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पाचन तंत्र के रोगों का आयुर्वेदिक इलाज

Ayurvedic remedy for Digestive system Diseases

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पाचन तंत्र के रोगों का आयुर्वेदिक इलाज - Ayurvedic remedy for Digestive system Diseases

कब्ज (Constipation)

1. कब्ज की गंभीरता के अनुसार कुछ अधिक मात्रा में ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (विसक) कर छानकर पीयें या गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या हरीतकी वटी का सेवन करें।

2. भोजन के बाद गौमूत्र हरड़े चूर्ण गर्म पानी से लें।

3. रात्रि को सोते समय गर्म दूध में त्रिफलादि घृत फेंटकर लें।

अपथ्य : आँतों में चिपकनेवाला आहार जैसे (आलू, चावल, मावे की मिठाई, केला, बेसन, मैदा और पाँचन शक्ति को क्षीण करनेवाले आहार जैसे तली चीजें, चाय -कॉफी आदि के सेवन न करें। पूरे दिन बैठे रहना भी आप के लिये अच्छा नहीं है।

पथ्य : रेशेयुक्त पदार्थ जेसे छिलके सहित खाये जानेवाले फल सब्जी दाल, चोकर युक्त आटा, दलिया, पपीता सेवन करें।

विशेष : 1. गौमूत्र जितनी अधिक बार छानकर लेंगे उतना ही फायदा करेगा।
2. गाय के घी का प्रतिदिन 25 से 30 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से आँतों में चिकनाई रहती है, जिससे मल आँतों में चिपक नहीं पाता तथा सरलता से मलत्याग होता है।

गैस

1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (विसक) कर छानकर पीयें या गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें।

2. प्रतिदिन भोजन के साथ या बाद में गौमूत्र हरड़ चूर्ण का सेवन करें।

3. दूध में अदरक या सोंठ उबालकर घी डालकर पीयें।

4. गैस से पीड़ित अंग पर गौमय वातनाशक तेल लगाकर गर्म कपड़े से ढककर रखें या सेंक दें।

अपथ्य : फ्रिज की ठंडी चीजें, आलू, प्याज, गोभी, मैदा, बेसन, बासी भोजन, खमीरवाली चीजें, भैंस का घी, रिफाइण्ड तेल, मैथुन ।

पथ्य : घी, फिल्टर्ड तेल, मेथी, हींग, फल।

विशेष: 1. प्रतिदिन भोजन के तुरन्त बाद गर्म पानी का सेवन करें।
2. पंखे की तेज हवा से बचें।

आँव (चिकना व चिपचिपा मल)

1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें या गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें।

2. प्रतिदिन भोजन के साथ या बाद में गौमूत्र हरड़े चूर्ण का सेवन करें।

3. प्रतिदिन छाछ + सेंधा नमक या गौतक्रारिष्ट या गौतक्रासव का सेवन करें।

अपथ्य : मिठाई, मैदा, बेसन, तली हुई चीजें, फ्रिज की ठंडी चीजें, खमीर वाले पदार्थ, बासी भोजन, दूध।

पथ्य : नीबू, अदरक, मेथी, हींग, जौ का सत्तू, जामुन परवल, कुलथी।

विशेष: भोजन के पश्चात् गर्म पानी का सेवन करें।

अम्लपित्त (खट्टी डकारें आना, Acidity)

1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (विसक) कर छानकर पीयें या गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें।

2. छाछ या गौतक्रासव या गौमूत्र हरड़े चूर्ण का सेवन करें।

3. दूध में घी डालकर पीयें। इससे पुराने से पुरानी एसिडीटी एक महिने में समूल नष्ट हो जाती है।

अपथ्य : फ्रिज की ठंडी चीजें, ठंडा दूध, मिर्च, तेल, खटाई, खमीर वाले आहार, मैदा, बेसन, मावे की मिठाई, चाय-कॉफी भूखा रहना।

