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भगवान गणेश और उनकी पूजा से जुड़े प्रश्न और उनके उत्तर

Questions and answers related to God Ganesha

सङ्कटनाशन गणेश स्तोत्रम् * श्री गणपति स्तोत्रम् * श्री गणेश चालीसा * श्री गणेश आरती * विघ्नहर्ता गणेश जी की मूर्ति का स्वरूप और उसका फल * श्री मयूरेश स्तोत्र * संकटनाशन गणेश चतुर्थी चौदह व्रत कथा * गणेश चतुर्थी * भगवान गणेश और उनकी पूजा से जुड़े प्रश्न और उनके उत्तर * श्री गणेश सहस्त्रनामावली * श्री सिद्धिविनायक मंदिर गणपति आरती * विघ्ननाशक गणपति स्तोत्र * अथर्ववेदीय गणपति शान्ति पाठ * संतान प्राप्ति हेतु गणपति स्तोत्र * गणेश पुराण नारद पुराण संकटनाशन श्री गणपति स्तोत्र * श्री लक्ष्मी गणेश स्तोत्र * श्री गणेश के 108 नाम और मंत्र * श्री गणेश के 32 नाम और उनके स्वरूप * श्री गणेश पंचरत्न स्तोत्र
 
गणेश पूजा से संबंधित प्रश्न और उत्तर Questions and answers related to Ganesh Puja
 

भगवान गणेश और उनकी पूजा से जुड़े प्रश्न और उनके उत्तर

Questions and answers related to Lord Ganesha and his worship

आलेख © कॉपीराइट - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)

विघ्नहर्ता भगवान् गणेश की पूजा आमतौर पर सभी हिन्दुओं के घर में होती है। सभी विघ्ननों को हरने और घर में सुख-समृद्धि के आगमन के लिए गणेश जी की मूर्ति के विभिन्न स्वरूपों की स्थापना की जाती है। यहाँ पर गणेश पूजा से संबंधित प्रश्न और उत्तर यहां दिए जा रहे हैं ताकि भगवान गणेश के भक्तों को गणेश जी की साधना करने में सुविधा हो।

माता लक्ष्मी और गणेश भगवान् का एक साथ पूजा क्यों की जाती है ? लक्ष्मी जी और गणेश जी का क्या रिश्ता है?

माता लक्ष्मी ने गणेश जी को माता पार्वती से गोद ली थीं। गणेश को पुत्र रूप में पाकर माता लक्ष्मी अतिप्रसन्न हुईं और उन्होंने गणेश जी को यह वरदान दिया कि जो भी मेरी पूजा के साथ तुम्हारी पूजा नहीं करेगा मैं उसके पास नहीं रहूंगी। इसलिए सदैव लक्ष्मी जी के साथ उनके 'दत्तक-पुत्र' भगवान गणेश की पूजा की जाती है।

भगवान गणेश का पहला नाम क्या था?

भगवान गणेशजी का मस्तक या सिर कटने के पूर्व उनका नाम विनायक था। परंतु जब उनका मस्तक काटा गया और फिर उसे पर हाथी का मस्तक लगाया गया तो सभी उन्हें गजानन कहने लगे। फिर जब उन्हें गणों का प्रमुख बनाया गया तो उन्हें गणपति और गणेश कहने लगे।

विनायक चतुर्थी किसका प्रतीक है? गणेश चतुर्थी का दूसरा नाम क्या है? संकष्टी चतुर्थी किसे कहते हैं ?

गणेश चतुर्थी, जिसे विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है, भगवान गणेश के जन्म के स्मरणोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। समृद्धि और ज्ञान के देवता, हाथी के सिर वाले देवता गणेश के जन्म का यह 10 दिवसीय त्योहार है।

संकष्टी चतुर्थी जिसे सकट चौथ के नाम से भी जानते हैं कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मानते हैं। इस दिन बच्चों के लंबे स्वास्थ्य और जीवन के लिए उपवास करते हैं। कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश का पूजन करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।

गणेश चतुर्थी 10 दिनों तक क्यों मनाई जाती है?

