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गोवर्धन पूजा और अन्नकूट

Govardhan Puja and Annakoot

कार्तिक मास व्रत * रमा एकादशी (कृष्ण पक्ष में) * प्रदोष का व्रत * मास शिवरात्रि * नरक चतुर्दशी * गोवर्धन पूजा और अन्नकूट * यम-द्वितीया गोधन भैया दूज * छठ पूजा - सूर्य षष्ठी * सामा चकेवा * गोपाष्टमी * देवउठनी एकादशी या देव प्रबोधिनी एकादशी (शुक्ल पक्ष में)
 
गोवर्धन पूजा और अन्नकूट Govardhan Puja and Annakoot

॥ श्रीहरिः ॥

गोवर्धन पूजा और अन्नकूट

Govardhan Puja and Annakoot


आलेख - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)

दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। लोग इसे अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं।

घर में गोवर्धन पूजा विधि -

इस दिन प्रात: काल गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत पूरी श्रद्धा भाव से बनाएँ। इसे लेटे हुये पुरुष की आकृति में बनाया जाता है। प्रतीक रूप से गोवर्धन रूप में आप बनाकर फूल, पत्ती, टहनीयो एवँ गाय की आकृतियों से सजाया जाता है। गोवर्धन की आकृति बनाकर उनके मध्य में भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति रखी जाती है नाभि के स्थान पर एक कटोरी जितना गड्ढा बना लिया जाता है और वहां एक कटोरी व मिट्टी का दीपक रखा जाता है फिर इसमें दूध, दही, गंगाजल, मधु, बतासे, गन्ध-पुष्पादि से पूजन करके निम्न मंत्र से प्रार्थना करें -

गोवर्धन धराधार गोकुलत्राणकारक विष्णुबाहुकृतोच्छ्राय गव कोटिप्रदो भव ॥

फिर घर के पुरुष हाथ में खील लेकर गोवर्धन प्रतिमा की 7 बार परिक्रमा लगाते हैं और भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करते हैं। परिक्रमा के समय एक व्यक्ति हाथ में जल का लोटा व दुसारा व्यक्ति अन्न यानि कि जौ लेकर चलते हैं और जल वाला व्यक्ति जल की धारा को धरती पर गिराते हुआ चलता है और दुसरा अन्न यानि कि जौ बोते हुए परिक्रमा पूरी करते हैं।

इसके बाद सजे हुए गौओ का आवाहन करके उनका यथाविधि निम्न मंत्र से प्रार्थना करें -

लक्ष्मीर्या लोकपालानां धेनुरूपेण संस्थिता।
घृतं वहति यज्ञार्थे मम पापं व्यपोहतु ।।

इसके बाद घर की महिलाएं भी इसी विधि-विधान से गोवर्धन पूजा करती हैं। इसके बाद वहां रखे कच्चे दूध व मीठे पूए का भोग लगाया जाता है और उसे प्रसाद के तौर पर घर के सदस्यों में बांटा जाता है।

रात्रि में गौ से गोवर्धन का उपमर्दन कराये।

मुख्य गोवर्द्धन पर्वत की पूजा (सामाजिक उत्सव )-

मुख्य गोवर्द्धन निकट हो तो उसीकी पूजा और जो पास न हो तो गोमय वा अन्नकूटका गोवर्द्धन बनाकर उसके सहित गोपालों की पूजा करनी चाहिए। भगवान् श्रीकृष्ण की प्रसन्नता के लिये गोवर्द्धन और गोपालों के पूजन का महोत्सव करना चहिए।

फिर गोवर्द्धन सहित गोपालों का आवाहन और षोड़श उपचार कर प्रार्थना करना चाहिए कि - गोवर्द्धन और गोपालों सहित हे प्रभो ! आप आज राजा बलिके द्वारपाल हो और अपने बचन को सत्य कीजिये । हे गोपाल मूर्ते ! हे विश्वेश ! हे इन्द्र के उत्सवके नाश करने वाले ! हे गोवर्द्धन को छत्र बनान्वाले ! हे गौओों के ईश्वर ! आप पूजा को ग्रहण कीजिए । हे गोवर्द्धन ! हे पृथ्वीको धारण करन वाले ! हे गोकुल के रक्षक ! हमें करोड़ गौ दो। महान वैद्य दो। सुख दो।

अब नवैद्य चढ़ाकर भक्तों में वितरित करें।

गोवर्धन पूजा को अन्नकूट क्यों कहते हैं ?

अत्रकूट यथार्थ में गोवर्धन की पूजा का ही समारोह है। पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में व्रज के सम्पूर्ण नर-नारी अनेक पदार्थों से इन्द्र का पूजन करते और नाना प्रकार के षड्रसपूर्ण (छप्पन भोग, छत्तीसों व्यञ्जन) भोग लगाते थे। किंतु श्रीकृष्ण ने अपनी बालकावस्था में ही इन्द्र की पूजा को निषिद्ध बतलाकर गोवर्धन का पूजन करवाया और स्वयं ही दूसरे स्वरूप से गोवर्धन बनकर अर्पण की हुई सम्पूर्ण भोजन सामग्री का भोग लगाया। यह देखकर इन्द्र ने व्रज पर प्रलय करनेवाली वर्षा की। भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलाधार बारिश से बचाने के लिए अपनी एक उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाया लिया। इस पर्वत के नीचे सभी नगरवासी और पशु इकट्ठा हो गए थे। भगवान श्रीकृष्ण ने 7 दिनों तक गोवर्धन पर्वत अपनी उंगली पर रखा। सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखा और प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी। तभी से यह उत्सव अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा। इस दौरान लोग वहां अपने-अपने घर से लाया गया अन्न इकट्ठे मिलजुल कर खाते हैं। घर-घर से आया हुआ अलग-अलग तरीके का पकवान व भोजन मिलकर खाया गया इसलिए इसे अन्नकूट भी कहते हैं। इस दिन मंदिरों में भी अन्नकूट बनता है और प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।

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