पथ्य : सुपाच्य भोजन लें।

विशेष: 1. भोजन के तुरन्त बाद एक गिलास गर्म पानी पीयें। 2. रात को सोते समय नाभि पर दो-तीन बूँद घी लगाकर अनामिका उंगली से मंथन करें।

पेट में कीड़े ( कृमि Worms)

1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (विसक) कर छानकर पीयें या गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें।

2. गाय के दूध में शहद डालकर 15 दिन तक पीयें।

3. वायबिडंग आदि से बनी गौमूत्र कृमिनाशक वटी का सुबह शाम 15 दिन तक सेवन करें।

4. सुबह खाली पेट 3 दिन तक 10 ग्राम गुड़ खाकर आधे घंटे बाद 3 ग्राम अजवायन का चूर्ण खायें।

5. 10 ग्राम गुड़ व 5 ग्राम कच्ची हल्दी का सुबह खाली पेट 3 दिन तक सेवन करें।

अपथ्य : मिठाई, मैदा, बेसन, दूध, हरी सब्जियाँ।

पथ्य : कड़वी, तीखी, कसैली चीजें, सभी मसाले हींग, हल्दी, मेथी, बिना बीज की लाल मिर्च।

उदर रोग (पेट के रोग )

1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (विसक) कर छानकर पीयें या गौमूत्र अर्क, गौमूव घनवटी या गौमूवासव या गोमूच हरीतकी वटी का सेवन करें।

2. प्रतिदिन छाछ या गौतक्रासव या गौ तक्रारिष्ट का सेवन करें।

3. गौमूत्र हरड़े चूर्ण का प्रयोग करें ।

4. त्रिफलादि घृत का प्रयोग करें।

5. प्रतिदिन छिलके सहित कच्ची लौंकी का एक गिलास रस निकालकर 5 काली मिर्च + 5 तुलसी के पत्ते + पुदीने के पत्ते घोंटकर मिलायें। स्वाद के अनुसार अदरक व सेंधा नमक मिलाकर पीयें।

अपथ्य : तली चीजें, बेसन, मैदा, मिठाई, गरिष्ठ आहार, भोजन में अनियमितता, भोजन कर तुरन्त सोना, बाजार का खाना, फ्रिज की चीजें।

पथ्य : सुपाच्य भोजन लें।

विशेष: भोजन के तुरन्त बाद गर्म पानी पीयें।

अग्निमांद्य ( भूख न लगना Dyspepsia)

1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (विसक) कर छानकर पीयें या गोमूत्र अर्क, गौमूत्र धनवटी, गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें।

2. भोजन के बाद छाछ या गौ तक्रारिष्ट या गौमूत्र हरड़े चूर्ण का सेवन करें।

3. त्रिफलादि घृत का सेवन करें।

अपथ्य : तली चीजें, मैदा, मावा, मिठाई, गरिष्ठ आहार आदि न लें।

पथ्य : अदरक + सेंधा नमक नींबू का रस बनाकर तैयार रखें। प्रतिदिन भोजन के पूर्व या साथ सेवन करें। स्वादिष्ट चटनियाँ, पापड़, छौंकी हुई सब्जी आदि खाना चाहिए।

विशेष : भूख बढ़ने के बाद भी कम से कम एक माह तक सेवन करें।

अजीर्ण (अपच, Indigestion)

1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (विसक) कर छानकर पीयें या गौमूत्र अर्क, गौमूत्र धनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें।

2. भोजन के बाद छाछ + सेंधा नमक या गौतक्रासव या गौमूत्र हरड़ चूर्ण का सेवन करें।

3. त्रिफलादि घृत का सेवन करें।

अपथ्य : तली चीजें, मैदा, मावा, मिठाई, गरिष्ठ आहार का सेवन न करें।

पथ्य : उपवास करें। नींबू + सेंधा नमक गर्म पानी के साथ सेवन करें।

विशेष : भोजन के तुरन्त बाद एक गिलास गर्म पानी पीयें।

अतिसार (दस्त Diarrhea)

