शनि रक्षा स्तोत्र दशरथकृत शनि स्तोत्र
Shani Raksha Stotra
शनि रक्षा स्तोत्र
दशरथकृत शनि स्तोत्र
शनिदेव हमारे कर्मों का फल देते हैं , न्याय के देवता हैं। शनिदेव जल्दी प्रसन्न होनेवाले देवता नहीं हैं। परंतु शनि स्तोत्र का नियमित पाठ से शनिदेव प्रसन्न होना शुरू करते हैं और परेशानियों से मुक्ति देते हैं बशर्ते आपके कर्म भी अब अच्छे हों। जो जातक संस्कृत के स्तोत्र को नहीं पढ़ सकते हैं उनके लिए शनि स्तोत्र का हिंदी भावार्थ भी दिया जा रहा है, इसका पाठ भी शनिदेव को प्रसन्न करेगा।
शनि स्तोत्र पाठ विधि
अपने सामने एक बर्तन में तिल या चमेली का तेल रखकर, शनि जयंती के दिन, या शनिवार का दिन हो, या अमावस्था हो तो उस दिन अपनी क्षमतानुसार 1 माला, 3 माला, 5 माला, 11 माला अथवा आप जितना माला का पाठ कर सकें (विषम संख्या में ) करें। कुछ लोग कृष्ण पक्ष में भी इसके जप की विधान देते हैं।
पाठ के बाद उस तेल में अपना बिम्ब देखें। उसके बाद उस तेल को शनि मंदिर में चढ़ा दें।
शनि मंदिर न हो तो उसे शाम के समय शनिदेव के नाम से एक नए मिट्टी के दीपक में डालकर जला दें और उसके बाद जब तेल समाप्त हो जाये तो उस दीपक को नदी तालाब कुआं निर्जन स्थान में छोड़ दें और बिना पीछे मुड़कर देखे वापस आ जाएँ।
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।।
हिंदी भावार्थ : जिनके शरीर का वर्ण कृष्ण नील तथा भगवान् शंकर के समान है, उन शनि देव को नमस्कार है। जो जगत् के लिए कालाग्नि एवं कृतान्त रुप हैं, उन शनैश्चर को बार-बार नमस्कार है।
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।
हिंदी भावार्थ : जिनका शरीर कंकाल जैसा मांस-हीन तथा जिनकी दाढ़ी-मूंछ और जटा बढ़ी हुई है, उन शनिदेव को नमस्कार है। जिनके बड़े-बड़े नेत्र, पीठ में सटा हुआ पेट और भयानक आकार है, उन शनैश्चर देव को नमस्कार है।।
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते।।
हिंदी भावार्थ : जिनके शरीर का ढांचा फैला हुआ है, जिनके रोएं बहुत मोटे हैं, जो लम्बे-चौड़े किन्तु सूके शरीर वाले हैं तथा जिनकी दाढ़ें कालरुप हैं, उन शनिदेव को बार-बार नमस्कार है।।
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।
हिंदी भावार्थ : हे शने ! आपके नेत्र कोटर के समान गहरे हैं, आपकी ओर देखना कठिन है, आप घोर रौद्र, भीषण और विकराल हैं, आपको नमस्कार है।।
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च ।।
हिंदी भावार्थ : वलीमूख ! आप सब कुछ भक्षण करने वाले हैं, आपको नमस्कार है। सूर्यनन्दन ! भास्कर-पुत्र ! अभय देने वाले देवता ! आपको नमस्कार है।।
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते ।।
हिंदी भावार्थ : नीचे की ओर दृष्टि रखने वाले शनिदेव ! आपको नमस्कार है। संवर्तक ! आपको प्रणाम है। मन्दगति से चलने वाले शनैश्चर ! आपका प्रतीक तलवार के समान है, आपको पुनः-पुनः नमस्कार है।।
तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ।।
हिंदी भावार्थ : आपने तपस्या से अपनी देह को दग्ध कर लिया है, आप सदा योगाभ्यास में तत्पर, भूख से आतुर और अतृप्त रहते हैं। आपको सदा सर्वदा नमस्कार है।।
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ।।
हिंदी भावार्थ : ज्ञाननेत्र ! आपको प्रणाम है। काश्यपनन्दन सूर्यपुत्र शनिदेव आपको नमस्कार है। आप सन्तुष्ट होने पर राज्य दे देते हैं और रुष्ट होने पर उसे तत्क्षण हर लेते हैं।।
देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:।।
प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल: ।।
हिंदी भावार्थ : देवता, असुर, मनुष्य, सिद्ध, विद्याधर और नाग- ये सब आपकी दृष्टि पड़ने पर समूल नष्ट हो जाते हैं। देव मुझ पर प्रसन्न होइए। मैं वर पाने के योग्य हूँ और आपकी शरण में आया हूँ।।
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