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गोमूत्र एक महौषधि है।

Deshi Gaay's urine is a great medicine.

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गोमूत्र एक महौषधि है।

Author © Copyright: Sadhak Prabhat गौ-माता, पंचगव्य और गोमूत्र से होने वाले लाभ की जानकारी जन जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से निर्मित वेब पेज, गो-सेवा को समर्पित।

गोमूत्र एक महौषधि है। जो गायें वन-औषध क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से स्वच्छन्द विचरण करते हुए हिमालय की जड़ी-बूटियों का सेवन करती है, उनका गोमूत्र और भी औषधीय गुणों से युक्त हो जाता है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के अनुसार गोमूत्र में कार्बोलिक एसिड, पोटैशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फेट, पोटाश, अमोनिया, नाइट्रोजन, लैक्टोज, हार्मोन्स (पाचक रस) तथा अनेक प्राकृतिक लवण पाये जाते हैं, जो मानव-शरीर की शुद्धि तथा पोषण करते हैं। दन्तरोग में गोमूत्र का कुल्ला करने से दाँत दर्द ठीक होना सिद्ध करता है कि उसमे कार्बोलिक एसिड समाविष्ट है। गोमूत्र में विद्यमान कैलशियम हड्डियों को सबल बनाता है। सिफलिस-गोनोरिया जैसे रोगों को मिटाता है। गोमूत्र मज्जा एवं वीर्य को परिष्कृत करता है। गैस्ट्रिक की समस्या में यदि आरम्भ से ही गोमूत्र का सेवन कराया जाए तो यह पाचनतंत्र धीरे-धीरे सबल बनकर रोगमुक्त बना देता है। जुकाम, सर्दी, साँस फूलना, दमा आदि में गोमूत्र में वासाचूर्ण मिलाकर पीने से शीघ्र लाभ होता है। घुटने, कुहनियों, पैर की पिण्डलियों में दर्द, साइटिका आदि रोग होने पर, मांसपेशियों में दर्द, सूजन होने पर गोमूत्र से बढ़कर दूसरी कोई औषधि नहीं है। गोमूत्र कब्ज, यकृत रोग, बवासीर, खाज-खुजली, हृदय रोग, हाथी-पाँव (फीलपाँव), गुर्दा रोग आदि में लाभदायक है। गोमूत्र शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर सभी रोगों से छुटकारा दिलाता है। यह मोटापा कम करने के लिए रामबाण व कैन्सर, एप्लास्टिक एनिमिया जैसे रोगों में भी अत्यन्त लाभकारी है।

आयुर्वेद के अनुसार गौमूत्र के गुण
आयुर्वेद के अनुसार गौमूत्र पंचरस युक्त अर्थात रस में कटु, तिक्त, कषाय, मधुर, लवण है। गुण में पवित्र, विषनाशक, जीवाणुनाशक, त्रिदोषनाशक, तांत्रिक, मेधशक्तिवर्धक है। यह अकेला ही पीने से सभी रोग नाशक है। प्रभाव में तांत्रिक, सर्वरोग नाशक है। यह कायिक, मानसिक रोगों का नाश करता है। यह योगियों का दिव्य पान है, जिससे वे दिव्य शक्ति पाते थे। अमेरिका में भी अनुसंधान से सिद्ध हो गया है कि विटामिन 'बी' तो गौ के पेट में सदा ही रहता है। यह सतोगुण वाला है। विचारों में सात्विकता लाता है। 6 मास लगातार पीने से आदमी की प्रकृति सतोगुणी हो जाती है। रजोगुण, तमोगुण का नाशक है। शरीरगत विष भी पूर्ण रूप से मूत्र, पसीना, मलांश के द्वारा बाहर निकालता है। मनोरोग नाशक है।
सुश्रुत संहिता सूत्र स्थान के 45 वें अध्याय में गौमूत्र के पूरे गुण लिखे गये हैं। सुश्रुत संहिता गौमूत्र का वर्णन कड़वा, चरका, कषैला, तीक्ष्ण, उष्ण, शीघ्र पाँचक, मस्तिष्क के लिए शक्तिवर्धक, कफ वात हरने वाला, शूल (Colic) गुल्म, उदर, आनाह, कुण्डु (Itching Pain) खुजली, मुखरोग नाशक है। यह किलास (Lucodermo) कुष्ठ, आम, बस्तिरोग नाशक है। नेत्र रोग नाशक है। इससे अतिसार (Amebiasis) वायु के सब विकार, कास, शोथ, उदररोग, कृमि, पाण्डु, तिल्ली, कर्णरोग, श्वास, मलावरोध, कामला, बिल्कुल ठीक होते हैं। चिकित्सा में गौमूत्र का ही प्रयोग करना चाहिए। सभी मूत्रों में गौमूत्र में गुण अधिक है। अतः गौमूत्र का ही प्रयोग करना चाहिए। आयुर्वेद के अति प्रचलित ग्रंथ भाव प्रकाश संग्रह तथा फारसी ग्रन्थ, 'अजायबुल्मखलुकात' में अनेक असाध्य रोगों की गौमूत्र से चिकित्सा का वर्णन है।

 
Sahiwal Cow उत्तम दूध देनेवाली गाय (दुधारू गौ माता) की पहचान कैसे करें

गाय जो वन में विचरण करके, व्यायाम करके इच्छानुसार घास का सेवन करे, स्वच्छ पानी पीवे, स्वस्थ हो; उस गौ का गौमूत्र औषधि गुणवाला होगा। गौमूत्र किसी भी आयु की गौ का गौमूत्र औषधि प्रयोग में लिया जा सकता है चाहे वह बच्ची, जवान, बूढ़ी हो।