1. मामूली अतिसार में अल्प मात्रा में ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (विसक) कर छानकर पीयें या गौमूत्र अर्क का सेवन करें, जिससे आँतों का अच्छी तरह शोधन हो जाय। अधिक दस्तें लगने पर 25 मिली गोमूत्र + 25 मिली दूध का सेवन करें।

आमाशय व्रण ( Peptic Ulcer)

पेट में विदग्ध पित्त (एसिड) इकट्ठा होने और उसकी तीक्ष्णता बढ़ जाने से अल्सर (व्रण) हो जाते हैं। मन में क्लेश-संताप होने से यह समस्या अधिक होती है।

1. गौमूत्र क्षारीय होने से एसिड का शामक है। मन को शांति प्रदान करता है, जिससे मनोवेगों की प्रखरता कम होती है। ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत कर छानकर पीयें। या गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी का सेवन करें।

2. गाय के घी का अधिकाधिक सेवन करें। गाय का घी घाव पर मलहम का कार्य करता है, जिससे एसिड का घाव पर प्रभाव नहीं पड़ता और वह धीरे-धीरे भर जाता है। घी पित्त का भी शमन करता है।

3. दूध में घी डालकर पीयें।

अपथ्य : खटाई, तली चीजें, मावा, मैदा, बेसन, मिर्च, गरिष्ठ भोजन का सेवन न करें।

पथ्य : दूध, छाछ, मेथी, जामुन, परवल, कुलथी, शहद, पपीता, गेहूँ, मिश्री युक्त जी का सत्तू, सेंधा नमक का सेवन करें।

विशेष: थोड़ा थोड़ा खायें, 3-3 घंटे से खायें, अधिक देर तक पेट को खाली न रखें। रात को सोते समय नाभि पर दो-तीन बूँद घी लगाकर अनामिका उंगली से मंथन करें।

आन्त्रपुच्छ शोध / प्रदाह ( Appendicitis )

1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार दिन में तीन बार ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें या दिन में तीन बार गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें।

2. नाभि के दाहिनी ओर चार अंगुल पर गोबर को गौमूत्र से नरमकर उसकी पुल्टिस बाँध सेक करते रहें।

3. दर्द बंद होने के बाद छाछ में सेंधा नमक मिलाकर भोजन के साथ लें।

अपथ्य : सभी दालें, दूध, दही, आलू, चावल, केला, तली चीजें मना है। भूख लगने पर ही भोजन करें।

पथ्य : पपीता, हरी सब्जियाँ, सुपाच्य भोजन।

विशेष: तुरन्त आराम हो जाने के बाद भी एक दो मास गौमूत्र का सेवन करने से आन्त्रपुच्छ शोथ समूल नष्ट हो जाता है।

अर्श (बवासीर Piles)

1. अधिकाधिक घी का सेवन करें।

2. केले के टुकड़े के बीच 1 ग्राम भीमसेनी कपूर रख निगल लें। ऐसा 5-7 दिन करें।

3. विभिन्न गौशालाओं द्वारा निर्मित कासीसादि तेल आदि को बवासीर व गुदामार्ग में लगायें।

अपथ्य : पित्त बढ़ानेवाले आहार यथा गर्म मसाले, चाय, कॉफी, आलू, बैंगन, लहसुन, दही, अधिक बैठना, मैथुन।

पथ्य : जमीकंद विशेष लाभ पहुँचाता है। गाय की छाछ, दलिया, सैंधा नमक, पपीता, लौकी, मिश्री, ब्रह्मचर्य।

