विघ्नहर्ता गणेश जी की मूर्ति का स्वरूप और उसका फल
Form of idol of Vighnaharta Ganesha and its result
विघ्नहर्ता गणेश जी की मूर्ति का स्वरूप और उसका फल
Form of idol of Vighnaharta Ganesha and its result
विघ्नहर्ता भगवान् गणेश की मूर्ति आमतौर पर सभी हिन्दुओं के घर में होती है। सभी विघ्ननों को हरने और घर में सुख-समृद्धि के आगमन के लिए गणेश जी की मूर्ति के विभिन्न स्वरूपों का उसके फल के अनुसार स्थापना की जाती है। हम यहाँ पर भगवान् गणेश के आठ स्वरूपों की फल के साथ वर्णन दे रहे हैं।
वक्रतुण्ड गणेश
वक्रतुण्ड स्वरूप में गणेश जी की सूंड मुड़ी हुई है। गणेश जी की सूंड को लेकर भी भ्रम है रहता है कि सूंड किस दिशा में होनी चाहिए। गणेश जी की सूंड की दिशा बायीं ओर हीं होनी चाहिये। बायीं ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी विघ्नविनाशक कहलाते हैं। दाईं ओर घूमी हुई सूंड वाले गणेशजी हठी होते हैं। पूजा स्थान में गणेश आकृति उचित होती है जिसकी सूंड उनके बायीं तरफ हो। घर और ऑफिस के द्वार पर बायीं ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी की प्रतिमा रखी जाती है। घर के मध्य भाग में ऐसी गणेश आकृति की स्थापना करें जिसकी सूंड उनके मध्य में हो। यह स्थिति वातावरण में ऊर्जा के प्रवेश के उपरांत उसकी स्थापना संतुलन को इंगित करती है। ललितासन यानी बैठी हुई मुद्रा में गणेश जी की मूर्ति सबसे अच्छी होती है। इस मूर्ति को घर लाने से सुख-समृद्धि और शांति आती है। इसके अलावा गणपति जी की लेटे हुए अवस्था में मूर्ति लाना भी माना जाता है शुभ। भगवान गणेश ने वक्रतुंड अवतार लेकर मत्सरासुर को पराजित किया और उसके दोनों पुत्रों का संहार किया था।
एकदंत गणेश
'एक' शब्द माया का सूचक है जो दे स्वरूपा एवं विलासवती है। 'दंत' शब्द भगवान की सत्ता का पर्याय है। 'गज' के बारे में विख्यात है कि उसके दांत खाने के और दिखाने के और होते हैं। दिखावे (प्रदर्शन) की इस कुधारणा पर विजय पाकर ही मद, विलासिता, लोलुपता एवं धनप्रियता पर विजय प्राप्त करने का संदेश इस अवतार में छुपा है। एकदंत अवतार में भगवान गणेश ने मदासुर नामक एक राक्षस को युद्ध में पराजित कर दिया और देवताओं को अभय का वरदान दिया था । कथा है कि एकबार महर्षि च्यवन अपने तपोबल के माध्यम से मद की रचना की थी और वह महर्षि का पुत्र भी कहलाया। मद ने दैत्य गुरु शुक्राचार्य से दीक्षा लेकर देवताओं पर अत्याचार करने लगा। तब सभी देवताओं ने भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र का आह्वान किया, तब भगवान ने एकदंत के रूप में अवतार लिया। एकदंत भगवान ने मदासुर को युद्ध में पराजित कर दिया और देवताओं को अभय का वरदान दिया।
महोदर गणेश
गणेश जी महोदर अवतार में बड़े पेट वाले हैं। इस अवतार में उन्होंने मोहासुर नामक एक राक्षस के अत्याचारों से परेशानी देवी-देवताओं को मुक्ति दिलाई थी। गणेश जी अपने महोदर स्वररूप में अपने मूषक पर सवार होकर मोहासुर से युद्ध करने पहुंचे। मोहासुर ने बिना युद्ध किए महोदर अवतार को अपना इष्ट बना लिया। वास्तु अनुसार उनका यह रूप अत्यंत कल्याणकारी एवं सभी नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करने में प्रभावकारी है। यदि गणेश का महोदर रूप बैठक या घर के मध्य भाग में स्थापित किया जाए तो अग्नि एवं जल के असंतुलन द्वारा उत्पन्न समस्त वास्तु दोषों का शमन होता है बुरी नजर प्रेत बाधा, कार्य में विग्न, जमीन-जायदाद से संबंधित कए तुरंत दूर हो जाते हैं।
