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गोपाष्टमी

Gopashtami

गौ-माता, पंचगव्य और गोमूत्र से होने वाले लाभ की जानकारी जन जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से निर्मित वेब पेज, गो-सेवा को समर्पित।

गौ नमस्कार एवं प्रदक्षिणा मंत्र * गौ दुधारू है या नहीं, इसकी पहचान कैसे करें? * गाय का दूध बढ़ाने के उपाय * शरीर के रोग और उनका पंचगव्य चिकित्सा * गोघृत से चमत्कारी इलाज * गोमूत्र एक महौषधि है * गोमूत्र से कीटनाशक कैसे बनाएं? * गाय में पंच तत्व * गोपाल सहस्त्रनाम - भगवान श्रीकृष्ण के गोपालक रुप का पाठ * गोवर्धन पूजा और अन्नकूट * गोपाष्टमी
 

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 गोपाष्टमी Gopashtami

गोपाष्टमी कार्तिक शुक्ल पक्ष अष्टमी को मनाया जाता है । इसको गोष्ठ (गोप) अष्टमी भी कहा जाता है। यह गायों की पूजा और प्रार्थना करने के लिए समर्पित एक त्यौहार है। इस दिन, लोग गाय माता (गोधन) को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और गायों के प्रति कृतज्ञता और सम्मान प्रदर्शित करते हैं जिन्हें जीवन देने वाला माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, गौ माता में सभी देवी-देवताओं का वास होता है, इसलिए उनकी पूजा करने से भक्त को सभी देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है। महाराष्ट्र राज्य में भी इसी प्रकार का एक त्यौहार मनाया जाता है जिसे गोवत्स द्वादशी कहते हैं। इस दिन बछड़े और गायों की एक साथ पूजा व प्रार्थना करने का दिन है।

कूर्मपुराण में बताया गया है कि कार्तिक शुरु शुक्ल पक्ष अष्टमी को प्रातःकाल के समय गौओं को खाना खिलाना चाहिए। फिर गन्ध-पुष्पादि से उनका पूजन करना चहिए और अनेक प्रकार के वस्त्रालंकार से अलंकृत करके उनके गोपालो (ग्वालो) का पूजन करना चाहिए। गायों को गोग्रास देकर उनकी परिक्रमा करनी चहिए और थोड़ी दूर तक उनके साथ जाना चाहिए। गायों को हिंदू धर्म और संस्कृति की आत्मा माना जाता है। उन्हें शुद्ध माना जाता है और हिंदू देवताओं की तरह उनकी पूजा भी की जाती है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि कई देवियां और देवता एक गाय के अंदर निवास करते हैं और इसलिए गाय हिंदू धर्म में एक विशेष महत्व रखती हैं। गाय को आध्यात्मिक और दिव्य गुणों का स्वामी माना जाता है और यह देवी पृथ्वी का एक और रूप है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, गोपाष्टमी की पूर्व संध्या पर गाय की पूजा करने वाले व्यक्तियों की सब प्रकार की अभीष्ट सिद्धि होती है। एक खुशहाल जीवन और अच्छे भाग्य का आशीर्वाद मिलता है। इसी गोपाष्टमी को सायंकाल के समय जब गायें चरकर वापस आयें तो उस समय भी उनका आतिथ्य, अभिवादन और पञ्चोपचार पूजन करके कुछ भोजन करना चाहिए। गौ माता के चरण रज को मस्तक पर धारण करके ललाट पर लगाना चाहिए। इससे सौभाग्य की वृद्धि होती है।

जिन श्रद्धालुओं के घरों में गाय नहीं हैं वे लोग गौशाला जाकर गाय की पूजा करते हैं। उन्हें गंगा जल, फूल चढ़ाते हैं, दिया जलाकर गुड़ खिलाते है। गौशाला में खाना और अन्य वस्तु आदि दान की जाती हैं। इस दिन गाय को हरा चारा, हरा मटर एवं गुड़ खिलाया जाता है। जिस व्यक्ति का भाग्य साथ नहीं देता हो , वह अपने हाथ में गुड़ रखकर गाय को खिलाएं , गाय की जीभ से हथेली चाटने पर भाग्य जाग जाता है , गाय की पूजा करने से नौ ग्रह शांत रहते हैं।