विशेष: 1. गौमूत्र से गुदा को बार-बार धोयें।

2. व्यायाम - गुदा का 15-20 बार आकुंचन करें। यह व्यायाम दिन में 5-7 बार करें।

3. पैर के तलवों पर घी लगाकर कांसे के बर्तन से काला होने तक रगड़े। 4.2 ग्राम फिटकरी गर्म तवे पर फुलाकर गरम पानी में डालकर टब पर बैठकर 15-20 मिनट स्थानीय सेंक दें।

आँतों में चीरा (Fissure)

1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर या गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें।

2. अधिकाधिक गाय के घी का सेवन करें।

3. दूध में घी डालकर पीयें।

अपथ्य : आँतों में चिपकनेवाले पदार्थ जैसे मैदा, बेसन, आटा, मिठाई, आलू, आदि व पित्त बढ़ानेवाले पदार्थ जैसे गर्म मसाले, मिर्च, बैंगन, लहसुन, चाय-कॉफी।

पथ्य : दलिया, पपीता, मिश्री।

विशेष: पैरों के तलवों पर घी लगाकर कांसे के बर्तन से काला होने तक रगड़ें।

प्रवाहिका (Dysentery)

1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें या गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। जिससे ऐंठन, मरोड़ व बार-बार का दस्त बंद हो जायेगा। जीवाणु नष्ट होकर मल बंध जायेगा।

2. प्रतिदिन छाछ या गौतक्रारिष्ट का सेवन करें।

अपथ्य : मीठा, लाल मिर्च, गर्म मसाले, दूध।

पथ्य : चावल, दही, ज्वार, गेहूँ, दाल, सब्जियाँ।

भगन्दर (नासूर Fistula)

1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (विसक) कर छानकर पीयें या गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें।

2. दूध में घी डालकर पीयें।

3. भगन्दर को गौमूत्र से साफ करें जात्यादि घृत का प्रयोग करें।

4. प्रतिदिन गौमूत्र की बस्ति (एनिमा) लें।

अपथ्य : दूधा, दूध से बने पदार्थ, मीठे खट्टे पदार्थ, आलू, चावल तेल, मिर्च, मसाले, सभी प्रकार की हरी सब्जियाँ।

पथ्य : दाना मेथी की सब्जी, सुपाच्य भोजन, सब प्रकार की दालें, फल, पपीता, लौकी।

भस्मक (बहुत अधिक भूख लगना)

1. भस्मक रोग पित्त बढ़ने से होता है और गौमूत्र पित्त करता है, इसलिए अल्प मात्रा में शुरू कर धीरे-धीरे पूर्ण मात्रा तक ले जाना चाहिए।

2. गाय के घी का अधिकाधिक सेवन करना चाहिए।

अपथ्य : पित्त बढ़ानेवाले पदार्थ जैसे गर्म मसाले, मिर्च बैंगन आलू चाय-कॉफी।

पथ्य : जौ, नींबू+मिश्री का शर्बत, दूध।

विशेष: पैरों के तलवे पर घी लगाकर कांसे के बर्तन से काला होने तक रगड़ें।

यकृत वृद्धि (Lever Enlargment)

1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (विसक) कर छानकर पीयें या गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी घंटी का सेवन करें।

2. छाछ या गीतक्रारिष्ट या गौतक्रासव का प्रतिदिन सेवन करें।

3. प्रतिदिन छिलके सहित कच्ची लौकी।

अपथ्य : खटाई, तेल या घी में तला हुआ, गर्म मसाले, चावल, दही, आलू दालें, गारिष्ठ आहार, मैथुन, तेज धूप, अग्नि के सामने न रहें।

पथ्य : दूध (फीका), हरी सब्जियाँ, परवल, सहेजना गेहूँ, पपीता, हल्का भोजन, ब्रह्मचर्य, टहलना, घूमना लाभकारी है। अन्न बिल्कुल त्यागकर गाय का दूध उबालकर पीते रहने से अति शीघ्र लाभ होता है।

विशेष: रोग नष्ट हो जाने पर भी कुछ मास गौमूत्र का सेवन करने से रक्त स्वस्थ होता है।