महर्षि वेदव्यास ने जब शास्त्रों की रचना प्रारम्भ की तो भगवान ने प्रेरणा कर प्रथम पूज्य बुद्धि निधान श्री गणेश जी को वेदव्यास जी की सहायता के लिए गणेश चतुर्थी के दिन भेजा। वेदव्यास जी ने गणेश जी का आदर सत्कार किया और उन्हें एक आसन पर स्थापित एवं विराजमान किया। महर्षि वेदव्यास महाभारत की कथा कहते थे और गणेश जी उसको लिखते थे। महाभारत का लिखने का कार्य लगातार 10 दिनों तक चला था। अनंत चतुर्थी के दिन जब महाभारत लेखन का कार्य गणेश जी ने पूर्ण किया तो उनके शरीर पर धूल-मिट्टी जम चुकी थी। गणेश जी के शरीर की ऊष्मा का निष्किलन या उनके शरीर को शांत एवं साफ करने के लिए वेदव्यास जी ने उनके शरीर पर गीली मिट्टी का लेप किया। इसके उपरांत उन्होंने गणेश जी को सरस्वती नदी में स्नान करवाया, जिसे विसर्जन का नाम दिया गया। यही कारण है कि गणपति स्थापना 10 दिन के लिए ही की जाती और मनाई जाती है।

क्या गणेश की मूर्ति को 3 दिन तक घर पर रख सकते हैं?

गणेश पूजा एवं साधना के लिए परंपरा के अनुसार, गणेश की मूर्ति को 1, 3, 7 या 10 दिनों के लिए घर ले जा सकते हैं।

गणेश चतुर्थी की शुरुआत किसने की थी?

इतिहासकारों का मानना ​​है कि 1,200 साल पहले गणेश एक महत्वपूर्ण देवता थे, जिनके अनुयायियों के संप्रदाय को गणपत्य कहा जाता था। गणेश चतुर्थी उत्सव सातवाहन, राष्ट्रकूट और चालुक्य राजवंशों के शासन काल से चला आ रहा है, जो 271 ईसा पूर्व से 1190 ईस्वी तक फैला था। लगभग इसी समय पल्लव राजाओं के शासनकाल में तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में पत्थरों में गणेशजी को समर्पित एक मंदिर उकेरा गया। यहां वे 'पिल्लैयार' नाम से जाने जाते थे। लगभग 500 साल पहले गणपत्य संत मोरया गोसावी के कारण महाराष्ट्र में गणेश पूजा प्रचलित हुई। ऐतिहासिक साक्ष्य बताते हैं कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने संस्कृति और राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने के तरीके के रूप में उत्सव शुरू किया था। अंत में गणेश पेशवाओं के संरक्षक देवता बन गए।

गणपति बप्पा मोरया में मोरया क्या है?

गणेश पुराण में गणेशजी की सवारी मोर बताया गया है। मोर पर सवार होने के कारण इन्हें मयूरेश्वर भी कहते हैं। मयूर इनकी सवारी होने के कारण इन्हें मोरया कहा जाता है।

सकट चौथ में पानी पी सकते हैं क्या?

सकट चौथ में पानी पी सकते हैं, प्रतिबंध नहीं है लेकिन कई व्रत रखने वाले सूखा उपवास रखते हैं यानी पानी नहीं पीते। परन्तु किसी भी हालत में भोजन करने से परहेज करते हैं।

गणेश व्रत में क्या खाना चाहिए?

उपवास के दौरान, दिन में एक बार सात्विक भोजन अपनाने की सलाह दी जाती है, और दिन के समय आप फल, दूध और इसके उत्पाद, फलों का रस, खीर, राजगिरा, भगर, सिंघाड़ा खा सकते हैं।

सकट चौथ में क्या खाते हैं?

वहीं सकट चौथ के व्रत का पारण करने के बाद भी केवल सात्विक भोजन या फलाहार ही ग्रहण करें और तामसिक भोजन से परहेज करें, तभी सकट चौथ का व्रत सफल होगा और आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी होगी। सकट चौथ में व्रत खोलने के लिए चंद्रमा दर्शन और पूजन को जरूरी माना गया है।

गणेश चतुर्थी के दिन क्या नहीं करना चाहिए?