गजानन गणेश
गजानन का अर्थ होता है हाथी जैसी मुखाकृति वाला। यह स्वरूप लोभ की भावना से मुक्ति प्रदान करती है। कथा है कि भगवान कुबेर के लोभ से लोभासुर का जन्म हुआ था। लोभासुर दैत्य गुरु शुक्राचार्य की शरण में गया और वहां से शिक्षा ली। शुक्राचार्य के कहने पर लोभासुर ने भगवान शिव से वरदान पाने के लिए कठोर साधना की। साधना से प्रसन्न होकर लोभासुर को निर्भय होने का वरदान दे दिया। वरदान पाकर लोभासुर ने सभी लोकों पर कब्जा जमा लिया। तब सभी ने गणेशजी की प्रार्थना की और भगवान गणेश ने गजानन के रूप में अवतार लिया। इसके बाद शुक्राचार्य की सलाह पर लोभासुर ने बिना युद्द किए पराजय स्वीकार कर ली। गणेश जी का गजानन स्वरुप इसी लोभ की भावना से मुक्ति प्रदान करती है। गजमुख की लंबी सूड, दो बड़े-बड़े कान, छोटी आंखें लोभ को बस में करने के लिए बहुत कुछ कहती है। हाथी को सूंड में विशेष धमनियां होती है जो उसे किसी भी गंध के प्रति विशिष्ट बनाती हैं। हाथी एक बार किसी की गंध सूंघ ले तो वह उसे लगभग 30 वर्षों तक नहीं भूलता। उसकी लंबी सूंड हमें पहले से स्थिति भापने की प्रेरणा देती है। छोटी आंखें विश्लेषण और लंबे कान ध्यान से सुनने की प्रेरणा देते हैं। गजमुख को प्रत्येक विशेषता हमें शांत धैर्य धारण कर गहन विश्लेषण के उपरांत ही कर्मस्त होने का संदेश देती है। यह सच है कि हमें यदि लोभ पर विजय प्राप्त करना है तो गजानन के इन विशिष्ट गुणों को जीवन में उतारना ही होगा। कहते हैं कि गज मस्तक पर गज मोती भी होता है जो एक दुर्लभ रत्न है। इसी प्रकार हमारे मस्तक पर भी सहस्रधार चक्र होता है जिसका जागरण एक दुर्लभ उपलब्धि है श्री गणेश की इस आकृति, यंत्र व मंत्र द्वारा योगियों ने अपना सहस्रधार भी जागृत किया है।
लंबोदर गणेश
लंबोदर अर्थात् लंबे उदर (पेट) वाला हमारे पेट (उदर) पर ऊर्जा का एक केंद्र होता है जिसे मणिपूर चक्र कहते हैं। यह चक्र हमारे बाहरी जगत से संबंधों का होता है क्रोध (नकारात्मक ऊर्जा) रूपी शत्रु हमारे जीवन को नष्ट करता है। यदि हम अपने क्रोध एवं क्रोध उत्पन्न करने वाले कारणों को पचा सकें तो जीवन को परिवर्तित कर सकते हैं। यह रूप हमारे भवन निर्माण से आंगन को विस्तृत खुला एवं स्वच्छ रखने की प्रेरणा देता है। इस स्वरुप से जुड़ी कथा है कि एक बार क्रोधासुर नामक राक्षस ने सूर्यदेव की तपस्या की। तपस्या से प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने क्रोधासुर को ब्रह्मांड पर विजय पाने का अवतार दे दिया। इसके बाद सभी देवी-देवता क्रोधासुर से भयभीत हो गए और भगवान गणेश का आह्वान किया। देवताओं की प्रार्थना को सुनकर भगवान गणेश ने लंबोदर का अवतार लिया। भगवान लंबोदर ने क्रोधासुर को रोक लिया और समझाया कि ब्रह्मांड पर कभी भी विजय प्राप्त नहीं कर सकते और ना ही अजेय योद्धा हो सकते। क्रोधासुर ने फिर अपना अभियान रोक दिया और हमेशा के लिए पाताल लोक में चला गया।
विकट गणेश
