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Samyak Samaj - Rudra Parivar Ideology

सम्यक समाज - रुद्र परिवार विचारधारा

 
Rudra

विचार - प्रभात कुमार

हमारी आस्था है कि सृष्टि का आरंभ अर्धनारीश्वर, निष्कल महादेव परमपिता भगवान रुद्र एवं माता शक्ति से है।

हम प्रकृतिवादी व्यवस्था को मानते हैं जिसमें प्रतीक के तौर पर प्रकृति-पुरूष (शिवलिंग - लिंग योनी) की पूजा महत्ता विशेष रूप से की जाती है। यह वही व्यवस्था है जिसमें आराध्य शिव सभी को साथ रखते हैं और सभी के लिए समान भाव रखते हैं। यहां स्त्री-पुरूष समान भाव से पूजित हैं। स्त्री की पवित्रता, महत्ता, समानता को स्वीकार करते हैं। उसकी प्रसन्नता का ध्यान रखते हैं। प्रसन्न स्त्री धार्मिक (उत्त्म) समाज की पहचान है जहां दोनों बराबर हैं। शिवलिंग स्त्री-पुरूष सह अस्तित्व का प्रतीक है और यह वैश्विक समाज की व्यवस्था के लिए है। भगवान बुद्ध ने भी इसी व्यवस्था को पुनर्जीवित किया था और समयानुकूल व्यवस्था में परिवर्तन को स्वीकृत किया था।

धर्म सहज एवं सरल (तनाव मुक्त) जीवन का आधार है। ईश्वर द्वारा प्रदत इस जीवन को प्रकृति के नियमानुसार आनंदपूर्वक भोगना ही धर्म है। संसार के सभी धर्म अपने मूल रूप में सहज एवं सरल ही हैं। सभी में समानता की बात है। देश-काल एवं प्रकृति के अनुसार सिर्फ भिन्न व्याख्या है और काल-क्रम में विभिन्न सामाजिक नियम समाहित होते चले गये हैं।

ईश्वर (परमपिता निष्कल महादेव एवं माता शक्ति) ने सभी को जन्म दिया है इसलिये सभी मनुष्य बराबर हैं। छूत-अछूत, अगड़ा-पिछड़ा ये सब अधार्मिक बात है। इसकी व्यवस्था ईश्वर की रचना के विपरीत है। अत: इस व्यवस्था को ईश्वर के विरूद्ध मानते हैं। हम योग्यता आधारित समाज की दृष्टि रखते हैं। सकारात्मकता इस समाज की आत्मा है। हमारा लक्ष्य स्पष्ट और सकारात्मक दृष्टि पैदा करना है ताकि पूर्ण ऊर्जा से युक्त होकर अच्छी जिंदगी के लिए सफल प्रयास करें।
रुद्र परिवार स्त्री-पुरूष में भेद नहीं मानता। वीर्य स्वच्छ और बलवान (श्रेष्ठ) है तथा मासिक-धर्म अस्वच्छ इस मानसिकता को पूरी तरह नकारता है। मासिक-धर्म भी प्राकृतिक है, जीवन चक्र से संबंधित है अतः अस्वच्छता या अछूत की बात नहीं हो सकती। जन्म पक्रिया का हीं एक भाग है मासिक। ईश्वर ने स्त्री-पुरूष दोनों को बनाया है इसलिये दोनों बराबर हैं।

यह शरीर हमें ईश्वर की असीम अनुकंपा के बाद प्राप्त होती है। यही शरीर धर्म का वाहक है अत: इस शरीर की एवं उसकी विभिन्न आवश्यकतओं की पूर्ति करनी चाहिये। यौन-संतुष्टि भी धर्म का भाग है क्योंकि हमारे शरीर में यौन इच्छा उत्पन्न होती है। परंतु यह पूर्ति इस प्रकार से हो जिसमें किसी दूसरे को शारीरिक या मानसिक कष्ट न हो। दूसरे को शारीरिक या मानसिक कष्ट पहुंचाना सबसे बड़ा पाप है।

Our belief is that the beginning of the world is from Ardhnarishwar Lord Rudra Mahadev and Mother Shakti.
We believe in the naturalistic system in which the Prakriti-Purush (Shivalinga - Linga Yoni) is specially worshiped as a symbol. This is the system in which the adorable Shiva keeps everyone together and keeps the same sentiment for everyone.

www.samyaksamaj.com

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