जवान बैल, छोटा बच्चा या वुद्ध बैल का भी गौमूत्र औषधि उपयोग में आता है। नर जाति का मूत्र अधिक तीक्ष्ण होता है, पर औषधि उपयोगिता में कम नहीं है, क्योंकि प्रजाति तो एक ही है।

गौमूत्र को मिट्टी, काँच, चीनी मिट्टी एवं स्टील के पात्र पात्र में रखना चाहिए। गौमूत्र को ताँबे या पीतल के पात्रा में नहीं रखना चाहिए। गौमूत्र लंबे अवधी तक संग्रह किया जा सकता है। गौमूत्र आजीवन चिर गुणकारी होता है। धूल न गिरे, ठीक तरह से ढँका हुआ हो तो गुणों में कभी खराब नहीं होता है। रंग कुछ लाल -काला, ताँबा व लोहा के कारण हो जाता है। गौमूत्र में किसी प्रकार के हानिकारक कीटाणु नहीं होते हैं।

जर्सी गाय के वंश का गौमूत्र नहीं लिया जाना चाहिए।

आधुनिक रसायन शास्त्र के अनुसार गौमूत्र के रासायनिक तत्वों का रोगों पर प्रभाव विवरण
1. नाइट्रोजन मूत्रल, वृक्क का प्राकृतिक उत्तेजक, रक्त विषमयता को निकालता है।
2. गंधक (सल्फर) बड़ी आँत की पुःसरण क्रिया को बल मिलता है। रक्त शोधक है।
3. अमोनिया - यह शरीर धातुओं और रक्त संगठन को स्थिर करता है।
4. अमोनिया गैस - फेफडों व श्वसन अंगों को संक्रमण से बचाता है।
5. तांबा (कॉपर) - अनुचित मेद ( चर्बी) को बनने से रोकता है। शरीर की जीवाणुओं से रक्षा करता है।
6. आयरन - रक्त में उचित लाल कणों का निर्माण बनाये रखता है। कार्य शक्ति स्थिर रखता है।
7. यूरिया - मूत्र उत्सर्ग पर प्रभाव करता है। कीटाणु नाशक है।
8. यूरिक एसिड - हृदय शोथ नाशक, मूत्रल होने से विषशोधक है।
9. फॉस्फेट - मूत्रवाही संस्थान से सिकता कण (पथरी कण) निकालने में सहायक है।
10. सोडियम - रक्त शोधक, अम्लता नाशक है।
11. पोटेशियम आमवात नाशक क्षुधा कारक है। मांसपेशी दौर्बल्य, आलस्य मिटाता है।
12.मैंगनीज - कीटाणुनाशक, कीटाणु बनने से रोकता है. गैंगरीन सड़ांध से बचाता है।
13. कार्बोलिक एसिड - कीटाणु नाशक, कीटाणु बनने से रोकना, सड़ांध से बचाता है।
14. कैल्सियम - रक्त शोधक, अस्थि पोषक, रक्त स्कन्दक है।
15. लवण (नमक) - दूषित व्रण, नाड़ी व्रण, मधुमेह जन्य संन्यास, विषमयता, अम्लरक्तता नाशक।
16. विटामिन ए, बी, सी, डी, ई - विटामिन जीवनीय तत्व, उत्साहस्फूर्ति बनाये रखना एवं घबराहट, प्यास से बचाता है। अस्थि पोषक प्रजनन शक्ति दाता है।
17. अन्य मिनरल्स - रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाता हैं।
18. दुग्ध शर्करा - तृप्ति रहती है। मुख शोष, हृदय को ताकत देता है, स्वस्थ करता है प्यास, घबराहट को मिटाता है।
19. एन्जाइम्स - पाचक रस बनाते हैं। रोग प्रतिरोधक शक्ति ( आरोग्यकारक तत्व ) बढ़ाते हैं।
20. जल - जीवनदाता है, रक्त को तरल बनाए रखता है। तापक्रम को स्थिर रखता है।
21. हिम्युरिक एसिड - मूत्र के द्वारा विषों को बाहर निकालता है।
22. हार्मोन्स - आठ मास की गर्भवती गाय के गौमूत्र में हारमोन्स ही होते हैं। जो स्वास्थ्यवर्धक है।
23. स्वर्ण क्षार - रोग निरोधक शक्ति बढ़ाता है।

Traditional Deshi Cow urine is a great medicine. -

Cow urine is a great medicine. Cows who consume Himalayan herbs while wandering naturally in the forest-medicine area, their cow urine becomes even more medicinal. According to modern medical science, cow urine contains carbolic acid, potassium, calcium, magnesium, phosphate, potash, ammonia, nitrogen, lactose, hormones (digestive juice) and many natural salts, which purify and nourish the human body. Toothache is cured by gargling with cow urine in dentistry, which proves that it contains carbolic acid. The calcium present in cow urine strengthens the bones. Cures diseases like syphilis-gonorrhea. Cow urine purifies marrow and semen. If cow urine is consumed from the beginning in gastric problem, then it gradually strengthens the digestive system and makes it disease-free. In case of cold, cold, shortness of breath, asthma, etc., taking cow urine mixed with Vasa powder gives quick benefits. There is no better medicine than cow's urine for pain in knees, elbows, calves, sciatica etc., muscle pain and swelling. Cow urine is beneficial in constipation, liver disease, piles, itching, heart disease, elephant's foot (elephant), kidney disease etc. Cow urine gets rid of all diseases by increasing the immunity of the body. It is a panacea for reducing obesity and is also very beneficial in diseases like cancer, aplastic anemia.

Note - This web page is only for providing information related to Panchagavya and cow urine therapy. Not for medical purposes. Be sure to consult a Panchgavya and cow urine doctor before using it for medical purposes.

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