चतुर्थी के दिन सामान्य नियम के तहत प्याज, लहसुन, शराब और मांस का सेवन नहीं करना चाहिए। किसी भी पशु या पक्षी को न तो सताना चाहिए और न ही मारना चाहिए। इस दिन किसी बुजुर्ग या ब्राह्मण का अपमान नहीं करना चाहिए। इस पवित्र दिन पर शारीरिक संबंध बनाना वर्जित माना जाता है।
विशेष सावधानी जो गणेश चतुर्थी व्रत में रखने है वो हैं -
1. भगवान गणेश की पूजा में तुलसी का इस्तेमाल करना वर्जित है। गणेश पूजा में तुलसी का इस्तेमाल करने से शुभ फल नहीं मिलता है। दरअसल, तुलसी ने भगवान गणेश को शादी का प्रस्ताव दिया था। जिसे गणेशजी से स्वीकार नहीं किया और तुलसी ने उन्हें शाप दे दिया। इससे क्रोधित होकर भगवान गणेश ने भी उन्हें राक्षस से शादी करने का शाप सुना दिया।
2. पूजा में काले और नीले रंग के वस्त्र नहीं पहना चाहिए। चतुर्थी के दिन अथवा पूजा के समय पीले अथवा सफेद वस्त्र धारण करें।
3.अंधेरे में भगवान् गणेश की मूर्ति के दर्शन नहीं करनी चाहिए।
4. अगर आपके घर में गणेशजी की स्थापना की है तो आपको इस बात का खास ख्याल रखना चाहिए कि गणेशजी का भोग बनाते हुए लहसुन और प्याज का उपयोग नहीं होना चाहिए। गणेशजी बुद्धि के देवता हैं। बुद्धि सात्त्विक भोजन के साथ ज्यादा प्रखर होती है और लहसुन और प्याज तामसिक हैं। तामसिक भोजन बुद्धि की चंचलता बढ़ाते हैं जिससे एकाग्रता घटती है।
5. गणेश जी की प्रतिमा अगर घर मैं स्थापित करते हैं तो वह बहुत बड़ी नहीं होनी चाहिए। अगर स्वयं नदी की मिट्टी से प्रतिमा बनाएं तो उसका फल सर्वश्रेष्ठ होगा।

गणेश जी को कौन सा फल चढ़ाना चाहिए?

भगवान् गणेश को पांच फलों का भोग लगाया जाता है। निम्न फल का भोग लगाना अच्छा माना गया है -
१. बेल - गणेश चतुर्थी पर बेल का फल गणेश जी को अर्पित करने से उनका विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।
२. अमरूद - गणेश स्थापन के समय पंच फल में अमरूद का भी विशेष स्थान है। मान्यता है कि अमरूद अर्पित करने गणेश जी भक्त के समस्त कष्ट हर लेते हैं।
३. केला - गणेश जी को केला बहुत प्रिय है। गणेश जी की पूजा में हमेशा जोड़े से केला चढ़ाना चाहिए।
४. काला जामुन - गणेश चतुर्थी पर काला जामुन का भोग जरूर अर्पित करें। मान्यता है इससे गणेश जी प्रसन्न होकर शुभ फल प्रदान करते हैं।
५. सीताफल - सीताफल को शरीफा भी कहा जाता है। गणेश चतुर्थी पर सीताफल विघ्यहर्ता को अर्पित करने से सारे बिगड़े काम बन जाते हैं।

गणेश जी को कौन सा भोजन पसंद है? भगवान गणेश का पसंदीदा भोजन क्या है?

भगवान गणेश का पसंदीदा भोग मोदक और लड्ड़ू है। भगवान गणेश को अगर 21 मोदक चढ़ाएं तो वह बहुत खुश होते हैं। मोदक के अलावा गणेशजी को मोतीचूर के लड्डू , शुद्ध घी से बने बेसन के लड्डू, बूंदी के लड्डू , नारियल, तिल और सूजी के लड्डू भी अर्पित कर सकते हैं।

गणेश जी का प्रिय फूल कौन सा है?

लाल रंग का गुडहल का फूल गणपति को अति प्रिय है। गौरी पुत्र गणेश की आराधना गुड़हल, चांदनी, चमेली या पारिजात के फूलों से करने पर बुद्धि और विद्या में बढ़ोत्तरी होती है।

क्या गणेश जी को बेलपत्र चढ़ा सकते हैं?

