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शिवोहम-आनंदोत्सव - मातृ - पितृ देवो भव: ||

विचार - प्रभात कुमार

शिव आनंद हैं। आनंद आत्मा का लक्षण है, सार है। आनंद हीं सृष्टि का परम गुह्य तत्व है।
आनंद आत्मा के साथ हृदय में ही स्थित है। फिर भी शून्यता में विश्रांति (idle) के कारण व्यक्ति निरानंद (आनंद का अभाव) रहता है। व्यक्ति जब अपने में शिव होने की, अपने भीतर शिव के अवस्थित होने की अवस्था को प्राप्त करता है तो समस्त बाधाओं से रहित होकर चिदानंद (सत्, चित् एवं आनंद से युक्त सत्ता) प्राप्त करता है।

चिदानंद रूप: शिवोहम शिवोहम ||

शिवोहम की स्थिति में शिव से एक रुप होकर अखंड आनंद का अनुभव होने लगता है। फिर व्यक्ति अशिव या अमंगलकारी दुखों की ओर लौट कर नहीं आता। व्यक्ति फिर आनंद जो स्वभाविक और वास्तविक अवस्था है, उसमें बना रहता है। इस अवस्था में व्यक्ति विजयी और शक्तिशाली होता हुआ मंगलमय वृद्धि एवं सुख समृद्धि को प्राप्त कर सकता है।
इसी आनंद, इसी शिव को प्राप्त करने के लिए हम लोग शिवोहम आनंदोत्सव करते हैं जिसमें हम सभी रुद्र अपने भीतर शिव होने का अनुभव एवं आनंद उठाएंगे तथा रुद्राक्ष निर्मित शिवलिंग के समक्ष अपनी सकारात्मक ऊर्जा को जाग्रृत करेंगे । अगर स्वयं में सकारात्मक ऊर्जा (+ve Energy) है तो संपन्नता आती है। सकारात्मक रहेंगे तो प्रसन्न रहेंगे। याद रखें लक्ष्मी प्रसन्नवदना हैं। प्रसन्नता में ही लक्ष्मी का वास है।
शिव सिर्फ एक ईश्वर या किसी खास धर्म से जुड़े देव न होकर जीव व्यवस्था हैं। शिवपुराण के शतरुद्र संहिता में पेज नं. 441 पर वर्णित है कि रुद्र महादेव की ईशान, पुरुष, घोर, वामदेव और ब्रह्म पांच विशेष प्रसिद्ध मूर्तियां हैं। महेश्वर का सम्पूर्ण जगत को प्रकाशित करने वाला जो सूर्य नामक रूप है, उसे ईशान कहते हैं। अमृतमयी रश्मियों वाला जो चंद्रमा सारे विश्व को खुशी प्रदान करता है, शिव का वह रुप महादेव है। (पेज 442.)

शिव सम्पूर्ण सृष्टि हैं।

शिवोहम आन्दोसत्व में भगवन शिव के आराधना के साथ साथ मुख्य रूप से दो कार्य संपन्न होना है -

1. मौन शक्ति साधना | स्वयं के रूद्र को जगाना |

2. मातृ पितृ देवो भव: - बच्चों को उनके माता-पिता के द्वारा उनके लालन-पालन एवं जीवन सवांरने हेतु किये गए अमूल्य त्यागों और कार्यों का महत्त्व प्रकृति के द्वारा महसूस कराना|

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