अथर्ववेदीय गणपति शान्ति पाठ
Atharva Vedic Ganpati Shanti Path
अथर्ववेदीय गणपति शान्ति पाठ Atharva Vedic Ganpati Shanti Path
अथर्ववेदीय गणपति शान्ति पाठ शुभ और शांति के लिए प्रयुक्त होता है। इसे स्वस्ति मंत्र कहते हैं और शास्त्रों में इसे बड़ा ही फलकारी बताया गया है। स्वस्ति = सु + अस्ति = कल्याण हो। ऐसा माना जाता है कि इससे हृदय और मन मिल जाते हैं। स्वस्ति मन्त्र का पाठ करने की क्रिया स्वस्तिवाचन कहलाती है।
ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः ।
भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ॥
स्थिरैरंगैस्तुष्टुवांसस्तनूभिः ।
व्यशेम देवहितं यदायु ॥ १॥
ॐ स्वस्तिनः इन्द्रो वृद्धश्रवाः ।
स्वस्तिनः पूषा विश्ववेदाः ॥
स्वस्तिनस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः ।
स्वस्तिनो बृहस्पतिर्दधातु ॥ २ ॥
ॐ शान्ति! शान्ति !! शान्ति !!!
हे गणपति भगवान् श्री गणेश हम सदैव ऐसी वाणी सुनें जो हमें सुख दे तथा बुराईयों से हमेशा दूर रखे। हमारा जीवन भलाई के कामों में व्यतीत हो हम सदा भगवान् की पूजा में लगे रहें। बुरी बातों को और ले जाने वाली बातों से सर्वदा दूर रहें। हमारा स्वास्थ्य सदा ठीक रहे जिससे हम परमात्मा के चरणों में अपना जीवन समर्पित कर सकें। हमारा मन भोग- विलास में लीन न हो। हमारे प्रत्येक जंग में भगवान् विराजमान हो और हम उनकी सेवा सुश्रूषा में लगे रहें जिससे हम हमेशा अच्छे कार्य करते रहें। ऐसी प्रार्थना हमें भगवान् से करनी चाहिए।
जिनको कौर्ति चारों तरफ फैली हुई है वह देवों के राजा इन्द्र हमेशा सब जगह विराजमान हैं और बुद्धि के स्वामी भगवान् श्री बृहस्पति से समस्त देवताओं की छिपी हुई शक्तियाँ हैं। ये उत्तम कामों की सहयोगी होती हैं। इनसे मनुष्यों का भला है।
स्वस्ति वाचन के नियम-
1. स्वस्ति वाचन किसी भी पूजा के प्रारंभ में किया जाना चाहिए।
2. स्वस्ति वाचन के पश्चात सभी दसों दिशाओं में अभिमंत्रित जल या पूजा में प्रयुक्त जल के छीटें लगाने चाहिए।
3. नए घर मे प्रवेश के समय भी ऐसा करना मंगलकारी होता है।
4. विवाह के विधिविधान में भी स्वस्ति वाचन का महत्व है।
जिस प्रकार स्वास्तिक सभी प्रकार के वास्तु दोष समाप्त कर देता है, वैसे ही स्वस्ति वाचन से सभी प्रकार के पूजन दोष समाप्त हो जाते हैं।
भगवान् गणेश सब की मनोकामना पूर्ण करें
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