गणेशजी को बेलपत्र चढ़ाते हैं। धतूरा, शमी, गूलर, पलाश, बेलपत्र, केसर उन्हें खास प्रिय हैं।

गणेश जी को क्या नहीं चढ़ाना चाहिए?

गणेश को तुलसी नहीं चढ़ाई जाती।

गणेश जी का मुख किस तरफ होना चाहिए?

वास्तु विशेषज्ञों के अनुसार गणेश जी को पश्चिम, उत्तर या उत्तर-पूर्व की ओर मुख करके रखना चाहिए। चूँकि भगवान शिव उत्तर दिशा में रहते हैं और इसे अत्यधिक शुभ माना जाता है, इसलिए मूर्ति का मुख उसी दिशा में रखने का प्रयास करें। भगवान गणेश की मूर्ति को घर में कभी भी दक्षिण की ओर दिशा करके न स्‍थापित करें।

गणेश जी की मूर्ति कौन सी शुभ होती है? गणेश की मूर्ति किस रंग के होते हैं ?

आमतौर पर भगवान गणेश को लाल और पीले वस्त्र पहने हुए दर्शाया जाता है और सबसे ज्यादा यही घरों में स्थापित किये जाते हैं । ये महागणपति कहे गए हैं। इनमें सभी गणेश को समाहित माना गया है। ये सभी मनोकामना को पूर्ण करते हैं। लाल वर्ण के गणेश को संकष्टहरण गणपति कहा गया है। सफेद रंग के गणपति को ऋणमोचन गणपति कहते हैं। सफेद गणेश धन, सुख और समृद्धि को आकर्षित करते हैं। श्यामवर्ण के गणेश की उपासना से अदभुत पराक्रम की प्राप्ति होती है।

अलग अलग रूप के गणेश मूर्ति का क्या महत्व और मतलब होता है ?

कला के शास्त्रीय मत से अलग अलग रूप के गणेश मूर्ति निम्न बातों के प्रतिक माने गए हैं -
बड़ा सिर, बड़ा सोचने के लिए।
लंबे कान, बातों को सावधानी से सुनने के लिए।
छोटी आंखें, कन्सनट्रेशन के लिए।
छोटा मुंह, कम बोलने के लिए।
लंबी सूंड़-सबको एडाप्ट करने के लिए।
एक दांत-एकाग्रता के लिए।
बड़ी तोंद-अच्छा और बुरा सभी को पचाने के लिए।
चार हाथ –चार विशेषताओं-माइंड, इन्टीलेक्ट, इगो को समेटने के लिए।
गणेश जी की मूर्ति की डिजाइन में एक पैर ऊपर उठा हुआ और दूसरा जमीन पर, इस बात का प्रतीक है कि व्यक्ति को आध्यात्मिक और भौतिक दोनों दुनिया में शामिल होना चाहिए।

गणेश चतुर्थी के दिन चांद को क्यों नहीं देखना चाहिए?

धर्मग्रंथों के अनुसार भाद्रपद गणेश चतुर्थी तिथि को चंद्रमा दर्शन नहीं करने चाहिए,क्योंकि इस दिन चंद्र दर्शन करने से झूठा कलंक लगता है। श्रीमदभागवत के अनुसार चतुर्थी तिथि पर चांद देखने से ही भगवान श्रीकृष्ण पर मिथ्या कंलक लगा था जिससे मुक्ति पाने के लिए उन्होंने विधिवत गणेश चतुर्थी का व्रत करके इससे मुक्ति पायी थी। गणपति चतुर्थी का जो चांद होता है उसे गणेश चौथ का चांद कहते हैं। णेश चौथ का चांद नहीं देख देखते हैं।। कहा जाता है कि यही गणेश चतुर्थी का चांद भगवान श्री कृष्ण ने देख लिया था उनको भी समयन्तक मणी चोरी करने का आरोप भगवान श्रीकृष्ण पर भी लगा था ।

सबसे पहले कौन आता है लक्ष्मी या गणेश?

