रमा अथवा रम्भा एकादशी Rama Ekadashi - कार्तिक मास कृष्ण पक्ष में
रमा अथवा रम्भा एकादशी Rama Ekadashi - कार्तिक मास कृष्ण पक्ष में
आलेख - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)
28 अक्टूबर, 2024, सोमवार को सर्वत्र (स्मार्त एवं वैष्णव ) कार्तिक रमा अथवा रम्भा एकादशी है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, रमा अथवा रम्भा एकादशी की शुरुआत 27 अक्टूबर , 2024 , रविवार को सुबह 7 बज कर 43 मिनट पर होगी और 28 अक्टूबर, 2024, सोमवार को दिन में 9 बज कर 11 मिनट पर समाप्त होगी। उदयातिथि के अनुसार, रमा अथवा रम्भा एकादशी का व्रत 28 अक्टूबर, 2024 को ही रखा जाएगा।
रमा अथवा रम्भा एकादशी व्रत का पारण
रमा अथवा रम्भा एकादशी व्रत का पारण अगले दिन 29 अक्टूबर, 2024 को सुबह 6 बजकर 26 मिनट से लेकर सुबह 8 बजकर 41 मिनट के बीच होगा।
रमा अथवा रम्भा एकादशी किसे कहते हैं ? रमा अथवा रम्भा एकादशी क्यों मनाई जाती है?
रमा अथवा रम्भा एकादशी कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष में एकादशी तिथि को मनाते हैं। इस दिन भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की भी पूजा की जाती है। पुराणों के अनुसार ऐसी मान्यता है कि इस दिन जो भी व्यक्ति ये व्रत करता है उसके जीवन की सभी मनोकामनाएं जरूर पूरी होती हैं। रमा अथवा रम्भा एकादशी का महात्म्य ब्रह्मवैवर्त पुराण में श्रीकृष्ण और महाराज युधिष्ठिर के संवादों में वर्णन हुआ है।
रमा अथवा रम्भा एकादशी कथा
एक बार युधिष्ठिर महाराज ने पूछा, "हे जनार्दन ! कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में आनेवाली एकादशी का नाम और महात्म्य कृपया विस्तारसे वर्णन करे।" भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा, "नृपेंद्र, सब पाप नाशनी इस एकादशी को 'रमा' कहते है। बहुत वर्ष पहले मुचुकुंद नाम का राजा था। उसकी देवराज इंद्र से अच्छी मित्रता थी वरुण कुबेर, यमराज, अग्नि ये भी उसके अच्छे मित्र थे। सभी धार्मिक तत्वों का पालन करते हुए वह अपने प्रजा पर राज्य कर रहा था। कुछ वर्षों के बाद राजा को पुत्री हुई जिसका नाम चंद्रभागा रखा गया। योग्य समय के उपरांत उसका विवाह चंद्रसेन राजा के पुत्र शोभन से हुआ। एक बार शोभन अपने ससुराल आया था, उसी दिन ही एकादशी थी। चंद्रभागा घबराकर विचार करने लगी, "हे भगवान ! अब क्या होगा? मेरे पति बहुत ही कमजोर है, उनसे भुख सहन नहीं होती। मेरे पिताश्री बहुत ही कठोर है। दशमी के दिन ही अपनी प्रजा में सेवकों को भेजकर एकादशी को अन्न कोई भी नहीं खाए यह आदेश देते हैं ।"
शोभन ने इस नियम के बारे में सुना और पत्नी को कहा, " हे प्रिये! अब मैं क्या करूँ ? मेरे प्राण बचाने के लिए और राजाज्ञा को मानने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?" चंद्रभागाने कहा, " हे स्वामी! मनुष्य तो क्या हाथी, अन्य तथा अन्य प्राणियों को भी आज हमारे पिताजी के साम्राज्य में कुछ भी खाने नहीं दिया जाता। अगर आपको 'कुछ खाना है तो आपके घर आपको लौटना पड़ेगा। इसीलिए योग्य विचार करके आप उचित निर्णय लीजिए।"
