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यम द्वितीया, भाई दूज, गोधन, कलमदान पूजन, चित्रगुप्त पूजा - कार्तिक मास व्रत

Yam Dwitiya, Bhai Dooj, Godhan, Kalamdaan Puja, Chitragupta Puja

कार्तिक मास व्रत * रमा एकादशी (कृष्ण पक्ष में) * प्रदोष का व्रत * मास शिवरात्रि * नरक चतुर्दशी * गोवर्धन पूजा और अन्नकूट * यम-द्वितीया गोधन भैया दूज * छठ पूजा - सूर्य षष्ठी * सामा चकेवा * गोपाष्टमी * देवउठनी एकादशी या देव प्रबोधिनी एकादशी (शुक्ल पक्ष में)
 
गोवर्धन पूजा और अन्नकूट Govardhan Puja and Annakoot

॥ श्रीहरिः ॥

यम द्वितीया, भाई दूज, गोधन, कलमदान पूजन, चित्रगुप्त पूजा, शुभ मुहूर्त 3 नवंबर 2024 - कार्तिक मास व्रत

Yam Dwitiya, Bhai Dooj, Godhan, Kalamdaan Puja, Chitragupta Puja


आलेख - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)

भैया दूज, गोधन - शुभ मुहूर्त 3 नवंबर 2024 -

भैया दूज, गोधन का शुभ मुहूर्त: 3 नवंबर, सुबह 7 बज कर 57 मिनट से दोपहर 12 बज कर 4 मिनट तक है।

यम द्वितीया कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है जिसे भ्रातृ द्वितीया (भइया दूज) भी कहते हैं। यह दीपावली के दो दिन बाद आने वाला ऐसा पर्व है, जो भाई के प्रति बहन के स्नेह को अभिव्यक्त करता है एवं बहनें अपने भाई की खुशहाली के लिए कामना करती हैं। इस दिन वणिक् वृत्ति- वाले व्यवहार दक्ष वैश्य मसिपात्रादिका पूजन करते हैं, इस कारण इसे 'कलमदानपूजा' भी कहते हैं। चित्रगुप्त पूजा को हीं चित्रगुप्त पूजा एवं दवात पूजा कहते हैं।

यम द्वितीया, हेमाद्रिके मत से द्वितीया मध्याह्नव्यापिनी पूर्वविद्धा उत्तम होती है। स्मार्त मत में आठ भागके दिनके पाँचवें भाग की श्रेष्ठ मानी है और स्कन्द पुराण के कथनानुसार अपराह्नव्यापिनी अधिक अच्छी होती है। स्कन्द पुराण का मत की अपराह्नव्यापिनी में यम द्वितीया का अनुष्ठान करना चाहिए, यही ज्यादा उचित माना गया है।

यम द्वितीया - भइया दूज

यमद्वितीया के दिन यमुना ने अपने घर पर यमराज को भोजन करवाया था। इससे संसार में इसको यमद्वितीया कहते हैं । इस द्वितीया को अपने घर पर भोजन नहीं करने का प्रयत्न करना चाहिए बल्कि अपनी बहन के हाथ का भोजन करना चाहिए । इससे धनधान्य आदि सुख की प्राप्ति होती है । वस्त्र अलंकारों से सब बहनों का सत्कार करना चाहिए। अगर अपनी बहिन न हो तो मित्र आदि की बहनों का सत्कार करना चाहिए । बहनें भी भाई के पूजन से सदा सौभाग्यवती रहती है और भाई की आयु बढ़ती है। और जो पूजन न करे तो सातजन्म तक भाई का अभाव रहता है, ऐसी मान्यता है । यम द्वितीया को यमुना स्नान और अपराह्न के समय चित्रगुप्त और यमदूतों सहित यमराज का पूजन और यम के लिये अर्ध्य दान करना चाहिए। यम द्वितीया के दिन भाई अपनी बहिन के घर भोजन करते हैं, इसलिये यह 'भइया दूज' नाम से भी विख्यात है।

छोटी भगिनीके घर जाकर बहिनकी की हुई पूजा ग्रहण करे। बहिन को चाहिये कि वह भाई को शुभासनपर बिठाकर उसके हाथ-पैर घुलाये । गन्धादिसे उसका पूजन करे और दाल, भात, फुलके, कढी, सीरा, पूरी, चूरमा अथवा ड्डू.जलेबी, घेवर आदि यथासामर्थ्य उत्तम पदार्थोंका भोजन कराये और इन मंत्रों से उसका अभिनन्दन करें -