प्रत्येक पूजा में सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है। लक्ष्मी और गणेश के मूर्ति साथ रखने पर हमलोग के बाएं भाग के सामने लक्ष्मी माता और दाएं भाग के सामने गणेश जी होते हैं। देवी लक्ष्मी धन और समृद्धि की देवी हैं और गणेश जी शुद्ध चेतना, सौभाग्य, ज्ञान और बुद्धि के देवता हैं। लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति की शुभ जोड़ी घर में शौभाग्य लाती है।

गणेश ने चंद्रमा को श्राप क्यों दिया था?

एक रात, भगवान गणेश अपने चूहे पर सवार होकर घूमने निकले। छोटा चूहा उसका वजन सहन नहीं कर सका और लड़खड़ा गया। यह अजीब नजारा देखकर चाँद हँसने लगा। गणेश क्रोधित हो गए और चंद्रमा को श्राप देते हुए कहा कि जो कोई भी गणेश चतुर्थी की रात चंद्रमा को देखेगा, उस पर झूठा आरोप लगेगा।

गणेश जी की मूर्ति कौन सी शुभ होती है?

घर में जब भी गणेश जी की मूर्ति स्थापित करें तो इस बात का ध्यान रखें कि गणेश की सूंड बाएं हाथ की ओर हो। मान्यता है कि ऐसी मूर्ति से घर में सकारात्मकता बनी रहती है और जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है। आप घर में सीधी सुंड वाली गणेश जी की मूर्ति भी स्थापित कर सकते हैं। दाएं सूंड वाले गणेश जी जल्द प्रसन्न नहीं होते और कुपित जल्द हो जाते हैं। लेकिन सिद्धि के लिए साधक दाएं सूंड वाले गणेश जी की साधना करते हैं। सिद्धिविनायक मंदिरों में दाएं सूंड वाले गणेश जी की मूर्ति रहती है।

क्या हम नाचते हुए गणेश जी की मूर्ति घर पर रख सकते हैं?

हिंदू धर्म में गणेश के नृत्य रूप को एक शुभ मूर्ति माना जाता है। इसे घर में रखना वास्तु के अनुसार अच्छा होता है । नृत्य करते गणेश सौभाग्य और शांति लाते हैं।

घर के मंदिर में कितने गणेश जी रख सकते हैं?

घर में बैठे हुए गणेशजी की मूर्ति रखना बहुत शुभ माना जाता है। गणेशजी की 2, 4 या 6 जैसी सम संख्या में मूर्तियां रख सकते हैं लेकिन, ध्यान रखें कि घर के मंदिर में गणपतिजी की मूर्तियों की संख्या 3, 5, 7 या 9 जैसी विषम संख्या में नहीं होनी चाहिए। घर के मंदिर में छोटा सा शिवलिंग रखना चाहिए।

कौन से भगवान की मूर्ति घर में नहीं रखना चाहिए?

घर में दो शालिग्राम, दो शिवलिंग, तीन गणेश, दो शंख, दो सूर्य, तीन दुर्गा माँ की मूर्ती, दो गोमती चक्र नहीं रखना चाहिए। परिवार में इससे अशांति फैलती है और घर में हानि होती है। घर में पत्थर, काष्ठ, सोना, चांदी या अन्य धातुओं की ही मूर्ति रखनी चाहिए।

गणेश जी की पीठ क्यों नहीं देखनी चाहिए?

पुराणों में गणेश जी की पीठ के दर्शन करना वर्जित माना गया है। मान्यता है कि श्रीगणेश की पीठ पर दरिद्रता का निवास होता है। उनकी पीठ के दर्शन करने वाला इंसान अगर बहुत धनवान हो तो उसके घर पर दरिद्रता का प्रभाव बढ़ जाता है। यही कारण इनकी पीठ नहीं देखना चाहिए।

गणेश जी के पीठ के पीछे क्या होता है?

श्री गणेश की पीठ के पीछे दरिद्रता का निवास होता है। अत: इस बात का ध्यान रखें कि घर में रखी कोई भी गणेश की प्रतिमा की पीठ घर के बाहर ही की तरफ ही रहे और वहां आपका कोई भी कमरा ना हो। भगवान गणेश की मूर्ति को घर में कभी भी दक्षिण की ओर दिशा करके न स्‍थापित करें।

दरवाजे पर गणेश जी की मूर्ति क्यों लगाते हैं?