अपनी पत्नी की बात सुनकर शोभन ने कहा, "तुमने सत्य कथन किया है। परंतु आज एकादशी व्रत करने की मेरी इच्छा है, मेरे भाग्य में जो होगा वहीं होगा।" इस प्रकार सोचकर शोभनने उस दिन एकादशी व्रत किया। पर भूख-प्यास से वह व्याकुल होने लगा। सूर्यास्त के समय धर्मपरायण जीवात्मा और वैष्णव प्रसन्न हुए। भगवान के नाम संकीर्तन में उन्होंने रातभर जागरण किया। परंतु भूख के कारण शोभन ने अपना शरीर त्याग दिया। सूर्योदय के पूर्व ही मुचुकुंद राजा ने शोभन के शरीर का अंतिम संस्कार भी कर दिया। लेकिन चंद्रभागा को सती हो जाने की अनुमति नहीं दी । पति के श्राद्ध के पश्चात चंद्रभागा अपने पिता के घर हीं रहने लगी।
रमा अथवा रम्भा एकादशी के पालन से शोभन मंदार पर्वत के शिखर पर बसने वाले देवपुरी राज्य का राजा बना। रत्नों से सुशोभित सुवर्ण के खंबे और अमूल्य हीरे मोतीयों से जड़ित राजभवन में वह रहने लगा। अनेक आभूषणोंसे युक्त शोभन बहुत सारे गंधर्व और अप्सराओं के द्वारे सेवित था।
मुचुकुंदपुर का सोमशर्मा नामक ब्राह्मण तीर्थों की यात्रा करते हुए अचानक एक दिन देवपुरी में पहुंचा। शोभन को अपने राजा का जामाता समझकर वो उनके पास गया। ब्राह्मण को अपने सामने देखकर राजा अपने सिंहासन से उठे और प्रणाम करके ब्राह्मण के सामने खड़े रहे। उसके पश्चात राजा ने ब्राह्मण का, राजा मुचुकुंद का, चंद्रभागा तथा मुचुकुंदपुर की प्रजा का कुशल-मंगल पूछा। सभी लोग सुखसे और शांति से रह रहे हैं ऐसा ब्राह्मणा ने उत्तर दिया। आश्चर्य से ब्राह्मण ने राजा को पूछा, "हे राजन् ! इतनी सुंदर नगरी मैन कभी नहीं देखी। ऐसा राज्य आपको कैसे प्राप्त हुआ, इस विषय में आप हमें बताईए।" तभी राजा ने कहा, "रमा अथवा रम्भा एकादशी का व्रत करने से यह अशाश्वत राज्य मुझे मिला है। लेकिन ये राज्य किस प्रकार शाश्वत होगा इस विषय में आप मेरा मार्गदर्शन करे । शायद अश्रद्धा से मैंने इस व्रत का पालन किया होगा। इसीलिए यह अशान्वित राज्य मुझे मिला है। कृपया आप सब ये चंद्रभागा को कहिए। मेरे मत के अनुसार केवल वह इस राज्य को शास्वत बना सकती है।"
यह सुनकर वह ब्राह्मण मुचुकुंदुपरी में लौट आया। चंद्रभागा को पूरा वृत्तांत कथन किया। सब सुनकर चंद्रभागा ने कहा, "हे ब्राह्मणदेव ! आप जो भी कुछ कह रहे हैं वो मुझे केवल एक स्वप्न के भांति प्रतीत हो रहा है। "ब्राह्मण ने कहा, "हे राजकन्ये मैने स्वयं तुम्हारे पति को देवपुरी में देखा है। उसका राज्य सूर्य के समान तेजस्वी है। उस राज्य को शान्त बनाने की विनती तुम्हारे पति ने की है।" चंद्रभागा ने कहा, "हे ब्राह्मण! मैं अपने पुण्य के प्रभाव से वो राज्य शान्त बना दूंगी। आप मुझे वहाँ ले चलिए। अलग हुए दोनों को पुनः मिलाने का पुण्य आपको प्राप्त होगा।"