स्वकल्याण चाहनेवाले गृहस्थों को गौ-सेवा अवश्य करनी चाहिए। इससे भाग्य रेखा बदल जाती है और सौभाग्य की वृद्धि होती है।

गायों को घास देनेवाले का कल्याण होता है । स्वकल्याण चाहनेवाले गृहस्थों को गौ-सेवा अवश्य करनी चाहिए क्योंकि गौ-सेवा में लगे हुए पुरुष को धन-सम्पत्ति, आरोग्य, संतान तथा मनुष्य-जीवन को सुखकर बनानेवाले सम्पूर्ण साधन सहज ही प्राप्त हो जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि देशी गाय के दर्शन एवं स्पर्श से पवित्रता आती है, पापों का नाश होता है । गोधूलि (गाय की चरणरज) का तिलक करने से भाग्य की रेखाएँ बदल जाती हैं। 'स्कंद पुराण' में गौ-माता में सर्व तीर्थों और सभी देवताओं का निवास बताया गया है।

गाय की महत्ता और आवश्यकता -

महाभारत (अनुशासन पर्व : 69.7) में भी आता है :-

मातरः सर्वभूतानां गावः सर्वसुखप्रदाः।

गौएँ सम्पूर्ण प्राणियों की माता कहलाती हैं । वे सबको सुख देनेवाली हैं ।

सर्व सफलतादायिनी गौ -

देशी गाय के दूध, घी तथा मट्ठे का प्रयोग करने से रोगप्रतिकारक क्षमता बढ़ती है । देशी गाय का घर में पालन करने से घर की सर्व बाधाओं और विघ्नों का निवारण हो जाता है।

महाभारत (अनुशासन पर्व : 51.32) में कहा गया है : 'गौओं का समुदाय जहाँ बैठकर निर्भयतापूर्वक साँस लेता है उस स्थान की शोभा बढ़ा देता है और वहाँ के सारे पापों को खींच लेता है।

जिस घर में देशी गाय होती है, उसमें वास्तुदोष स्वतः ही समाप्त हो जाता है।

देशी गाय को प्रतिदिन या अमावस्या को रोटी, गुड़, चारा आदि खिलाने से पितृदोष समाप्त हो जाता है।

गायों को नित्य गोग्रास देने तथा सत्पात्र को गौ-दान करने से ग्रहों के अनिष्ट-निवारण में मदद मिलती है।

उत्तम संतान प्राप्ति के लाभ हेतु घर में देशी गाय की सेवा अच्छा उपाय कहा गया है।

शिव पुराण व स्कंद पुराण में कहा गया है कि गौ-सेवा करने और सत्पात्र को गौ-दान करने से यम का भय नहीं रहता।

 
Sahiwal Cow उत्तम दूध देनेवाली गाय (दुधारू गौ माता) की पहचान कैसे करें

Gopashtami is celebrated on Kartik Shukla Paksha Ashtami. It is also called Goshtha (Gop) Ashtami. According to the scriptures, all the Gods and Goddesses reside in Mother Cow, hence by worshiping her the devotee gets the blessings of all the Gods and Goddesses.

It is told in Kurma Purana that cows should be fed in the morning on Shukla Paksha Ashtami, which begins in Kartik. Then they should be worshiped with fragrant flowers and their cowherds (cowboys) should be worshiped after decorating them with various types of clothes. Cows should be given cow grass and should be circled around them and should go with them for some distance. By this all kinds of desired achievements are achieved. On the same Gopashtami, when the cows come back from grazing in the evening, one should offer them hospitality, greet them and do Panchopachar puja and eat some food. The dust from the feet of mother cow should be worn on the forehead and applied on the forehead. This increases good fortune.

Those devotees who do not have cows in their homes go to the cow shed and worship the cow. They offer them Ganga water, flowers, light a lamp and feed them jaggery. Food and other items etc. are donated to the cowshed. On this day the cow is fed green fodder, green peas and jaggery. A person whose luck is not on his side should keep jaggery in his hand and feed it to a cow. Licking the palm with the tongue of a cow brings good luck. By worshiping the cow, the nine planets remain calm.

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