प्रदोष का व्रत
pradosh ka vrat
प्रदोष का व्रत
Pradosh's fast
प्रदोष व्रत किसे कहते हैं?
प्रदोष व्रत का वर्णन स्कंद पुराण में है जो भगवान शिव और माता पार्वती से जुड़ा है। कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को जो व्रत रखा जाता है उसे प्रदोष व्रत कहते हैं। ये उपवास माता पार्वती और भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। स्कंद पुराण में इस व्रत के बारे में बताते हुए कहा गया है कि भगवान शिव प्रदोष के समय कैलाश पर्वत स्थित अपने रजत भवन में नृत्य करते हैं और जो भी व्रतधारी इस समय पूजा करता है उसे भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा प्राप्त होती है।
प्रदोष (त्रयोदशी) व्रत कथा त्रयोदशी अर्थात् प्रदोष का व्रत करने वाला मनुष्य सदा सुखी रहता है। उसके सम्पूर्ण पापों का नाश इस व्रत से हो जाता है। इस व्रत के करने से विधवा स्त्रियों को अधर्म से ग्लानि होती है और सुहागन नारियों का सुहाग सदा अटल रहता है, बन्दी कारागार से छूट जाता है। जो स्त्री पुरुष जिस कामना को लेकर इस व्रत को करते हैं, उनकी सभी कामनाएँ कैलाशपति शंकर पूरी करते हैं। सूत जी कहते हैं- त्रयोदशी का व्रत करने वाले को सौ गऊ दान का फल प्राप्त होता है। इस व्रत को जो विधि विधान और तन, मन, धन से करता है उसके सभी दुःख दूर हो जाते हैं। सभी माता-बहनों को ग्यारह त्रयोदशी या पूरे साल की 26 त्रयोदशी पूरी करने के बाद उद्यापन करना चाहिये।
प्रदोष व्रत महीने में कितने बार किया है?
प्रदोष का व्रत महीने में दो बार आता है। एक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को और दूसरा शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को।
प्रदोष व्रत की पूजा कब करनी चाहिए ? When should Pradosh Vrat puja be performed?
शास्त्रीय दृष्टि से सायंकाल के बाद और रात्रि आने के पूर्व दोनों के बीच का जो समय है उसे प्रदोष कहते हैं। अत: प्रदोष व्रत की पूजा में भगवान शिव का पूजन भी उसी समय करना चाहिये।
प्रदोष व्रत पूजा की विधि - Method of Pradosh Vrat Puja -
प्रदोष व्रत करने वाले को दिनभर भोजन नहीं करना चाहिये। शाम के समय जब सूर्यास्त में तीन घड़ी का समय शेष रह जाए तब स्नानादि कर्मों से निवृत्त होकर, श्वेत वस्त्र धारण करके तत्पश्चात् संध्यावन्दन करने के बाद शिवजी का पूजन प्रारंभ करना चाहिए। पूजा के स्थान को स्वच्छ जल से लीपें। वहाँ मण्डप बनाएँ। वहाँ पाँच रंगों के पुष्पों से पद्म पुष्प की आकृति बनाकर कुश का आसन बिछायें, आसन पर पूर्वाभिमुख बैठें। इसके बाद भगवान महेश्वर का ध्यान करें।
ध्यान का स्वरूप -
करोड़ों चन्द्रमा के समान कान्तिवान, त्रिनेत्रधारी, मस्तक पर चन्द्रमा का आभूषण धारण करने वाले पिंगलवर्ण के जटाजूटधारी, नीले कण्ठ तथा अनेक रुद्राक्ष मालाओं से सुशोभित, वरदहस्त, त्रिशूलधारी, नागों के कुण्डल पहने, व्याघ्र चर्म धारण किए हुए, रत्नजड़ित सिंहासन पर विराजमान शिवजी का ध्यान करना चाहिये।
व्रत के उद्यापन की विधि -