उसके पश्चात सोमशर्मा ब्राह्मण ने चंद्रभागा को मंदार पर्वत पर वामदेव के आश्रम में ले गए और उन्हें पूरा वृत्तांत सुनाया । वामदेव ने चंद्रभागा को वैदिक मंत्र की दीक्षा दी। वामदेव से प्राप्त मंत्र के प्रभाव से तथा रमा अथवा रम्भा एकादशी के पालन से चंद्रभागा को दिव्य शरीर प्राप्त हुआ। उसके बाद वह अपने पति के सामने गई।
अपनी पत्नी को देखते ही शोभन को प्रसन्नता हुई। चंद्रभागा ने कहा, "कृपया आपके हित के लिए मेरे दो वचनों को सुनिए। अपने आठ वर्ष की आयु से मैं रमा अथवा रम्भा एकादशी का पालन कर रही हूँ। इस व्रत पालन के प्रभाव से आपका राज्य प्रलय तक शास्वत और समृद्ध रहेगा।" उसके बाद वह अपने पति के साथ आनंदपूर्वक रहने लगी। इसीलिए हे राजन ! रमा अथवा रम्भा एकादशी कामधेनू अथवा चिंतामणी के समान सभी की सभी इच्छाएँ पूर्ती करने वाली है। "
भगवान् श्रीकृष्ण ने आगे कहा, "हे राजन् ! इस प्रकार मैंने तुम्हें इस एकादशी के महात्म्य का कथन किया है। कृष्ण पक्ष की तथा शुक्ल पक्ष की दोनों भी एकादशी का व्रत पालन करनेवाले को मुक्ति मिलती है। जो भी इस व्रत की महिमा सुनता है वह सभी पापों से मुक्त होकर आनंद से बैकुंठ की प्राप्ति करता है।"
रमा अथवा रम्भा एकादशी पूजन विधि (Rama Ekadashi Pujan vidhi)
अन्य एकादशी की तरह इस व्रत का धार्मिक कर्म भी दशमी से शुरू हो जाता हैं। दशमी के दिन घर में पूजा-पाठ करें और दोपहर में नदी में तर्पण की विधि करें। ब्राह्मण भोज कराएं और उसके बाद स्वयं भी भोजन ग्रहण करें। याद रखें दशमी पर सूर्यास्त के बाद भोजन न करें। एकादशी के दिन प्रात:काल उठकर व्रत का संकल्प लें और स्नान करें। व्रत के अगले दिन यानी द्वादशी को पूजन के बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें। इसके बाद परिवार के साथ मिलकर भोजन करें।
रमा अथवा रम्भा एकादशी व्रत क्यों करते हैं? रमा अथवा रम्भा एकादशी व्रत से लाभ -
रमा अथवा रम्भा एकादशी के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। सभी एकादशी में रमा अथवा रम्भा एकादशी का महत्व कई गुना ज्यादा माना गया है। रमा अथवा रम्भा एकादशी अन्य दिनों की तुलना में हजारों गुना अधिक फलदाई मानी गई है। कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति ये व्रत करता है उसके जीवन की सभी मनोकामनाएं जरूर पूरी होती हैं ।
रमा अथवा रम्भा एकादशी को क्या क्या खाना चाहिए ? रमा अथवा रम्भा एकादशी को खाने के पदार्थ :-
1. सभी प्रकारके फल, मूंगफली, मूंगफली का तेल।
2. आलू, नारियल, शक्कर, गुड, दूधसे बनाई वस्तुएँ ।
रमा अथवा रम्भा एकादशी को क्या क्या नहीं खाना चाहिए ?
एकादशी को इस पदार्थों का खाना वर्जित है -
1. टमाटर, बैंगन, फूलगोभी,
2. हरी सब्जियाँ,
3. चावल, गेहूँ, ज्वार, दाल, मक्का इत्यादि,
4. बेकिंग सोडा, बेकिंग पावडर, कस्टर्ड,
5. दुकान के आलू वेफर्स, तली हुई मुँगफली इत्यादि,
6. शहद पूरी तरह से वर्जित
रमा अथवा रम्भा एकादशी को क्या क्या मसाले उपयोग में लाए जा सकते हैं ?
रमा अथवा रम्भा एकादशी को मसाले में अदरक, सैंधा नमक, काली मिर्च इत्यादि उपयोग में लाए जा सकते हैं।