गणेश जी सकारात्मक ऊर्जा के वाहक हैं इसलिए घर के मुख्‍य द्वार पर गणेश जी की मूर्ति रखना बहुत शुभ माना जाता है। इससे घर में हमेशा सकारात्‍मक ऊर्जा रहती है। मुख्‍य द्वार पर गणेश जी की मूर्ति या तस्‍वीर का होना कई वास्‍तु दोषों को खत्‍म करती है।

मेन गेट पर गणेश जी की मूर्ति लगाने के क्या नियम हैं?

वास्‍तु शास्‍त्र के अनुसार घर के मेन गेट पर गणेश जी की मूर्ति तभी लगानी है यदि घर मुख्य दरवाजा उत्तर मुखी या दक्षिणमुखी हो। यदि मुख्‍य द्वार पूर्व या पश्चिम दिशा में हो तो ऐसी स्थिति में गणेश जी की मूर्ति नहीं लगानी चाहिए। यह फायदे की जगह नुकसान देगा। साथ ही गणेश जी की वामवर्ती सूंड वाली प्रतिमा लगाएं। घर के अंदर दक्षिणवर्ती सूंड और बाहर वामवर्ती सूंड वाली प्रतिमा लगानी चाहिए। ध्‍यान रखें कि दोनों ही स्थिति में गणपति की मूर्ति बैठी हुई मुद्रा में हो। खड़े हुए गणपति की मूर्ति वर्कप्‍लेस पर ही लगाना चाहिए। गणेश जी की मूर्ति का मुख घर के अंदर की ओर हो। यदि संभव हो तो मुख्‍य द्वार पर गणपति की दो मूर्ति ऐसे लगाएं कि उनकी पीठ जुड़ी हुई हों। यानी कि एक मूर्ति का मुख घर के बाहर की ओर और दूसरी का अंदर की ओर हो। यदि दरवाजे की चौखट के ऊपर गणपति की मूर्ति लगा रहे हैं तो अंदर की प्रतिमा ठीक उसी के पीछे हो जैसे दोनों प्रतिमा की पीठ आपस में मिल रही हो। घर में गणपति की ऐसी मूर्ति लगाना सबसे ज्‍यादा शुभ माना जाता जिसमें दक्षिणवर्ती सूंड हो, कमल आसान पर बैठे हों तथा हाथों में भी कमल हो।

गणेश जी की पत्नियों के नाम क्या थे?

भगवान गणेश की पत्नी का नाम रिद्धि और सिद्धि है। रिद्धि और सिद्धि ब्रह्मा जी की मानस पुत्रियां हैं। एक कहानी के अनुसार, गणेश को अपने हाथी के सिर के कारण विवाह के लिए लड़की ढूंढने में कठिनाई हुई , और इसलिए उन्होंने अन्य देवताओं के विवाह समारोहों में परेशानी पैदा की। देवताओं ने ब्रह्मा से मदद मांगी, जिन्होंने तब रिद्धि और सिद्धि का निर्माण किया और उनका विवाह गणेश से कर दिया। गणेश जी को रिद्धि से क्षेम और सिद्धि से लाभ नाम के दो पुत्र हैं। जब कार्तिकेय दक्षिण में असुरों से संग्राम के लिए गए थे और उन्होंने युद्ध में असुरों को पराजित कर दिया था, तब भगवान शिव ने गणेश जी के पुत्र का नाम क्षेम रखा। माता पार्वती उनको प्रेम से शुभ नाम से पुकारती थीं। इस तरह से गणेश जी के दो पुत्रों का नाम शुभ और लाभ हुआ। आमोद और प्रमोद गणेश जी के पोते हैं।

भगवान गणेश की बेटी कौन है?

कई प्रचलित मान्यताओं में से एक के अनुसार संतोषी माता भगवान गणेश की पुत्री हैं। इनको संतुष्टि की देवी माना जाता है। उनका जन्म उनके भाइयों क्षेम और लाभ द्वारा एक बहन की इच्छा व्यक्त करने के बाद हुआ था।

गणेश जी की भाई और बहन का नाम क्या है?