प्रातः स्नानादि कार्य से निवृत होकर रंगीन वस्त्रों से मण्डप बनावें। फिर उस मण्डप में शिव-पार्वती की प्रतिमा स्थापित करके विधिवत पूजन करें। तदन्तर शिव पार्वती के उद्देश्य से खीर से अग्नि में हवन करना चाहिए। हवन करते समय ॐ उमा सहित शिवाय नमः ' मन्त्र से १०८ बार आहुति देनी चाहिये। इसी प्रकार ॐ नमः शिवाय' के उच्चारण के शंकर जी के निमित्त आहुति प्रदान करें। हवन के अन्त में सामर्थ्य के अनुसार दान देना चाहिये (अयोग्यं लोभी वा कस्मैचित् दानं दत्तं चेत् उपवासः शून्यः इति शास्त्रीयः प्रत्ययः - अयोग्य या लालची को दान देने से व्रत निष्फल है ऐसा शास्त्रीय मत है अत: योग्य धार्मिक व्यक्ति को दान देना चाहिये )। अपने बन्धु बान्धवों की साथ में लेकर मन में भगवान शंकर का स्मरण करते हुए व्रती को भोजन करना चाहिये। इस प्रकार उद्यापन करने से व्रती पुत्र-पौत्रादि से युक्त होता है तथा आरोग्य लाभ करता है। इसके अतिरिक्त वह अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है एवं सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है। ऐसा स्कन्द पुराण में कहा गया है।
दिन के हिसाब से प्रदोष व्रत का परिचय एवं महत्त्व
त्रयोदशी के दिन जो वार पड़ता हो उसी का त्रयोदशी प्रदोष व्रत करना चाहिये तथा उसी दिन की कथा पढ़नी व सुननी चाहिये। त्रयोदशी प्रदोष व्रत में रवि प्रदोष व्रत, सोम प्रदोष व्रत, शनि प्रदोष व्रत अवश्य करें। इन सभी से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।
व्रत कथा एवं पूजा विधि के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें
१. रवि प्रदोष - दीर्घ आयु और आरोग्यता के लिये रवि प्रदोष व्रत करना चाहिये।
२. सोम प्रदोष - ग्रह दशा निवारण कामना हेतु सोम प्रदोष व्रत करें।
३. मंगल प्रदोष - रोगों से मुक्ति और स्वास्थ्य हेतु मंगल प्रदोष व्रत करें।
४. बुध प्रदोष - सर्व कामना सिद्धि के लिये बुध प्रदोष व्रत करें।
५. बृहस्पति प्रदोष - शत्रु विनाश के लिये बृहस्पति प्रदोष व्रत करें।
६. शुक्र प्रदोष - सौभाग्य और स्त्री की समृद्धि के लिये शुक्र प्रदोष व्रत करें।
७. शनि प्रदोष – खोया हुआ राज्य व पद प्राप्ति कामना हेतु शनि प्रदोष व्रत करें।
What is Pradosh Vrat?
Pradosh Vrat is described in Skanda Purana which is associated with Lord Shiva and Mother Parvati. The fast observed on Trayodashi of Krishna Paksha and Trayodashi of Shukla Paksha is called Pradosh Vrat. This fast is observed to please Mother Parvati and Lord Shiva. While explaining about this fast in Skanda Purana, it is said that Lord Shiva dances in his silver palace situated on Mount Kailash during the time of Pradosh and whoever observes the fast at this time gets the blessings of Lord Shiva and Mother Parvati.
How many times in a month have you observed Pradosh Vrat?
Pradosh fast comes twice a month. One on Trayodashi of Krishna Paksha and the other on Trayodashi of Shukla Paksha.
When should Pradosh Vrat puja be performed? When should Pradosh Vrat puja be performed?
From the classical point of view, the time between after evening and before nightfall is called Pradosh. Therefore, during the worship of Pradosh Vrat, Lord Shiva should also be worshiped at the same time.
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