मुख रोग (Oral Infection)

1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें या गौमूत्र अर्क, गोमूत्र घनवटी या गौमूत्राशव या गोमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें।

2. मुख में चारों ओर पंचगव्य घृत लगाकर 15-20 मिनिट रखें।

3. बार-बार गौमूत्र से कुल्ला करने से मुख में हुआ किसी भी प्रकार का संक्रमण नष्ट हो जाता है।

4. रात को सोते समय नाक में दो-दो बूँद गाय का घी डालें।

अपथ्य : मीठे खट्टे पदार्थ, आलू, चूना।

पथ्य : सुपाच्य भोजन।

कंठ रोग

1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें या गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें।

2. दिन में तीन बार गौमूत्र को थोड़ा गर्म कर गरारे करें।

अपथ्य : मीठे खट्टे आहार, दूध।

पथ्य : पतला दलिया, दाल या सब्जी का सूप, सेंधा नमक, हल्का गर्मजल।

विशेष: कंठ में अधिक कष्ट होने पर गोबर - गौमूत्र का गर्म लेप लगाकर चौड़े पत्ते से ढक मफलर से बाँधकर रखें।

संग्रहणी रोग IRRITABLE BOWEL SYNDROME

इस रोग में भोजन का पूर्ण पाचन हुए बिना ही वह मल के साथ निकलने लगता है। जठराग्नि के विकृत होने से यह रोग होता है।

1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें या गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें।

2. छाछ + सेंधा नमक या गौतक्रारिष्ट का प्रतिदिन सेवन करें।

अपथ्य : सभी मसाले, सब्जियाँ, दालें, तेल या घी की तली चीजें होने पर भी दो-तीन महीने गौमूत्र का सेवन करते रहें।

पथ्य : ज्वार की रोटी + छाछ, चावल या गेहूँ की थुली + दही ।

विशेष : 1. इस रोग को ठीक होने में दो-तीन महीने का समय लगेगा, रोग के ठीक होने पर भी दो-तीन महीने गोमूत्र लेते रहें।
2. नाभि पर 2-3 बूंद घी लगाकर अनामिका उंगली से हल्का मंथन करें।

तृषा ( प्यास न मिटना )

यह रोग क्लोम ग्रंथि की विकृति के कारण होता है।

1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें या गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें। जब तक दस्त साफ न आये, गौमूत्र की मात्रा बढ़ाते रहें। ताकि वायु की तीव्रता के कारण बढ़ रही प्यास नष्ट हो जाये। गौमूत्र में पर्याप्त मात्रा में विटामिन 'बी' है, इसलिए तृप्ति होती है।

2. दूध के साथ घी लें। भोजन में भी अच्छी मात्रा में घी का सेवन करें।

अपथ्य : रुरवा आहार, तली हुई चीजें, बर्फ का पानी ।

पथ्य : दूध, घी, मिश्री मिला आहार।

दन्त रोग (Dental Diseases)

दन्त रोगों का संबंध आँत के रोगों से है। आँत में अकार्बनिक पदार्थ इकट्ठा रहने से दन्त रोग होते हैं। आँत का शोधन करना, आँत साफ रखना व दूषित पदार्थ के संग्रह को निकालना चिकित्सा है।

1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें या गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें।

2. दूध-घी का सेवन करें।

3. गोबर के कोयले से बने गौमय दन्त मंजन से दिन में तीन बार दाँत साफ करें।

4. गौमूत्र से दिन में 4-5 बार कुल्ला करें।

अपथ्य : मीठे पदार्थ, खट्टे पदार्थ।

पथ्य : घी, तेल, दालें, सभी मसाले, लौंग।

विशेष :सरसों या तिल का तेल मुँह में भर 5-10 मिनिट तक कुल्ला करें।

वमन (उल्टी Vomiting)