मयूर वाहक विकट रूप धारण कर श्री गणेश ने कामासुर को परास्त किया था। काम पर विजय केवल आध्यात्मिक जागरण द्वारा ही संभव है हमारे अंतम चक्र (मूलाधार) और प्रथम चक्र (आता) का यह संबंध सर्पकार है। कथा है कि एकबार भगवान विष्णु ने जलंधर के विनाश के लिए उसकी पत्नी वृंदा का सतीत्व भंग कर दिया था। उसके बाद जलंधर का एक पुत्र हुआ कामासुर। कामासुर ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर महादेव ने त्रिलोक विजय का वरदान दे दिया था। वरदान पाकर कामासुर ने देवताओं पर अत्याचार करने शुरू कर दिया। असुर से परेशान होकर सभी देवताओं ने भगवान गणेश का ध्यान किया और राक्षस से मुक्ति की प्रार्थना की। तब भगवान गणेश ने विकट अवतार लिया। इस अवतार में भगवान गणेश मोर पर विराजित होकर आए और कामासुर को पराजित कर दिया।
वास्तुशास्त्र में यह गणेश रूप भवन निर्माण में बहुत ही अहम भूमिका निभाता है। मुख्य द्वारको स्थापना की दिशा के साथ ही भवन का अंतिम द्वार (बैंक डोर) और शौचपर की स्थिति का निर्धारण किया जाता है। ईशान कोण में देवालय और नैऋत्य कोण में शौचपर एक ही तिरछी रेखा में रखने का प्रावधान है।
विघ्नराज गणेश
विघ्नराज गणेश के स्वरुप में भगवान् गणेश कमल पुष्प पर विराजमान हैं और उनके हाथ में भी कमल पुष्प है। उनकी यह आकृति समस्त विघ्न का हरण करती है। कथा है कि एक बार माता पार्वती अपनी सखियों के साथ कैलाश पर्वत पर टहल रहीं थी, तभी बातचीत में हंसी आ गई। उनकी हंसी से एक विशाल पुरुष की उत्पत्ति हुई और उन्होंने उसका नाम 'मम' रख दिया। मम वन में तप करने चला गया, जहां उसकी मुलाकात शंबासुर से हुई। शंबासुर ने मम को कई आसुरी शक्तियां दीं। इसके बाद मम ने गणेशजी को प्रसन्न करके ब्रह्मांड का राज मांग लिया। जब इसके बारे में शुक्राचार्य को जानकारी मिली तब उन्होंने मम को दैत्यराज का पद दे दिया। पद मिलने के बाद मम ने देवताओं को पकड़कर कारागार में डाल दिया। तब देवताओं ने भगवान गणेश का आह्वान किया और उनको अपनी समस्याओं के बारे में अवगत कराया। भगवान गणेश ने विघ्नराज अवतार का अवतार लिया और फिर ममासुर का मान मर्दन करते हुए देवताओं को बंदी गृह से छुड़वाया।
धूम्रवर्ण गणेश
भगवान् गणेश अपने इस रूप में धुएं जैसे रंग वाले हैं। धुएं जैसे रंग वाले गणेश जी ने सूर्य की छींक से उत्पन्न एक दैत्य का वध किया था। कथा है कि एक बार ब्रह्माजी ने सूर्य भगवान को कर्म राज्य का स्वामी बना दिया, इससे उनके अंदर घमंड आ गया। राज करते हुए सूर्य भगवान को छींक आ गई, जिससे एक दैत्य की उत्पत्ति हुई। छींक से उत्पन्न हुए दैत्य का नाम अहम पड़ा। अहम दैत्य गुरु शुक्राचार्य के पास चला गया और वह अहंतासुर बन गया। इसके बाद उसने खुद का राज्य भी बना लिया और भगवान गणेश की पूजा करके वरदान भी प्राप्त कर लिया। वरदान पाकर अहंतासुर देवताओं पर अत्याचार करने लगा, तब सभी ने भगवान गणेश को आह्वान किया। देवताओं के आह्वान पर भगवान गणेश ने धूर्मवर्ण का अवतार लिया। धूर्मवर्ण का रंग धुएं जैसा था और वे काफी विकराल थे। उनके एक हाथ में भीषण पाश थे, जिसमें से भयंकर ज्वालाएं निकल रही थीं। धूर्मवर्ण ने अहंतासुर का अंत किया और देवताओं को राहत दी।
ज्योतिष शास्त्र में राहु ग्रह भी धूम्र वर्णका, सूर्य, पृथ्वी एवं चंद्रमा के एक विशिष्ट स्थिति में आ जाने पर उत्पन्न होने वाला छाया ग्रह है। राहु ग्रह की शांति के लिए सूर्य (प्रकाश) को जागृत करना उसके बुरे प्रभावों से मुक्ति दिलाता है। इसी कारण घर को बुरी नजर से बचाने के लिए मुख्य द्वार पर घोड़े की नाल या धूम्रवर्ण गणेश को विराजमान करने का प्रावधान है।
भगवान् गणेश सब की मनोकामना पूर्ण करें
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