भाई दूज पर भाई का अभिनन्दन मंत्र -

भ्रातस्तवानुजाताहं भुङ्क्ष्व भक्तमिमं शुभम् ।
प्रीतये यमराजस्य यमुनाया विशेषतः ॥

इसके बाद भाई बहिन को यथासामर्थ्य अन्न-वस्त्र-आभूषण और सुवर्ण मुद्रादि द्रव्य देकर उससे शुभाशिष प्राप्त करे। यदि सहजा (सगी) बहिन न हो तो पितृव्य पुत्री (चचेरी बहन ), मातुल-पुत्री (मामा की बेटी) या मित्र-भगिनी (मित्र की बहिन) इनमें जो हो उसके यहाँ भोजन करे। यदि यम द्वितीया को यमुना के किनारेपर बहिन के हाथका बनाया भोजन करे तो उससे भाईकी आयुवृद्धि और बहिन के अहिवात (सौभाग्य) की रक्षा होती है।

कलमदान पूजा, चित्रगुप्त पूजा विधि

चित्रगुप्त जी मनुष्यों के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं, इस वजह से चित्रगुप्त पूजा के अवसर पर कलम, दवात, खाताबही की पूजा की जाती है। चित्रगुप्त जी की कृपा से बुद्धि, वाणी का प्रभाव बढ़ता है एवं व्यापार में उन्नति होती है। कायस्थ समाज में दिवाली से चित्रगुप्त पूजा तक दो दिन लेखा-जोखा नहीं करने की परंपरा है। लेखन कार्य नहीं किया जाता है।

चित्रगुप्त पूजा शुभ मुहूर्त 3 नवंबर 2024 -

चित्रगुप्त पूजा का शुभ मुहूर्त:

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि की शुरुआत 2 नवंबर, 2024 की रात में 8 बजकर 21 मिनट पर हो रही है और इस तिथि की समाप्ति 3 नवंबर की रात में 10 बजकर 5 मिनट पर होगी। पंडितों के अनुसार, इस दौरान भगवान चित्रगुप्त की पूजा का शुभ मुहूर्त रविवार 3 नवंबर, 2024 को सुबह 07।57 AM से दोपहर 12।04 PM तक बन रहा है।

चित्रगुप्त पूजा - दिन का शुभ चौघड़िया मुहूर्त 3 नवंबर 2024 -

व्रती को चाहिये कि प्रातः स्नानादि के अनन्तर शुभ मुहूर्त में पूजा स्थान पर पूर्व दिशा में एक चौक बना लें। वहां पर लकड़ी की एक चौकी रखें और उस पर चित्रगुप्त महाराज की मूर्ति या तस्वीर को स्थापित करें। उस पर नई कलम, दवात और खाताबही रखें। अब अक्षतादि के अष्टदलकमल पर गणेशादि का स्थापन करके निम्न संकल्प करें -

संकल्प मंत्र -

मम यमराजप्रीतये यमपूजनम्-व्यवसाये व्यवहारे वा सकलार्थसिद्धये मसिपात्रादीनां पूजनम् भ्रातुरायुष्यवृद्धये मम सौभाग्यवृद्धये च भ्रातृपूजनं च करिष्ये।

यह संकल्प करके गणेशजी का पूजन करनेके अनन्तर यमका, चित्रगुप्त का, यमदूतों का और यमुना का पूजन करे।

अब यम का निम्न रूप से प्रार्थना करें -

धर्मराज नमस्तुभ्यं नमस्ते यमुनाप्रज पाहि मां किङ्करैः सार्धं सूर्यपुत्र नमोऽस्तु ते ॥

अब यमुना जी का निम्न रूप से प्रार्थना करें -

यमस्वसनमस्तेऽस्तु यमुने लोकपूजिते । वरदा भव मे नित्यं सूर्यपुत्रि नमोऽस्तु ते ।।

चित्रगुप्त जी का प्रार्थना

अब चित्रगुप्त जी का निम्न रूप से प्रार्थना करें -

मसिभाजनसंयुक्तं ध्यायेत्तं च महाबलम् ।
लेखनीपट्टिकाहस्तं चित्रगुप्तं नमाम्यहम् ॥

यमराज का अर्ध्य

अब शङ्ख में या तांबा के अर्घ्यपात्र में अथवा अञ्जलिमें जल, पुष्प और गन्धाक्षत लेकर यमराज को निम्न रूप से अर्ध्य दें -

