग्डलीन, खुदा के वास्ते अपनी सेहत का खयाल रक्खो, मुझे शायद उससे ज्यादा और किसी बात की तकलीफ न होगी कि प्यारी मैग्डलीन तकलीफ में है और मेरे लिए ! तुम्हारा पाकीजा चेहरा इस वक्त निगाहों के सामने है। मेगा ! देखों मुझसे नाराज न हो। खुदा की कसम मैं तुम्हारे काबिल नहीं हूं। आज क्रिसमस का दिन है, तुम्हें क्या तोहफा भेजूँ। खुदा तुम पर हमेशा अपनी बेइन्तहा बरकतों का साया रक्खे। अपनी मां को मेरी तरफ से सलाम कहना। तुम लोगों को देखने की इच्छा है। देखें कब तक पूरी होती हैं।


तुम्हारा जोजेफ

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इस वाकये के बाद बहुत दिन गुजर गए। जोजेफ मैजिनी फिर इटली पहुंचा और रोम में पहली बार जनता के राज्य का एलान किया गया। तीन आदमी राज्य की व्यवस्था के लिए निर्वाचित किये गये। मैजिनी भी उनमें एक था। मगर थोड़े ही दिनों में फ्रांस की ज्यादतियों और पोडमांट के बादशाह की दगाबाजियों की बदौलत इस जनता के राज का खात्मा हो गया और उसके कर्मचारी और मंत्री अपनी जानें लेकर भाग निकले। मैजिनी अपने विश्वसनीय मित्रों की दगाबाजी और मौका परस्ती पर पेचोताब खाता हुआ खस्ताहाल और परेशान रोम की गलियों की खाक छानता फिरता था। उसका यह सपना कि रोम को मैं जरुर एक दिन जनता के राज का केंद्र बनाकर छोडूंगा, पूरा होकर फिर तितर-बितर हो गया।

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