भगवान गणेश शुभता, बुद्धि और ज्ञान के देवता हैं। उनके भाई कार्तिकेय और बहन अशोक सुंदरी हैं।

केले का पेड़ किसकी पत्नी है? गणेश ने केले के पेड़ से शादी क्यों की?

गणेश बहुत आज्ञाकारी पुत्र थे और अपनी माँ के प्रति बहुत वफादार थे। पश्चिम बंगाल में यह माना जाता है कि भगवान गणेश ने केले के पेड़ या कोला बौ से विवाह किया था। उन्होंने अपनी मां को यह आश्वासन देने के लिए केले के पेड़ से शादी की कि वह कभी भूखी नहीं रहेंगी और हमेशा उनकी देखभाल की जाएंगी।

गणेश जी की 4 भुजाएं क्यों हैं?

चार भुजाओं में से एक हाथ में अंकुश, दूसरे हाथ में पाश, तीसरे हाथ में मोदक व चौथे में आशीर्वाद मुद्रा है।
गणनायक गणेश अपनी पहली भुजा में अंकुश लिए हुए हैं जो इस बात का प्रतीक है कि अपनी तमाम कामनाओं पर अंकुश रखना अत्‍यंत जरूरी है।
गणपति की दूसरी भुजा में पाश है जो यह बताता है कि हर व्यक्ति को स्वयं के आचरण और व्यवहार में संयम और नियंत्रण रखना जरूरी है, जिससे जीवन का संतुलन बना रहे।
तीसरी भुजा में मोदक होता है। मोदक का अर्थ जो मोद यानी आनन्द देता हो। इसका अर्थ यह है कि तन और मन में संतोष रहेगा तभी आप जीवन का वास्तविक आनंद पा सकते हैं।
चौथी भुजा भक्तों को आशीर्वाद देने की मुद्रा में है। जो अपने कर्म रूपी नवैद्य ईश्वर को अर्पित करते हैं ईश्वर भी उसी रूप में कल्याण करते हैं।

स्वास्तिक किसका प्रतिक है?

धार्मिक कार्यक्रम या पूजा पाठ के दौरान, पूजा घर या मुख्य दरवाजे के पास खासकर दिवाली में सभी सनातनी स्वास्तिक बनाते हैं और उसके बगल में शुभ-लाभ लिखते हैं। पौराणिक मतानुसार, स्वास्तिक भगवान गणेश का प्रतिक है जो 'बुद्धि के देवता' हैं। स्वास्तिक की दोनों अलग-अलग रेखाएं गजानन जी की पत्नी रिद्धि-सिद्धि को दर्शाती हैं जो माया (धन) की प्रतिक हैं । गणेशजी के पुत्रों के नाम हम 'स्वास्तिक' के दाएं-बाएं शुभ-लाभ लिखते हैं। घर के बाहर या पूजा घर के बाहर दीवार पर ऐसा बनाने के पीछे मान्यता यह है कि गणेश जी पूरे परिवार के साथ घर में विराजमान रहें और घर में बुद्धि , धन, सुख-समृद्धि तथा शुभता बनी रहे।

गणेश जी के गुरु का क्या नाम था?

परशुराम जी गणेश जी के गुरु हैं। एक बार शिवजी के परमभक्त परशुराम भोलेनाथ से मिलने आए। उस समय कैलाशपति ध्यानमग्न थे। गणेश ने परशुराम को मिलने से रोक दिया। इससे क्रोधित परशुराम के परशु के प्रहार से गणेश जी का एक दांत टूट गया। माता पार्वती इससे क्रोधित होकर काली स्वरुप धारण कर लीं। परशुराम को अपनी गलती का भान हुआ, तब उन्होंने गणेश जी को अपना समस्त तेज, बल, कौशल और ज्ञान आशीष स्वरूप प्रदान किया। इस प्रकार गणेश की शिक्षा विष्णु के अवतार गुरु परशुराम के आशीष से सहज ही हो गई। कालांतर में उन्होंने इसी टूटे दंत से महर्षि वेदव्यास से उच्चरित महाभारत कथा का लेखन किया।

गणेश-लक्ष्‍मी की मूर्ति मंदिर में किस दिशा में रखना चाहिए ?