एह्येहि मार्तण्डज पाशहस्त यमान्तकालोकधरामरेश ।
भ्रातृद्वितीयाकृतदेवपूजां गृहाण चार्घ्यं भगवन्नमोऽस्तु ते ॥

अब उसी जगह मसिपात्र (दावात), लेखनी (कलम) और राजमुद्रा (मुख्य मुहर ) स्थापन करें। अब इन नाममन्त्रों से पूजन करें -

मसिपात्राय नमः।
लेखन्यै नमः।
राजमुद्रायै नमः।

मसिपात्र की प्रार्थना करें -

मसि त्वं लेखनीयुक्तचित्रगुप्तशयस्थिता।
सदक्षराणां पत्रे च लेख्यं कुरु सदा मम ॥

लेखनी की प्रार्थना करें -

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता या वीणा वरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥
तरुणशकलमिन्दोर्विभ्रती शुभ्रकान्तिः कुचभरनमिताङ्गी संनिषण्णा सिताब्जे निजकर-कमलोद्यल्लेखनीपुस्तकश्रीः सकलविभवसिद्ध्यै पातु वाग्देवता नः ॥
कृष्णानने कृष्णजिह्वे चित्रगुप्तशयस्थिते ।
प्रार्थनेयं गृहाण त्वं सदैव वरदा भव ॥

राजमुद्रा (मुहर) की प्रार्थना करें -

हिमचन्दनकुन्देन्दुकुमुदाम्भोजसंनिभे ।
प्रार्थनेयं गृहाणेमां नमस्ते राजमुद्रिके॥

अब आप खाताबही के पहले पन्ने पर स्वास्तिक बनाएं और श्री गणेशाय नम: लिख दें। फिर सफेद कागज पर ओम चित्रगुप्ताय नमः मंत्र को 11 बार लिखें। उस कागज को चित्रगुप्त महाराज के चरणों में रख दें। उसके बाद चित्रगुप्त जी की आरती करें-

भगवान श्री चित्रगुप्त जी की आरती

ॐ जय चित्रगुप्त हरे,
स्वामीजय चित्रगुप्त हरे ।
भक्तजनों के इच्छित,
फलको पूर्ण करे॥
विघ्न विनाशक मंगलकर्ता,
सन्तनसुखदायी ।
भक्तों के प्रतिपालक,
त्रिभुवनयश छायी ॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥

रूप चतुर्भुज, श्यामल मूरत,
पीताम्बरराजै ।
मातु इरावती, दक्षिणा,
वामअंग साजै ॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥

कष्ट निवारक, दुष्ट संहारक,
प्रभुअंतर्यामी । सृष्टि सम्हारन, जन दु:ख हारन, प्रकटभये स्वामी ॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥

कलम, दवात, शंख, पत्रिका, करमें अति सोहै ।
वैजयन्ती वनमाला,
त्रिभुवनमन मोहै ॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥

विश्व न्याय का कार्य सम्भाला,
ब्रम्हाहर्षाये ।
कोटि कोटि देवता तुम्हारे,
चरणनमें धाये ॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥

नृप सुदास अरू भीष्म पितामह,
यादतुम्हें कीन्हा ।
वेग, विलम्ब न कीन्हौं,
इच्छितफल दीन्हा ॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥

दारा, सुत, भगिनी,
सबअपने स्वास्थ के कर्ता ।
जाऊँ कहाँ शरण में किसकी,
तुमतज मैं भर्ता ॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥

बन्धु, पिता तुम स्वामी,
शरणगहूँ किसकी ।
तुम बिन और न दूजा,
आसकरूँ जिसकी ॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥

जो जन चित्रगुप्त जी की आरती,
प्रेम सहित गावैं ।
चौरासी से निश्चित छूटैं,
इच्छित फल पावैं ॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥

न्यायाधीश बैंकुंठ निवासी,
पापपुण्य लिखते ।
'नानक' शरण तिहारे,
आसन दूजी करते ॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे,
स्वामीजय चित्रगुप्त हरे ।
भक्तजनों के इच्छित,
फलको पूर्ण करे ॥

इसके बाद उनसे बिजनेस में उन्नति और परिवार में खुशहाली की प्रार्थना करें।

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