वमन का मूल कारण, आम विष या अकार्बनिक पदार्थ का बन जाना है। प्रकृति उसे - निकालती है। दस्त आ जाने से वमन का वेग समाप्त हो जाता है।

1. थोड़ी-थोड़ी मात्रा में ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें या गौमूत्र अर्क का सेवन करें।

2. पानी में लौंग डालकर उबालकर पिलायें।

3. दूध में समान मात्रा में पानी मिलाकर उबालकर ठंडा करके शहद मिलाकर पिलायें।

अपथ्य : सभी प्रकार के अन्न, तली चीजें।

पथ्य : नींबू + सेंधा नमक + काला नमक चूसना अजवायन, अनार, मौसन्दी, सौंफ, आँवला।

आधमान (अफारा Flatulence )

1. गौमूत्र हरड़े चूर्ण को गर्म पानी के साथ लें।

2. पेट पर गौमय वातनाशक तेल लगायें।

3. गौतक्रासव का सेवन करें।

अपथ्य : समस्त अन्न, दही, चावल।

पथ्य : गर्म पानी में नींबू निचोड़कर पिलाना, सेंधा नमक।

हिचकी (Hiccough)

हिचकी अधिक आती हो, तो उसका एक ही उपाय है, घी पीयें और उसके ऊपर गर्म पानी पीयें या गर्म दूध में घी डालकर पीयें।

सिरोसिस ऑफ द लीवर

1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें या गौमूत्र पुनर्नवादि अर्क, गौमूत्र पुनर्नवादि घनवटी या गौमूत्र हरीतकी वटी लेने से सिरोसिस ऑफ द लीवर जैसा असाध्य रोग भी ठीक हो जाता है।

2. छाछ या गौतक्रारिष्ट का सेवन करें।

अपथ्य : खटाई, तली चीजें, गर्म मसालें, आलू, बैंगन।

पथ्य : परवल, सहजन।

विशेष : यह उपचार लगातार छः महीने तक करें।

हेपेटायटिस बी

1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें या गौमूत्र पुनर्नवादि अर्क, गौमूत्र पुनर्नवादि घनवटी या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें।

2. प्रतिदिन छिलके सहित कच्ची लौंकी का एक गिलास रस निकाल 5 काली मिर्च + 5 तुलसी के पत्तें +5 पौदीने के पत्ते घोंटकर मिलायें।

3. 31 पत्ती श्यामा तुलसी का रस एवं उतना ही शहद मिलाकर सेवन करें।

अपथ्य : खटाई, तली चीजें।

पथ्य : गेहूं के जवारे, मूली, नारियल, पपीता, अनार।

टांसिल्स

1. ऋतु, प्रकृति और अवस्था के अनुसार देशी गाय के गौमूत्र को सूती कपड़े को आठ परत (fold) कर छानकर पीयें या गौमूत्र अर्क, गौमूत्र घनवटी या गौमूत्रासव या गौमूत्र हरीतकी वटी का सेवन करें।

2. 1 ग्राम फिटकरी (गर्म तवे पर फूली हुई) एक गिलास गुनगुने पानी में डालकर गरारे करें।

3. नाक में गाय के घी की दो-दो बूंदे डालें।

4. दूध में घी या त्रिफलादि घृत डालकर पीयें।

अपथ्य : खट्टा, तला, फ्रिज का ठंडा, मिर्च, मसाले।

पथ्य : घी का हलवा, दलिया, चावल, जौ का पानी, मूँग, सहजन, करेला।

नोट - यह वेब पेज सिर्फ पंचगव्य और गोमूत्र चिकित्सा संबंधी जानकारी प्रदान करने हेतु है। चिकित्सा हेतु प्रयोग से पूर्व किसी पंचगव्य और गोमूत्र चिकित्सक से परामर्श अवश्य लें।

***** शरीर के रोग और उनका आयुर्वेदिक घरेलू चिकित्सा ******

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