मंदिर में गणेश और लक्ष्‍मी जी की मूर्ति को एक साथ रखी जाती है। पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार गणेशजी और मां लक्ष्‍मी की मूर्ति को मंदिर में उत्तर दिशा में रखना चाहिए। इस मान्‍यता के पीछे भी एक पौराणिक कथा है। इसके अनुसार एक बार शिवजी ने गुस्‍से में आकर गणेशजी का सिर धड़ से अलग कर दिया था। फिर जब उन्‍हें पता कि यह उनके ही पुत्र हैं तो उन्‍होंने अपने दूतों को उत्तर दिशा में भेजकर कहा कि इस दिशा में जो सबसे पहले मिल जाए उसका ही धड़ लेकर आ जाओ। शिवजी की आज्ञा का पालन करते हुए उनके दूत ऐरावत हाथी का धड़ लेकर आए थे। उत्तर दिशा में सबसे पहले धड़े मिलने की वजह से गणेशजी को रखने के लिए उत्तर दिशा सबसे शुभ मानी जाती है।

मां लक्ष्‍मीजी की मूर्ति को गणेशजी के बाईं ओर रख देते हैं। ऐसा करने से घर की आर्थिक दशा पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। दरअसल पुरुषों के बाईं ओर उनकी पत्‍नी को बैठाया जाता है। जबकि लक्ष्‍मीजी गणेशजी की पत्‍नी नहीं हैं इसलिए उनको गणेशजी के बाईं ओर बैठाने से आपके धन की स्थिति बिगड़ने लगती है और घर में कंगाली होने लगती है। इसलिए याद से मां लक्ष्‍मी की प्रतिमा को गणेशजी के दाईं ओर ही रखें। ध्यान दें कि गणेशजी के दायें वाला भाग आपके बायें हाथ के सामने पड़ेगा जब गणेशजी और आपका मुख आमने सामने है।

गणेश जी का असली सिर कहां है?

माना जाता है कि उत्तराखंड के पिथोरागढ़ में गंगोलीहाट से 14 किमी दूर स्थित पाताल भुवनेश्वर गुफा में गणेश जी का असली सिर है। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव ने भगवान गणेश के सिर को धड़ से अलग कर पाताल भुवनेश्वर गुफा में रख दिया था और स्वयं भगवान् शिव भगवान गणेश के कटे सिर की रक्षा करते हैं। इस गुफा में भगवान गणेश की मूर्ति को आदि गणेश कहा जाता है। इस गुफा में रखे आदि गणेश की मूर्ति के ठीक ऊपर 108 पंखुड़ियों वाला 108 पंखुड़ियों वाले ब्रह्मकमल के रूप में सुशोभित है। इससे भगवान गणेश के सिर पर ब्रह्मकमल से जल की एक दिव्य बूंद टपकती है। मुख्य बूँद आदिगणेश के मुख में गिरती हुई दिखाई देती है। मान्यता है कि इस ब्रह्मकमल की स्थापना भगवान शिव ने यहां की थी। मान्यता के अनुसार इस गुफा की खोज कलियुग में आदि शंकराचार्य ने की थी।

गोबर गणेश क्या होता है?

शास्त्रीय परंपरा में सनातनियों में गौ माता के गोबर से अंगुष्ठ के बराबर गणेश की प्रतिमा का निर्माण किया जाता है। यह अंगुष्ठ के बराबर बनाया जाता है।

लाल बाग में गणपति उत्सव क्यों मनाया जाता है ?

कथा है कि लाल बाग के राजा कार्तिकेय ने एक बार अपने भाई गणेश जी को अपने यहाँ बुलाया और कुछ दिन वहाँ रहने का आग्रह किया। जितने दिन गणेश जी वहां रहे उतने दिन माता लक्ष्मी और गणेश जी की पत्नी रिद्धि व सिद्धि वहीं रहीं। इनके रहने से लाल बाग धन धान्य से परिपूर्ण हो गया, तो कार्तिकेय जी ने उतने दिन का गणेश जी को लालबाग का राजा मानकर सम्मान दिया। यही पूजन गणपति उत्सव के रूप में मनाया जाने लगा।

भगवान् गणेश सब की मनोकामना पूर्ण करें

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